Shuny se Shuny tak - 84 in Hindi Love Stories by Pranava Bharti books and stories PDF | शून्य से शून्य तक - भाग 84

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शून्य से शून्य तक - भाग 84

84===

आनन-फानन में आशी के कमरे के बाहर घर के सारे लोगों की भीड़ इकट्ठी हो गई| सब लोग खाने के बीच में ही आवाज़ें सुनकर ऊपर आ चुके थे, महाराज और घर के सारे सेवक भी ! दरवाज़ा खुलवाने की भरसक कोशिश की गई लेकिन कोई उत्तर न पाकर सबके चेहरों पर जैसे सफ़ेदी छा गई| किसी और अनहोनी की आशंका से सबका मन घबराने लगा| 

अनिकेत, उसके पिता-माता सब ही तो यहीं थे| सबके मन में ही घबराहट पसरी हुई थी जो उनके चेहरों से छलकी पड़ रही थी| सबकी आँखों में न जाने कितने प्रश्न भर आए थे जिनके उत्तर तो नदारद थे ही! 

“अरे! यह तो बंद है ! ”अचानक मनु ने चौंककर इंटरलॉक देखा| कब से सब दरवाज़ा खुलवाने के लिए जूझ रहे थे लेकिन किसी का ध्यान भी इंटरलॉक पर गया ही नहीं था| अरे बाबा, यह एक और कठिनाई सामने आ खड़ी हुई थी| अब---? ? 

“ओह! यह कैसे? माधो! ज़रा देखना आशी की गाड़ी है न पोर्च में? ” मनु को आशी की गाड़ी देखने का ध्यान आया और उसने अपने पीछे खड़े माधो से कहा जिसके चेहरे पर हवाइयाँ उड़ रहीं थीं| 

मनु के यह कहते ही वह नीचे भागा| 

“देखते हैं, क्या होता है ? ”मनु ने चिंतित स्वर में कहा | फिर स्टाफ़ से बोला ;

“आप लोग सब अपना काम कर लीजिए| आज श्रद्धांजलि के लिए भी सब आएंगे| ”मनु ने कहा तो सब उधर से हटकर बड़े बेमन से अपने काम करने के लिए वहाँ से चले गए | मनु का चेहरा पसीने से भीग गया था और दिल की धड़कनें न जाने कहाँ पहुँच गईं थीं| क्या हो रहा था? ऐसा खेल भी दिखाती है ज़िंदगी! अनिकेत और उसके माता-पिता उसके साथ ही थे | उसे लगा कि उसे यह बात अनन्या को बता देनी चाहिए | 

“अंकल! मैं अभी आता हूँ---”वह अनन्या के कमरे में आ गया | उसने देखा अनन्या अब तक कुछ सैटल हो चुकी थी, वह धीरे-धीरे सूप पी रही थी| उसने सोचा बता दे लेकिन फिर न जाने क्यों चुप रह गया| 

“ठीक हो न ? ”उसने अनन्या से पूछा और आश्वस्त सा होकर कमरे से बाहर जाने लगा| 

आशिमा, रेशमा को भी अनिकेत की मम्मी ने अनन्या , उसकी मम्मी और बच्ची का ध्यान रखने के लिए वहीं रहने के लिए कह रखा था| 

“मनु! आशी से बात हुई? ”अनन्या के मुँह में शब्द भरे ही रह गए| वह उन्हें अनसुना करके वहाँ से बाहर निकल चुका था| 

वह बाहर निकलकर फिर सबके पास आ खड़ा हुआ| लॉबी में खड़े हुए सब लोग नीचे गार्डन में श्रद्धांजलि कार्यक्रम के लिए आने वाले लोगों की व्यवस्था करने वाले लोगों की ओर यूँ ही नज़र घुमा रहे थे| 

“नहीं, आशी बीबी की गाड़ी नहीं है मनु भैया---”माधो ने हांफते हुए आकर बताया| 

“ड्यूटी गार्ड्स से पूछा? ”

“अभी दो घन्टे पहले दूसरे दोनों गार्ड्स की ड्यूटी बदली है न इसलिए उन्हें कुछ नहीं पता| ”माधो की आँखों से फिर से पतनाले बहने लगे | एक तो पहले ही उसे समझ में नहीं आ रहा था कि परिस्थिति कैसे संभलेगी और अब तो जैसे सब कुछ ही---

अनिकेत के पिता ने सबको दीना जी के कमरे में चलकर बैठने के लिए कहा | वहाँ खड़े रहने से कुछ नहीं होने वाला था| संभालनी तो थी ही परिस्थिति ! 

मनु ने उन गार्ड्स को फ़ोन लगाया जिनकी इससे पहले ड्यूटी थी| उनसे पता लगा कि आशी बीबी सुबह 4/5 बजे के बीच गाड़ी निकालकर कहीं चली गईं थीं| उनके हाथ में एक ट्रैवल-बैग था और कंधे पर एक बड़ा पर्सनुमा बड़ा बैग| जब वह निकली, उसके साथ कोई नहीं था| थकान के कारण सारा स्टाफ़ सो रहा था| 

रात को घर के पालतू कुत्तों को बाउंड्री के अंदर खोल दिया जाता था| वे दीना जी को बहुत प्यार करते थे| उनकी अंतिम यात्रा में वे आँसु भरी आँखों से सब कुछ देखते हुए उनकी निर्जीव देह के चारों ओर घूमते रहे थे| उन्हें ज़बरदस्ती लेजाकर उनके स्थान पर बाँध दिया गया था। वह स्थान काफ़ी दूर था लेकिन वहाँ से भी उनकी रोने की आवाज़ें लोगों के कानों तक पहुँच रही थीं| 

आज आशी के गाड़ी निकालने के समय वे उसके भी चारों ओर चक्कर लगाते रहे| आशी ने उनको प्यार से सहलाया था और गार्ड्स से अपना बैग डिक्की में रखने के लिए कहा था| उसने गार्ड्स से कुछ नहीं बताया था और उनका तो साहस था नहीं उससे कुछ पूछने का| वे बेचारे तो हाथ बाँधे गेट के दोनों ओर चुपचाप खड़े हुए थे| कुछ देर बाद वह गाड़ी लेकर तेज़ी से निकल गई थी| 

इसका मतलब है आशी ने अपनी प्लानिंग के अनुसार पक्का कार्यक्रम तैयार किया था जिससे उसे किसीका सामना न करना पड़े और वहाँ से जहाँ कहीं भी जाना हो निश्चिंतता से पहुँच जाए| अब? वे सारे प्रश्न तो अब भी ऐसे ही खड़े थे जिनके उत्तर तलाशना जरूरी था| 

इस समय  पहले श्रद्धांजलि का काम सम्पन्न हो जाए , बाद में सोचा जाएगा कि किया क्या जाए? 

न जाने कहाँ गई होगी आशी? विकट प्रश्न छोड़ आई थी वह वहाँ ! अब वह स्वयं एक सही व सुरक्षित स्थान पर थी लेकिन उस परिवार में आखिर क्या हो रहा होगा वह कल्पना भर कर सकती थी| केवल कल्पना के सहारे अपनी कहानी उसे आगे बढ़ानी थी| वैसे तो जो कुछ उसने किया था वह संवेदना उसके बहुत कुछ लिखने के लिए पर्याप्त थी और इसीलिए अपनी कथा आगे बढ़ा भी पा रही थी| 

उसके बाद वहाँ क्या हुआ होगा? अब उसकी कलम ठिठकती हुईआगे बढ़ रही थी |