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इस प्रकार शुरू हुआ मनु के जीवन का एक और नया अध्याय !जहाँ खुशियों, बिखरने का समय था, संबंधों की चाँदनी में भीगने का समय था, एक दूसरे की आँखों में डूबकर भविष्य के सपने देखने का समय था, वहाँ मनु के सामने पतझड़ आ बिखरा था| आशी वैसी की वैसी---उस पर शादी का कोई प्रभाव नहीं!आशी के पार्टी से चले जाने के बाद बहनों ने खूब नाचना-गाना किया| जो भी था दीना अंकल और सब लोगों ने मिलकर इतनी सुंदर पार्टी सजाई थी, उसमें बेरौनकी हो, बहनों को यह बिलकुल भी मंजूर नहीं था|
दोनों बहनें अपने इकलौते भाई के विवाह के लिए न जाने कितने सपने सजाकर बैठी थीं !इतने लोग !इतना खुशनुमा माहौल लेकिन दीना अंकल के चेहरे पर मुर्दनी पसरी हुई थी और मनु के चेहरे पर बेचारगी!बहनें खूब सुंदर सी तैयार हुई थीं कि सब मिलकर खूब नाचें, गाएंगे, खुशियाँ मनाएंगे| हाँलाकि सबको आशी की ओर से एक डबका सा ही था कि वह कुछ असंतुलित व्यवहार न कर बैठे ! फिर भी उम्मीद पर दुनिया कायम होती है, सबके मन में एक आशा की किरण सी किसी कोने में सोई हुई थी शायद---लेकिन यह शायद हवा में घूमता ही रह गया| आशी के व्यवहार ने सबके मंसूबों पर पानी फेर दिया|
बहनों को वातावरण में खालीपन और उदासी बिलकुल अच्छी नहीं लग रही थी उन्होंने आशी के जाते ही नाचना-गाना और मस्ती शुरू कर दी थी| वे अनन्या को भी पकड़कर ले आईं थीं और मनु को ज़बरदस्ती घसीट लाईं| मनु के हृदय पर कुठाराघात हुआ था, उसकी मन:स्थिति दीना अंकल, बहनें और अनन्या भी समझ रहे थे, परिवार में रहने वाले दूसरे लोग भी लेकिन समाज में स्थिति को संभालना भी आवश्यक होता है| बहनों ने उस अजीब सी स्थिति को अपनी उपस्थिति से खुशहाली में बदलने का प्रयास किया और सफ़ल भी हुईं| उनके साथ अब काफ़ी लोग आ जुड़े थे और संगीत व नृत्य में सम्मिलित हो गए थे| अनिकेत व उसके माता-पिता भी दीना जी को पकड़ लाए और उनका मूड ठीक करने की कोशिश की|
जानते तो सभी थे आशी की हरकतें लेकिन एक पिता को आशी से ऐसी उम्मीद नहीं थी कि वह सबके सामने ऐसा कर सकेगी? वैसे वह सब कुछ कर सकती थी लेकिन एक आशा भर थी----हर अतिथि उसके बारे में ही पूछता और उसे एक ही उत्तर मिलता, तबियत खराब है---उपहारों का तो ताँता लग गया था जिन्हें बहनें, अनन्या व माधो संभाल रहे थे| आखिर कार्यक्रम समाप्त तो होना ही था, हो गया|
यह मनु के जीवन की पहली रात थी, जो जीवन में एक ही बार आती है और जो उसके जीवन में आँसुओं की बाढ़ लेकर आई थी| मनु स्वयं को कोस रहा था, सच ही तो था उसे यह दिखावा करने की क्या ज़रूरत थी? आशी ने तो पहले ही उससे वह सब कुछ उगल दिया था जो उसके मन में इस शादी को लेकर भरा हुआ था| वह यह बात किसीको शेयर नहीं कर पाया? उसकी ही गलती थी न? आशी को दोष देना निरर्थक था| दीना कुछ समझ पाए थे, कुछ नहीं फिर भी उन्हें ऐसी उम्मीद तो कल्पना में भी नहीं हो सकती थी जैसी बातें आशी मनु से मनवा चुकी थी|
आशिमा को ससुराल से आए कई दिन हो गए थे, अब अनिकेत अपनी पत्नी को वापिस घर ले जाने के लिए आया था| उन दोनों की आँखों में प्यार की चमक, एक दूसरे के साथ रहने की लालसा देखकर मनु को अच्छा तो बहुत लगा लेकिन अपनी बेचारगी पर दया आई| दीना जी भी अनिकेत और आशिमा के प्रणय-चिन्ह को देखकर खुश थे लेकिन वहीं मनु का फीका पड़ता हुआ चेहरा और आशी का सपाट व्यवहार उन्हें परेशान कर रहे थे| वैसे यह कोई नई बात तो थी नहीं, उन्होंने आशिमा, अनिकेत और ससुराल में सभी के लिए पहले से ही न जाने कितने उपहार लेकर रखे थे| फिर हर बार की तरह अनिकेत ने शिकायत की;
“अंकल!इस बार तो मुझे सचमुच मम्मी से मार पड़ने वाली है| आप हर बार इतना कुछ---”
“बेटा!बिटिया अपने मायके से जा रही है, देखी नहीं उसकी आँखों की चमक? ”फिर हँसकर बोले
“बेटियाँ अपनी ससुराल में खुशी-खुशी जाती हुई अच्छी लगती हैं और पीहर वाले बेटी को जितना दें कम ही होता है---इसका मतलब यह नहीं है कि मैं लेन-देन में बहुत विश्वास करता हूँ लेकिन यह ज़रूर मन करता है कि अगर भगवान ने इतना कुछ दिया है तो बेटी को खाली हाथ क्यों जाना चाहिए? बस, इतनी सी बात है| बहन जी से मेरी तरफ़ से रिक्वेस्ट कर लेना कि अंकल का दिल करता है इसलिए वर्ना हम सब क्या जानते नहीं कि वहाँ हमारी आशिमा के लिए न पैसे की कमी है और न प्यार की!”उन्होंने अनिकेत की ओर देखकर कहा| वह बेचारा क्या उत्तर देता? उसने चुपचाप प्रणाम करके आशिमा से चलने के लिए कहा|
रेशमा आशिमा को छोड़ने के मूड में ही नहीं थी | वह बच्चों की तरह दीदी के गले लगकर सुबक पड़ी|
“तुम्हारी दीदी को जल्दी भेजेंगे, नहीं तो तुम अपनी छुट्टी में दीदी के पास आ सकती हो न? क्यों अंकल? ”उसने रेशमा के कंधे को स्नेह से सहलाया और दीना अंकल की ओर देखा|
“हाँ, क्यों नहीं, दीदी का घर है—”उन्होंने सहज ढंग से कहा|
“मैं हूँ न, तुम्हें घुमाने के लिए---”अचानक वहाँ प्रवेश करके आशी बोली तो सबके चेहरे उसकी ओर उठ गए| क्या लड़की है ये? कब, कैसी हो जाए, कुछ पता ही नहीं चलता|
अनिकेत अपनी गाड़ी लेकर आया था जिसमें दीना अंकल ने माधो से कहकर सारा सामान रखवा दिया था| गिफ्ट्स के पैकेट्स से पीछे की पूरी सीट भर गई थी, कुछ बड़े पैकेट्स डिक्की में भी रखवाए गए थे|
“अंकल ! देखिए, इतना सामान कि हम दो के बैठने की सीट ही खाली हैं—बस—”अनिकेत ने इशारा करके दिखाया| दीनानाथ जी मुस्कुरा उठे, उन्होंने अनिकेत के सिर को प्यार से सहला दिया|