Niruttar - Last Part in Hindi Motivational Stories by Ratna Pandey books and stories PDF | निरुत्तर - अंतिम भाग

Featured Books
  • انکہی محبت

    ️ نورِ حیاتحصہ اول: الماس… خاموش محبت کا آئینہکالج کی پہلی ص...

  • شور

    شاعری کا سفر شاعری کے سفر میں شاعر چاند ستاروں سے آگے نکل گی...

  • Murda Khat

    صبح کے پانچ بج رہے تھے۔ سفید دیوار پر لگی گھڑی کی سوئیاں تھک...

  • پاپا کی سیٹی

    پاپا کی سیٹییہ کہانی میں نے اُس لمحے شروع کی تھی،جب ایک ورکش...

  • Khak O Khwab

    خاک و خواب"(خواب جو خاک میں ملے، اور خاک سے جنم لینے والی نئ...

Categories
Share

निरुत्तर - अंतिम भाग

विशाखा अब वंदना की ज़ुबान से निकले कड़वे शब्दों को सुनकर मन ही मन पछता रही थी कि यह उसने क्या कर डाला। उसे अपनी सास कामिनी के साथ दुर्व्यवहार नहीं करना चाहिए था।

विशाखा की माँ उर्वशी ने कहा, “वंदना बेटा तुम्हारी हर बात सोलह आने सच है। विशाखा ने गलती की। हमने उसकी गलती को बढ़ावा दिया शायद अपने स्वार्थ की ख़ातिर कि यहाँ हम सुख सुविधा से रहेंगे। यह हमारी गलती है बेटा।”

विशाखा ने हिम्मत करते हुए कहा, “हाँ वंदना मुझे माफ़ कर दो।”

वंदना ने कहा, “आंटी जी मैं इस समय प्रेगनेंट हूँ पर डरती हूँ; यदि बेटी हुई और उसने अपने सास ससुर के साथ ऐसा व्यवहार किया तो मैं समाज को क्या मुँह दिखाऊँगी? मैं एक प्रेरक वक्ता हूँ आंटी। मुझे तो माँ बनने में भी डर लग रहा है, यदि बेटा हुआ और उसने अपने माँ-बाप के साथ ऐसा व्यवहार किया तो मैं क्या करूंगी?”

उर्वशी ने कहा, “वंदना बेटा हम तो वृद्धाश्रम चले गए थे, विशाखा हमें यहाँ ले आई।”

वंदना ने कहा, “आंटी हम यदि अपनी बेटियों के संस्कारों की माला में एक मोती और पिरो दें या उस चेन में एक संस्कार की कड़ी और जोड़ दें कि उन्हें विवाहोपरांत अपने सास ससुर को ख़ुद के माता-पिता की तरह ही मानना है। उनसे उतना ही प्यार करना है, ख़्याल रखना है। यदि वह ऐसा नहीं करेंगी तो हम भी उनसे सम्बंध नहीं रखेंगे।”

“तुम बिल्कुल ठीक कह रही हो बेटा।”

“आंटी मैं और मेरे सास ससुर, हम सब प्यार से एक ही छत के नीचे रहते हैं क्योंकि मैंने सच्चे मन से उन्हें माता-पिता माना है। मैं जानती हूँ कि उन्हीं की बदौलत ही मुझे मेरा पति राकेश और यह परिवार मिला है। वे मेरे वैवाहिक जीवन की मज़बूत जड़ें हैं। मुझे इस बात का एहसास है कि उन्होंने इतना खून पसीना बहाकर राकेश को बड़ा किया, पढ़ाया लिखाया और फिर मुझे दे दिया। काश विशाखा ने भी यही माना होता।”

प्रकाश ने रोती हुई आँखों से आँसू पोछते हुए कहा, “वंदना बहुत बड़ी गलती हो गई है, अब कैसे इसे सुधारूँ?”

प्रकाश भैया जानते हो माँ और मेरी सासु माँ दोनों समधन साथ बैठ कर बातें कर रही थीं। तब मैंने उनकी बातें सुनी। अम्मा कह रही थीं, “कामिनी तुम्हारी बेटी वंदना को तो कितने अच्छे संस्कार दिए हैं तुमने फिर प्रकाश…? वह ऐसा कैसे हो गया? वह भी तो तुम्हारा ही बेटा है। वंदना ने तो हमें बिल्कुल माता-पिता की तरह मान सम्मान और प्यार दिया है फिर प्रकाश …? बेचारी माँ उनके इस प्रश्न का भला क्या उत्तर देती। वह बेचारी तो उस समय निरुत्तर थीं।”

तभी अम्मा ने फिर कहा, “प्रकाश की पत्नी वह शायद अपनी माँ से वह संस्कार लेकर नहीं आई जो उसे साथ में लाने चाहिए थे। माँ ने कहा, सबका भाग्य इतना अच्छा कहाँ होता है। विशाखा तुम ही बताओ मेरी माँ का उनके भाग्य को कोसना किसकी वज़ह से है? क्या तुम कभी माँ नहीं बनोगी? कल को तुम्हारे साथ बच्चों ने भी यदि ऐसा ही व्यवहार किया तो कैसा लगेगा?”

वंदना आज मानो यहाँ पर ही प्रेरक वक्ता बन गई थी। वह बोलती ही जा रही थी।

तभी वंदना ने फिर कहा, “और तो और जिस घर से, जिस ज़मीन से तुमने उन्हें जाने के लिए मजबूर कर दिया है ना विशाखा; जिस पर तुम तुम्हारे क़दम गड़ा कर खड़ी हो, शायद तुम भूल गईं कि वह मेरे माँ और बाबूजी के खून पसीने से ली गई है। घर से निकलते समय तो माँ ने तुम्हें वह याद तक नहीं दिलाया। तुमने कभी यह नहीं सोचा कि तुम जिस ज़मीन पर खड़ी हो उस पर तो तुम्हारा हक़ है ही नहीं फिर भी तुमने …ओफ्फ़ ओह …ज़मीन जाने दो विशाखा, तुम जिस पति पर तुम्हारा हक़ जताती हो वह भी तुम्हें माँ ने ही दिया है और तुम अब उनसे वह भी छीन लेना चाहती हो। खैर विशाखा अपनी-अपनी सोच की बात है। यदि हर बेटी तुम्हारे जैसी और हर बेटा मेरे भाई जैसा दुनिया में हो जाएगा तो माँ-बाप बच्चे पैदा करने के पहले दस बार सोचेंगे कि क्यों ऐसी औलादों को जन्म दें जो हमसे हमारी ही ज़मीन छीन लेंगे। जो वृद्धावस्था में हमारा तिरस्कार कर देंगे।”

प्रकाश, विशाखा और विशाखा के माँ-बाप क्या कहते उनके पास कहने के लिए शब्द ही नहीं थे। वंदना की हर बात सोने की तरह साफ़ थी। उनमें से किसी के पास भी लग रहा था ज़ुबान ही नहीं है। वह सब निरुत्तर थे।

रत्ना पांडे, वडोदरा (गुजरात)
स्वरचित और मौलिक
समाप्त