Laga Chunari me Daag in Hindi Women Focused by Saroj Verma books and stories PDF | लागा चुनरी में दाग़--भाग(५८)

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लागा चुनरी में दाग़--भाग(५८)

धनुष जैसे ही प्रत्यन्चा के कमरे से सामान रखकर वापस आने लगा तो प्रत्यन्चा ने उससे कहा...
"कहाँ जा रहे हैं,रुकिए ना थोड़ी देर,"
"मैं क्या करूँगा यहाँ रुककर,जब तुम्हें मेरी परवाह ही नहीं",धनुष ने ताना मारते हुए कहा...
"ये आपने कैंसे सोच लिया",प्रत्यन्चा ने पूछा...
"आज तुम दोपहर का खाना लेकर आउटहाउस नहीं आई तो इसका मतलब तो वही होता है",धनुष ने कहा...
"आप कोई छोटे बच्चे हैं जो मैं रोज रोज आपको खाना खिलाने वहाँ आऊँ",प्रत्यन्चा बोली...
"अच्छा! अब मैं जा रहा हूँ,ऐसा लगता है कि जैसे तुम्हारा मुझसे झगड़ा करने का मन है",धनुष बोला...
"ऐसा कुछ नहीं है",प्रत्यन्चा बोली...
"ऐसा ही है",धनुष बोला...
"लेकिन फिर मैंने ही आपके लिए पोहा बनाया था",प्रत्यन्चा बोली...
"अच्छा! चलो मान लिया कि तुम्हें मेरी परवाह है,तो अब कहो कि क्या कहना चाहती हो,जो मुझे यहाँ रुकने के लिए कह रही हो",धनुष ने कहा...
"वो सब छोड़िए,पहले ये बताइए कि ये उँगली में आपको चोट कैंसे लगी",प्रत्यन्चा ने पूछा...
"वो दोपहर में टमाटर काट रहा था तो टमाटर की जगह उँगली कट गई",धनुष ने कहा...
"आप भी ना! अभी तक छोटे बच्चे ही बने हुए हैं,बताओ तो जरा उँगली काट ली अपनी",प्रत्यन्चा ने कहा...
"हाँ!.अब मैं क्या बोलूँ",धनुष ने कहा...
"और लौटा दीजिए खाना,ये आपको उसी बात की सजा मिली है शायद",प्रत्यन्चा मुस्कुराते हुए बोली...
"हाँ! सही कहती हो,सजा ही तो भुगत रहा हूँ मैं,शायद उम्रकैद की सजा मिल चुकी है मुझे",धनुष उदास होकर बोला...
"ये क्या कह रहे हैं आप...मैं कुछ समझी नहीं",प्रत्यन्चा बोली...
"और शायद तुम कभी समझोगी भी नहीं",धनुष ने कहा...
"मतलब क्या है आपके कहने का",प्रत्यन्चा ने पूछा...
"अच्छा! ये सब छोड़ो,पहले ये बताओ कि जब तुम इस घर से चली जाओगी तो क्या मुझे याद किया करोगी", धनुष ने प्रत्यन्चा से पूछा...
तब प्रत्यन्चा बोली...
"हाँ...बहुत याद करूँगी आपको,आपका रुठना मेरा मनाना,आपके नखरे उठाना,आपका गुस्सा बरदाश्त करना....आपके लिए खाना बनाना,आपकी दोस्ती,आपका साथ,आपकी हर चींज याद आऐगी मुझे, इतना गहरा लगाव तो मुझे मेरे पति से भी नहीं रहा,जितना आपसे हो गया है,यहाँ आकर मैं अपने सारे दुख दर्द भूल गई...और आपको याद है जब उस रात आप मुझे खाना खिलाने आएँ थे तो मैंने आपको कितनी बातें सुनाईं थीं,इसके बाद मैं फूट फूटकर रो पड़ी थी और आपने मुझे अपने सीने से लगाकर चुप कराया था,मैं भला कैंसे वो सब भूल सकती हूँ,जितना भरोसा मैं आप पर करती हूँ शायद ही उतना भरोसा मैं कभी किसी और पर कर सकूँगी,आप सा दोस्त तो किस्मत वालों को मिलता है और मैं सच में बहुत किस्मत वाली हूँ जो आप मेरी जिन्दगी में आएँ"
और ऐसा कहते कहते प्रत्यन्चा की आँखें छलक पड़ी,तब धनुष उससे बोला...
"तुम्हारे दिल में इतनी हमदर्दी और इतना अपनापन है इस शराबी के लिए,ये मुझे नहीं मालूम था"
"हाँ...बहुत हमदर्दी और अपनापन है मेरे मन में आपके लिए और शायद ये हमेशा यूँ ही कायम रहेगा , आपको मेरे मन से को ई भी जुदा नहीं कर सकता,शायद मैं आपको कभी भी नहीं भूल पाऊँगीं और हाँ खबरदार! जो आज के बाद आपने मेरे दोस्त को शराबी कहा तो मुझसे बुरा कोई ना होगा", प्रत्यन्चा धनुष को आँखें दिखाते हुए बोली...
"बस...बस...मैं डर गया तुम्हारी बड़ी बड़ी आँखों से,मैं सब समझ गया,तुम्हें आँखें दिखाने की जरूरत नहीं है"धनुष बोला...
और फिर दोनों साथ में खिलखिलाकर हँस पड़े,जब दोनों हँस चुके तो प्रत्यन्चा ने धनुष से पूछा...
"क्या मेरे जाने के बाद आप कभी मुझे याद करेगें"?
तब धनुष प्रत्यन्चा से बोला...
"तुम ये सवाल मुझ से पूछ रही हो प्रत्यन्चा! ये पूछो कि ऐसा कौन सा पल नहीं है,ऐसी कौन सी घड़ी नहीं है जब मैं तुम्हें याद नहीं करूँगा,तुम्हारे जाने से ये घर बिल्कुल सूना हो जाऐगा,जब भी मैं आउटहाउस जाऊँगा तो तुम मुझे वहाँ सफाई करती हुई दिखोगी,जब मैं यहाँ आऊँगा तो तुम मुझे खाना परोसती हुई दिखोगी, मंदिर में पूजा करती हुई दिखोगी,रसोई में खाना बनाती हुई दिखोगी,कभी मुझे मनाते हुए दिखोगी तो कभी मुझे खाना खिलाते हुए दिखोगी,तुम्हारी हँसी,तुम्हारा गुस्सा,तुम्हारा चहकना मुस्कुराना,इन सबका मैं आदी हो चुका हूँ प्रत्यन्चा!,
तुम्हें नहीं मालूम कि जब तुम इस घर से चली जाओगी तो ऐसा लगेगा कि जैसे इस घर की आत्मा चली गई है,तुम्हारे जाने के बाद शायद मैं यहाँ आना ही छोड़ दूँगा,ये कमरा जिसमे तुम रहती हो, इसमे तुम्हारी यादें बसी हुईं हैं...तुम्हारी खुशबू ने इस घर को सराबोर कर रखा है,इस घर का हर एक इन्सान तुम्हें कभी नहीं भूलेगा प्रत्यन्चा! और खासकर कि मैं तो तुम्हें कभी नहीं भूलूँगा,क्योंकि तुमने मुझे रिश्तों की अहमियत करना सिखाया है,लोगों से प्यार करना सिखाया है,एक अच्छा इन्सान बनाया है,मैं तुम्हारे ये सब एहसान कभी भी नहीं भूल पाऊँगा,जैसे देवदास ने पारो की याद में अपना दम तोड़ दिया था शायद मेरा भी यही हाल होगा तुम्हारे बिना",
"ये क्या कह रहे हैं आप!,पारो और देवदास तो प्रेमी प्रेमिका थे ,इसलिए देवदास ने पारो की याद में अपना दम तोड़ दिया था",प्रत्यन्चा बोली...
"लेकिन तुम मेरी सबसे अच्छी दोस्त जो हो...तो शायद...मैं भी देवदास की तरह............."
और इसके आगे का वाक्य प्रत्यन्चा ने धनुष को कहने नहीं दिया,इसके पहले ही उसने धनुष के मुँह पर अपना हाथ रख दिया,तब धनुष अपने मुँह से प्रत्यन्चा का हाथ हटाते हुए बोला....
"ये सही है प्रत्यन्चा! मैं शायद नहीं रह पाऊँगा तुम्हारे बिना",
"ये कैंसी बातें कर रहे हैं आप! मैं क्या आपके लिए इतनी अहमियत रखती हूँ",प्रत्यन्चा ने पूछा...
"हाँ...रखती हो अहमियत....बहुत अहमियत रखती हो तुम मेरे लिए",धनुष बोला...
"फिर आप भी एक अच्छी सी लड़की देखकर शादी कर लीजिएगा,तब आपको मेरी याद नहीं आऐगी", प्रत्यन्चा बोली....
"शादी ...और मेरी",ये कहकर धनुष मुस्कुराया...
"और क्या आपकी शादी,आपको तो ना जाने कितनी अच्छी अच्छी लड़कियाँ मिल जाऐगीं,आप इतने खूबसूरत जो हैं,याद है आपने ही तो उस दिन कहा कि लड़कियाँ आप पर मरतीं हैं",प्रत्यन्चा बोली...
"लड़कियांँ तो मुझे बहुत मिल जाऐगीं लेकिन तुम्हारे जैसी नहीं मिलेगी,जो मेरे नखरे उठा सके,मुझे डाँटकर खाना खिला सके,मेरी हर जिद़ पूरी कर सके,तुम सबसे अलग हो प्रत्यन्चा!...एकदम सबसे अलग... सबसे खास़,तुमसा कोई नहीं हो सकता,तुम किसी भी परिस्थिति को सम्भाल लेती हो और सबसे बड़ी बात तुम कभी हार नहीं मानती",धनुष ने प्रत्यन्चा से कहा....
"आप इतना अच्छा...अच्छा..सोचते हैं मेरे बारें में",प्रत्यन्चा ने पूछा....
"हाँ! तुम इतनी अच्छी जो हो तो तुम्हारे बारें में मैं अच्छा ही सोचूँगा ना!",धनुष ने मुस्कुराते हुए कहा...
"आप भी बहुत अच्छे हैं धनुष जी!",प्रत्यन्चा बोली...
"मैं अच्छा नहीं था प्रत्यन्चा! तुमने मुझे अच्छा बनाया है",धनुष बोला...
"ऐसा नहीं है धनुष बाबू! आप अच्छे शुरु से थे,बस आपको कोई राह दिखाने वाला नहीं मिला था,आपकी माँ अगर जिन्दा होतीं तो आप शायद और भी अच्छे इन्सान बनते",प्रत्यन्चा ने धनुष से कहा...
"माँ की ममता का तो पता नहीं,दादी भी थोड़ी सी ममता लुटाकर जल्दी ही चल बसीं,लेकिन जो ममता तुमने मेरा ख्याल रखकर मुझपर लुटाई है उसे मैं कभी नहीं भूल सकता",धनुष ने प्रत्यन्चा से कहा...
"अब आप मुझे चने के झाड़ पर चढ़ा रहे हैं धनुष बाबू!",प्रत्यन्चा आँखें मटकाते हुए बोली...
"मैं तुम्हें चने के झाड़ पर नहीं चढ़ा रहा हूँ,तुम सच में बहुत अच्छी हो",धनुष बोला...
"अच्छा! अब आपको सोना नहीं है क्या? आज की सारी रात यूँ ही बातों में बिताने का इरादा है क्या?, प्रत्यन्चा ने पूछा...
"मेरा वश चले तो मैं यूँ ही जीवन भर तुमसे बातें करता रहूंँ",धनुष ने प्रत्यन्चा से कहा...
"अब रहने भी दीजिए,अपने कमरे में जाइए,बाक़ी बातें कल करेगें",प्रत्यन्चा ने मुस्कुराते हुए कहा...
"ठीक है तो अब मैं जाता हूँ"
और ऐसा कहकर धनुष प्रत्यन्चा के कमरे से वापस चला आया...

क्रमशः...
सरोज वर्मा...