Sanyasi - 25 in Hindi Moral Stories by Saroj Verma books and stories PDF | सन्यासी -- भाग - 25

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सन्यासी -- भाग - 25

और वो उससे बोली...."क्या सोच रहा है रे! कहीं तुझे आँची की याद तो नहीं आ रही?"अपनी माँ नलिनी की बात सुनकर जयन्त मुस्कुराते हुए बोला..."भला! मुझे आँची की याद क्यों आने लगी?""क्योंकि वो बहुत ही भली लड़की है,उसने तेरी इतनी सेवा की है तो तुझे उसकी याद आना एक सामान्य सी बात है",नलिनी जयन्त से बोली...."ऐसी कोई बात नहीं है माँ! मैं तो कुछ और ही सोच रहा था",जयन्त नलिनी से बोला...."अगर आँची के बारें में नहीं सोच रहा था तो फिर क्या सोच रहा था",नलिनी ने जयन्त से पूछा...."माँ! अभी कुछ देर पहले हमारे दरवाजे पर एक महिला आई थी,जो कि बुरका पहने हुए थी और उसने मुझे भोर में मन्दिर आने को कहा,मैंने उससे पूछा कि वो कौन है तो वो बोली कि मेरे सभी सवालों का वो मंदिर में ही जवाब देगी,बस उसी के बारें में सोच रहा था",जयन्त ने नलिनी से कहा..."ना जाने कौन है वो,तू किसी से मिलने मंदिर में नहीं जाऐगा",नलिनी ने सख्त लहजे में कहा..."लेकिन माँ! अगर वो मुझे कोई जरूरी बात बताना चाहती हो तो",जयन्त बोला..."बेटा! एक बार हम सब भुगत चुके हैं,तू बड़ी मुश्किल से बचा है,अब दोबारा मैं ऐसी कोई भी स्थिति खड़ी नहीं होने दूँगी",नलिनी जयन्त से बोली...."माँ! कुछ भी हो,लेकिन मुझे ऐसा लगता है कि मुझे वहाँ पर जाना चाहिए",जयन्त ने नलिनी से कहा...."जय! तो कान खोलकर मेरी बात भी सुन ले,तू किसी भी अन्जान औरत से मिलने नहीं जाऐगा,क्या पता  कौन है वो,हो सकता है सुमेर सिंह ही तेरे खिलाफ कोई षणयन्त्र रच रहा हो",नलिनी बोली..."लेकिन माँ ! मुझे ऐसा नहीं लगता,शायद वो औरत मेरी मदद करना चाहती हो",जयन्त बोला...."बेटा! तू समझता क्यों नहीं,दुनिया वैसी नहीं है,जैसी की तू समझता है,यहाँ भेड़ की खाल में भेड़िए छुपे रहते हैं,अगर वो औरत इतनी सच्ची थी तो फिर बुरका पहनकर क्यों आई थी,उसके मन में चोर था तभी तो वो अपना चेहरा ढ़ककर आई थी",नलिनी जयन्त से बोली...."हो सकता है कि शायद उसकी कोई मजबूरी रही हो ,तभी वो खुद को बुरके से ढ़ककर आई हो",जयन्त बोला....."तू और तेरी समझ.....जिसे मैं कभी नहीं समझ सकती,जब देखो तब तुझे तो सनक सवार हो जाती है", नलिनी परेशान होकर बोली...."लेकिन माँ! मैंने तो मन बना लिया है कि मैं तो वहाँ जरूर जाऊँगा",जयन्त बोला...."मैं जानती थी कि तू ऐसा ही कुछ सोच रहा है,इसलिए मैंने भी मन बना लिया है कि मैं भी तेरे साथ मंदिर चलूँगी",  नलिनी जयन्त से बोली..."हाँ! ये ठीक रहेगा,तुम भी मेरे साथ चलना,देखते हैं आखिर वो महिला है कौन?",जयन्त बोला...."अच्छा! अब चल दिमाग़ पर ज्यादा जोर मत डाल,थोड़ी देर में खाना तैयार हुआ जाता है तो तू जल्दी से खा कर सो जाना,मैं भी सुबह तैयार रहूँगी",      ऐसा कहकर नलिनी जयन्त के कमरे से चली गई,इसके बाद जयन्त खाना खाकर सो गया,वो सुबह चार बजे का अलार्म लगाकर सोया था,इसलिए वो जागकर तैयार हो गया,नलिनी को तो वैसे भी भोर में जागने की आदत थी,इसलिए वो भी स्नान करके मंदिर जाने के लिए तैयार थी,दोनों माँ बेटे ने ड्राइवर से पहले ही कह दिया था कि भोर में वो दोनों मंदिर जाऐगें,इसलिए ड्राइवर भी तैयार था,फिर माँ बेटे मोटर में बैठकर मंदिर की ओर चल पड़े.....      थोड़ी देर में वे दोनों मंदिर पहुँच गए,तब जयन्त ने अपनी माँ से कहा...."माँ! ऐसा करो तुम मंदिर में पहले चली जाओ,शायद हम दोनों को साथ देखकर वो औरत मेरे नजदीक ना आएँ","हाँ! ये सही कहा तूने"नलिनी बोली...  और फिर नलिनी पूजा की थाली लेकर मोटर से नीचे उतरी और मंदिर के भीतर चली गई,इसके बाद जयन्त मोटर से उतरा और मंदिर की ओर बढ़ गया,वो मंदिर में पहुँचा तो सिर पर पल्लू किए हुए गहरे हरे रंग की साड़ी में एक महिला उसका बेसब्री से इन्तज़ार कर रही थी,जयन्त समझ गया कि ये वही महिला है जो कल रात उसके घर आई थी,वो महिला काफी प्रौढ़ लग रही थी,उसकी माँग में सिन्दूर और गले में मंगलसूत्र था,उसे देखकर ऐसा लग रहा था कि वो किसी संभ्रान्त परिवार की महिला है,लेकिन उसके चेहरे पर चिन्ता की लकीरें साफ साफ देखीं जा सकतीं थीं,फिर जयन्त उस महिला के पास पहुँचा,जैसे ही जयन्त उसके पास पहुँचा तो वो महिला जयन्त से बोली...."आ गए आप! मैं कब से आपका इन्तज़ार कर रही थी""जी! जरा देर है गई आने में,लेकिन मैंने आपको पहचाना नहीं",जयन्त बोला...."आप मुझे नहीं पहचानते लेकिन मैं आपको बहुत अच्छी तरह से पहचानती हूँ",वो महिला जयन्त से बोली..."आप भला मुझे कैंसे जानतीं हैं?",जयन्त ने उस महिला से पूछा..."जी! मैं आपको बखूबी जानती हूँ,उस दिन जब आपको मेरे घर के आँगन में पीटा जा रहा था,तो वो सब मैं अपने कमरे की खिड़की से देख रही थी,लठैत आपको बुरी तरह से पीट रहे थे और आप अपना बचाव कर रहे थे",वो महिला बोली...."तो क्या आप उस दिन सुमेर सिंह के घर में मौजूद थीं?", जयन्त ने उस महिला से पूछा..."जी! मैं उनकी पत्नी हूँ और मेरा नाम वरदा है,मेरे बेटों ने भी उस दिन सबकुछ देखा था",वो महिला बोली...."ओह....तो आप सुमेर सिंह की पत्नी हैं",जयन्त बोला...."लेकिन मुझे इस बात का बहुत अफसोस है कि मैं उनकी पत्नी हूँ",वरदा बोली..."लेकिन आप मुझसे कौन सी जरूरी बात कहना चाहतीं थी"",जयन्त ने पूछा...तब वरदा जयन्त से बोली..."मेरे पति आपको दोबारा मारने की योजना बना रहे हैं,मैंने उन्हें ये कहते हुए सुना कि दोपहर के वक्त जब आप काँलेज से लौट रहें होगें तो सुनसान सड़क पर आपकी मोटर रोक कर आप पर हमला किया जाएगा, मेरे भी दो बेटे हैं,मैं नहीं चाहती कि किसी के बच्चे को कोई भी नुकसान हो,मेरे पति बदले की आग में जले जा रहे हैं इसलिए वे आपके साथ कुछ भी कर सकते हैं,मैं तो बस आपको सावधान करने आई थी", वरदा ने जयन्त से कहा...."लेकिन ये बात आप मुझसे कल शाम को भी तो कह सकतीं थीं",जयन्त बोला...."मेरे पति हरदम मुझ पर नज़र रखते हैं,इसलिए कल शाम को मैं अपनी मुस्लिम सहेली के घर गई और उसका बुरका पहनकर आपके घर पहुँची थी,मुझे डर था कि कोई मेरा पीछा ना कर रहा हो इसलिए कल शाम मैं आपसे  ज्यादा कुछ नहीं कह पाई",वरदा ने जयन्त से कहा..."ओह...तो ये बात है",जयन्त बोला....      और फिर तब तक जयन्त की माँ नलिनी भी वहाँ पर आ पहुँची,तब जयन्त ने वरदा से कहा...."ये मेरी माँ हैं""जी! प्रणाम!", और ऐसा कहकर वरदा ने उनके चरण स्पर्श कर लिए....तब नलिनी वरदा से बोली...."ये क्या कर रही हो बहन?","जी! आप मुझसे उम्र में बड़ी हैं और मेरे पति आपके पति के दूर के फुफेरे भाई लगते हैं तो इस रिश्ते से तो आप मेरी जेठानी लगीं,इसलिए मैंने आपके चरण स्पर्श कर लिए",वरदा नलिनी से बोली...."सदा खुश रहो तो लेकिन मैं ने आपको पहचाना नहीं  कि आप कौन हैं? ""माँ! ये सुमेर सिंह की पत्नी हैं और मुझे सावधान करने आईं हैं,इन्होंने कहा है कि मेरी जान को खतरा है", जयन्त नलिनी से बोला...    जयन्त की बात सुनकर नलिनी परेशान हो उठी....

क्रमशः....

सरोज वर्मा....