Sone Ke Kangan - Part - 5 in Hindi Motivational Stories by Ratna Pandey books and stories PDF | सोने के कंगन - भाग - ५

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सोने के कंगन - भाग - ५

सारिका और उसका पूरा परिवार आज रजत के घर मिलने आया था। घर के बाहर टैक्सी से उतरते ही उन्होंने आलीशान बंगला और उसके बाहर खड़ी दो-दो कारें देखीं।

कुशल के मुँह से निकल गया, “वाह यह लोग तो काफ़ी रईस लगते हैं। घर बाहर से इतना सुंदर है तो अंदर से तो और भी बढ़िया होगा, है ना अनु?”

“हाँ तुम ठीक कह रहे हो।”

सारिका की तरफ़ देखते हुए कुशल ने कहा, “राज करेगी हमारी बिटिया।”

सारिका ने शर्माते हुए कहा, “क्या पापा आप भी …!”

तब तक रजत और उसके मॉम डैड उन्हें लेने घर के बाहर आ गए। उनको बड़े ही सम्मान के साथ अंदर आने के लिए कहते हुए रजत के डैड अजय ने पूछा, “घर ढूँढने में ज़्यादा तकलीफ तो नहीं हुई?”

“नहीं-नहीं अजय जी मैप में देखते हुए आए हैं।”

“हाँ भाई आजकल यह बड़ी सुविधा हो गई है।”

“जी बिल्कुल सही, सुविधाएँ तो बहुत हो गई हैं। एक अकेले मोबाइल से कितने काम आसान हो जाते हैं।”

तब तक रजत की मॉम सोनिया ने कहा, “अरे बैठिए ना आप लोग।”

अंदर आते ही ड्राइंग रूम की खूबसूरती देखकर अनामिका के मुँह से अनायास ही निकल गया, “आपका ड्राइंग रूम बहुत ही सुंदर है, कितने सलीके से जमा है। हर चीज एकदम परफेक्ट है।”

“अरे आइए ना अनामिका, मैं आपको पूरा घर दिखाती हूँ आओ सारिका तुम भी आओ।”

सोनिया उन्हें अपना घर दिखाने लगी। उधर रजत की बेचैनी बढ़ती जा रही थी। वह मन ही मन सोच रहा था मॉम भी क्या … सारिका को क्यों ले गईं। देखेगी ना बाद में, उसे तो जीवन भर यहीं रहना है। वह बार-बार उस तरफ़ देख रहा था। कुशल और अजय दोनों ही उसकी बेचैनी को समझ रहे थे।

तभी अजय ने आवाज़ लगाई, “अरे सोनिया सारिका को तो बाहर भेज दो। उसे कुछ वक़्त रजत के साथ समय बिताने दो।”

“हाँ -हाँ ठीक है, बस हम लोग आ ही रहे हैं। इतनी भी क्या जल्दी है?”

“अरे भाई जल्दी हमें नहीं किसी और को है।”

रजत ने कहा, “अरे पापा मैंने कहाँ कुछ कहा।”

“रजत बेटा तुम्हारी जीभ नहीं तुम्हारी आँखें सब कह रही हैं।”

तब तक सारिका ड्राइंग रूम में आ गई।

अजय ने कहा, “जाओ तुम दोनों कुछ देर बाहर घूम आओ।”

सारिका और रजत घूमने चले गए।

उधर शादी की तारीख़ और सारे विधि विधान पर चर्चा होने लगी।

दहेज के नाम पर अजय ने साफ-साफ कह दिया, “हमें दहेज नहीं चाहिए। बस सारिका सबको प्यार से लेकर चले, वही हमारा दहेज होगा।”

“अरे समधी जी आप इस बात की बिल्कुल भी चिंता मत करो। मेरी बेटी है ही ऐसी कि सबका दिल जीत लेगी। आप देख लेना, वह सब के मन में बस जाएगी।”

पंद्रह दिन के बाद शादी का मुहूर्त निकल आया। दोनों परिवारों में शादी की तैयारियाँ जोर-शोर से चल रही थीं। एक तरफ़ सब कुछ हाई-फाई था, कीमती था, तो दूसरी ओर सब कुछ साधारण और सस्ता, सुंदर, टिकाऊ था। दोनों परिवारों के बीच यह बहुत ही बड़ा फासला था पर दिल मिल गए तो फिर फासला कहाँ नज़र आता है। खैर विवाह ख़ुशी और उल्लास के साथ, पूरे विधि विधान के साथ, पूरा हो गया।

आज सारिका अपने एक परिवार से विदा होकर दूसरे परिवार में जा रही थी। उसकी दादी और मम्मी की आँखें आँसुओं को बहाए जा रही थीं।

जाते समय सोनम ने उससे कहा, “बिटिया रानी जैसे यह घर जितना तुम्हारा अपना है, वैसे ही अब वह घर भी उतना ही तुम्हारा अपना है। उस घर की मर्यादा की हमेशा लाज रखना। अपनी खुशियों के साथ उनकी खुशियों का भी ध्यान रखना। जैसे एक अच्छी बेटी हो, वैसे ही एक अच्छी बहू बनकर दिखाना और अपने माँ -बाप का सर हमेशा ऊंचा रखना।”

“ठीक है दादी, मैं ख़्याल रखूँगी। आपकी हर बात का मान रखूँगी।”

रत्ना पांडे, वडोदरा (गुजरात)
स्वरचित और मौलिक
क्रमशः