Muje Nyay Chahiye - 12 in Hindi Women Focused by Pallavi Saxena books and stories PDF | मुझे न्याय चाहिए - भाग 12

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मुझे न्याय चाहिए - भाग 12

भाग -12

अगले ही दिन लक्ष्मी काम पर जाने के लिए तैयार हो गयी और दीनदयाल जी से बोली, ‘देखिये जी अगर भगवान ने चाहा तो यह रिश्ता होकर ही रहेगा. मैं आज ही जाकर रुक्मणी जी से इस रिश्ते की बात करने जा रही हूँ .आप भी ईश्वर से प्रार्थना करना कि वह इस रिश्ते के लिए मान जाये. यह बात सुनते ही दीनदायल जी मानो तड़प उठे और उन्होने लक्ष्मी को रोकने की बहुत कोशिश की लेकिन लक्ष्मी रोती रही और कहती रही आप समझ क्यूँ नहीं रहे, इसी में हमारी बेटी की भलाई है, इसी में उसका सुख है. क्या आप अपनी बेटी को हमेशा दर दर की ठोकरें खाते ही देखना चाहते हैं ? सोचिए यदि यह रिश्ता हो गया तो उस घर पर राज करेगी आपकी बेटी, वह भी भविष्य की चिंता किए बगैर, रोज रोज का यह कामो का झंझट और एक अन देखी तलवार का लटकना कि जाने कब क्या हो और काम छूट जाये और ज़िंदगी फिर घूमकर उसी जगह आजाये, जहां से शुरू हुई थी. ऐसा कब तक चलेगा जी. मुझे जाने दीजिये, मैं आपके हाथ जोड़ती हूँ मुझे जाने दीजिये. कहती हुई लक्ष्मी आँचल को मुंह में डाले जार जार रोती हुई अपना हाथ छुड़ाकर वहाँ से निकल गयी. दीनदयाल जी अकेले रोते बिलखते रह गए. उधर जब लक्ष्मी काम पर पहुंची तो रुक्मणी ने उसे देखते ही पूछा ‘अरे क्या हुआ लक्ष्मी सब ठीक तो है ? तुम्हारी आँखें इतनी लाल और सूजी हुई क्यूँ प्रतीत हो रही है ? क्या घर में कुछ हुआ है कोई मार पीट वगैरा हुई है क्या ? क्या तुम्हारा पति इस उम्र में भी तुम्हें ? अरे नहीं नहीं...! ऐसा कुछ भी नहीं है, यह तो बहुत अच्छे हैं. किन्तु जीवन है तो कुछ न कुछ लगा ही रहता है आप चिंता ना करे. ओह ...! हाँ यह तो सही कहा तुमने, जीवन है तो कुछ न कुछ तो लगा ही रहता है. वैसे पैसों की जरूरत हो तो कहो मैं कुछ दे सकती हूँ. नहीं मुझे पैसे नहीं चाहिए, आप रहने दीजिये. अच्छा ठीक है. कहकर रुक्मणी जी ने बढ़ाए हुए पैसे वापस रख लिए. थोड़ी देर चुप रहने के बाद लक्ष्मी वहाँ से उठकर बच्चे के कमरे में चली गयी.

‘अल्ले -अल्ले कैसा है मेरा बेटा, अरे देखो तो सही बड़ा हो रहा है मेरा लाल, आज कितने दिनों बाद देखा है इसे, ‘बेटी इसे नजर का टीका लगा दो कहीं इसे मेरी ही नजर ना लग जाये’...!! और लाओ भई लाओ मेरे बेटे का सारा समान लाओ, आज मैं खुद नहला धुलाकर तैयार करूंगी अपने राजकुमार को, और उसने बच्चे की मालिश आदि करना शुरू कर दिया. लेकिन पीछे उसके दिमाग में यही घुनतारा चल रहा था कि आखिर कैसे बात की शुरुआत करे रुक्मणी जी से कहीं वह भड़क गयी तो क्या होगा. यही सोचते -सोचते कब सुबह से दुपहर हो गयी रुक्मणी को पता ही नहीं चला. जब वह अपने काम से मुक्त हुई, तब नरेश ने घर में प्रवेश किया और लक्ष्मी की तरफ कुछ इस तरह से देखा कि मानो आँखों ही आँखों में उनसे पूछ रहा हो कि क्या आज आपने माँ से बात की ? लक्ष्मी ने कहा तो कुछ नहीं, लेकिन उसकी आँखों में बहुत से भाव उतर आए.

नरेश ने भी कहा कुछ नहीं और सीधा अंदर अपनी माँ के कमरे में चला गया और बोला यह देखो माँ आज मैं तुम्हारे लिए कुछ लाया हूँ. रुक्मणी जी ने पूछा क्या लाया है ? ‘अरे पहले उठ के तो बैठो आप पहले, आज एक फिर मैं आपको अपनी बहू चुनने का मौका दे रहा हूँ. यह बात सुनते ही रुक्मणी जी के हाव भाव बदल गए आंखे बड़ी हो गयी और चेहरे पर परेशानी के भवाओं ने जगह ले ली और नरेश ने उनके बैठते ही उनके सामने लड़कियों की तस्वीरें एक एक करके डालना शुरू कर दी. रुक्मणी जी उसे देखती रह गयी और पूछने लगी यह सब क्या है नरेश ? नरेश ने कहा तस्वीरें हैं माँ, आप के लिए. इन में से कोई भी एक चुन लो अक्कू की शादी उसी से करवा देंगे. तू पागल तो नहीं हो गया हैं नरेश ? पैसे के मोह ने तुझे अंधा बना दिया है. अक्कू तेरा भाई है कोई खिलौना नहीं कि जब मन किया किसी के भी हाथ में दे दिया. तू समझता क्यूँ नहीं है बेटा, कोई भी भली लड़की अक्कू से विवाह नहीं करेगी और जो भी करेगी, वह भी केवल उसके धन दौलत को देखकर करेगी.

ऐसे तो अक्कू की जिंदगी और भी अधिक बर्बाद हो जाएगी क्यूंकि उस लड़की को केवल अक्कू के पैसों से मतलब होगा, उसे नहीं और फिर वो उसे ना प्यार करेगी ना उसका सम्मान करेगी, देखभाल तो बहुत दूर की बात है. फिर यदि ऐसे में अक्कू की देखभाल आगे चलकर किसी कर्मचारी को ही करनी है, तो रमेश क्या बुरा है. मैं तेरे हाथ जोड़ती हूँ बेटा, ‘ऐसा अनर्थ ना कर आपने उस भाई के साथ’ जो बेचार पहले से ही विकलांग है. कहते कहते रुक्मणी जी लगभग रोते हुए नरेश के सामने गिड़ गिड़ाने लगी थी. नरेश को उन पर तब भी दया ना आयी और उसने ऊंचे स्वर में कहा, ‘माँ चाहे कुछ भी हो जाय, अक्कू की शादी तो मैं करवा के रहूँगा’. चाहे आप मानो या ना मानो कहते हुए वह गुस्से में कमरे से बाहर चला गया.

इधर लक्ष्मी ने रुक्मणी जी और नरेश की सभी बातें सुन ली थी. अब लक्ष्मी का दिल भी घबराने लगा था. नरेश के ऐसे बर्ताव से उसे यह समझ आगया था कि उसके पास अब अधिक समय नहीं है आदि...! वह ऐसी ही सोचती रही और इसी उधेड़ बुन में लगी रही कि क्या करे, कब करे, कैसे करे, अब तो वो दिन दूर नहीं जब उसी के सामने अक्कू का विवाह किसी और लड़की के साथ हो जाएगा और उसकी बेटी रेणु के हाथ से यह सुनहेरा मौका यूं ही निकल जाएगा. उसने तुरंत रुक्मणी से बात करने का सोचा और वह सीधा उनके कमरे में प्रवेश कर गयी. रुक्मणी जी रो रोकर अपने भाग्य को कोस रही थी. लक्ष्मी को देखकर कहने लगी, ‘देख न लक्ष्मी, नरेश मेरे अक्कू के साथ क्या करना चाहता हैं. लक्ष्मी ने उनके सामने पड़ी लड़कियों के फोटो उठाकर देखने शुरू कर दिये.

उसने देखा सभी लड़कियां करीब -करीब देखने में अच्छी दिख रही थी पर हाँ उनके पहनावे से यह जान पाने में आसानी हो रही थी कि लगभग सभी लड़कियां गरीब घर से ही हैं. फोटो देते हुए लक्ष्मी के मन में खयाल आने लगे ना जाने क्यूँ भगवान ने लड़कियों की किस्मत में ही सारे समझौते लिखे हैं. देखो तो कितने भले घर की दिख रही हैं सारी लड़कियां, बेचारी गरीब हैं इसलिए इनसे कोई इनका मत भी नहीं पूछेगा की इन्हें ऐसे विकलांग व्यक्ति से शादी करनी भी है या नहीं जो इन्हें केवल भौतिक सुख तो देगा लेकिन जीवन का सुख कभी नहीं दे पाएगा और सारी ज़िंदगी गले में पड़े ढ़ोल की तरह इन्हे यह रिश्ता ढ़ोना पड़ेगा. अचानक जैसे लक्ष्मी की अंतर आत्मा जाग उठी थी. किन्तु अगले ही पल उसके दिमाग ने फिर कहा, ‘लक्ष्मी सावधान यह तुम क्या सोच रही हो, तुम्हें तो यह सोचना चाहिए कि एक तरह से अच्छा ही है न आजकल भौतिक सुख आत्मिक सुख से ऊपर की श्रेणी में आते हैं और फिर यह भी तो सोचो अगर रेणु की शादी यहाँ हो गयी तो एक तीर से दो निशाने संभव हो जाएंगे अक्कू के साथ-साथ उसके बाबा का इलाज भी आसानी से संभव हो जाएगा और उनकी माली हालत भी सुधर जाएगी. इसलिए कुछ भी उल्टा सीधा मत सोच...!’

अचानक जैसे किसी ने उसे नींद से जागा दिया हो, उसने सब जानते बुझते हुए भी अंजान बनते हुए रुक्मणी जी से पूछा, यह सब क्या है मालकिन ? रुक्मणी जी ने लक्ष्मी को सब कुछ बताया और बोली मेरी तो वो सुनता नहीं लक्ष्मी, यदि संभव हो तो तुम एक बार उससे बात कर के देखना ... शायद तुम्हारी बात उसकी समझ में आ जाये. लक्ष्मी ने रुक्मणी जी को सांत्वना देते हुए कहा हाँ...हाँ मैं बात करूंगी ना उनसे, आप चिंता ना करो. आप तो बस आराम करो. ऐसे तो आपकी तबीयत और भी बिगड़ जाएगी. कहते हुए लक्ष्मी से रुक्मणी जी को वापस बिस्तर में लिटाते हुए उन पर कंबल डाल दिया और बाहर चली आयी.

घर पहुंची तो अब उसके मन में और ज्यादा इस चिंता ने घर बना लिया कि कहीं उसके देर करने के चक्कर में यह रिश्ता उसके हाथ से न निकल जाय. उसने बहुत सोचा तब कहीं जाकर उसके मन में एक तरकीब आयी. उसने रेणु से कहा कि आज उसे आपने काम पर अधिक काम हैं इसलिए वह आपने काम से एक दिन की छुट्टी लेकर उसके साथ काम पर चली चले, तो उसकी थोड़ी मद्द हो जायेगी. यह सुकर रेणु को थोड़ा अजीब लगा पर पहली बात तो यह की एक छोटे से बच्चे के लिए इतना कितना काम हो सकता है कि माँ को आज उसकी जरूरत है दूसरी बात यह कि आज से पहले कभी उसकी माँ ने उससे ऐसा कभी कुछ नहीं कहा और तीसरी बात वह देख ही रही थी कि बहुत दिनों से उसकी माँ का व्यवहार कुछ बदला बदला सा है. अब उसकी माँ पहले जैसी नहीं रही और बहुत दिनों से कुछ परेशान भी दिखाई दे रही है. आखिर मांजरा क्या है...? यह पता करने के लिए रेणु ने सोचा इसे अच्छा मौका उसे दुबारा फिर मिले ना मिले, इसलिए उसने साथ चलने के लिए हाँ कह दिया.