Laga Chunari me Daag - 13 in Hindi Women Focused by Saroj Verma books and stories PDF | लागा चुनरी में दाग़--भाग(१३)

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लागा चुनरी में दाग़--भाग(१३)

शौकत भी उन सभी की बातें सुन रहा था,लेकिन वो बोला कुछ नहीं,क्योंकि वो नहीं चाहता था कि बात आगे बढ़े,उसने मन में सोचा अगर इन में से किसी को ये भनक भी लग गई कि प्रत्यन्चा ही वही लड़की है तो उसका जीना दूर्भर कर देगें,क्या पता इस रेलगाड़ी से ही हम दोनों को उतरना ना पड़ जाएंँ,इसलिए चुप रहने में ही भलाई है,लेकिन वो सब सुनकर प्रत्यन्चा की आँखों से आँसू बह निकले,वो भला कब तक उन आँसुओं को आँखों में रोकती,आखिरकार दिल का दर्द लावा बनकर फूट ही पड़ा,उसकी आँखों में आँसू देखकर एक बुजुर्ग महिला बोलीं....
"तुम काहे रोवत हो बिटिया! कौन्हों तकलीफ़ है का",
"नहीं! अम्मा! बेचारी के बाऊजी सख्त बीमार हैं,उन्हीं को देखने जा रही है,यही सब सोचकर शायद जी भर आया होगा", शौकत प्रत्यन्चा का पक्ष लेते हुए बोला...
"शादीशुदा हो का बिटिया! पाँव मा बिछिया तो हैं,लेकिन माँग मा सेदुर नहीं लगाय हो",बुजुर्ग महिला ने पूछा...
बुजुर्ग महिला के सवाल पर प्रत्यन्चा सन्न रह गई,परेशानी के मारे उसका ध्यान अब तक अपने पैरों के बिछिओं पर नहीं गया था,उसे याद ही नहीं रहा कि अब उसके पति के इस दुनिया में नहीं रहे तो उसे पैरों के बिछिऐ उतार देने चाहिए थे,माँग का सिन्दूर तो वो धुल चुकी थी लेकिन बिछिऐ नहीं उतार पाई थी,तभी शौकत ने बात को सम्भालते हुए झूठ बोलते हुए कहा...
"हम लोग मुसलमान हैं ना अम्मा!,इसलिए हमारे यहाँ शादीशुदा औरतें बिछिऐ तो पहन सकतीं हैं लेकिन माँग में सिन्दूर नहीं डाल सकतीं"
"अच्छा....अच्छा...तो मुसलमान हो तुम",बुजुर्ग महिला बोली...
"हाँ! अम्मा",शौकत बोला...
"और बेटा! तुम का लागत हो ,इ बिटिया के",बुजुर्ग महिला ने पूछा....
"मैं इसका फुफेरा भाई हूँ",शौकत ने दोबारा झूठ बोला....
"अच्छा! तो इ बात है,बिटिया! तसल्ली धरो,तुम्हार बाऊजी का कुछु ना होई,ऊ बिल्कुल ठीक हो जइहे",बुजुर्ग महिला बोली...
"हाँ! अम्मा! उम्मीद तो यही है",शौकत बोला...
रेलगाड़ी के कम्पार्टमेंट के लोग ऐसे ही आपस में बातें करते चले जा रहे थे,लगभग आधी रात होने को आई थी और सब ऊँघने लगे थे,शौकत भी अपनी सीट से सिर टिकाकर झपकी ले रहा था,लेकिन प्रत्यन्चा की आँखों में नींद कहाँ? वो तो सुबोध के साथ बिताएँ अपने हसीन पलों को याद कर रही थी,कितना प्यार करता था वो प्रत्यन्चा से और प्रत्यन्चा भी उसे कितना चाहती थी,लेकिन पल भर में ही उसकी हँसती खेलती दुनिया में आग लग गई,ये दिन भी देखना पड़ेगा ये उसने कभी नहीं सोचा था और ये सोचते सोचते उसकी आँखों से फिर से आँसू बह निकले जो उसने अपने दुपट्टे से पोछ लिए.....
कुछ देर बाद खिड़की से आती हवा ने प्रत्यन्चा के माथे को सहलाया और उसे भी झपकी आने लगी,करीब सुबह के पाँच बजे उसकी रेलगाड़ी कस्बे पहुँच गई,जहाँ से उसका गाँव लगभग पन्द्रह किलोमीटर दूर था,दोनों रेलगाड़ी से उतरे और प्लेटफार्म पर आए,छोटा सा प्लेटफार्म था और वहाँ पर इक्का दुक्का लोग ही टहल रहे थे,तभी शौकत ने प्रत्यन्चा से अपना चेहरा ढ़कने को कहा और प्रत्यन्चा ने शौकत के कहने पर दुपट्टे से अपना चेहरा ढ़क लिया,वो लोग प्लेटफार्म के बाहर आए ,तो वहाँ पर दो चार लोग इकट्ठे होकर कुछ बातें कर रहे थे,जो कुछ इस प्रकार थी....
"आपने कुछ सुना भाईसाहब! मास्टर संजीव मेहरा की बेटी के साथ क्या हुआ"? पहले सज्जन बोले..
"क्या हुआ? मुझे तो कुछ नहीं पता"दूसरे सज्जन बोले...
"अरे! अभी कल के अखबार में ही तो खबर आई थी",तीसरे सज्जन बोले....
"क्या खबर आई थी,जरा मुझे भी तो बताइए",चौथे सज्जन ने पूछा....
"यही कि संजीव मेहरा जी के दमाद सुबोध,उनके बड़े भाई सबइन्सपेक्टर प्रमोद मेहरा और उनकी पत्नी सुरेखा को तस्करियों ने मौत के घाट उतार दिया है",पहले सज्जन बोले....
"और उनकी बेटी....उसके साथ क्या हुआ",दूसरे सज्जन ने पूछा....
"उसे तो वो लोग उठा ले गए,वो तो पुलिस को भी नहीं मिली",पहले सज्जन बोले....
"क्या बीत रही होगी बेचारे मास्टरसाहब संजीव मेहरा जी के ऊपर ऐसी खबर सुनकर",चौथे सज्जन बोले...
"अब क्या कर सकते हैं,जो उनकी बेटी की किस्मत में लिखा था वही हुआ,भला होनी को कौन टाल सकता है",तीसरे सज्जन बोले....
"लेकिन बहुत बुरा हुआ बेचारी के साथ, ना जाने कहाँ होगी",पहले सज्जन बोले....
शौकत और प्रत्यन्चा ने उन सबकी की बातें सुनी,तो फौरन ही आगें बढ़ गए,उन सबकी बातें सुनकर प्रत्यन्चा की आँखें फिर से गीली हो गईं और वो शौकत से बोली....
"देखा! शौकत भाई! मेरी बदनामी मुझसे पहले ही यहाँ पहुँच गई",
"अरे! तुम ये सब बेकार की बातें मत सोचो,अभी घर जाकर सब ठीक हो जाएगा,तुम्हारे परिवार वाले जब तुम्हें अपना लेगें तो सबकी जुबान बंद हो जाऐगी",शौकत बोला....
फिर इसके बाद शौकत ने एक ताँगा रोका और उसमें बैठकर घर की ओर चल पड़े,वे दोनों कुछ ही देर में उस मुहल्ले में पहुँच गए,जहाँ प्रत्यन्चा के परिवार वाले रहते थे,घर से कुछ ही दूरी पर दोनों ताँगें से उतरे और ताँगेवाले का किराया देकर आगे बढ़ गए,सुबह सुबह का वक्त था,इसलिए कोई अपना द्वार बुहार रहा था तो कोई अपने दरवाजे पर पानी डाल रहा था तो कोई अपना दरवाजा लीपकर उस पर चौक पूर रहा था,जैसे ही प्रत्यन्चा शौकत के साथ उस मुहल्ले से गुजरी तो सबकी निगाहें उसकी ओर उठ गईं और कुछ के बीच तो खुसर पुसर होने लगी, जैसे तैसे शौकत और प्रत्यन्चा घर तक पहुँचे,सिर पर दुपट्टा ओढ़े और हाथों में पोटली लेकर प्रत्यन्चा गर्दन झुकाएँ घर के द्वार पर खड़ी थी और उसकी माँ उस समय द्वार बुहार रही थी,प्रत्यन्चा ने धीरे से अपनी माँ को पुकारा...
"माँ...माँ...!"
जैसे ही प्रत्यन्चा की माँ मधु पीछे मुड़ी तो प्रत्यन्चा को देखकर उसके हाथों से झाड़ू छूटकर धरती पर गिर पड़ी,प्रत्यन्चा की माँ मधु प्रत्यन्चा को सामने देखकर एकदम सुन्न पड़ गई थी और प्रत्यन्चा उस समय चाह रही थी कि उसकी माँ उसे अपने सीने से लगाकर ये कहे कि तू आ गई मेरी बच्ची! जिससे वो अपने सारे ग़म भूल जाएँ,लेकिन ये प्रत्यन्चा का भ्रम था,मधु ने प्रत्यन्चा को सीने से तो नहीं लगाया,ऊपर से चिल्ला कर बोल पड़ी....
"कलमुँही! अब यहाँ क्या लेने आई है तू?"
"माँ..ऐसा मत बोलो,मैं तुम्हारी बेटी हूँ",प्रत्यन्चा रोते हुए बोली...
"बेटी थी,जो अब मर चुकी है",मधु बोली....
"माँ! इसमें मेरा क्या दोष है",प्रत्यन्चा ऐसा कहकर मधु के चरणों पर गिर पड़ी....
"चल हट यहाँ से,खबरदार! जो मुझे हाथ लगाने की भी कोशिश की,तू अब तक जिन्दा क्यों है,थोड़ी शरम बाक़ी है तो जा कहीं डूबकर मर जा!",मधु ने प्रत्यन्चा को झिड़कते हुए कहा...
और तभी प्रत्यन्चा के पिता संजीव मेहरा जी आँखों पर ऐनक चढ़ाते हुए घर से बाहर निकले और उन्होंने मधु से पूछते हुए कहा...
"अरी! भाग्यवान! क्या हुआ? सुबह सुबह क्या हल्ला मचा रखा है",
और जब संजीव जी ने बाहर आकर प्रत्यन्चा को देखा तो बोले...
"प्रत्यन्चा! तुम! कैंसी हो बेटी?"
"कौन सी बेटी,किसकी बेटी?,ये आज के बाद मर चुकी है हमारे लिए,खबरदार! जो तुमने इसे घर में घुसाने की कोशिश भी की,अभी दो बेटियाँ और भी बैठी हैं ब्याहने के लिए,अगर ये कलंकिनी घर में घुस आई तो उनका क्या होगा?",मधु बोली...
"तुम माँ हो या जल्लाद",संजीव जी दहाड़े...
"तुम कुछ भी कह लो मुझे,लेकिन ये यहाँ नहीं रहेगी",मधु चीखी...
वो सब तमाशा देखकर अब शौकत चुप ना रह सका और संजीव जी से बोला...
"रहने दीजिए चाचाजी! जब चाची जी नहीं चाहती कि प्रत्यन्चा इस घर में रहे तो वो यहाँ नहीं रहेगी,मैं तो ये सोचकर उसे यहाँ लाया था कि बेटियों के लिए माँ बाप के घर से महफूज और कोई जगह नहीं होती, लेकिन यहाँ तो हालात कुछ और ही हैं,यूँ ही ये जमाना औरत को औरत की दुश्मन नहीं कहता,आज आँखों से इस सच को देखकर भरोसा हो गया कि सच में औरत ही औरत की दुश्मन होती है,अभी इसका भाई शौकत जिन्दा है,क्या दो निवाले नहीं खिला सकता मैं अपनी बहन को,चल बहन ये घर तेरे लिए नहीं है"
और ऐसा कहकर शौकत ने प्रत्यन्चा का हाथ पकड़ा और वहाँ से जाने लगा....

क्रमशः...
सरोज वर्मा....