Towards the Light – Reminiscence in Hindi Moral Stories by Pranava Bharti books and stories PDF | उजाले की ओर –संस्मरण

Featured Books
  • तुझी माझी रेशीमगाठ..... भाग 2

    रुद्र अणि श्रेयाचच लग्न झालं होत.... लग्नाला आलेल्या सर्व पा...

  • नियती - भाग 34

    भाग 34बाबाराव....."हे आईचं मंगळसूत्र आहे... तिची फार पूर्वीप...

  • एक अनोखी भेट

     नात्यात भेट होण गरजेच आहे हे मला त्या वेळी समजल.भेटुन बोलता...

  • बांडगूळ

    बांडगूळ                गडमठ पंचक्रोशी शिक्षण प्रसारण मंडळाची...

  • जर ती असती - 2

    स्वरा समारला खूप संजवण्याचं प्रयत्न करत होती, पण समर ला काही...

Categories
Share

उजाले की ओर –संस्मरण

उजाले की ओर - - - संस्मरण

===================

नमस्कार मित्रो

आशा है सब स्वस्थ वआनंदित हैं ।

निम्न लिखित लेख कहीं पढ़ा था जो सार्थक व उपयोगी लगा | आज वही मित्रों के साथ साझा करगती हूँ |

बहुत दिनों की बात है एक छोटे से शहर में एक आईएएस अफसर अपने परिवार सहित रहने के लिये आये, जो हाल ही में सेवानिवृत्त हुये थे।

यहाँ आकर अफसर हैरान-परेशान से रोज शाम को अपने घर के नज़दीक के एक पार्क में टहलते हुए अन्य लोगों को देखते हुए उधर से निकलकर आगे निकल जाते। वह किसी से भी बात करना पसंद ही नहीं करते थे। एक दिन न जाने उनके वे एक बुज़ुर्ग के पास गुफ़्तगू के लिए बैठे और फिर प्रतिदिन उनके पास बैठने लगे। उनकी वार्ता का विषय एक ही होता था - मैं इतना बड़ा आईए. एस अफ़सर था? यहां तो मैं मजबूरी में आ गया हूं ? मुझे तो दिल्ली में बसना चाहिए था ? और बुजुर्ग शांतिपूर्वक उनकी बातें सुना करते थे ।

सेवानिवृत्त अफसर की घमंड भरी बातों से परेशान होकर एक दिन बुजुर्ग ने उनसे पूछा कि आपने कभी फ्यूज बल्ब देखे हैं ? बल्ब के फ्यूज हो जाने के बाद क्या कोई देखता है‌ कि‌ बल्ब‌ किस कम्पनी का बना‌ हुआ था ? कितने वाट का था ? उससे कितनी रोशनी होती थी ?

बुजुर्ग ने आगे फ़िर कहा कि बल्ब के‌ फ्यूज़ होने के बाद इनमें‌‌ से कोई भी‌ बात बिलकुल भी मायने नहीं रखती है ? लोग बल्ब को‌ कबाड़‌ में डाल देते‌ हैं ? मैं सही कह रहा हूं कि नहीं ?

फिर जब उन रिटायर्ड‌ आईएएस अधिकारी महोदय ने सहमति‌ में सिर‌ हिलाया तो‌ बुजुर्ग फिर बोले‌ - रिटायरमेंट के बाद हम सबकी स्थिति भी फ्यूज बल्ब जैसी हो‌ जाती है‌ ? हम‌ कहां‌ काम करते थे‌ ? कितने‌ बड़े‌ पद पर थे‌ ? हमारा क्या रुतबा‌ था ? यह‌ सब‌ कोई मायने‌ नहीं‌ रखता‌ ?

बुजुर्ग ने बताया कि मैं सोसाइटी में पिछले कई वर्षों से रहता हूं पर आज तक किसी को यह नहीं बताया कि मैं दो बार सांसद रह चुका हूं ?

उन्होंने कहा कि वो जो सामने वर्मा जी बैठे हैं वे रेलवे के महाप्रबंधक थे ? और वे जो सामने से आ रहे हैं साहब वे सेना में ब्रिगेडियर थे ? और बैरवा जी इसरो में चीफ थे ? लेकिन हममें से किसी भी व्यक्ति ने ये बात किसी को नहीं बताई क्योंकि मैं जानता हूं कि सारे फ्यूज़ बल्ब फ्यूज होने के बाद एक जैसे ही हो जाते हैं ? चाहे वह जीरो वाट का हो या 50 वाट का या फिर 100 वाट का हो ? कोई रोशनी नहीं, तो कोई उपयोगिता नहीं ?

उन्होंने आगे कहा कि लोग अपने पद को लेकर इतने वहम में होते‌ हैं‌ कि‌ रिटायरमेंट के बाद भी‌ उनसे‌ अपने अच्छे‌ दिन भुलाये नहीं भूलते। वे अपने घर के आगे‌ नेम प्लेट लगाते‌ हैं - रिटायर्ड आइएएस‌ / रिटायर्ड आईपीएस / रिटायर्ड पीसीएस / रिटायर्ड जज‌ आदि-----

बुजुर्ग ने कहा कि माना‌ आप बड़े‌ आफिसर थे‌? काबिल भी थे‌ ? पर अब क्या ? अब यह बात मायने नहीं रखती है बल्कि मायने‌ यह रखता है‌ कि पद पर रहते समय आप इंसान कैसे‌ थे ? आपने समाज के लोगों को कितनी तवज्जो दी ? समाज को क्या दिया ? कितने काम आये ? या फिर सिर्फ घमंड में ही ऐंठे रहे ।

बुजुर्ग आगे बोले कि अगर पद पर रहते हुए कभी घमंड आये तो बस याद कर लेना कि एक दिन आपको भी फ्यूज होना है ???

बुजुर्ग की बातों को सुनकर सेवानिवृत्त अधिकारी सन्न रह गए औऱ उनकी नजरें झुक गयीं ।

यह एक सार्थक संदेश है और उन लोगों के लिये एक आइना है जो पद और सत्ता में रहते हुए कभी किसी का हित नहीं करते| हाँ, रिटायरमेंट के बाद ऐसे लोगों को समाज की बड़ी चिंता होने लगती है ? अभी भी वक्त है ? हम चिंतन करें तथा समाज की मदद करें ? अपने पद रूपी बल्ब से समाज व देश को रोशन करें, तभी रिटायरमेंट के बाद समाज हमें आदर से देखेगा और हमारा सम्मान करेगा !!

चलिए, इस विषय पर चिंतन करते हैं |

आप सबकी मित्र

डॉ. प्रणव भारती