Shuny se Shuny tak - 61 in Hindi Love Stories by Pranava Bharti books and stories PDF | शून्य से शून्य तक - भाग 61

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शून्य से शून्य तक - भाग 61

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“अंकल ! अगर आप परमीशन दें तो अब घर लौट जाएं।शायद आशी को कुछ समझ में आए| यह सब उसे अपने आप ही समझना होगा, किसी के कहने से उसे कुछ समझ में नहीं आएगा---”मनु ने बहन के जाने के बाद अकेले में दीना अंकल से कहा| 

“जैसा तुम लोग चाहो बेटा---”वे उदास भी थे और मनु के दिल की हालत भी समझ सकते थे| क्या ड्रामा कर दिया था उन्होंने उस बच्चे के साथ!उन्हें खुद ही अपने ऊपर कोफ़्त हो रही थी| 

“क्यों—मैं क्यों जाऊँगी वहाँ?मनु !तुमसे पहले ही सब बातें साफ़-साफ़ हो गईं थीं | ”आशी तो यह बात सुनते ही भड़क उठी | 

“शादी के बाद सब लड़कियाँ ससुराल जाती ही हैं, तुम क्या अनोखा करोगी?मैं और रेशमा बिटिया यहाँ रहेंगे| अब शादी हो गई है तो उस बंद घर की भी सुध लेनी चाहिए न !बेटा आशी तुम ही सोचो, कबसे घर बंद पड़ा है !”

“आपने मेरी शादी घर की देखभाल के लिए कारवाई है क्या?”वह भड़ककर बोली और वहाँ से झपटकर चली गई| 

रेशमा तो सबको प्रसन्न देखना चाहती थी बेशक उसे दीना अंकल के साथ ही क्यों न रहना पड़े| अंकल का कहना बिलकुल ठीक था, पापा-मम्मी ने न जाने कितने प्यार से घर बनवाया था, सजाया था, सहेजा था| बात बड़े सहज रूप से कही गई थी लेकिन पहले ही यह अंदेशा था कि आशी कभी इस बात पर राजी नहीं होगी| एक कोशिश थी यह तो, पहले आशी को सहगल अंकल का घर बहुत पसंद था, उनकी पेंटिंग्स की, उनकी चॉयस की प्रशंसा कभी भी उसके मुँह से निकल जाती फिर चाहे वह उसको दबाकर मुँह घुमाकर वहाँ से उठ जाए| यह सब वह जान-बूझकर करती और दूसरों को पीड़ा देकर वहाँ से चली जाती| 

किसी ने विवाह के बाद आशी और मनु को कहीं भी एकसाथ देखा ही नहीं था| सब कुछ पहले जैसा ही चल रहा था| घर में रहने वाले तो पहले से ही सब जानते थे| आप कितनी भी बातें छिपाकर कर लीजिए लेकिन ऐसी बातें छिपनी संभव थोड़ी होती हैं| वैसे भी आशी ने कहाँ किसी की परवाह की थी !घर के सेवकों के लिए तो आशी बेबी शुरू से ऐसी ही थीं लेकिन उन्होंने या किसी ने भी यह नहीं सोचा था कि शादी के बाद भी वे ऐसी ही रहेंगी| दीना व मनु को तो पहले से ही घबराहट थी बल्कि मनु को आशी ने जिस प्रकार बात की थी, वह तो पूरी तरह इस परिस्थिति के लिए तैयार ही था| बस, हल्की सी एक उम्मीद ही पर टिका हुआ था सबका दिमाग, शायद—शायद---कोई मिरेकिल ही हो जाए—इतनी कट्टर कौन लड़की रह सकती है? लड़की नहीं लड़का भी!यह  संबंध नाज़ुक होता है, संवेदनशील भी!उस संवेदना को एक भीगे कपड़े जैसे निचोड़कर तार-तार नहीं किया जा सकता| यह तो कोई नहीं जानता था कि आशी तो पहले ही सब कुछ स्पष्ट करके बैठी थी| 

दीना जी की मानसिक समस्या और भी अधिक बढ़ गई थी, वे बॉलकनी में खड़े होकर सोनी को याद करते रहते| जैसे-जैसे दिन गुज़र रहे थे, उनका मानसिक स्वास्थ बिगड़ता जा रहा था| आशी को अपने कमरे में सोता देखकर उनकी आँखों में आँसु आ जाते| मनु बेचारा जैसे पहले अकेला था अब भी हर समय अकेला ही था, वह दीना अंकल को छोड़कर कहीं जाना भी तो नहीं चाहता था| एक बार जाने की बात हुई लेकिन जब आशी ने इस प्रकार व्यवहार किया उसके बाद मनु ने कोई बात ही नहीं की| कैसे छोड़ दे वह दीना अंकल को अकेले?

दीना सब खुली आँखों देखते और आह भरकर रह जाते| अपने भाग्य से कैसे लड़ें, उनकी कुछ समझ में नहीं आता था| धीरे-धीरे वे फिर से अस्वस्थ रहने लगे| जितने खुश और संतुष्ट वे आशिमा की शादी करके हुए थे अब अपनी बेटी की शादी में व बाद में उतना ही असहज होने लगे थे| ऑफ़िस जाते पर उनका वहाँ मन न लगता| आशी ऑफ़िस में आती लेकिन वह सीधी अपने चैंबर में चली जाती| लंच–टाइम में सब साथ लंच लेते फिर अपने कार्यों में व्यस्त हो जाते| 

मनु आशी के सामने कहीं बाहर जाने का प्रस्ताव रखने की कोशिश करता, शायद कभी आशी के मन में आ ही जाए लेकिन उसका उत्तर यही होता;

“तुम जाओ न मनु, देखो कितना काम है यहाँ पर या एक काम करो तुम जाना चाहते हो तो रेशमा को साथ ले जाओ| मैं कितने दिनों से उसे कहीं भी नहीं ले जा पाई हूँ| ”मनु अपना सिर ठोककर रह जाता| दीना शर्म से अपना चेहरा झुका लेते, शर्मिंदगी से उनका चेहरा सफ़ेद पड़ जाता| 

क्या किया था उन्होंने?बिना माँ-बाप के बच्चों को पनाह देने की आड़ में एक स्वस्थ, होशियार, सुंदर बच्चे के गले में अपनी सिर फिरी बेटी को उसके गले में घंटी सा लटका दिया था| 

मनु को भी खराब लग रहा था कि उसने घर जाने की बात क्यों की होगी आखिर?दीना अंकल का उतरा हुआ चेहरा देखकर उसे स्वयं शर्म हो आई| एक बेचारा पिता!जिसने न जाने कितने कष्ट झेले थे फिर भी अपने मित्र के बच्चों पर सब कुछ न्योछावर करने के लिए तैयार था|