Bodyguard - 1 in Hindi Moral Stories by MR. JAYANT books and stories PDF | बॉडीगार्ड - 1

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बॉडीगार्ड - 1

यह कहानी है एक ऐसे इंसान की, जिसने अपनी जिंदगी इंसानियत के और स्त्री रक्षा पर न्यौछावर कर दी। कहते है की , सदियों से इस धरती पर भगवान ने अवतार लिया है। जिन्हे आज के दौर मे एंजल (फरिश्ता) कहा जाता है। इस धरती पर फरिश्ते का जन्म एक नेक काम करने के लिए ही होता है। कुछ ऐसी ही कहानी है "अर्जुन" की।
कहानी इंसानियत की। कहानी मानवता की। कहानी स्त्री रक्षा की।

"तो चलिए शुरू करते है यह "अर्जुन" की संघर्ष भरी कहानी।

_______________________________________

(कहानी शुरू होती है मुंबई शहर से। 1.84 करोड़ लोगो से बसा यह शहर है। जिसे "सपनो का शहर" भी कहा जाता है। लोग यहाँ अपने कुछ सपने ले कर आते हैं, जिन्हे वो पूरा करना चाहते है। और सपने उन्ही के पूरे होते है, जो मुंबई शहर मे रहकर अपना काम पूरी शिद्दत और ईमानदारी से करते है, और कभी हार नही मानते।)

("अर्जुन " जो इसी मुंबई शहर मे पैदा हुआ। उसका यह सपना था की वो बड़ा हो कर बॉलीवूड स्टार बने। लेकिन, एक घटना ने उसका सपना बदलकर रख दिया।)

.......................

(एक बड़े से घर मे एक आदमी अपने बच्चे को पढ़ा रहा है।)

सूर्या - "पापा" मै 10 वी कक्षा मे हूँ। मुझे सब आता है। अब तो आप मुझे अपनी पढाई खुद करने दीजिए!

रोहित (सूर्या के पिताजी) - बेटा, एक बात बताऊ! मै जब तेरे ही उमर का था न तो मै तेरे दादाजी के साथ देर तक पढाई करता था। मै भी तेरी ही तरह 10 वी कक्षा मे पढ़ता था। तुम्हारे दादाजी मुझे अच्छे से पढाते थे। इसलिए तो पास भी हो गया था। और आज देखो, आज उन्ही की वजह से मै एक स्कूल टीचर हूँ।

(सूर्या के पिताजी अपनी बात बताने लगे। सूर्या भी उनकी बात समझ पा रहा था।)

सूर्या - पापा, मुझे भी आपकी तरह बड़ा होकर टीचर बनना है।

(सूर्या ने रोहित जी से कहा।)

रोहित जी - बनोगे बेटा, तुम ज़रूर टीचर बनोगे। पहले अच्छे से पढाई करो। ठीक है।

(रोहित जी मुस्कुराते हुए सूर्या को गले लगाते है। सूर्या अपनी किताबे समेट कर घर के अंदर चला जाता है। रोहित जी मुस्कुराते है।)

....................

(मुंबई के एक फ्लैट के अंदर से एक औरत रोते हुए बाहर आती हैं। उसका नाम मनिशा था। मनीषा के साथ उसकी 5 साल की बच्ची थी। मनीषा के बाल बिखरे हुए थे। उसने अपनी बच्ची को गोद मे उठाया और वहा से पास के एक टेलीफोन बूथ मे चली गई। और टेलीफोन पर एक नम्बर टाइप किया। बाहर एक 19 साल का लड़का कब से सिर्फ उसी औरत को देखे जा रहा था।इस लड़के का नाम "अर्जुन" था। सूर्या का बड़ा भाई। अर्जुन मार्केट से घर जा रहा था, तभी उसकी नजर रोते हुए उस औरत पर गयी थी,इसलिए वो वही रुक गया। अर्जुन टेलीफोन बूथ के पास गया और मनीषा की चुपके से बाते सुनने लगा।)

"माँ, मुझे यहाँ नही रहना। मै वापस आ रही हूँ माँ, आज ही मै घर आ रही हूँ।
(मनीषा ने रोते हुए कहा।)


" क्या हुआ, बेटी? तु रो क्यु रही हैं?
(माँ ने कॉल पर पूछा।)

"कुछ भी ठीक नही है माँ। माँ वो कभी नही सुधर सकते! आज उन्होंने फिर से मुझे....
(वो औरत रोते हुए अपनी माँ से अपनी शिकायत कर रही थी।)

" क्या हुआ बेटी? क्या दामाद जी ने तुझे डाँटा?
(माँ ने मनीषा से पूछा।)


(मनीषा अभी भी रोए जा रही थी। उसने रोना थाम कर हकलाते हुए बताना चालू किया।)

"हाँ माँ आज उन्होंने मुझे डाँटा। और साथ मे मेरे साथ मार पिट की। माँ, एक बात बताऊ..उन्होंने यह आज नही किया। वो हर रोज ऐसा करते है। रोज रात को शराब पी कर आते है और मुझे परेशान करते है।


(उस दुखी औरत की ऐसी बातें सुनकर अर्जुन की रूह हिल गयी। क्योकि आज तक उसने अपनी जिंदगी मे ऐसी हिंसा-जनक बातें नही सुनी थी, और उपर से वो उमर से बहुत छोटा था। अर्जुन मनीषा की बात आगे सुनने लगा।)


"क्या? दामाद जी ने तुम्हारे साथ ऐसा बर्ताव किया?
(मनीषा की माँ ने पूछा।)

" हाँ माँ हाँ। वो ऐसा ही करते हैं। दहेज के नाम पर मुझे टॉर्चर करते हैं। और कभी कभार तो मेरा हाथ तक जला देते है माँ। माँ आपने मुझे कहा था, की चाहे पति कैसा भी हो, लेकिन अपनी तरफ से रिश्ता निभाने की पूरी कोशिश करना। लेकिन, अगर पति ही रिश्ता अच्छे से नही निभा रहा तो, उसमे क्या ही किया जाए।

(मनीषा ने अपनी दुख भरी दास्ताँ भारी आवाज़ मे बताई।)

(अर्जुन ने उस औरत की पूरी बात सुन ली थी। वो अब पीछे मूडा और वहा से अपने घर चला गया। अर्जुन घर पहुँचा। वो अपने कमरे मे आया और बेड पर बैठ गया। उसको बार बार उस दुखियारी औरत का चेहरा दिख रहा था। उसकी बाते अब भी उसके दिमाग मे घूम रही थी। पूरे रास्ते अर्जुन परेशान था। तभी अर्जुन के पिताजी ने उसको आवाज़ लगायी।)


" बेटा अर्जुन! कहाँ हो बेटा? जल्दी नीचे आओ। खाना लग गया है।
(रोहित जी ने कहा।)


"जी पापा?
(अर्जुन ने सीढ़ियों से नीचे आते हुए कहा।)

" बेटा अर्जुन तुम मार्केट से घर आये और मुझसे मिले बिना ही अपने कमरे मे चले गए! कोई परेशानी है मेरे अर्जुन को?
(रोहित जी ने अर्जुन से पूछा।)

"नही पापा, ऐसी कोई बात नही है।
(अर्जुन ने कहा।)

" अच्छा ठीक है। जाओ, हाथ धो कर आओ। मै खाना लगाता हूँ।
(रोहित जी ने अर्जुन के गाल को छू कर कहा।)


(अर्जुन बेसिन से हाथ धोकर वापस आता है और डाइनिंग टेबल पर खाना खाने के लिए चेयर पर बैठ जाता है। रोहित जी खाना परोसते है, और खुद भी खाना खाने के लिए बैठ जाते है। रोहित ने अर्जुन से उसकी पढाई के बारे में पूछा।)

रोहित - बेटा, तुम्हारा स्कूल शुरू हो गया?

अर्जुन - हाँ पापा, शुरू हो गया।

रोहित - तो कैसे चल रही है तुम्हारी पढाई?
(रोहित जी ने ग्लास मे पानी भरते हुए पूछा।)

अर्जुन - पढाई ठीक चल रही हैं पापा।

रोहित - क्या हुआ अर्जुन बेटा? आज तुम्हारा मुह क्यु उतरा हुआ है?

अर्जुन - मै समझा नही पापा!
(अर्जुन ने अपने चेहरे के भाव बदलते हुए कहा।)

रोहित - मेरा मतलब की, तुम तो जो भी बोलना हो वो तपाक से बोल देते हो। और एक सवाल के तीन जवाब देते हो, पर आज तो तुम मेरे हर सवाल का एक ही वे मै जवाब दे रहे हो।

अर्जुन - कुछ नही पापा। मै ठीक हूँ। बस थोड़ी सी तबियत खराब लग रही हैं पापा!
(अर्जुन मे अपने माथे पर हाथ फेरते हुए कहा।)

रोहित - "तो डॉक्टर के पास जाओ बेटा और, मेडिसिन्स लेकर आराम करो।

अर्जुन - " जी पापा!

(अर्जुन खाना खत्म करके अपने कमरे मे जाता है। अर्जुन का कमरा बहुत बड़ा था। वहा पर बड़ा सा बेड, बेड के उपर दीवार पर एक बोलीवूड स्टार "शाहरुख खान" का बहुत बड़ा पोस्टर लगा हुआ था। यह अर्जुन ने ही लगाया था। अर्जुन उस पोस्टर को देख रहा था। तभी वहा पर अर्जुन का छोटा भाई सत्या आता है।)

सत्या - भैय्या, आप आ गए?
(सत्या ने अंदर आते हुए कहा।)

अर्जुन - हाँ छोटे!

सत्या - इतनी देर कहाँ लगा दी आपने? मैंने आपको कॉल भी किया था, लेकिन आपने उठाया ही नही।

अर्जुन - तूने कॉल कब किया मुझे?

सत्या - भैय्या, अपना फोन कॉल्स चेक करो, पता चल जायेगा।

(अर्जुन ने अपना फोन निकाला, जिसमें सत्या के पाँच मिस्ड कॉल्स आये हुए थे। अर्जुन ने देखा की उसका फोन साइलेंट मोड पर था। अर्जुन ने आगे कहा।)

अर्जुन - अरे हाँ, वो मै मार्केट मे था, और काफी लोगो की भीड़ भी थी तो इसलिए मुझे रिंगटोन सुनाई नही दी।
(अर्जुन ने बात बदलकर कहा, जब की उसी ने ही फोन साइलेंट पर रखा था, ताकि वो उस औरत की बात सुन सके और उसे कोई डिस्टर्ब ना कर सके।)

सत्या - ओह अच्छा अच्छा।

अर्जुन - छोटे तूने, खाना खा लिया?

सत्या - अरे खाना , अभी कहाँ भैय्या! अभी तो मै स्टडी करके फ्री हुआ हूँ।
(सत्या ने खिड़की के पर्दे हटाते हुए कहा।)

अर्जुन - अच्छा, तो जाओ खाना खा लो। मै थोड़ा आराम कर लेता हूँ।

(सत्या कमरे से चला जाता हैं। अर्जुन बेड पर लेट बैठ गया। उसने अपना फोन निकाला और रिल्स देखने लगा। वो रिल्स को स्क्रोल कर रहा था तभी उसे एक रिल्स दिख गया, जिसमे लिखा था।)

"रिश्ता बनाने से रिश्ता नही होता।
रिश्ता निभाने से रिश्ता होता है।"

(अर्जुन ने उस रील को लाइक किया और कॉमेंट बोक्स मे "राइट" लिख दिया। अर्जुन को फिर से उस औरत मनीषा की याद आ गयी। वो भी रिश्ता अच्छे से निभाने की पूरी कोशिश कर रही थी, लेकिन उसका पति उसपर अत्याचार करता था, उसे गाली गलौच , और न जाने क्या क्या कहता था। आज उस औरत की हिंसात्मक बातो ने 19 साल के अर्जुन के दिमाग को पूरी तरह से हिला दिया था। अर्जुन ने सोचा की, क्यो उस औरत के पति ने उनके उपर अत्याचार किया?)


अर्जुन (अपने मन मे) - मैंने तो स्कूल मे पढ़ा था, की हम भारतीय लोग है। हम सब भाई बहन है। हमे सभी औरत जात का सम्मान करना चाहिए, उनका आदर करना चाहिए। लेकिन आज जो मैंने देखा, यह तो उससे भी उल्टा है। कही मैंने गलत तो नही पढ़ा। कही ऐसा तो नही की, स्कूल मे जो जिंदगी की अच्छी सिख दी जाती हैं वो गलत है? या फिर मै जो सोच रहा हूँ वो गलत है।

(अर्जुन खुद से ही, यह सवाल पूछा जा रहा था की, जिस देश मे औरतो का आदर किया जाता है, उसी देश मे औरत जात पर अत्याचार भी किया जाता हैं। लेकिन क्यो? ऐसा क्यों होता है? इन्ही सब बातो ने अर्जुन को घेर लिया था। अर्जुन ने आगे कहा।)


अर्जुन - मुझे कुछ करना होगा। मुझे इस विषय पर पापा से बात करनी होगी। तभी मुझे चैन मिलेंगा।

(अर्जुन बेड से उठा और बाहर नीचे हॉल मे आ गया। उसने रोहित जी को ढूंढने की कोशिश की लेकिन वे घर पर नही थे। सत्या बाहर पौधों को पानी दे रहा था। अर्जुन उसके पास गया।)

अर्जुन - छोटे, पापा कहाँ है?

सत्या - भैय्या, पापा तो स्कूल चले गए।
(सत्या ने पानी देते हुए कहा।)

अर्जुन - स्कूल चले गए? लेकिन कब?

सत्या - अभी दस मिनट पहले ही गए है। लेकिन, बात क्या है, भैय्या?

अर्जुन - वो, मुझे पापा से एक ज़रूरी बात करनी थी। कोई बात नही, जब पापा आ जायेंगे तो मै बात कर लुंगा।

(इतना कहकर अर्जुन चला जाता हैं। वो घर से बाहर एक दुकान पर चला जाता है। वो दुकान से दो बिस्किट का पैकेट लेता है और घर लौट आता है। अर्जुन सत्या को आवाज़ लगा कर बुलाता है। सत्या अर्जुन से बिस्किट का एक पैक लेकर बाहर प्लेग्राउंड पर चला जाता है।)

....................

(दोपहर के 12 बजे थे। और इस वक़्त आसमान मे बादल छाने लगे थे। ऐसा लग रहा था की आज बारिश होगी। सत्या TV पर अपनी फेवरेट मूवी देख रहा था। घर की लाइट चली गई।)

सत्या (खुद से) - ओह नो.. यह लाइट भी न!

(सत्या रिमोट से TV का स्विच ऑफ कर देता है, और घर से बाहर खेलने चला जाता हैं।

....................

(अर्जुन प्लेग्राउंड मे अपने कुछ दोस्तो के साथ बैठ कर बाते कर रहा है।)

"भाई , कल कितना मज़ा आया नही?
(एक लड़के ने कहा। इसका नाम वीर था।)

" हाँ यार, बहुत मज़ा आया। क्या मूवी थी यार! जबरदस्त एक्शन, रोमांस..!
(विजय नाम के लड़के ने वीर को बताया।)

"अरे यार, यह रोमांस प्यार व्यार मुझे बिल्कुल पसंद नही है। मुझे तो सिर्फ एक्शन सीन से मतलब है!
(वीर ने विजय से कहा।)

(वीर और विजय की बातो पर अर्जुन का ध्यान नही था। अर्जुन किसी सोच मे गुम था। वीर का ध्यान अर्जुन पर गया।)

" अर्जुन भाई, किस सोच मे डूबे हो?
(वीर ने अर्जुन के कन्धे पर हाथ रखते हुए पूछा।)

"वीर मै यह सोच रहा था, की क्या कभी ऐसा हो सकता हैं की, स्कूल मे जो हम सभी को अच्छी शिक्षा दी जाती हैं। क्या वो सही है?

(अर्जुन ने अपने होंठो पर उंगली रखते हुए कहा।)

" क्या मतलब? मै समझा नही यार!
(वीर ने कहा।)

"वीर ,क्या तु यह मानता है की, दुनिया मे इंसानियत है?
(अर्जुन ने वीर से कहा।)

" हाँ इंसानियत है।
(वीर ने कहा।)

"तो मुझे एक बात बता, वीर...क्या सच मे इस दुनिया मे इंसानियत आज भी ज़िंदा है?
(अर्जुन ने सवाल किया।)


(अर्जुन का सवाल सुनकर वीर को यह समझ नही आ रहा था, की इस सवाल क्या जवाब दे?)

" क्या हुआ? इसका जवाब मालूम नही?
अर्जुन ने पूछा।)

"मुझे नही पता इसका करेक्ट आंसर।
(वीर ने ना मे सिर हिलाकर कहा।)

" जब तुझे यह नही पता की, इंसानियत आज भी है या नही! फिर तूने क्यो कहा की, इंसानियत है?
(अर्जुन ने कहा।)


(अर्जुन अब इस सवाल मे उलझ चुका था। उसे यह जानना था की इंसानियत है या नही। और अगर है तो कहाँ है इंसानियत? इंसानियत का मतलब अर्जुन जानता था, लेकिन आज एक औरत पर की गयी हिंसा ने अर्जुन को इंसानियत पर शक करने पर मजबूर कर दिया।)

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[अब अर्जुन कैसे जान पायेगा इंसानियत का असल अर्थ?]

(जानने के लिए पढ़ते रहिये, "बॉडीगार्ड" (कहानी अर्जुन की।)


आपको इस कहानी का पहला एपिसोड कैसा लगा? मुझे कॉमेंट मे ज़रूर बताये।