Tuti Futi Kahaniyon Ka Sangrah - 5 in Hindi Anything by Sonu Kasana books and stories PDF | टूटी फूटी कहानियों का संग्रह - भाग 5

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टूटी फूटी कहानियों का संग्रह - भाग 5

प्राचीन भारत का एक छोटा सा गाँव था, जिसका नाम था *तुनकपुर*। गाँव के अधिकतर लोग मांसाहारी थे। वहाँ के लोग अपने रीति-रिवाजों और आदतों में रचे बसे थे और बिना मांस के भोजन की कल्पना भी नहीं कर सकते थे। लेकिन उस गाँव में एक महान संत, **महात्मा वसुदेव** आए। वसुदेव जी अपनी दिव्यता और सरलता के लिए पूरे इलाके में प्रसिद्ध थे। उनके कई शिष्य भी उनके साथ थे, जो गाँव-गाँव जाकर लोगों को सही मार्ग दिखाते थे।

गाँव में पहुँचने के बाद संत वसुदेव जी ने देखा कि लोग अपनी सेहत और स्वभाव में भारीपन महसूस करते थे। गाँव के लोग बीमारियों से ग्रस्त थे, और उनके मन में भी अशांति थी। संत जी ने सब समझा कि मांसाहार और उनकी आदतें इसके कारण हैं। उन्होंने गाँव वालों से मिलकर उन्हें शाकाहार की महत्ता बताने का निश्चय किया।

एक दिन संत जी ने गाँव के सभी लोगों को बुलाया और उन्हें समझाने के लिए एक कथा सुनाई। उन्होंने कहा, "जब हम मांस खाते हैं, तो हम अपने भीतर उन जीवों का दुःख और पीड़ा लेकर आते हैं। क्या आप जानते हैं कि जिस जानवर को हम भोजन बनाते हैं, वह भी जीवन का अधिकार रखता है?"

फिर उन्होंने एक छोटी कहानी सुनाई:

*कहानी: करुणा का प्रतिफल*  
एक बार की बात है, एक राजा के दरबार में एक शिकारी आया। उसने एक हिरण को मारकर राजा को भेंट दी। राजा ने हिरण का मांस पकाने का आदेश दिया। लेकिन तभी एक संत वहाँ पहुँचे और राजा से बोले, "महाराज, यह हिरण तो अब जीवित नहीं हो सकता, लेकिन इसके स्थान पर यदि आप इसे छोड़ देते तो इसके जीवन से एक पूरा परिवार सुरक्षित रहता।" राजा ने संत की बात पर विचार किया और मांसाहार छोड़कर शाकाहारी जीवन अपनाया। उसके राज्य में शांति फैल गई और लोग सुखी होने लगे।

संत वसुदेव जी ने कहानी खत्म कर के कहा, "यदि हम शाकाहार अपनाते हैं, तो हमारे भीतर करुणा और शांति का भाव उत्पन्न होता है। हमारा शरीर स्वस्थ रहता है, और मन शांत रहता है।"

कुछ गाँव वालों ने सवाल उठाया, "लेकिन हमें ताकत के लिए मांस चाहिए। शाकाहार से कैसे जीवित रहेंगे?"

संत जी ने मुस्कुराते हुए कहा, "ताकत केवल मांस से नहीं मिलती। क्या आपने कभी हाथी को देखा है? वह सबसे शक्तिशाली होता है, फिर भी शाकाहारी है। गाय दूध देती है, उसका मांस नहीं खाया जाता। अनाज, फल, सब्जियाँ—यह सब हमें प्रकृति से मिलता है। जो शरीर को स्वस्थ और मन को शांत रखता है।"

संत जी की बातें और कहानियाँ गाँव के लोगों के दिलों को छू गईं। धीरे-धीरे कुछ लोग शाकाहार अपनाने लगे। उन्होंने देखा कि उनके शरीर में हल्कापन आने लगा, बीमारियाँ कम होने लगीं और उनके मन में शांति बढ़ने लगी। 

समय बीतने के साथ, पूरे गाँव ने मांसाहार छोड़कर शाकाहार अपना लिया। तुनकपुर गाँव अब केवल एक गाँव नहीं था, बल्कि एक उदाहरण बन गया था, जहाँ शांति, करुणा और स्वास्थ्य का वास था।

संत वसुदेव जी और उनके शिष्य खुशी-खुशी आगे के सफर पर निकल गए, यह जानते हुए कि उन्होंने एक गाँव को सही मार्ग दिखा दिया था।