Kanchan Mrug - 41 in Hindi Moral Stories by Dr. Suryapal Singh books and stories PDF | कंचन मृग - 41. सुमुखी की खोज

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कंचन मृग - 41. सुमुखी की खोज

41. सुमुखी की खोज-

खर्जूरवाहक से लौटकर उदयसिंह अपने उद्यान में पुष्पिका के साथ बैठे पारिजात और कच्चे बाबा के सम्बन्ध में चर्चा कर रहे थे। ‘पारिजात पत्नी सुमुखी का कोई सुराग नहीं लग सका, हमें पता करना चाहिए।’ कान्यकुब्ज से लौटने के बाद उदयसिंह और पुष्पिका दोनों इतने व्यस्त हो गए कि उन्हें पारिजात का ध्यान ही न आया। आज पुष्पिका द्वारा इंगित करने पर उदयसिंह को चिन्ता हुई। उन्होंने, उठते हुए कहा, ‘पहले पारिजात का घर देख लेते हैं।’
जीर्ण-शीर्ण अवस्था में पारिजात का घर देखकर उदयसिंह विह्वल हो उठे। पड़ोसी भी सुमुखी के बारे में कोई सूचना नहीं दे सके। उन्होंने आयुधशाला की ओर बेंदुल का मुँह मोड़ दिया। कुछ क्षण में आयुधशाला के द्वार पर ही रोहित से भेंट हो गई। अस्त्रों का निर्माण तीव्रगीत से हो रहा था। रोहित ने प्रगति की जानकारी दी।
‘क्यों रोहित, पं0 पारिजात की पत्नी सुमुखी का पता नहीं चल सका, क्या तुम कुछ जानते हो?’
‘पं0 पारिजात से तीन बार भेंट हुई है। दो बार महोत्सव में और एक बार वेत्रवती तट पर। उनका आकुल मन सुमुखी के लिए भटक रहा है।’
‘पर सुमुखी का हुआ क्या?’
‘यही तो ज्ञात नहीं हो पा रहा है।’
‘कहते हैं सुमुखी अत्यन्त सुन्दरी थी। क्या किसी कापालिक ने अपनी साधना के लिए…...।’
‘जब तक कुछ ज्ञात न हो, बड़ा कठिन है कुछ कह पाना। पण्डित पारिजात राजपुरुषों के अन्तःपुर में वेष बदलकर पता लगाते रहे।’
‘पर कापालिक के यहाँ…..?’
‘हो सकता है उधर भी दृष्टि गई हो। वेत्रवती तीर पर मुझसे पूछा कि सुमुखी की खोज कहाँ की जा सकती है, मैंने कापालिकों की ओर भी इंगित किया था।’
‘कान्यकुब्ज में वे मुझसे भी मिले थे। राजपुरुषों पर उनकी आस्था नहीं टिकती।’ ‘हाँ इस बात को वे स्वयं कहते हैं, छिपाते नहीं।’
रोहित से विचार विनिमय कर उदयसिंह ने कापालिकों के केन्द्रों की सूची बनाई। ‘पर इस कार्य के लिये समय कहाँ है, युद्ध सामने है। ’
‘यह एक महत् कार्य है रोहित । युद्ध से तनिक भी कम महत्वपूर्ण नहीं। शस्त्र निर्माण का कार्य तीव्र गति से चलता रहे। मैं इस कार्य को भी देखता हूँ।’ बलाध्यक्ष से भेंट कर उन्होंने सैन्य गतिविधियों की जानकारी ली, दशपुरवा आ गए।
पुष्पिका से विचार विमर्श हुआ। कापालिकों के बीच जाना, पुष्पिका सिहर उठी। दोनों ने उपाहार लिया। अल्प विश्राम के बाद वे उठ पड़े। पुष्पिका ने कहा ‘मैं भी चलूँगी। सुमुखी की खोज आप अकेले नहीं कर सकेंगे।’
‘नही प्रिये, गिरिकन्दराओं में तुम्हारा जाना निरापद नहीं होगा। कापालिक सुरा-सुन्दरियों की खोज में रहते हैं।’
‘वे मुझे भी दीक्षित कर लेंगे, यही डर है न?’ पुष्पिका ने हँसते हुए कहा।
‘भय तो नहीं है। पर एक सुमुखी की खोज में दूसरी को संकट में डालना क्या उचित है?’ ‘पर आप का भी अकेले जाना संगत नहीं है।’ उदयसिंह ने पाटल के एक पुष्प को तोड़कर पुष्पिका की वेणी में लगा दिया।
सायंकाल का झुटपुटा। दो अश्वारोही तेजगति से जा रहे थे। वे महोत्सव से काफी दूर निकल आए थे। दोनों को प्यास लग गई। वे जल की खोज में एक पहाड़ी पर चढ़ गए। ऊँचाई पर एक कुंड मिला। उसमें पानी था। दोनों ने अंजलियों से जल पिया। पहाड़ी छोटी थी। वे उतरकर आगे बढ़ गए। एक पहाड़ी के समीप कुछ लोग दिखाई पड़े। अश्वारोही उसी ओर निकल गए। अश्वारोहियों के निकट आने पर तापस वेषी एक व्यक्ति आगे आ गया। उसने डाँटते हुए पूछा, ‘इधर कैसे आ गए?’
‘यात्री हूँ अँधेरे के कारण थोड़ा भटक गया।’
‘यह निषिद्ध स्थान है। यहाँ रुक नहीं सकोगे। आगे बढ़ जाओ।’
‘अँधेरा बढ़ गया है। यदि ठहरने के लिए स्थान मिल जाता.......
‘कह चुका, यह स्थान निषिद्ध है।’
‘क्या शासन का ऐसा निर्देश है?’
‘शासन ? किसका शासन ? यहाँ हमारा शासन चलता है।’ व्यक्ति ने झटक कर अपने केश खोल दिए। उत्तरीय के बीच से कंकाल का एक अवशेष निकाला। उसे ओठ में लगाकर तेज ध्वनि निकाली। गिरि गुहा से दूसरा तापस उत्तरीय सँभालता हुआ दौड़ आया।
‘ये दो अश्वारोही विश्राम करना चाहते हैं। क्या रात्रि में इन अश्वों का उपयोग हो सकता है?’
‘आज संभवतः आवश्यकता न पड़े।’
‘क्यों?’
‘सुगत बता रहा था कि शिवा अभी पूरी तरह प्रभामंडल में न आ सकी। सम्भवतः कल तक का समय लगे।’
‘तब इनका कोई उपयोग नहीं हो सकता? आज की रात्रि तो सिद्धियोग है।’
इतना कह कर तापस ने तीव्र ध्वनि निकाली। उसी के साथ अश्वारोहियों ने भी एड़ लगा दी।
कुछ दूर निकल जाने के बाद दोनों अश्वारोही एक पेड़ के नीचे रुके । तापसों का क्रिया-कलाप देखने की इच्छा को मूर्त रूप देने के लिए तापस का वेष आवश्यक था। वेष धारण करने पर भी अश्वों का प्रश्न था। दोनों महोत्सव की ओर मुड़ गए। पर उन्होंने मार्ग बदल दिया। प्रातः उदयसिंह ने देवा से पुनः बात की। देवा ने तापसों, के क्रिया-कलापों का अध्ययन किया था। वे ज्योतिष के भी जानकार थे। शकुन, अपशकुन का भी विचार करते थे। उन्होंने गणना कर के बताया कि सफलता का तत्काल कोई योग नहीं है। ‘पर अब समय कहाँ?’ उदयसिंह ने आतुर होकर कहा।
‘तो ठीक है यत्न किया जाएगा’, देवा ने उत्तर दिया।