Aehivaat - 21 in Hindi Women Focused by नंदलाल मणि त्रिपाठी books and stories PDF | एहिवात - भाग 21

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एहिवात - भाग 21

जुझारू ने पत्नी तीखा से कहा कि अब सौभाग्य के बियाहे में देर कईले के जरूरत नाही बा राखु के वियाहे खातिर एक से बढ़कर एक रिश्ता आवत रहे ऊ त राखु वियाहे खातिर राजी होते नाही रहेंन पाता नाही सौभाग्य के भागी भगवान के कृपा राखु सौभाग्य से वियाहे खातिर राजी होई गइलन।
 
जब भगवान एतना मेहरबान है त हमहू के उनकी कृपा के बेजा ना करके चाही अब जेतना जल्दी होई सके ओतना जल्दी सौभाग्य के वियाहे के दिन बार तय करीके वियाह कर देबे के चाही तीखा बोली ठीके कहत हव अब देर जिन कर जा और दिन बार तय करीक़े आव ।
 
तीखा ने भी जुझारू के विचारों में सहमति दी जुझारू अगले दिन सुबह ही परम का पुरवा बेटी के विवाह कि तिथि साथ साथ अन्य वैवाहिक मांगलिक कार्यो कि तिथि विचारने एव वर पक्ष कि सहमति के लिए रवाना हुए रास्ते मे देवी मंदिर पुजारी कुम्भज जी का आशीर्वाद लेने के लिए रुके।
 
पुजारी कुम्भज कि जुझारू से तीसरी मुलाकात थीं बोले आओ भगत बहुत दिनों बाद बेटी के वियाहे के दिन बार तय करे ख़ातिर निकले जुझारू बोला महाराज बेटी के वियाहे खातिर जौँन कुछ जुगाड़ तोगाड पईसा कौड़ी बन सकत रहा बनावे के कोशिश करत रहे बिना रुपया पईसा आज के जमाने मे कुछ नाही होत बुनी पानी के दिन फिर दिवाली गोधन पूजन के बाद लोग बतावत हैंन कि शुभ शाइति खातिर निकल जात है ।
हम लोग त आपे लोगन के भरोसे रहित है जौँन आप लोग कहत है वही करीत है अब जाइत है परम के पुरवा जगन के घरे दिन बार तय करे पंडित कुम्भज बोले
 
पंडित कुम्भज बोले भगत तोहरे बेटी खातिर ई रिश्ता माई जगदम्बा कि कृपा से हमरे मुंह से निकलल ई रिश्ता तोहरे कुल और राखु के कुल के मान मर्यादा इज़्ज़त बढाई ।
 
जुझारू बोले महाराज आप आशीर्वाद देई आपे के आशीर्वाद माई जगदम्बा के आशीर्वाद ह पुजारी कुम्भज ने जुझारू को जगदम्बा का प्रसाद दिया और बोले जुझारू तुम्हारी बिटिया सौभाग्य कोल अदिवासी समाज के साथ साथ सम्पूर्ण आदिवासी समाज को गर्वान्वित करने के लिए ही जन्मी है बिलक्षण है पुत्री सौभाग्य जाओ भगत जुझारू जगत समाज के मंगल कल्याण का पग जिसका निमित्त सौभाग्य है आगे बढ़ाओ ।
 
जुझारू पुजारी कुम्भज का आशीर्वाद लेकर परम का पुरवा के लिए प्रस्थान किया कुछ देर पैदल चलने के बाद परम का पुरवा अपने होने वाले समधी जगन के दरवाजे पहुंचे जगन जैसे उनका इंतजार ही कर रहे हो। जुझारू को देखते ही जगन बोले आओ समधी जी कहा एतना दिन बिलंब किये जगन ने जुझारू का यथोचित स्वागत सत्कार किया स्वागत की औपचारिकता पूर्ण होने के बाद जुझारू बोले जगन हम चाहित है कि अब
लड़िकन के वियाह कई दिहल जा जगन बोले बात पते कि कहत है समधी सनझा के हम गांव के पंडित मंगल तिवारी के बुलाइत ह लगन विचरवाईत हैं जगन ने जुझारू का आओ भगत करने के उपरांत बेटे राखु से पंडित मंगल तिवारी को बुलावे खातिर कहे
राखु पंडित मंगल तिवारी के घर पहुंचा पंडित जी के यहां यजमान अपनी अपनी समस्याओं को लेकर आए थे राखु ने पंडित जी को दंडवत प्रणाम किया और कहा समझा के बापू आपका बुलाए हैं ।
पण्डित मंगल तिवारी ने कहा का बच्चा तोहार वियाह तय होई गइल पण्डित जी की बात सुनकर शर्मा गया राखू ।
पण्डित जी ने अंदाजे से बात फेंकी जो राखु के शर्माने से स्प्ष्ट हो गयी पण्डित जी ने जो कहा सही है ।
 
पंडित जी बोले समझा के किरिन डूबे आइब राखु पण्डित जी से आश्वस्त होकर लौट गया।
 
पण्डित जी यजमानों कि समस्या का निराकरण देने के बाद किरिन डूबे जगन के दरवाजे पहुंच गए जगन ने पंडित जी का आदर सत्कार करने के बाद बताया कि राखु का वियाह सामने बैठे जुझारू कि तरफ इशारा करते हुए कहा की इनकी लड़की सौभाग्य से तय कर दिया है और वियाहे क लगन विचारे ख़ातिर आपके सादर बुलाए हई। पण्डित जी ने कहा ई त हम तबे समझ गए रहन जब राखु हमे बुलावे गवा रहा पण्डित जी ने पत्रा निकाला और वैवाहिक मुहूर्त खोजना शुरू किया कुछ देर वातावरण शांत पण्डित जी का इंतज़ार करता रहा तभी पण्डित जी ने बोलना शुरू किया लगन का सबसे बढ़िया मुहूर्त जेठ महीना जून की चार तारीख के है ए पूरी रात लगन है और गोड़धोइया( वर का पैर पूजना ) वरण करने का शुभ मुहूर्त होली बाद फागुन में 9 मार्च वर के वरण और वियाह के बीच सम्बत भी बदल जाए तिलक चाहे त 30 मई के रख सकत है पण्डित जी ने सारे मुहूर्त एक कागज पर लिख कर वर एव वधु पक्ष जगन और जुझारू को दे दिया और चलने की अनुमति चाही ।
 
जगन के पास कोई कमी नही थी जगन ने पंडित जी को सवा दस रुपये लगन विचर वाई दिया पण्डित मंगल तिवारी के आश्चर्य का कोई ठिकाना नही रहा क्योकि पण्डित जी को अधिकतम सवा रुपये ही दक्षिणा में मिलते थे। पण्डित जी बहुत खुश होकर गए जगन ने जुझारू का तरह तरह के आदिवासी प्रचलित व्यंजनों से स्वागत किया सुबह होते ही जुझारू बोले समधी अब हमें चले क आदेश दिहल जा ।
जगन बोले नाही बिना भोजन जाय के इजाजत नाही बा ई तोहरे समधिन हमरे लुगाई के आदेश बा जुझारू जगन कि बात को टाल ना सके और कहा हम त आपके आदेश के गुलाम हई जौँन आप कही औऱ जुझारू दोपहर का भोजन करने के उपरांत जगन से आदेश लेकर घर को चल दिये।
 
रास्ते मे देवी जी के मंदिर रुके पुजारी कुम्भज जैसे इंतजार ही कर रहे हो जुझारू को देखते ही पुजारी कुम्भज बोले आओ भगत हम तोहरे राह देखत रहे का हुआ वियाहे क दिन बार तय होई गइल जुझारू बोले ह महाराज तय हो गइल पुजारी कुम्भज बोले राधा कृष्ण कि जोड़ी है सौभाग्य राखु के जीवन मे छाया बनी के रही जैसे भगवान कृष्ण के जीवन मे राधा जी यह गूढ़ रसस्य जुझारू के समझ से परे था वह इतना ही समझ सका कि पुजारी कुम्भज सौभाग्य के आशीर्वाद देई रहे है।
 
जुझारू पुजारी जी का आर्शीवाद लेकर घर को चल पड़ा घर पहुचने पर तीखा ने पूछा का हुआ दिन बार तय हुआ की नाही जुझारू ने सारा दिनबार पत्नी तीखा को बता दिया और कहा काल बिरादरी के बुलाईके बता दिया जाय ताकि उ दिने केहू दूसर के यहां लगन ना रखाय (यह गांवों में प्रचलित बहुत पुरानी प्रथा थी कि गांव में किसी तिथि विशेष को किसी परिवार में बेटी या बेटे का लगन होना तय होता तो उस तिथि को गांव के किसी दूसरे परिवार में लगन कि तिथि नही रखी जाती कारण गांव के सभी परिवार एक दूसरे के कार्यो में अपने अपने समर्थ के अनुसार सहयोग करते )