Naam Jap Sadhna - 6 in Hindi Anything by Charu Mittal books and stories PDF | नाम जप साधना - भाग 6

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नाम जप साधना - भाग 6

माला जप का प्रचार

हरिनाम जप का सर्वश्रेष्ठ आधार माला माना जाता है। भजन में सहायक दो ही हैं, नाम निष्ठ साधकों का संग एवं माला। विश्व के सभी प्रमुख धर्म सम्प्रदायों में माला का न्यूनाधिक प्रचार है। सभी जप माला का प्रयोग करते हैं। मुसलमानों में माला को 'तसबीह' कहा जाता है। इसमें निन्यानवे मनके होते हैं, तसवीह पर 'अल्लाह' का नाम जपते हैं। जैनों की माला में एक सौ ग्यारह मनके होते हैं। इसमें एक सौ आठ पर तो 'णमों अर्हिन्ताय' का जप करते हैं, शेष तीन पर 'सम्यग्दर्शन ज्ञान चरित्रभ्यो नमः' का जप करते हैं। सिक्ख सम्प्रदाय में भी 'सिमरनी' (माला) से जप किया जाता है। बौद्धों की माला में भी एक सौ आठ मनके होते हैं, वो माला को 'थेंगवा' कहते हैं।

माला किसी न किसी रूप में सभी धर्म सम्प्रदायों के अनुयायी स्वीकार करते हैं। सबसे अधिक माला का प्रचार सनातन धर्म में ही होता है। भिन्न भिन्न नाम व मंत्रों के जप में भिन्न-भिन्न प्रकार की माला का प्रयोग होता है। पुत्र प्राप्ति के लिए संतान गोपाल मंत्र का जप पुत्रजीवी की माला से, विद्या प्राप्ति के लिए सरस्वती मंत्र का जप स्फटिक माला से, शिव मंत्र का जाप रुद्राक्ष की माला से, वैष्णव मंत्र जप तुलसी की माला से, लक्ष्मी के लिए कमलगट्टे की माला से व दुर्गा के लिए रूद्राक्ष या मूंगे की माला से जप किया जाता है। अलग-अलग अनुष्ठान भेद से भी अलग-अलग मालाओं से जप किया जाता है। प्रायः सभी प्रकार की मालाओं में एक सौ आठ मनके ही होते हैं। विशेष परिस्थिति में कर माला (अंगुली के पर्व) से भी जप किया जाता है।

माला से ही जप क्यों

माला से ही जप क्यों? इसके कई कारण हैं।
पुरश्चरण में जप की संख्या शास्त्रों में निर्धारित की गई है। मंत्र में जितने अक्षर होते हैं, उतने हजार जप से एक पुरश्चरण और उतने ही पुरश्चरणों से एक अनुष्ठान होता है। इस प्रकार माला के बिना अनुष्ठान संभव ही नहीं हो सकता। धर्म कार्य में कुशा का, दान संकल्प में जल का व नाम जप में माला का प्रयोग करना चाहिए।
अप्समीपे जपं कुर्यात् सुसंख्यं तद् भवंद् यथा । (पराशर स्मृति ४/४०)

इसलिए संख्या से ही जप करना चाहिए। साधक की साधना तभी अबाध गति से चलती है, जब उसका जप संख्या का नियम हो। अगर जप संख्या का नियम न हो तो जिंदगी में आए उतार-चढ़ाव की भूलभुलैया में साधना खो जाती है। नित नेम नित पूरा करना चाहिए, तभी साधक आगे बढ़ता है। अनियमित बहुत साधना की अपेक्षा नियमित थोड़ी साधना श्रेष्ठ होती है। इसलिए जप संख्या के निर्वाह के लिए माला बहुत जरूरी है।

कई साधक कहते हैं कि हमको माला की क्या आवश्यकता है, हमारा तो भीतर ही भीतर जप चलता रहता है। ऐसा कहने वाले लोग बहुत धोखे में हैं, वे स्वयं को धोखा दे रहे हैं। कोई भी व्यक्ति स्वयं अनुभव करके देख ले कुछ दिन हाथ में माला लेकर भजन करे फिर कुछ दिन बिना माला के। अपने आप पता चल जायेगा कि माला से अधिक जप होता है या बिना माला के। यदि हम मन ही मन जप करेंगे तो मन के चंचल होने पर उसी समय जप बन्द हो जायेगा। यदि हाथ में माला होगी तो मन कहीं भी चला जाए फिर भी माला के कारण जीभ नामजप करती रहेगी। इसका मतलब यह नहीं कि माला वाले मन को स्वतन्त्र छोड़ दें। मन को प्रभु के रूप में या नाम चिंतन में लगाने की पूरी कोशिश करनी चाहिए। फिर भी मन न लगे तो भी माला से जप तो हो ही रहा है। इसका तो लाभ होगा ही।

माला की सबसे अधिक महिमा तो यही है कि जब तक यह हाथ में रहती है तब तक साधक से जप कराती ही रहती है। इसलिये तो कहा है–
माला हे मल नाशिनी, माला मात समान।
करुण दास सांची कहे, माला से कल्याण।।


भवसागर से पार जाने के लिए हरि नाम नाव है और माला नाव चलाने वाली पतवार (बल्ली) है। अगर पतवार ही नहीं होगी तो नाव कैसे चलेगी।
राम नाम दृढ़ नाव है, माला है पतवार।
करुणदास माला बिना, कैसे हो भवपार।।


बिना शस्त्र के जिस प्रकार प्रबल दुश्मन को नहीं जीता जा
सकता, उसी प्रकार बिना माला रूपी शस्त्र के प्रबल माया को नहीं जीता जा सकता।
माला मन से लड़ रही, तू मत बिसरे मोय ।
बिना शस्त्र के सूरमा, जीत सके नहीं कोय ।।

माला से जप की कितनी महिमा है, यह तो इसी बात से पता चल जाता है कि यह माला ब्रह्मा, शिव, शारदादि के कर कमलों में सुशोभित रहती है। कितने महापुरुषों ने इसी माला का आश्रय ले जप के द्वारा अपना उद्धार किया है। शिव, ब्रह्मा, सरस्वती, गुरु नानकदेव, हनुमान आदि के चित्रों में आप सभी लोगों ने इनके हाथों में माला तो देखी ही होगी। इससे पता चलता है कि माला का क्या महत्व है। एक ही माला पर जप करने से उसमें दिव्यता आ जाती है। हमारे हृदय में जो आदर गुरु व भगवान् का है, वही माला का भी होना चाहिए। अपनी ही माला से जप करना चाहिए।
तुलसी की माला से जाप करो रे, अपना उद्धार स्वयं आप करो रे।

माला कैसे जपें? जप माला के तीन प्रकार:
हरिनाम जप की निश्चित संख्या के नियम निर्वाह के लिए तीन प्रकार से माला कर सकते हैं–
1. तुलसी के मणकों की माला व साक्षी माला से
2. कर माला से
2. समय के हिसाब से (सात मिनट में एक माला)

1. तुलसी के मणकों की माला व साक्षी माला– तुलसी के मणकों की माला को दायें हाथ की छोटी उंगुली के पास वाली ( अनामिका ) पर धारण कर अंगुष्ठ व मध्यमा की सहायता से फेरना चाहिए। एक मनके पर नाम या मन्त्र की एक आवृत्ति होनी चाहिए। इस प्रकार प्रत्येक मनके पर एक-एक नाम या मन्त्र जप करते हुए जब 108 मनकों के बाद सुमेरु (बड़ा मनका) आ जाए तो इष्ट देव को प्रणाम करें। सुमेरु को इस ढंग से घुमाएँ कि माला जहाँ पूरी हुई है वहीं से दूसरी माला आरम्भ हो जाए।
माला को गोमुखी (झोली) में या कपड़ों से ढक कर भजन करना चाहिए। तर्जनी (अंगुठे के पास वाली उंगुली) को गोमुखी से बाहर रखें। जप करके जब आसन से उठें तो पृथ्वी प्रणाम करके उठना चाहिए, नहीं तो भजन का कुछ अंश इन्द्र के पास चला जाता है।
काम करते हुए भी माला पास होनी चाहिए। ज्यों ही काम पूरा हुआ तुरन्त माला निकाल कर माला-झोली हाथ में ले लेनी चाहिए। चलते-फिरते व बात करते भी माला हाथ में रखो। अगर माला हाथ में होगी तो नाम जप चलता रहेगा। जब बात करो तो मनके को वहीं रोक लो, ज्यों ही बात पूरी हुई फिर वहीं से शुरू हो जायें। इस प्रकार एक-एक क्षण का सदुपयोग नाम जप करके मानव जीवन को सफल बनाना चाहिए।
श्वास श्वास हरिनाम जप, वृथा श्वास मत खोय ।
ना जाने इस श्वास का आवन होय न होय ॥

प्रश्न उठता है कि क्या बिना स्नान किए भी माला से जप कर सकते हैं? हाँ! बिल्कुल कर सकते हैं। माला से मंत्रों के जप को स्नानोपरान्त करना चाहिए लेकिन ये नियम नाम जप के लिए नहीं है। नाम को किसी भी अवस्था में जप सकते हैं, रही बात माला की तो अगर मन में शंका हो कि बिना स्नान किये माला जपना दोष है तो भी माला जपनी चाहिए क्योंकि बिना माला के जप में जो कमी आएगी वो महादोष है। अगर बिना माला के भी उतना ही जप हो जितना माला से होता है तो ठीक है, नहीं तो माला को जरूर रखें।
जब एक बार गले में कण्ठी धारण कर ली तो किसी भी अवस्था में इसके उतारने का विधान नहीं है। मुर्दे से ज्यादा अपवित्र अवस्था किसकी होगी। मरणासन्न व्यक्ति जो मल-मूत्र भी कपड़ों में त्याग देता है ऐसे व्यक्ति के लिये भी शास्त्र कहते हैं कि मरणासन्न व्यक्ति के कण्ठ में तुलसी की माला व मुख में तुलसी दल डालना चाहिए। चिता में
भी तुलसी की काष्ठ डालने का शास्त्र विधान करते हैं। जब ऐसी अवस्थाओं में भी तुलसी दल व तुलसी काष्ठ का प्रयोग होता है। तब माला हाथ में लेकर जपने से शौच अशौच का विचार कैसा? तुलसी की माला की तरह नाम भी व्यक्ति किसी भी अवस्था में जप सकता है। मृत्यु के समय नाम उच्चारण करना या हरि नाम श्रवण करना दोनों मंगलकारी हैं। ऐसा नहीं है कि स्नान करके पवित्र होकर ही मृत्यु के समय नाम जप करना चाहिए। न जाने प्रारब्ध वश शरीर की क्या स्थिति होगी? यह पवित्र होगा या मल मूत्र से अपवित्र, ऐसी अवस्था में भी नाम जप करते रहना चाहिए। नाम तो प्रातः उठने से लेकर सोने के समय तक हर स्थिति में करना चाहिए। नाम जप में पवित्र अपवित्रता का विचार नहीं करना चाहिए। इस प्रकार हर स्थिति में तुलसी की माला से जाप करते रहना चाहिए। इसमें कोई शंका जैसी बात नहीं है। फिर भी साधक को चाहिए कि वो अपने शरीर को जितना हो सके जल व मृत्तिका आदि से पवित्र रखे और अधिक से अधिक माला से जप करे। माला को पवित्र स्थान पर रखे व पवित्रतापूर्वक प्रातः माला को प्रणाम करके ही उठायें काम करते समय झोली को गले में लटका लें। माला को जमीन पर नहीं रखना चाहिए। किसी खूंटी पर लटका सकते हैं। काम करते समय माला न हो। तो भी जीभ से नाम जप करते रहना चाहिए। ऐसा न सोचें कि बिना माला के नाम जप नहीं करना चाहिए। माला हो या न हो नाम जप होगा या मल मूत्र से अपवित्र, ऐसी अवस्था में भी नाम जप करते रहना चाहिए। नाम प्रातः उठने से लेकर सोने के समय तक हर स्थिति में करना चाहिए। नाम जप में पवित्र अपवित्रता का विचार नहीं करना चाहिए। इस प्रकार हर स्थिति में तुलसी की माला से जाप करते रहना चाहिए। इसमें कोई शंका जैसी बात नहीं है। फिर भी साधक को चाहिए कि वो अपने शरीर को जितना हो सके जल व मृत्तिका आदि से पवित्र रखे और अधिक से अधिक माला से जप करे। माला को पवित्र स्थान पर रखे व पवित्रतापूर्वक प्रातः माला को प्रणाम करके ही उठायें काम करते समय झोली को गले में लटका लें। माला को जमीन पर नहीं रखना चाहिए। किसी खूंटी पर लटका सकते हैं। काम करते समय माला न हो तो भी जीभ से नाम जप करते रहना चाहिए। ऐसा न सोचें कि बिना माला के नाम जप नहीं करना चाहिए। माला हो या न हो नाम जप साधना बराबर चलनी चाहिए।
इस चित्र में देखें कि साक्षी माला झोली के बाहर की तरफ इस प्रकार बाँधी गई है कि एक तरफ 16 मनके दूसरी तरफ 4 मनके हैं। मनके एक मोटे धागे से इस प्रकार कसे जाते हैं कि जब तक हाथ से नीचे न किए जायें तो नीचे नहीं आते। इसको साक्षी माला कहते हैं क्योंकि ये ही जप संख्या बताती है, भजन की साक्षी होती है।

2. कर माला – दिए गए इस चित्र के अनुसार दोनों हाथों में क्रम संख्या इसी प्रकार से रहेगी। सबसे पहले दोनों हाथों के अंगुठों को अनामिका के मध्यम पर्व (1) पर रखें नाम जप दायें हाथ से किया जाता है और गणना बायें हाथ से एक बार महामन्त्र बोलकर दायें हाथ के अंगुठे को 2 पर ले जायें फिर 3 पर इस प्रकार जब 10 बार महामन्त्र बोलने पर अंगुठा तर्जनी के मूल भाग अर्थात् 10 पर आ जायेगा तो बायें हाथ के अंगुठे को 2 पर ले जायें। इस प्रकार दायें हाथ पर 10 बार महामन्त्र बोलकर बायें हाथ के अंगुठे को क्रम से आगे बढ़ाते जाएँ। जब बायें हाथ का अंगुठा 10 पर आ जायेगा तो जप संख्या 100 हो जाएगी। फिर दायें हाथ से 8 बार संख्या भी इस प्रकार पूरी कर लें। इस तरह से 108 अर्थात् एक माला पूरी हो जाएगी। यह कर माला आप चलते-फिरते, उठते-बैठते यहाँ तक कि बात करते भी कर सकते हैं। जब बात करनी हो तो अंगुठे को वहीं पर रोक लें। जब बात पूरी हो जाए तो फिर कर माला वहीं से शुरू कर दें जहाँ से छोड़ी थी। इसी प्रकार जगने से लेकर सोने तक अधिक से अधिक कर माला करते रहना चाहिए। कम से कम नियम तो पूरा कर ही लेना चाहिए।

3. समय की माला – जब हाथों से कोई काम कर रहे हों तो उस समय न तो हम मणकों वाली माला से जप कर सकते हैं और न ही कर माला से अब नियम की संख्या कैसे पूरी हो इसके लिए 'समय की माला' का उपयोग कर सकते हैं। महामन्त्र की एक माला में 7.30 मिनट लगते हैं। लगातार 7.30 मिनट तक जप करते रहो तो एक माला हो जाती है। इस हिसाब से 15 मिनट में 2 माला व 30 मिनट में 4 माला व 1 घंटे में 8 माला। इस प्रकार 2 घंटे में 16 माला का नियम पूरा हो जाता है। ये जरूरी नहीं है कि लगातार 2 घंटे करें जब भी समय मिल जाए शुरूकर दीजिए। सुबह से लेकर रात तक कुल मिलाकर नियम तो पूरा कर ही लेना चाहिए। नियम पूरा होने के बाद ऐसा कभी न सोचें कि नियम पूरा हो गया अब जप बंद कर दें। नियम हो जाने के बाद भी जप चलता रहना चाहिए। ये जरूरी नहीं कि 7.30 मिनट में ही माला पूरी हो जाती है। यह तो अपने अपने अभ्यास की बात है। महामन्त्र की एक माला 5 मिनट या 6 मिनट में भी हो जाती है और अगर चाहें तो एक माला में एक घण्टा भी लग सकता है।

इस प्रकार तीन प्रकार से जप संख्या कर सकते हैं। नियम पूरा हो जाने के बाद भी जप करते रहना चाहिए। नियम पूरा हो जाने के बाद बिना संख्या के स्वतन्त्र रूप से भी जप कर सकते हैं।