I can see you - 9 in Hindi Women Focused by Aisha Diwan books and stories PDF | आई कैन सी यू - 9

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आई कैन सी यू - 9

रात के दो बजे सफेद साड़ी वाली भूतनी से मेरा सामना हो तो गया लेकिन उसने मेरे दिमाग में दौड़ने के लिए एक और सवाल छोड़ दिया। वो तो चली गई लेकिन मैं वोही कमरे में टहलते हुए ये सोचने लगी के उसने ऐसा क्यों कहा के वो भूत नहीं है। कहीं वह मेरे जैसी तो नहीं?.... नही नही!... वो मेरे जैसी कैसे हो सकती है। वो तो गायब हो सकती है। किसी के अंदर घुस सकती है। मैं ये सब तो नहीं कर सकती। उसकी सारी क्वॉलिटी तो भूत वाली ही है फिर उसने ये क्यों कहा के वो भूत नहीं है?... क्या भूतों के अलावा कोई और अदृश्य शक्ति है जिसे मैं नही जानती ? क्या वो जिन्न है?.... नही नही वो जिन्न नहीं हो सकती जिन्न साड़ी क्यों पहनेगी और विधवा जैसी क्यों रहेगी!... मुझे तो वह जिन्न बिलकुल नहीं लगती।"

अपने आप से सवाल पूछती और उसका जवाब भी खुद ही निकाल लेती। इस तरह मुझे पता भी नही चला के उस छोटी सी जगह में मैने तेज़ तेज़ चलते हुए कितने चक्कर काट लिए हैं। 

मैं नाईट बल्ब की टिमटिमाती रौशनी वाले कमरे में टहलते हुए यही सोच रही थी के मेरी नज़र घोड़े बेच कर सोती हुई वर्षा पर पड़ी। 
उसे सुकून से सोता देख मैं ने अपने दिल पर हाथ रख लिया और एक लंबी सांस लेते हुए कहा :" आह थैंक गॉड!... इसकी नींद इतनी भारी है वरना आज तो मेरा राज़ खुल जाता उसके सामने! फिर कितना डर जाती बेचारी!"

उसे देख कर अचानक मेरा दिमाग कुछ और ही सोचने लगा :" अच्छा है ये इतनी गहरी नींद सोती है लेकिन अगर भूकंप आ जाए या आग लग जाए तो ?... ये तो मलबे के नीचे दब कर या जल कर मर जायेगी। अच्छा है मेरी नींद हल्की है।"

ये सब उल्टा पुल्टा सोच कर मैं सोने लगी। पता नहीं कितनी ही करवटें बदलने के बाद मुझे नींद आई थी। सुबह चिड़ियों की तेज़ आवाज़ ने मुझे जगा दिया जो मेरे खड़की के पास वाले आम के पेड़ पर बैठ कर चहचहा रही थी। आंखें मलते और जम्हाई लेते हुए मैं ने देखा के वर्षा उठ कर तैयार हो रही है। घड़ी की ओर नज़र डाला तो आठ बज चुके थे। मैने नाराज़गी से कहा :" यार तुम ने मुझे जगाया क्यों नहीं!.... अब कितनी हड़बड़ी हो जायेगी।"

उसने बालों पर कंघी करते हुए कहा :" माफ करना तुम्हारे सर में दर्द था इस लिए मैं ने सोचा जब सो रही है तो जगा कर डिस्टर्ब नहीं करना चाहिए!"

उसकी मीठी बातें सुन कर मेरे दिल में उसके लिए प्यार उमड़ आया। मैं ने मुस्कुरा कर कहा :" अच्छा कोई बात नहीं मैं फ्रेश हो कर तैयार हो जाती हुं। नाश्ता कॉलेज कैंटीन में कर लेंगे!"

मैं वाशरूम की ओर जाने लगी तो वर्षा ने कहा :" नाश्ता करना ज़रूरी है क्या मैं तो चाय बिस्किट नमकीन खा कर रह जाती हूं फिर दोपहर में खाना खाती हूं।"

मैं ने वाशरूम के दरवाज़े पर खड़े हो कर कहा :" नाश्ता करना सब से ज़्यादा ज़रूरी होता है! मेरे डॉक्टर ने कहा है की सुबह का ब्रेकफास्ट मिस मत करना क्यों के सुबह के नाश्ते से ही हमारा इम्यून सिस्टम बूस्ट होता है जिस से हम बीमारियों और वायरल डिजीज से लड़ पाते हैं। हां लेकिन डिनर मिस कर सकती हो।"

वर्षा ने हंस कर कहा :" बीमार पड़ पड़ कर तुम्हें अच्छा तजुर्बा हो गया है।"

हम दोनों जल्दी जल्दी कॉलेज के लिए निकल गए। कॉलेज के दरवाज़े पर ही हमे रूमी मिल गई। वो पीछे से आवाज़ देती हुई पास आई :" हेय ब्यूटीज़!... गुड मॉर्निंग!"

हम ने साथ में उसे गुड मॉर्निंग कहा और अपने अपने क्लास में जा कर बैठ गए। क्लास में नताशा मैम की लेक्चर चल रही थी लेकिन मेरे दिमाग में अलग ही लेक्चर चल रहे थे। मुझे सफेद साड़ी वाली की झन्नाटे दार और गुर्राई हुई आवाज़ याद आ रही थी जब उसने कहा था "मैं भूत नहीं हुं!"
मैं ने सोचा रूमी को कुछ तो मालूम होगा उसके मामा के ज़िंदगी में चल रहे भूतिया खेल के बारे में। लैक्चर के दौरान मैंने धीरे से पास बैठी रूमी से कहा :" एक बात बताओ रूमी!... क्या तुम अपने नानी के घर में रहती हो? 

रूमी ने धीरे से जवाब दिया :" नहीं मैं अपने घर में रहती हूं मेरा घर और नानी का घर इसी शहर में है।"

        "तो रोवन सर कॉलेज में क्यों रहते हैं! घर में क्यों नहीं रहते हैं?"

(मैने सवाल किया)

उनके बारे में पूछते ही रूमी भड़क गई और नाराज़गी से फिसफिसा कर बोली :" यार देखो दुनिया का कोई भी सवाल पूछ लो लेकिन मामा के बारे में कुछ मत पूछो!... उन्होंने मुझे बहुत सख़्ती से मना किया है उनके बारे में किसी से भी कुछ भी कहने से! यहां तक की यह भी कहा है कि किसी को यह नहीं पता चलना चाहिए कि तुम मेरी भांजी हो अगर मैंने सुना कि तुमने किसी को कुछ बताया है तो अगले दिन से तुम कॉलेज नहीं जा सकती! वो तो कल मैं ने भावनाओं में बह कर बता दिया था की वो मेरे मामा हैं।"

उसका जवाब सुनकर मैं खामोश हो गई इतने में नताशा मैम चिल्ला उठी :" क्या बातें हो रही है इधर!... नही नही तुम लोग बातें करो! मैं तो पागल हुं न जो यहां खड़ी हो कर बकबक करने आती हूं!"

हम ने सर झुका लिया। मैम हमे गुस्से से देखती हुई व्हाइट बोर्ड के क़रीब चली गई।

मुझे कुछ अच्छा नहीं लग रहा था। कहा जाता है की जब हमारे ज़िंदगी में कुछ बुरा होने वाला होता है तो हमारी छट्ठी  इंद्री सक्रिय हो जाती है और हमे उस अनहोनी का आभास कराती है। लेकिन मेरी इंद्री आम लोगो से ज़्यादा यकीनी तौर पर तेज़ काम करती है। आज तक जब भी मुझे बुरे ख्याल आएं हैं वो सब सही हुआ है। मेरा मन उदास था। एक बार दिल में ख्याल आया के उस सफेद साड़ी वाली को मार डालूं फिर सोचा के मुझे उस से सावधान रहने की ज़रूरत है। उसके बारे में मैं ज़्यादा कुछ जानती नहीं हूं इस लिए ये भी नहीं कह सकती के वो कितनी शक्तिशाली है और कितनी बद दिमाग़। 

अभी कुछ लैक्चर बाकी थे लेकिन फिर भी मैं बाहर आ गई। मुझे घुटन सी हो रही थी। कॉलेज का बड़ा सा ग्राउंड जो किसी पार्क की तरह लगता है। जहां जगह जगह बैठने के लिए बेंच रखे हुए थे। मैं लॉन्ग के एक पेड़ के नीचे बेंच पर उदास बैठ गई। आसपास फुलों के पौधे की कियारियां लगी हुई थी। कुछ रंग बिरंगे शो प्लांट्स भी थे। अच्छी हवा चल रही थी। जो मद्धम ठंडक के साथ खुशनुमा समा बांध रही थी। 

जब मेरे पास कोई काम नहीं होता और मन बेचैन होता है तो मैं अपने हाथों के नाखूनों को आपस में घिसने लगती हूं। बेंच पर बैठे बैठे मैं वोही कर रही थी के तभी मैं ने वो आवाज़ सुनी जो अब तक मेरे कानों में गूंज रही थी। 

     " तो यहां बैठी हो तुम! मैं तुम्हें ही ढूंढ रही थी।"

मैने सर उठा कर देखा तो वोही सफेद साड़ी वाली खड़ी थी। 
मैं ने झट से कहा :" क्यों मुझे क्यों ढूंढ रही थी? मुझ पर जादू करना है या फिर से मेरे अंदर घुसने की कोशिश करनी है? तुम्हारी जानकारी के लिए बता दूं मेरे पास वह हथियार है जिस से मैं भूतों को मार सकती हूं।"

मेरे पास कोई खास हथियार तो नही था लेकिन मैं अपने बैग में हमेशा एक चाकू रखती हूं। सेल्फ डिफेंस के लिए।

मेरी बातें सुन कर वो मुस्कुराई और बोली :" मैंने पहले भी कहा था की मैं भूत नहीं हुं!.... तुम तो क्या कोई भी मुझे मार नहीं सकता लेकिन मैं तुम्हें मार सकती हूं। इससे पहले की तुम मुझे किसी तरह की चोट पहुंचाओ मैं तुम्हें ठिकाने लगा दूंगी।"

मैं तैश में आकर उठ खड़ी हुई थी के मेरी नज़र रोवन सर पर पड़ी जो पांच कदम दूरी पर खड़े मुझे तरस खाए नज़रों से देख रहे थे। उनकी नज़रों से साफ पता चल रहा था की वो मुझे ताज्जुब और हैरानी से देख रहे हैं साथ ही उन्हें मेरी इस हालत पर बुरा भी लग रहा है। क्यों के उन्हें लग रहा है मैं अकेली ही बातें कर रही हूं जब के मेरे आसपास कोई नहीं है। ज़ाहिर सी बात है कि वह मुझे पागल समझ रहे हैं।

(पढ़ते रहें अगला भाग जल्द ही)