Tamas Jyoti - 6 in Hindi Classic Stories by Dr. Pruthvi Gohel books and stories PDF | तमस ज्योति - 6

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तमस ज्योति - 6

प्रकरण - ६

कैमरा ऑन होते ही अमिता बोल उठी, " मैं हूं अमिता और आप देख रहे है हमारा ये कार्यक्रम रुबरु और हम बात कर रहे है रोशन कुमार के साथ।

पहले हम बात कर रहे थे कि रोशनकुमार की जिंदगी में ऐसा क्या हुआ जिसकी वजह से उनकी पूरी जिंदगी ही बदल गई! तो आईए दोस्तों! अब हम जानते है ये सारी बाते रोशनजी की जुबानी।

रोशन अब आगे की बात कहने लगा, "जैसा कि आप सभी जानते हैं, उस समय मैं बी.एस.सी के फाइनल यर में था। उस दिन हम केमिस्ट्री लैब में प्रैक्टिकल कर रहे थे।

लैब में प्रयोग करते समय एक छात्र से अचानक ही गलती से बेंजीन गिर गया। जिस पर वहां मौजूद किसी भी छात्रों का ध्यान नहीं पड़ा। यदि किसी का भी इस पर पहले ही ध्यान पड़ा होता तो शायद एक भयानक दुर्घटना से बचा जा सकता था।

लेकिन होने को कौन टाल सकता है? और वैसे भी इस संसार में जो भी घटनाएँ घटित होती हैं उनके पीछे प्रकृति का कुछ न कुछ कारण जरूर होता ही है, जिनका जवाब हमें उस समय तो नहीं मिलता लेकिन समय के साथ धीरे-धीरे हमें समझ में आने लगता है कि ये सारी घटनाए क्यों घटी?

प्लेटफार्म पर जो बेंजीन गिरा था, उसके पास ही एक बर्नर था। लैब में एक प्रैक्टिकल चल रहा था इसलिए हमारी कक्षा के एक छात्र ने प्रैक्टिकल करने के लिए अपने मंच पर बर्नर चालू करने के लिए माचिस की तीली जलाई।

उसने माचिस की तीली तो जलाई लेकिन वो माचिस की तीली उसके हाथ से छूटकर प्लेटफार्म पर गिरे बेंजीन पर जाकर गिरी। इससे तुरंत ही आगने जोर पकड़ा और पूरी लैब में आग लग गई। बेंजीन अत्यधिक ज्वलनशील पदार्थ होता है और वह तुरंत ही आग पकड़ लेता है। जैसे ही बेंजीन पे वो माचिस की तीली गिरी, तुरंत पूरी लैब में आग लग गई।

इस तरह लैब में अचानक आग लगने की वजह से पूरी लैब में भगदड़ मच गई। सभी छात्र बहुत डर गए और भय और घबराहट के कारण वे सभी भागने लगे और दरवाजे से बाहर निकलने की कोशिश करने लगे। कुछ देर तक किसी को कुछ समझ नहीं आया कि वे क्या करें?

लेकिन जब इंसान डर जाता है तो वह अपनी सारी सुधबुध खो देता है। मैंने भी अपनी सुधबुध खो दी थी। मैं भी इधर उधर भागने लगा और इसी हड़बड़ी में मुझे वहा पहले से ही एक त्रिपाई पड़ी हुई थी जो मुझे नही दिखाई दी और वह मेरे पैरों के पास आ गिरी।

वो त्रिपाई मेरे पैरों में आने के कारण मेरा संतुलन बिगड़ गया और मैं पूरी तरह से लड़खड़ाकर गिर पड़ा। लेकिन तभी मेरा हाथ प्लेटफॉर्म पर पड़ी कैल्शियम हाइड्रॉक्साइड की बोतल को लगा और वह बोतल भी वहा से नीचे गिर गई। बोतल कांच की होने के कारण उसके टुकड़े-टुकड़े हो गई। जब बोतल टूटी तो उसमें मौजूद रसायन कैल्शियम हाइड्रॉक्साइड की कुछ छींटे मेरी आंखों में चली गई।

मेरी आँखों में केमिकल जाने के कारण मेरी आँखों में बहुत ही दर्द उठा। मेरी आंखों के सामने मानो अंधेरा सा छा गया। मुझे कुछ दिखाई नहीं दे रहा था। आज भी जब यह घटना याद आती है मेरी रूह कांप उठती है।

अब आग कुछ ज्यादा ही फैल चुकी थी। हमारी पूरी लैब में आग लग गई थी। पूरी लैब में  धुँआ धुआ हो उठा था। कोई भी एक-दूसरे का चेहरा भी ठीक से नहीं देख पा रहा था। धुएं के कारण सबकुछ धुंधला धुंधला नजर आ रहा था।

उस समय जो अध्यापक हमें पढ़ा रहे थे उन्होंने तुरंत ही अपनी सूझबूझ का प्रयोग किया। उन्होंने तुरंत फायर ब्रिगेड और एंबुलेंस को फोन कर दिया। यदि शिक्षक जागरूक हो तो विद्यार्थियों की आधी चिंताएं तो स्वत: ही दूर हो जाती हैं। यह इस बात का बेहतरीन उदाहरण था कि कैसे एक जागरूक शिक्षक कई छात्रों के निर्माण में बहुत ही महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है।

हमारे ये शिक्षक भी बहुत जागरूक थे और इसीलिए उन्होंने एम्बुलेंस के साथ-साथ फायर ब्रिगेड को भी बुलाना उचित समझा। इस बार 108 हमारी मदद के लिए आई। उस दिन हमें 108 की महत्ता का भी एहसास हुआ। इसमें काम करनेवाले लोगों के प्रति सम्मान हुआ। जब तक वे लोग हमारे कॉलेज पहुंचे, तब तक उन्होंने प्यून को लैब में पानी छिड़कने को कहा।

यहां तक कि प्यूनने भी पानी डालना शुरू कर दिया। लेकिन हम सब बहुत ही डरे हुए थे। हमारे शिक्षकने हमें शांत किया और कहा, "आप लोग एकदम शांत रहें। हम जल्द ही आग पर काबू पा लेंगे। किसी को भी कोई चोट नहीं पहुंचेगी। बिल्कुल भी चिंता न करें। मैंने फायर ब्रिगेड और एम्बुलेंस को भी फोन किया है। वे भी कुछ ही मिनटों में यहां पहुंच जाएंगे। आप लोग बिलकुल भी चिंता न करें।"

कुछ देर तक तो मुझे समझ ही नहीं आया कि ये क्या हो रहा है! मैं अभी भी मेरी आंखों में हो रहे दर्द की वजह से जोर-जोर से चिल्ला रहा था तभी मुझे एम्बुलेंस और फायर ब्रिगेड की सायरन सुनाई दी।

फायर ब्रिगेड के जवानों ने आकर तुरंत अपना काम शुरू कर दिया। उन्होंने तुरंत अपना काम शुरू किया और आग पर काबू पा लिया। जब ऐसा कुछ होता है तो वो लोग हमारी कितनी मदद करते हैं! उनके काम को सलाम करने का मन करता है।

मेरे साथ साथ कुछ अन्य छात्रों को भी थोड़ा कष्ट हुआ था। कुछ छात्र थोड़े से जल गए थे। हम सभी को तुरंत ही एम्बुलेंस में डालकर अस्पताल ले जाया गया। मैं भी एक अनोखे दर्द से छटपटा रहा था। मुझे भी अस्पताल ले जाया गया।

जिन भी छात्रों को अस्पताल ले जाया गया, उन सभी छात्रों को हमारे कॉलेज द्वारा उनके परिवारों को इस हादसे की जानकारी दी गई थी। ऐसे में सभी छात्रों के माता-पिता चिंता के चलते अपने अपने बच्चों से मिलने अस्पताल आ पहुंचे थे।

मेरे माता-पिता को भी मेरे साथ घटी इस दुर्घटना के बारे में सूचित किया गया था। वे भी तुरंत ही अस्पताल आ पहुंचे थे। जब वो लोग अस्पताल पहुंचे तब मैं उस दौरान बेहोश था। मुझे अभी तक होश नहीं आया था।

मैं और मेरे साथ जितने छात्र जल गए थे उन सभी  को अस्पताल के बर्न वार्ड में भर्ती कराया गया। फिलहाल मुझे बस इतना ही समझ आ रहा था कि मेरी आंखों पर पट्टी बंधी हुई थी। वहा जो कुछ भी हो रहा था उन सबसे मैं अनजान ही था।

मेरे माता-पिता और दर्शिनी डॉक्टर की राह देख रहे थे जो उन्हें मेरी जांच करके मेरी स्थिति के बारे में उनको बतानेवाले थे। कुछ ही मिनटों में एक डॉक्टर आये और उन्होंने मेरी जाँच की। मेरी जाँच करने के बाद वे बाहर आये मेरे माता-पिता के पास आए। डॉक्टर का चेहरा बहुत गंभीर लग रहा था।

डॉक्टर को बाहर आते देख मेरे पिताने तुरंत ही उनसे पूछा, "डॉक्टर साहब! रोशन को क्या हुआ है? उसकी तबियत कैसी है?"

डॉक्टरने कहा, ,"आप सब लोग मेरे साथ मेरे केबिन में चलो। मुझे आप लोगों से कुछ बहुत ही जरुरी बात करनी है।"

मेरे माता-पिता और दर्शिनी डॉक्टर के पीछे-पीछे उनके केबिन तक गए।

वहां डॉक्टरने उन्हें जो कुछ भी बताया उसे सुनकर मेरे माता-पिता के पैरों तले से जमीन खिसक गई। धरती जगह दे तो उसमें समा जाने का मन हो गया।

(क्रमश:)