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होनी को आज तक किसने टाला है? अनन्या को उसके कमरे में लाया गया| वह जैसे शून्य हो चुकी थी| उसका और उसका ही क्या सबका संबल, ऊर्जा, आस-विश्वास थे दीनानाथ जी! न जाने कितने लोगों को उन्होंने अपनी छत्रछाया के तले समेटा हुआ था| इसीलिए उनके घर और परिवार को संभालने वाला प्रत्येक कर्मचारी उनके अपने परिवार का सदस्य था जो उनके सुख-दुख में सदा शामिल था|
परिवार में दो लोगों से इतने लोगों का सदस्य बन जाना, दीना जी के व्यवहार का ही परिणाम था| सबके मन में प्रश्न घूम रहा था---अब? प्रश्न कठिन था और सबके मनों में एक बवंडर बनकर उमड़-घुमड़ रहा था|
क्या होगा मनु और अनन्या के रिश्ते का? आशी से किसी को कोई उम्मीद नहीं थी| बेहोशी की स्थिति से बाहर आते ही अनन्या ने पूरी स्थिति को समझने का प्रयास किया लेकिन क्या समझती? सब कुछ एक उजड़ा हुआ स्वप्न बनकर एक राख का भयंकर चक्रवात सा उसके सामने घुमड़ रहा था|
अब अनन्या को उसके कमरे में ले आया गया था, जो भी स्थिति थी, सबके सामने थी और उसमें ही रहना था। जूझकर भी कोई लाभ तो होना नहीं था| अनन्या शारीरिक व मानसिक कमज़ोरी से लरज रही थी| उसकी मम्मी भी मानो किसी बुरे स्वप्न में बार-बार खोने लगतीं| अब उन्हें समझ में आया था कि आखिर इतना स्नेह व आशीष बाँटने वाले दीना जी ने क्यों अनन्या से उसकी तबीयत और बच्ची के बारे में नहीं पूछा था| वह घर में और कई दिन न आते तो उन्हें पता ही नहीं चलता! वैसे पता चलकर हो भी क्या जाना था? सारी बातें दिल को बहलाने की होती हैं|
स्नान आदि करने के बाद अनन्या फिर से दीना जी के कमरे में आ गई| अब तक उसकी आँखें फटी रह गईं थीं| अब वह उनकी तस्वीर के आगे बैठकर फूट-फूटकर रोने लगी थी| बच्ची का तो उसे होश ही नहीं था, उसे अपने कमरे में ही छोड़कर आ गई थी वह ! वहाँ उसका ध्यान रखने वाले इतने लोग थे लेकिन अनन्या के भीतर की माँ जैसे उसके भीतर सोने लगी थी| उसके अजीब से घबराए चेहरे पर क्या और कैसे कई प्रश्न पसरे हुए थे जैसे वे उसे उसे चैलेंज कर रहे हों| उसकी आँखें आशी को भी तलाश कर रही थीं| कहाँ थी आशी? कुछ देर अपने विव्हल मन को शांत करने के बाद उसे बिटिया की याद हो आई और वह अपने आप ही क्षीण पैरों से अपने कमरे की ओर आ गई |
महाराज ने कुछ हल्का-फुल्का खाना बनाकर सबको बुलाया था| अनन्या दीना जी के कमरे में काफ़ी देर बैठकर हल्की हो चुकी थी और मन में कोलाहल भरे अपने भविष्य के बारे में चिंतित हो रही थी| कमरे में आकर अनन्या ने देखा कि उसकी बच्ची बड़े आराम से अपने सुंदर से कोज़ी पालने में सोती हुई मुस्कुरा रही थी| उसे देखकर जैसे उसकी चेतना जागृत हुई| उसे लगा दीना जी यानि डैडी की मुस्कान सोती हुई बच्ची के चेहरे पर थिरक रही है| वह बच्ची की उपेक्षा आखिर कैसे कर सकती थी? भावावेश में आकर उसने बच्ची को पालने से उठाकर अपने सीने में भर लिया, इतनी नाजुक सी बच्ची थी, अचानक घबरा उठी थी | मनु व अन्य सबको उसके मानसिक व शारीरिक स्वास्थ्य की बहुत चिंता थी| वहाँ उपस्थित सब लोग ही अनन्या को देख रहे थे जिसके व्यवहार में सबको बहुत कुछ अलग और अजीब महसूस हो रहा था|
महाराज के बार-बार बुलाने पर सब लोग खाने के लिए नीचे उतरे|
“मम्मी, आप भी बहनों और सबके साथ नीचे कुछ खा लीजिए| अनु के लिए महाराज ने सूप और कुछ हल्का बनाया है| मैं ऊपर ले आऊँगा| ”मनु ने अनन्या की मम्मी से कहा| अनिकेत व उसके बाबा भी अब यहीं थे, मम्मी तो पहले से ही बच्चों को संभाल रही थीं|
अनु अब तक पूरे होश में आकर सारी परिस्थिति को समझ चुकी थी| इस समय वह चुप थी और मन में बहुत से प्रश्नों के बारे में सोच रही थी| मनु अनन्या के लिए खाना लेने गया और वह छोटे की माँ से बच्ची का ध्यान रखने के लिए कहकर डगमगाते कदमों से आशी के कमरे की ओर चल दी| आखिर आशी कमरे से बाहर निकल नहीं रही थी, उसको देखना भी जरूरी था| अनन्या के मन में न जाने कितने सवाल उठ रहे थे|
“आशी ! प्लीज़ दरवाज़ा खोलिए, बाहर आइए प्लीज़---”अनन्या ने कई बार आशी के कमरे का दरवाज़ा नॉक किया लेकिन अंदर से कोई उत्तर नहीं था|
अनन्या का दिल घबराने लगा, आखिर आशी ने अपने पिता को खोया था| उनके अलावा रक्त के संबंधों में आशी के पास और कोई कहाँ था? कहीं कुछ---
“मनु! देखो प्लीज़ , आशी दरवाज़ा नहीं खोल रही है| ”उसने घबराकर कहा|
मनु ऊपर आ गया था, उसके पीछे छोटा एक ट्रे पकड़े हुए था|
“वहाँ क्या कर रही हो? जानती हो अभी डॉक्टर ने कितनी केयर लेने के लिए कहा है! ”मनु ने कुछ नाराजगी से अनन्या से कमरे में आने के लिए कहा|
“लेकिन मनु----”
“अनु! देख लेते हैं आशी को भी लेकिन तुम बहुत देर से खाली पेट हो| तुम्हें दवाई भी खानी है| ”वह अनन्या पर कुछ गुस्सा हुआ|
“मनु , खा लूँगी दवाई भी–पहले आशी को तो देख लो—”
“नहीं, पहले यहाँ आकर कुछ खाओ और फिर दवाई| तुम्हें डॉक्टर ने खाली पेट न रहने के लिए कहा है, याद है न तुम्हें ? ”मनु उसको ज़बरदस्ती आशी के दरवाज़े के बाहर से हटाकर ले आया|
“तुम्हें बेबी का भी ध्यान नहीं है? तुम नहीं खाओगी तो---”
मनु ने ज़बरदस्ती अनु को गर्म सूप पिलाया और दो चम्मच दलिया भी लेकिन अनन्या के चेहरे पर चिंता की रेखाएं कम नहीं हुईं |
“चिंता मत करो, अभी देख लेते हैं आशी को भी---लो तुम ये खाओ और सूप पीयो और देखो ये रहीं तुम्हारी दवाइयाँ| मैं आता हूँ आशी को देखकर--”
मनु आशी के कमरे की ओर बढ़ गया और फिर से दरवाज़ा खुलवाने की कोशिश करने लगा लेकिन न दरवाज़ा खुला और न ही कोई आवाज़ सुनाई दी| अब वह सच में चिंतित होने लगा था| वैसे ही उसका मस्तिष्क चिंता से खाली कहाँ था, अब उसका मन और घबराने लगा|