Laga Chunari me Daag - 30 in Hindi Women Focused by Saroj Verma books and stories PDF | लागा चुनरी में दाग़--भाग(३०)

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लागा चुनरी में दाग़--भाग(३०)

और प्रत्यन्चा को देखते ही उन्होंने उससे पूछा....
"आप और यहाँ"
लेकिन प्रत्यन्चा के पास उनके सवाल का कोई जवाब ना था,वो भला कहती भी क्या कि उस पर चोरी का झूठा इल्जाम लगाकर उसे दीवान साहब ने अपने घर से निकाल दिया है,इसलिए वो कुछ ना बोली,उसकी खामोशी ही उसके सारे सवालों का जवाब थी,ये देखकर अनुसुइया देवी ने डाक्टर सतीश से पूछा....
"सतीश! क्या तुम प्रत्यन्चा को जानते हो?"
"जी! हाँ!",डाक्टर सतीश बोले...
तब डाक्टर सतीश की माँ शीलवती जी ने भी अपने बेटे से पूछा...
"सतीश! तुम इस लड़की को कैंसे जानते हो?"
तब डाक्टर सतीश अपनी माँ शीलवती जी से बोले...
"माँ! मैंने तुम्हें बताया था ना कि उस रात एक लड़की दीवान साहब की मोटर से टकरा गई थी,जिसका मैंने ही इलाज किया था,ये वही लड़की है"
"लेकिन ये यहाँ क्या कर रही है,तू ने तो कहा था कि उस लड़की को दीवान साहब अपने घर ले गए हैं,तो फिर ये यहाँ कैंसे?", शीलवती जी ने डाक्टर सतीश से पूछा....
तब डाक्टर सतीश राय ने प्रत्यन्चा के ऊपर लगे चोरी के इल्जाम को छुपाते हुए झूठ बोला और अपनी माँ शीलवती जी से कहा...
"माँ! अब मैं वजह तो नहीं जानता कि ये यहाँ कैंसे,लेकिन इनके घर से चले जाने के बाद दीवान साहब की तबियत इतनी बिगड़ चुकी है कि वे अभी तक अस्पताल में हैं और रह रहकर केवल इन्हें ही याद कर रहे हैं, दीवान साहब की तबियत को लेकर उनके बेटे तेजपाल जी इतने परेशान हो उठे कि वे रात भर इन्हें ढूढ़ते रहे,लेकिन ये उन्हें कहीं ना मिली,इनके ना मिलने से दीवान साहब की हालत और भी खराब हो गई है,सुबह सुबह घर पर टेलीफोन आया था,डाक्टर शर्मा कह रहे थे कि रात से दीवान साहब की सेहद में कोई भी सुधार नहीं हुआ है"
"बेटी! दीवान साहब बूढ़े इन्सान है बेचारे,अगर तुम्हारी वजह से उनकी सेहद सुधर सकती है ,तो फिर तुम्हें उनके पास जरूर जाना चाहिए",शीलवती जी बोलीं...
"हाँ! प्रत्यन्चा! तुम्हें उन्हें छोड़कर नहीं आना चाहिए था",अनुसुइया जी बोलीं....
"हाँ! दीवान साहब इन्हें अपनी बेटी से भी बढ़कर मानते हैं,इसलिए इनके घर से चले जाने के बाद उनकी ऐसी हालत हो गई है",डाक्टर सतीश राय बोले....
"लेकिन मैं उस घर में दोबारा कैंसे जा सकती हूँ",प्रत्यन्चा बोली....
"हाँ! मुझे सब मालूम है,आपको आगे कुछ कहने की जरूरत नहीं है,मैं तो आपसे केवल इतना कह रहा था कि आप मेरे साथ अस्पताल तक चलकर उनसे मिल लीजिए,फिर आप उनके घर जाएँ या ना जाएँ ये आपकी मर्जी पर निर्भर करता है", डाक्टर सतीश राय बोले...
"हाँ! बेटी! तुम्हें उनसे मिलने जाना चाहिए",शीलवती जी बोलीं...
"मैं उनसे मिलने कैंसे जा सकती हूँ,अगर मैं उनसे मिलने गई तो उन्हें अच्छा नहीं लगेगा",प्रत्यन्चा बोली...
"अच्छा! ठीक है! कोई बात नहीं! मैं अस्पताल जाकर दीवान साहब से कह दूँगा कि प्रत्यन्चा यहाँ पर है,वे आपसे मिलने खुद ही यहाँ पर आ जाऐगें",डाक्टर सतीश राय बोले...
"हाँ! बेटा! यही ठीक रहेगा",शीलवती जी बोलीं...
"लेकिन बेटा! वो इतने रईस इन्सान हैं,मैं उनकी खातिरदारी का इन्तजाम नहीं कर पाऊँगीं",अनुसुइया जी डाक्टर सतीश से बोलीं...
"कोई बात नहीं! दीवान साहब दिल के बड़े ही अच्छे इन्सान है,वे आपकी मजबूरी यू्ँ झट में समझ जाऐगें" डाक्टर सतीश राय बोले...
"ठीक है बेटा! तो तू अब अस्पताल जा और जाकर दीवान साहब को बता दे कि प्रत्यन्चा यहाँ पर है", अनुसुइया देवी बोलीं...
और फिर डाक्टर सतीश राय उसी वक्त अस्पताल की ओर चल पड़े,अस्पताल पहुँचकर उन्होंने तेजपाल जी और भागीरथ से सारी बात बता दी कि प्रत्यन्चा कहाँ पर है,ये सुनकर भागीरथ जी बिस्तर से उठते हुए बोले...
"तेजपाल! हमें जल्दी से उसके पास ले चलो,हम उसके पैर पकड़कर उससे माँफी माँगना चाहते हैं"
"हाँ! बाबूजी! आप परेशान ना हों,बस हम दोनों प्रत्यन्चा के पास ही चल रहे हैं",तेजपाल जी बोले....
फिर इसके बाद तेजपाल जी और भागीरथ जी डाक्टर सतीश राय के साथ मोटर में बैठकर अनाथालय की ओर चल पड़े और जब प्रत्यन्चा उनके सामने आई तो भागीरथ जी प्रत्यन्चा के पैरों के पास जा बैठ गए और रोते हुए उससे बोले....
"हमें माँफ कर दे बेटी! हमने तेरे साथ बड़ा अन्याय किया,तुझे खुद को निर्दोष साबित करने का मौका ही नहीं दिया,हमारी अक्ल पर पत्थर पड़ गए थे जो हम उस नालायक धनुष की बातों में आ गए"
भागीरथ जी को ऐसा करते देख प्रत्यन्चा उनसे बोली....
"ये आप क्या कर रहे हैं दादाजी! उठिए आपको मुझ से इस तरह से माँफी माँगने की जरूरत नहीं है"
"नहीं! हम तब तक नहीं उठेगें ,जब तक कि तुम हमें माँफ नहीं कर देती",भागीरथ जी बोले....
"दादा जी! उठिए ना! मुझे अच्छा नहीं लग रहा है",प्रत्यन्चा बोली...
"नहीं! पहले बोल कि तूने हमें माँफ कर दिया",भागीरथ जी दोबारा बोले....
"हाँ! कर दिया माँफ! अब तो उठिए",प्रत्यन्चा बोली....
फिर भागीरथ जी उठकर खड़े हुए और प्रत्यन्चा को गले लगाकर बोले...
"वादा कर कि अब तू इस बूढ़े को छोड़कर कहीं नहीं जाऐगी"
"हाँ! नहीं जाऊँगी,कभी नहीं जाऊँगी",
और ऐसा कहते हुए प्रत्यन्चा की आँखों से भी आँसू बह निकले ,तब तेजपाल जी उन दोनों से बोले...
"अब भरत मिलाप हो चुका हो तो घर चलें"
फिर तेजपाल जी की बात सुनकर वहाँ मौजूद सभी लोग हँसने लगे और तभी अनाथालय की मालकिन अनुसुइया जी सबसे बोलीं...
"ऐसे कैंसे चले जाऐगें आप लोग,मैं अभी सभी के लिए चाय नाश्ता मँगवाती हूँ",
"जी! उसकी कोई जरूरत नहीं है",तेजपाल जी ने अनुसुइया जी से कहा....
और जब तेजपाल जी ने अनुसुइया जी से इतना कहा तो अनुसुइया जी ने तेजपाल जी को ध्यान से देखा और उनसे बोली...
"अरे! तेजू! तुम और यहाँ"
"आप मुझे ऐसे क्यों पुकार रहीं हैं,ऐसे तो मुझे मेरे बचपन की दोस्त पुकारा करती थी,उसका नाम अनु था और वो मेरे ननिहाल में रहा करती थी",तेजपाल जी बोले....
"हाँ! मैं वही अनु हूँ तेजू! शायद तुमने मुझे पहचाना नहीं,लेकिन मैंने तुम्हें पहचान लिया",अनुसुइया जी बोलीं....
"हाँ! काफी अरसा भी तो बीत गया है,मुश्किल से उस वक्त हम दोनों की उम्र तेरह चौदह बरस रही होगी", तेजपाल जी बोले....
"हाँ! सही कहा तुमने",अनुसुइया जी बोलीं....
"अब तुम दोनों का भी भरत मिलाप हो गया हो तो जल्दी से चाय पीकर घर चलें",भागीरथ जी बोलें....
फिर भागीरथ जी की भी बात सुनकर सब ठहाका मारकर हँस पड़े,इसके बाद सबने चाय नाश्ता किया,तब प्रत्यन्चा ने भागीरथ से अनुसुइया जी के अनाथालय के हालातों के बारें में कहा तो भागीरथ जी बोले...
"अब से इस अनाथालय का खर्चा हम उठाऐगें,यहाँ के बच्चों को अब किसी भी चींज के लिए मन मारने की जरूरत नहीं है"
और फिर इसके बाद सभी खुशी खुशी घर लौट आएँ और जब धनुष को ये पता चला कि प्रत्यन्चा दादाजी को मिल गई है और सही सलामत घर लौट आई है तो वो भीतर ही भीतर जल उठा.....

क्रमशः....
सरोज वर्मा....