Naam Jap Sadhna - 12 in Hindi Anything by Charu Mittal books and stories PDF | नाम जप साधना - भाग 12

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नाम जप साधना - भाग 12

नाम जप से स्वभाव सुधार
गदे स्वभाव वाला व्यक्ति स्वयं भी जलता रहता है और दूसरों को भी जलाता रहता है। कुसंग वश या पूर्व जन्म के संस्कार वश व्यक्ति कई प्रकार के व्यसनों में ऐसा फँस जाता है कि वह इन गंदी आदतों से छूट सकता है, यह सोचना भी उसके लिए कठिन हो जाता है। कोई शराब, भांग, बीड़ी, सिगरेट या अन्य नशीले पदार्थों के सेवन का आदि बन चुका है तो कोई जुआ, सट्टा आदि का शिकार है। कितने ही लोग अपने जीवन का अधिकांश भाग फिल्में देखने व फिल्मी पत्रिकाओं तथा अश्लील पुस्तकों को पढ़ने में ही गवां देते हैं। कई लोगों का जीवन लड़ाई, झगड़े व परनिन्दा, परचर्चा में ही निकल जाता है। इसी प्रकार ओर भी कई कारणों से व्यक्ति का स्वभाव दूषित है। कितने लोग तो पाप करते-करते पाप में ऐसे रच-पच गये कि उनको पाप भी पाप जैसा नहीं लगता। उनका ऐसा स्वभाव हो गया है कि पाप करना नहीं पड़ता, अपने आप स्वभाविक ही हो जाता है।
इस प्रकार पतित - से - पतित और दुराचारी से दुराचारी भी यदि प्रभु के नाम जप में लग जाए तो नाम जप की कृपा से वह भी सदाचारियों में मुकट मणि हो जाये। इतिहास इस बात का साक्षी है कि नाम जप से कितने पतितों का उद्धार हो गया। कितनों की बुद्धि नाम ने सुधार दी। तुलसीदास जी कहते है:
राम एक तापस तिय तारी। नाम कोटि खल कुमति सुधारी।।
भगवान् राम ने एक पतित हुई तपस्वी की पत्नी अहिल्या का उद्धार किया परन्तु नाम ने तो करोड़ों की बुद्धि सुधार कर उद्धार कर दिया। जब नाम हमारे पास है तो फिर चिन्ता किस बात की। सच मानों विश्वास नहीं तो करके देख लो। अगर आप अपना स्वभाव नहीं सुधार सकते, गन्दी आदतों से नहीं छूट सकते तो नाम महाराज की शरण ग्रहण करो। भजन करने की हद कर दो। सचमुच अगर नाम निष्ठ हो गये तो स्वभाव धीरे-धीरे निर्मल बनेगा। स्वभाव सुधरने लगेगा। पापों से मुक्ति मिलेगी, यमराज भी आपके पापों का खाता फाड़ देंगे। मीरा ने कहा:
'मेरो मन राम ही राम रटे रे
जन्म जन्म के खत जो पुराने, नाम ही लेत फटे रे।'
भजन कर तो ऐसा कर, भजन करने की हद कर दे ।
भजन के बल से तू, यमराज का खाता भी रद्द कर दे ।।
स्वभावगत पापों में इतनी शक्ति नहीं जो वे नाम के सामने ठहर सकें। कुसंग त्याग कर सत्संग के आश्रय में रहना चाहिए और भगवान् की शरण ग्रहण कर मन ही मन भगवान् से पापों से बचने के लिए प्रार्थना करनी चाहिये। स्वयं भी जितना हो सके पापों से बचने की कोशिश करते रहना चाहिए।

इस प्रकार कुसंग को त्याग कर भगवान् का होकर यदि कोई नाम जप में लग जाये तो उसी समय उसकी बिगड़ी बनने लगती है। अगर कोई बिना कुसंग त्याग के तथा बिना नाम जप के अपना उद्धार चाहता है तो मानो वो आकाश में फूल खिलाना चाहता है, जो असम्भव है।

बिगड़ी जन्म अनेक की, सुधरे अब ही आज ।
होई राम के नाम जप, तुलसी तज कुसमाज ।।
अगर एकदम गन्दी आदत नहीं छुटती तो भी साधक को घबराना-नहीं चाहिए। धैर्यपूर्वक अपने साधन में लगे रहना चाहिये। देर सबेर सही, काम तो बनेगा ही यह निश्चित है।
अगर कोई शराबी शराब छोड़ना चाहता है लेकिन पीने के लम्बे अभ्यास के कारण छोड़ नहीं पाता तो उसके लिए एक ही तरीका है। कम से कम सोलह माला महामंत्र ( हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे, हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे ) या युगलमंत्र ( राधेकृष्ण राधेकृष्ण कृष्ण कृष्ण राधे राधे, राधेश्याम राधेश्याम श्याम श्याम राधे राधे) का नियम लें। नियम का सख्ती से पालन करे। किसी भी दिन नियम न टूटे। साथ में सत्संग, स्वाध्याय जरूर करता रहे। किसी महापुरूष का संग मिल जाये फिर तो कहना ही क्या। शराबी व्यक्ति का संग बिल्कुल न करे। इस प्रकार कुछ ही दिनों में अपने आप शराब से मन हटने लगेगा। नाम जप की संख्या ज्यादा से ज्यादा होनी चाहिए। नाम महाराज की कृपा से आप बड़े-बड़े असम्भव दिखने वाले कार्य भी कर सकते हैं। नाम में अपार शक्ति है। नाम के बल से बलवान बन कर माया से कह दो कि अब तुम हमको नहीं नचा सकती। तुम्हारी वहीं पेश चलती है जहाँ नाम का आश्रय न हो। नाम जापक के सामने तो माया घुटने टेक देती है। दूर से ही प्रणाम करके निकल जाती है। माया अनेक प्रकार के जाल फैलाती है। किसी भी स्थिति में नाम जप नहीं छोड़ना चाहिए। अगर नाम नहीं छोड़ा तो अन्त में माया हार जायेगी। इसलिए हर समय नाम जप करते रहो –
हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे ।
हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे ।


कलिसंतरणोपनिषद् में नाम महिमा
कलिसन्तरणोपनिषद् में नाम जप की विधि और उसके फल का बड़ा सुन्दर वर्णन है। साधकों के लाभार्थ उसे यहाँ दिया जा रहा है।
हरिः ॐ। द्वापरान्ते नारदो ब्रह्माणं जगाम कथं भगवन् गां पर्यटन् कलिंसन्तरेयमिति।।
द्वापर के समाप्त होने के समय श्री नारद जी ने ब्रह्मा जी के पास जाकर पूछा कि “हे भगवन्! मैं पृथ्वी की यात्रा करने वाला, कलियुग को कैसे पार करूँ ?”
स होवाच ब्रह्मा साधु पृष्टाऽस्म सर्वश्रुतिरहस्यं गोप्यं तच्छृणु येन कलि संसारं तरिष्यसि । भगवत आदिपुरूषस्य नारायणस्य नामोच्चारण मात्रेण निर्धूतकलिर्भवति ।।
ब्रह्मा जी बोले कि “तुमने बड़ा उत्तम प्रश्न किया है। सम्पूर्ण श्रुतियों का जो गूढ़ रहस्य है, जिससे कलि संसार से तर जाओगे, उसे सुनो। उस आदिपुरूष भगवान् नारायण के नामोच्चारण मात्र से ही कलि के पातकों से मनुष्य मुक्त हो सकता है।”
नारद: पुन: पप्रच्छ। तन्नाम किमिति । स होवाच हिरण्यगर्भः।
हरे राम हरे राम, राम-राम हरे हरे,
हरे कृष्ण हरे कृष्ण, कृष्ण-कृष्ण हरे हरे ।
इति षोडशकं नाम्नां कलिकल्मषनाशनम्। नातः परतरोपायः सर्ववेदेषु दृष्यते ।।
इति षोडशकला वृतस्य पुरूषस्य आवरणविनाशनम् । ततः प्रकाशते परं ब्रह्म मेघापाये रविरश्मि मण्डलीवेति।।
श्री नारद जी ने फिर पूछा कि “वह भगवान् का नाम कौन-सा है ?” ब्रह्मा जी ने कहा “वह नाम है–
हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे,
हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे ।
इन सोलह नामों के उच्चारण करने से कलि के सम्पूर्ण पातक नष्ट हो जाते हैं। सम्पूर्ण वेदों में इससे श्रेष्ठ और कोई उपाय नहीं देखने में आता। इन सोलह कलाओं से युक्त पुरूष का आवरण ( अज्ञान का पर्दा ) नष्ट हो जाता है और मेघों के नाश होने से जैसे सूर्य किरण समूह प्रकाशित होता है वैसे ही आवरण के नाश से ज्ञान का प्रकाश हो जाता है।”
पुनर्नारद: पप्रच्छ भगवन् कोऽस्य विधिरिति । तं होवाच नास्य विधिरिति। सर्वदा शुचिरशुचिर्वा पठन् ब्राह्मण: सलोकतां समीपतां सरूपतां सायुज्यतामेति
नारद जी ने फिर पूछा कि “हे भगवन्! इसकी क्या विधि है?” ब्रह्मा जी ने कहा कि “इसकी कोई विधि नहीं है। सर्वदा शुद्ध या अशुद्ध नामोच्चारण मात्र से ही सालोक्य, सामीप्य, सारूप्य और सायुज्य मुक्ति मिल जाती है।”
यदास्य षोडशकस्य सार्धत्रि कोटिर्जपति तदा बह्महत्यां तरति। स्वर्णस्तेयात् पूतो भवति । वृषलीगमनात् पूतो भवति। सर्वधर्म परित्याग - पापात्सद्यः शुचितामाप्नुयात्। सद्यो मुच्यते सद्यो मुच्यते इत्युपनिषत् ।।
ब्रह्मा जी फिर कहने लगे कि “यदि कोई पुरूष इन सोलह नामों के साढ़े तीन करोड़ जप कर ले तो वह ब्रह्महत्या, स्वर्ण की चोरी, शूद्र - स्त्री - गमन और सर्वधर्मत्यागरूपी पापों से मुक्त हो जाता है। वह तत्काल ही मुक्ति को प्राप्त होता है।”
इससे सिद्ध हो गया कि कोई पुरुष सर्वथा शुद्ध हो या अशुद्ध इस सोलह नाम वाले महामन्त्र का जप कर सकता है। नारद जी के द्वारा विधि पूछने पर ब्रह्मा जी कहते हैं कि ‘नास्य विधिरीति’ कोई विधि नहीं है। जिस किसी प्रकार से इस षोडश नाम महामन्त्र का उच्चारण होना चाहिये, बस यही शर्त है।
चौंसठ माला नियमपूर्वक प्रति दिन जपने से पंद्रह वर्ष में साढ़े तीन करोड़ जप संख्या पूरी हो जाती है। यह तो साधारण जप की बात है। उपांशु या मानसिक जप हो तो बहुत शीघ्र सफलता मिलती है। साधक को साथ-साथ पापों व अपराधों से जितना हो सके बच कर रहना चाहिए।
कईं लोग सोचेंगे कि घर गृहस्थी के कामों में फँसे प्रतिदिन इतने मन्त्रों का जप कैसे करें? इतने जप में कम से कम छः- सात घंटे का समय चाहिए? पर उनका ऐसा सोचना भूल से होता है। यदि हम लोग समय का उपयोग सावधानी से करें तो घर के काम करते हुए भी इतना जप कर सकते हैं। उन मन्त्रों के जप में बाधा आती है जो स्नान कर शुद्ध हो एक समय, एक स्थान पर बैठकर किये जाते हैं। वैसे जप में लगातार इतना समय लगाना कठिन होता है। पर इस महामन्त्र का जप तो सोते समय, खाते पीते समय, घर का काम करते सब समय सभी अवस्थाओं में हो सकता है।
यदि हम लोग हिसाब लगायें तो पता चलेगा कि दिन-रात के चौबीस घन्टों के समय में से छ: या सात घन्टे निद्रा को देने के बाद बाकी के सत्रह - अठारह घंटे केवल शरीर और आजीविका के कार्यों में व्यतीत नहीं होते। हमारा बहुत सा समय तो असावधानी से व्यर्थ की बातों में बीत जाता है। यदि हम लोग वाणी का संयम सीख लें, बिना मतलब के बोलना छोड दें, तो मेरी समझ से राजा से लेकर मजदूर तक सबको इतना नाम जप प्रतिदिन करने के लिये पूरा समय मिल सकता है। हम चेष्टा नहीं करते, केवल बहाना कर देते हैं। यदि चेष्टा करें, समय का मूल्य समझें तो एक क्षण को भी व्यर्थ न जाने दें।
श्वास श्वास हरि नाम जप, वृथा श्वाश मत खोये ।
न जाने इस श्वाश का, आवन होय न होय ॥
वहीं बोलो जहाँ आवश्यक हो, उतनी ही बात करो जितनी आवश्यक हो, उसके साथ ही बोलो जिसके साथ बोलना आवश्यक हो। अगर बिना बोले ही काम चल जाये तो बोलना नहीं चाहिए। अगर मानव जन्म में समय की कीमत समझते हो तो अपनी बात पूरी होते ही नाम जप में लग जाओ। इस प्रकार लापरवाही छोड़कर सावधानी से अभ्यास करते रहने पर तो ऐसी आदत पड़ जायेगी कि फिर नाम जप स्वाभाविक ही होने लग जायेगा।
इस प्रकार नाम जप की कृपा से साधना की ऐसी प्रबल इच्छा होने लगती है कि मैं चौबीस - चौबीस घन्टे जप ही किया करूँ। उसे फिर थोड़े जप में संतोष नहीं होता। जैसे बड़े जोर से प्यास लगने पर एक-एक क्षण कष्ट से बीतता है। इसी प्रकार नाम प्रेमी का भी जो क्षण नाम जप के बिना बीतता है, उसके लिए उसको काफी कष्ट होता है। वह नाम को लोभी व कंजूस के धन की तरह बढ़ाता हुआ मर जाता है और अपने सम्पूर्ण जीवन को नाम जप की साधना को समर्पित करके कृतार्थ हो जाता है।