Naam Jap Sadhna - 16 in Hindi Anything by Charu Mittal books and stories PDF | नाम जप साधना - भाग 16

Featured Books
  • द्वारावती - 73

    73नदी के प्रवाह में बहता हुआ उत्सव किसी अज्ञात स्थल पर पहुँच...

  • जंगल - भाग 10

    बात खत्म नहीं हुई थी। कौन कहता है, ज़िन्दगी कितने नुकिले सिरे...

  • My Devil Hubby Rebirth Love - 53

    अब आगे रूही ने रूद्र को शर्ट उतारते हुए देखा उसने अपनी नजर र...

  • बैरी पिया.... - 56

    अब तक : सीमा " पता नही मैम... । कई बार बेचारे को मारा पीटा भ...

  • साथिया - 127

    नेहा और आनंद के जाने  के बादसांझ तुरंत अपने कमरे में चली गई...

Categories
Share

नाम जप साधना - भाग 16

नाम जप का प्रभाव एवं रहस्य

नाम का तत्त्व, रहस्य, गुण, प्रभाव समझना चाहिये। उससे नाम में स्वाभाविक रुचि होती है। रुचि होने से नाम का जप अधिक होता है। रुचि नाम का तत्व रहस्य समझने से होती है। नाम में गुण क्या है? गीता में दैवी सम्पदा के 26 गुण बताये गये हैं। वे सब के सब भजन करने वालों में आ जाते हैं ओर भी गुण आ जाते हैं। नाम जप से नामी याद आ जाता है। जिसका स्मरण किया जाता है, उसका अक्स ( बिम्ब ) पड़ता है। नीच के दर्शन, स्पर्श, भाषण से नीच का असर पड़ता है। साधु के संग से साधु, पापी के संग से पापी हो जाता है। भगवान् में जितने गुण हैं, वे सब भगवान् के नाम में हैं। नाम और नामी में भेद नहीं है। भगवान् के नाम जप से भगवान् की स्मृति हो जाती है। तुलसीदास जी कहते हैं –
सुमिरिए नाम रूप बिन देखें। आवत हृदय स्नेह विसेषें ।।भगवान् के नाम स्मरण से हृदय में विशेष रुचि, प्रेम होता है। मनुष्य कोई भी काम करे, करते-करते उसमें रुचि हो जाती है। आरम्भ में बालक विद्या पढ़ता है तो पहले रुचि नहीं होती, परंतु पढ़ते-पढ़ते आगे जाकर रुचि हो जाती है। उसी प्रकार नाम स्मरण करने से भी आगे जाकर उसमें रुचि हो जाती है। नाम के जप से दया, क्षमा, समता, शान्ति, प्रीति, ज्ञान सब आ जाते हैं।
राम नाम मनि दीप धरू जीह देहरीं द्वार।
तुलसी भीतर बाहेरहुँ जौं चाहसि उजिआर।।
जैसे दीपक को देहरी पर रखने से बाहर भीतर प्रकाश हो जाता है। इसी प्रकार राम नाम रूपी मणि जिहा रूपी देहरी पर रख दे तो बाहरभीतर प्रकाश हो जाता है।
मणि हवा से नहीं बुझती। मुँह द्वार है । 'रा' उच्चारण करने से सब पाप बाहर निकल जाते हैं और 'म' के उच्चारण से कपाट बन्द हो जाते हैं, जिससे पाप फिर नहीं आ सकते। तुलसीदास जी ने कहा है कि नाम का प्रभाव इतना है कि इससे दुर्गुण, दुराचार और पाप सब नष्ट हो जाते हैं, नीच पवित्र हो जाते हैं। प्रभाव की बात बताते हैं –
जबहिं नाम हिरदै धरो भयो पाप को नाश।
जैसे चिनगी आग की परी पुराने घास ।।
नाम हृदय में धारण करते ही क्षण भर में सारे पापों का नाश हो जाता है, जैसे सूखी घास में चिनगारी पड़ने से वह भस्म हो जाती है।
यह प्रभाव है कि पापी से पापी का भी उद्धार हो जाता है। भजन के प्रभाव से स्वयं भगवान् वश में हो जाते हैं।
सुमिरि पावनसुत पावन नामू । आपुन बस करि राखे रामू।।
पवनसुत हनुमान जी ने भगवान् के नाम स्मरण से भगवान् राम को अपने आधीन कर रखा है। यदि कोई अतिशय दुराचारी भी अनन्य भाव से मेरा भक्त होकर मुझको भजता है तो वह साधु ही मानने योग्य है; क्योंकि वह यथार्थ निश्चय वाला है। अर्थात् उसने भली भाँति निश्चय कर लिया है कि परमेश्वर के भजन के समान अन्य कुछ भी नहीं है। वह शीघ्र ही धर्मात्मा हो जाता है और सदा रहने वाली परम शान्ति को प्राप्त होता है। हे अर्जुन! तू निश्चयपूर्वक सत्य जान कि मेरा भक्त नष्ट नहीं होता।
यह नाम के भजन का प्रभाव है कि गरुड़ जी ने काकभुशुण्डि जी से पूछा कि आपके आश्रम में आने से सब पवित्र हो जाते हैं, यह ज्ञान का प्रभाव है या भक्ति का प्रभाव है ? काकभुशुण्डि जी ने कहा ‘यह सब भक्ति का ही प्रभाव है।’
अपनी आत्मा का कल्याण चाहने पर अपना मन नहीं लगे तब भी भगवान् का भजन ही करे। आतुर आदमी के लिये भी यह बात है कि भगवान् का भजन करे। भगवान् का नाम निराधार का आधार है। भगवान् से भी बढ़कर भगवान् के नाम को कहें तो भगवान् की ही बड़ाई है और अतिशयोक्ति भी नहीं है। नाम का गुण - प्रभाव जानना चाहिये। गुण क्या है ? संसार में जितने गुण हैं वे सब नाम लेने वाले में अपने आप आ जाते हैं। यह भजन की महिमा है। दुगुर्ण, दुराचार का अपने आप नाश हो जाता है, यह प्रभाव है।
भगवान् के नाम का बढ़ा भारी प्रभाव है, जिससे पापी के पापों का नाश हो जाता है। इसका मतलब यह नहीं कि खूब पाप करो। जो यह समझकर पाप करता है, वह नाम के रहस्य को नहीं समझता। जो पुरुष यह समझता है कि पाप कर लो, भजन करके पाप का नाश कर लेंगे, यदि इस आभास से पाप करने लगे तो नाम पाप की वृद्धि हेतु हो गया। जो यह समझकर पाप करता है उसके पाप का नाश नहीं होता।
नाम की ओट में पाप करे तो वह नाम पाप बढ़ाने वाला होता है यह नाम का रहस्य समझना है। नाम की ओट में पाप करना भगवान् का अपराध है। पूर्व के पापों के लिये क्षमा माँग ले और भविष्य में पाप न करने की प्रतिज्ञा कर ले तो पूर्व के पापों की माफी है– ऐसा न्याय है। नाम में बड़ा भारी रहस्य भरा है। नाम का तत्त्व, नाम का गुण, नाम का प्रभाव समझ में आ जाय तो नाम छूट नहीं सकता। निरन्तर जप चलता ही रहता है। छोड़ नहीं सकता, फिर बेड़ा पार है।
जिस प्रकार भगवत् चिन्तन से भगवत्प्रेम प्राप्त होता है, वैसे ही केवल भगवन्नाम जप से भी भगवान् में प्रेम हो जाता है। श्रीतुलसीदास जी ने अपने ग्रन्थों में 'राम' नाम की विशेष महिमा कही है। इसी प्रकार वेदों में और योग दर्शन में 'ॐ' की, भागवत आदि में 'कृष्ण' की, शिवपुराण में 'शिव' की, विष्णु पुराण में 'विष्णु' 'हरि' आदि की, गीता में 'ॐ' 'तत्' 'सत्' नामों की, कुरान शरीफ में 'अल्लाह' 'खुदा' की, बाईबल में 'गॉड' की, जैन ग्रंथों में 'अर्हन्त' और 'ॐ' की, आर्य समाज के ग्रन्थों में 'ॐ' की विशेष महिमा कही गयी है। इसी तरह अन्यान्य सभी सम्प्रदायों के महानुभावों ने अपने-अपने इष्टदेव के नाम की विशेष महिमा कही है। अतः समझना चाहिये कि राम, कृष्ण, गोविन्द, वासुदेव, विष्णु, शिव, हरि, ॐ, तत्, सत्, अल्लाह, खुदा, गॉड आदि परमात्मा के जिस नाम में जिस मनुष्य की रुचि, श्रद्धा, विश्वास हो, प्रेम और निष्काम भाव से तत्परतापूर्वक जप करना उचित है।

नाम जप यदि परम श्रद्धापूर्वक किया जाय तो उसकी महिमा तो कोई गा ही नहीं सकता क्योंकि श्रद्धा, प्रेम होने से जप निरन्तर अपने आप ही होने लगता है। फिर यदि किसी भी प्रकार की कामना न रखकर नि:स्वार्थ भाव से केवल कर्त्तव्य समझकर नाम जप किया जाय तो उसके तुल्य तो कोई भी साधन नहीं है।

इस प्रकार नाम जप करने वाले साधक को तो तुरंत भगवान् की प्राप्ति हो जाती है। उच्चकोटि का विशुद्ध प्रेम निष्काम भाव होने पर ही होता है। उसी को अनन्य विशुद्ध प्रेम कहते हैं। जिसके प्राप्त होने पर भगवत् साक्षात्कार होने में क्षण भर का भी विलम्भ नहीं हो सकता।

जो नामोच्चारण अकेले या बहुत व्यक्ति मिलकर बाजे के साथ या बिना बाजे के उच्च स्वर से सामूहिक रूप में किया जाता है, उसे ‘कीर्तन’ कहते हैं। उस नाम-कीर्तन की महिमा अपार है। किंतु उसमें भी करें तो बहुत अच्छा। यदि कहीं श्रद्धा ना हो तो अपनी इच्छानुसार किसी भी नाम का जप कर सकते हैं।