Shuny se Shuny tak - 44 in Hindi Love Stories by Pranava Bharti books and stories PDF | शून्य से शून्य तक - भाग 44

Featured Books
  • लाल बैग - 5

    समय: करीब 11:30 बजे रातरॉमी थकी हुई थी, शरीर से खून बह रहा थ...

  • बारिश एक कहानी

    "कुछ लोग ज़िंदगी में बहुत कम बोलते हैं, लेकिन उनकी चुप्पी भी...

  • Super Villain Series - Part 16

    Part 16: ज्ञान का द्वार — सत्य की खोजअर्णव अब मायावी नगरी छो...

  • उस शाम की ख़ुशबू...

    शाम की धीमी रौशनी, खिड़की से आती ठंडी हवा ️, और एक मुलाक़ात...

  • इंतजार

    इतंजार**********वो एक भीड़-भाड़ वाला इलाका था । चारों तरफ लो...

Categories
Share

शून्य से शून्य तक - भाग 44

44===

माधो, आशिमा, रेशमा कमरे में एक ओर चुपचाप खड़े थे| दोनों लड़कियाँ दीना अंकल को इस प्रकार फूट-फूटकर रोते देखकर फिर से उदास हो उठीं| अपने हाथ में पकड़े हुए ज़ेवरों के डिब्बे उन्होंने और माधो ने कमरे की मेज़ पर रख दिए| दोनों बेटियाँ दीना अंकल के दाएं, बाएं बैठ गईं और माधो उनके पैरों के पास नीचे बैठकर रोने लगा| 

“आप सभी एक-दूसरे को इतना प्यार करते थे, एक की परेशानी सबकी परेशानी रही है हमेशा| फिर ऐसा क्यों कह रहे हैं? ”आशिमा ने कहा और दोनों बेटियाँ अंकल के गले लग गईं| 

“आप हमेशा एक-दूसरे का संबल रहे हैं अंकल---”मनु ने कहा| 

“अब कहाँ गया मेरा वो संबल ? पता नहीं कैसे हो पाएगा यह सब ? ”उन्होंने बच्चों के सिरों पर प्यार से हाथ फिराया| 

“सब हो जाएगा अंकल, आप चिंता क्यों करते हैं? ”मनु ने फिर से उन्हें दिलासा देने की कोशिश की| 

“भाभी ने तो तुम्हारी आँटी के बाद हमेशा ही हम सबका इतना ध्यान रखा है, आशी को प्यार देने की पूरी कोशिश की, अब उसका भाग्य ही खोटा हो तो क्या किया जाए? ”उन्होंने उदासी से कहा| 

मनु ने इस बात का कोई उत्तर नहीं दिया और अपने अनुसार उन्हें समझाने की चेष्टा करता रहा| उनके लिए बच्चों का उनके पास बैठना ही बहुत था| उनकी अपनी बेटी तो---

विवाह के लगभग पंद्रह दिन रह गए थे| तैयारियाँ तो सब हो ही गई थीं, अनिकेत व उसके परिवार के लिए कपड़े, गिफ्ट्स सभी खरीदे जा चुके थे | बस एक पिता की हैसियत से वे घबराए हुए थे, जाने उन्हें क्यों लग रहा था कि कुछ ठीक नहीं कर पा रहे हैं, कुछ कमी न रह जाए| माधो उनकी मन:स्थिति अच्छी प्रकार से समझ रहा था| उन्हें इस प्रकार बैचेन देखकर उससे रहा न गया| एक दिन वह उनके पीछे बॉलकनी में आकर खड़ा हो गया| वहाँ से नीचे का सारा नज़ारा दिखता था जो चारों ओर बत्तियों के लगे रहने से रात में रोशनी में नहाया हुआ लगता था| पवन के वेग के कारण पेड़-पौधे झूम रहे थे और ऐसा लगता था मानो वे उनसे बातें कर रहे हों, और तो कोई था ही नहीं वहाँ पर| अचानक ‘मालिक’सुनकर दीना चौंक पड़े| 

“तू अभी तक सोया नहीं माधो? कर क्या रहा है? ”उन्होंने अचानक आवाज़ की ओर घूमकर कहा| 

“आप भी तो कहाँ सोए हैं मालिक---”माधो ने कहा| 

“मैं कैसे सोऊँ माधो, बेटी के पिता को कहाँ चैन की नींद आती है? समझ में ही नहीं आता क्या करूँ? यहाँ खड़े होकर लगता है शायद सोनी अपने प्रिय बगीचे को देखने आए और मैं उससे कुछ सलाह ले सकूँ, कुछ समझा सके मुझे| ”उन्होंने एक लंबी साँस खींची| उनके चेहरे पर चिंता की लकीरें देखकर माधो परेशान हो उठा| 

“एक बात कहूँ सरकार? वैसे छोटा मुँह बड़ी बात है| ”फिर बोला

“आप क्यों परेशान हो रहे हैं मालिक, होटल से लेकर हलवाई, रोशनी---सारी तैयारियाँ तो हो चुकी हैँ| ”

“हलवाई और रोशनी तो घर के लिए हैं| सहगल की कोठी पर भी तो रोशनी करवाऊँगा, आखिर उनकी लाड़ली बेटी की शादी है| होटल बुक हो गया है वहाँ मेनू तो देना होगा न और न जाने लड़के वालों को क्या पसंद आए!! इन बच्चों से पूछा तो वो भी कुछ नहीं बता रहे हैँ---”

“अच्छा, आप एक काम करें न सरकार---’अचानक जैसे माधो के मन में कोई गंभीर बात आई हो| 

“क्या? ”

“आप एक बार भट्टाचार्य जी से ही बात कर लीजिए न, अनिकेत बाबू की मम्मी ही सब कुछ समझा सकेंगी| आपकी परेशानी भी दूर हो जाएगी और उनको भी अच्छा लगेगा---सारी बात तो वे सब जानते ही हैं| ” माधो ने झिझकते हुए अपने मन में उठी बात कह दी| 

“माधो! देख कैसी अच्छी बात सुझाई तूने | अभी दो/तीन दिन पहले सपने में सोनी दिखाई दी थी| कुछ ऐसा कह रही थी कि आशिमा की ससुराल हो आइए| मेरी तो समझ में ही नहीं आया पर लगता है वह मुझे ऐसा ही कुछ इशारा दे रही होगी| ”

वे कुछ निश्चिंत से होकर सोने चले गए थे| 

अगले दिन मनु से बात करके दीना जी ने अनिकेत के घर जाने की बात की| अनिकेत ने घर जाकर अपने माता-पिता को बताया| अनिकेत की मम्मी ने कहा कि हमें उनके घर जाना चाहिए , उनके पास कोई भी बड़ा नहीं है, दीनानाथ जी और बच्चे परेशान हो रहे होंगे| हमें उनकी परेशानी समझनी चाहिए| 

उसी दिन शाम को फ़ोन करके अनिकेत अपने माता-पिता को लेकर कोठी पर आ गया| अनिकेत की मम्मी ने बड़े प्रेम से बच्चों से बात की और सेठ जी से कहा कि वे बिलकुल भी चिंता न करें| भारत के सभी प्रदेशों में फेरे तो होते ही हैं , वे ही इंपोर्टेन्ट हैं| बाकी जो आपको समझ में आए, आप कर लीजिए, जो हमारे यहाँ होते है हम वो कर लेंगे| विवाह चिंता का विषय नहीं, प्रेम और स्नेह का विषय होना चाहिए| उन्होंने कहा कि यह केवल लड़के-लड़की का नहीं , परिवारों का भी मिलन है सो चिंता मुक्त रहें| 

प्रतीक्षा की घड़ियाँ समाप्त हुईं और विवाह की बेला आ पहुंची| सबके मन में अलग-अलग विचार थे, अलग भाव थे, अलग संवेदनाएं थीं परंतु ‘कारण’ केवल एक ही था, आशिमा के विवाह का| सबके मन में यही संवेदना कचोट रही थी कि काश ! आशिमा के मम्मी-पापा होते! लेकिन वे नहीं थे और वास्तविकता को स्वीकार करना जरूरी था| विवाह में सब चेहरों पर फीकी मुस्कान लिए घूमते रहे| विवाह के बाद वह समय भी आया जब सबकी खोखली मुस्कान भी लुप्त हो गईं और छटपटाहट आँखों से आँसु बनकर बह निकली| इन आँसुओं में आशिमा के विवाह के सुख के साथ ‘अनुपस्थित’अपनों का दुख भी था| आशी भी शादी में सम्मिलित हुई लेकिन अपने ही मूड में| आशिमा, रेशमा ने कितना कहा कि वह शादी के कपड़े और कुछ जेवर पहन ले लेकिन वह टस से मस नहीं हुई| कुछ देर अपनी उपस्थिति देकर वह न जाने कहाँ चली गई| शायद लॉंग-ड्राइव पर और उसके बाद घर पर| 

विवाह-संस्कारों में रात्रि न जाने कहाँ बीत गई| पंडित जी ने जो संस्कार करवाए, वही कर लिए गए| दोनों पार्टियों में से कोई कुछ भी नहीं बोला| सुप्रभात की तरंगों ने विदाई की बेला को जैसे गुलाबी तरंगों में परिवर्तित कर दिया| आशिमा की विदाई पर स्वाभाविक रूप से सभी की आँखों से लगातार आँसु बरस रहे थे| अनिकेत की मम्मी ने उसे एक माँ की तरह ही संभाला और दीनानाथ जी, मनु और रेशमा को आश्वस्त किया कि वे जब चाहें तब घर आ सकते हैं, याअपनी बेटी को बुला सकते हैं | बहुत दूर भी तो नहीं है बेटी, कभी भी मिला जा सकता है| सभी उदास हो गए थे जैसे सबके मन चुप्पी से भर गए थे| विदाई के बाद उदासी मनों में भरकर सब होटल से घर वापिस लौटे| घर में भी सूनापन फैला हुआ था| आशी अपने कमरे में थी, शायद सोई हुई|