Incomplete forest_a mystery_part-1 in Hindi Horror Stories by Abhishek Chaturvedi books and stories PDF | अधूरा जंगल_एक रहस्य_भाग-१

Featured Books
  • ભીતરમન - 59

    મુક્તારના જીવનમાં મારે લીધે આવેલ બદલાવ વિશે જાણીને હું ખુબ ખ...

  • ભાગવત રહસ્ય - 121

    ભાગવત રહસ્ય-૧૨૧   ધર્મ -પ્રકરણ પછી હવે -અર્થ -પ્રકરણ ચાલુ થા...

  • કૃતજ્ઞતા

      આ એ દિવસોની વાત છે જ્યારે માનવતા હજી જીવતી હતી. એક ગામમાં...

  • નિતુ - પ્રકરણ 53

    નિતુ : ૫૩ (ધ ગેમ ઇજ ઓન)નિતુને કૃતિ સાથે વાત કરવાની જરૂર લાગી...

  • સંઘર્ષ - પ્રકરણ 13

    સિંહાસન સિરીઝ સિદ્ધાર્થ છાયા Disclaimer: સિંહાસન સિરીઝની તમા...

Categories
Share

अधूरा जंगल_एक रहस्य_भाग-१

अधूरा जंगल_एक रहस्य (उपन्यास)


अधूरे जंगल में प्रवेश

       एक समय की बात है, शहर के पास एक ऐसा जंगल था जिसे लोग "अधूरा जंगल" के नाम से जानते थे। इस जंगल के बारे में कई कहानियाँ प्रचलित थीं, लेकिन उनमें से कोई भी स्पष्ट नहीं थी। लोग कहते थे कि इस जंगल का नाम अधूरा इसलिए पड़ा क्योंकि जो भी इसमें गया, वह कभी लौटकर नहीं आया या अगर आया तो वह पहले जैसा नहीं रहा।

इस जंगल के बारे में सबसे विचित्र बात यह थी कि इसकी सीमाएँ कभी स्थिर नहीं रहती थीं। कभी वह गाँव के पास दिखाई देता, तो कभी शहर के बाहर। लोगों को यह भी नहीं पता था कि यह जंगल वास्तव में कितनी दूर तक फैला हुआ है। 

रात के समय, जंगल के पास से गुजरते समय लोगों ने अक्सर अजीब आवाजें सुनीं—मानो कोई उनके नाम पुकार रहा हो या कोई अनदेखी शक्ति उन्हें अंदर खींचने की कोशिश कर रही हो। वहाँ से गुजरते वक्त कई लोगों ने अंधेरे में लाल आँखों की चमक देखी थी, जो कुछ देर के लिए दिखाई देतीं और फिर गायब हो जातीं। 

यह रहस्य धीरे-धीरे एक डरावने खेल में बदलने लगा। शहर के कुछ युवाओं ने, जो खुद को साहसी समझते थे, उस जंगल के भीतर जाने का निर्णय लिया। इनमें प्रमुख थे अरुण, मोहित, और निधि। तीनों को रोमांच की तलाश थी और उन्होंने ठान लिया था कि वे "अधूरा जंगल" के रहस्य को उजागर करेंगे।

तीनों दोस्त एक शाम जब सूरज ढलने वाला था, जंगल की ओर चल पड़े। उनके पास टॉर्च, रस्सियाँ और कुछ खाने-पीने का सामान था। जैसे ही वे जंगल के भीतर प्रवेश किए, एक अजीब सी ठंडक ने उन्हें घेर लिया। ऐसा लगा मानो जंगल उन्हें निगलने की कोशिश कर रहा हो। हर पेड़, हर पत्ता, और यहाँ तक कि हवा भी उनके खिलाफ षड्यंत्र कर रही हो।

कुछ दूरी चलने के बाद, उन्हें अचानक महसूस हुआ कि पीछे से आने वाले सारे रास्ते गायब हो गए हैं। जहां से वे आए थे, वहां अब एक गहरी धुंध फैल चुकी थी। वे समझ नहीं पा रहे थे कि वे किस दिशा में जा रहे हैं। 

निधि ने धीरे से कहा, "क्या हमें वापस लौटना चाहिए?"

लेकिन अरुण, जो सबसे साहसी था, ने उसे मना कर दिया, "हम यहाँ तक आ गए हैं, अब वापस लौटने का कोई मतलब नहीं है। हमें आगे बढ़ना चाहिए।"

जैसे ही वे आगे बढ़े, उन्हें दूर से किसी के रोने की आवाज सुनाई दी। वह आवाज इतनी दर्दनाक थी कि उनके रोंगटे खड़े हो गए। मोहित ने धीरे से कहा, "यह कोई पशु नहीं है... यह तो किसी इंसान की आवाज लग रही है।"

आवाज के पीछे-पीछे चलते हुए वे एक छोटे से तालाब के पास पहुँचे। तालाब के किनारे एक धुंधली आकृति दिखाई दे रही थी, जो रो रही थी। वे तीनों धीरे-धीरे उसकी ओर बढ़े। जैसे ही वे पास पहुँचे, उन्होंने देखा कि वह एक महिला की आकृति थी। उसके कपड़े फटे हुए थे और वह अपने हाथों में कुछ पकड़े हुए थी।

अरुण ने धीमे स्वर में पूछा, "कौन हो तुम?"

महिला ने अपना चेहरा उठाया, और उसका चेहरा देख तीनों के होश उड़ गए। उसका चेहरा पूरी तरह से विकृत था, उसकी आँखों में गहरा खालीपन था, मानो वह एक जीवित लाश हो। और उसके हाथों में जो चीज थी, वह एक टूटी हुई गुड़िया थी, जिससे खून टपक रहा था। 

अचानक, वह महिला जोर से चिल्लाई, और चारों ओर की हवा गूंजने लगी। उस आवाज ने ऐसा असर डाला कि वे तीनों वहीं बेहोश हो गए। 

जब अरुण, मोहित, और निधि होश में आए, तो उन्होंने खुद को जंगल के बीचोबीच पाया। वे वहीं थे, जहाँ उन्होंने महिला को देखा था, लेकिन अब वहाँ कुछ भी नहीं था। वे समझ गए थे कि उन्होंने जो देखा, वह कोई सामान्य घटना नहीं थी। 

लेकिन सबसे विचित्र बात यह थी कि निधि के हाथ में वह गुड़िया थी, जो उस महिला के हाथ में थी। वह गुड़िया अब खून से लथपथ नहीं थी, लेकिन उसमें से एक अजीब सी ठंडक आ रही थी। निधि ने घबराते हुए गुड़िया को फेंकना चाहा, लेकिन वह उसके हाथ से चिपक गई, मानो उसकी उंगलियों से जुड़ गई हो।

अब तीनों को समझ में नहीं आ रहा था कि वे क्या करें। वे अधूरा जंगल के रहस्यों में फंस चुके थे, और इससे बाहर निकलना असंभव लग रहा था। 

लेकिन यह तो केवल शुरुआत थी... 

भाग 2: जंगल का खेल

अगले भाग में...