Naam Jap Sadhna - 5 in Hindi Anything by Charu Mittal books and stories PDF | नाम जप साधना - भाग 5

Featured Books
  • انکہی محبت

    ️ نورِ حیاتحصہ اول: الماس… خاموش محبت کا آئینہکالج کی پہلی ص...

  • شور

    شاعری کا سفر شاعری کے سفر میں شاعر چاند ستاروں سے آگے نکل گی...

  • Murda Khat

    صبح کے پانچ بج رہے تھے۔ سفید دیوار پر لگی گھڑی کی سوئیاں تھک...

  • پاپا کی سیٹی

    پاپا کی سیٹییہ کہانی میں نے اُس لمحے شروع کی تھی،جب ایک ورکش...

  • Khak O Khwab

    خاک و خواب"(خواب جو خاک میں ملے، اور خاک سے جنم لینے والی نئ...

Categories
Share

नाम जप साधना - भाग 5

हम नाम कैसे जपें ये समझने से पहले नाम और मंत्र के अन्तर को समझना जरूरी है।

नाममंत्र

राम — ॐ रां रामाय नमः
कृष्ण — ॐ क्लीं कृष्णाय नमः
नारायण — ॐ नमो नारायणाय
शिव — ॐ नमः शिवाय
दुर्गा — ॐ श्री दुर्गायै नमः
चामुण्डा — ॐ ऐं ह्रीं क्लीं चामुण्डायै विच्चे
राधा — ॐ ह्रीं राधिकायै नमः
राधाकृष्ण — ॐ श्री राधाकृष्णाभ्यां नमः

जिस प्रकार प्रभु के अनेक रूप हैं उसी प्रकार प्रभु के अनेक नाम व अनेक मंत्र हैं। प्रभु के जिन नामों के साथ ॐ क्लीं, ऐं, हीं, रां आदि बीज मंत्र, चतुर्थ विभक्ति या नमः स्वाहा आदि लग जायें तो वे मंत्र कोटि में माने जाते हैं। मंत्रों के जप में विधिनिषेध होता है। प्रत्येक मंत्र जप का अपना विशेष विधान होता है। अगर कोई साधक विधान को तोड़कर जप करता है तो वह जप निष्फल हो जाता है। कभी-कभी तो उसका उल्टा फल भी मिल जाता है। इसलिये किसी भी मंत्र को जपने से पहले विधिनिषेध की जानकारी जरूरी है। किसी योग्य संत की देखरेख में, स्नान के बाद पवित्र वस्त्र धारणकर पवित्र स्थान में एक आसन से बैठकर अनुष्ठानिक ढंग से जप की विधि से मंत्रों का जप करना चाहिये।

ये तो रही मंत्र जप की बात, अब हम नाम जप कैसे करें इसकी चर्चा करते हैं। नाम जप में कोई भी विधि-विधान नहीं होता। हम अपवित्र अवस्था में भी नाम जप कर सकते हैं। नाम जप में कोई नियम नहीं है। इसमें तो बस एक ही नियम है कि जिस किसी प्रकार भी मुख से नाम जप होता रहे। प्रातः उठते ही नाम जप शुरू कर दें। जप करते करते शौच, स्नान करें, जप करते-करते पूजा करें स्नान से पहले भी जप करते रहें, स्नान के समय व बाद भी जप करते रहें। हम दिन भर जो - जो भी कर्त्तव्य कर्म करें सभी नाम जप करते हुए करें। तीन अवस्थाओं में जीभ नाम जप नहीं कर सकती। खाते समय, बात करते समय व सोते समय इन तीन अवस्थों को छोड़कर शेष समय जीभ खाली रहती है। ये समय नाम जप के लिये ही होता है। अगर कोई इस खाली समय का सदुपयोग नाम जप में करे तो वो निहाल हो जाए।

श्रद्धा हो या न हो, मन लगे या न लगे, नाम जप करना ही चाहिये। हमारे अन्तःकरण में अनेक जन्मों के कलुषित संस्कार ही नाम में श्रद्धा नहीं होने देते और न ही मन को लगने देते हैं। अन्तःकरण का मेल नाम जप से ही धुलेगा नाम जप से ज्यों-ज्यों मैल साफ होता जाएगा त्यों-त्यों श्रद्धा बलवती होती जायेगी फिर मन भी लगने लगेगा। कई लोग सोचते हैं, कहते भी हैं कि जब मन नहीं लगता तो खाली राम राम जपने से क्या लाभ ? मानो या ना मानो लाभ तो होता ही है। हाँ! इतना अन्तर तो है, मन लगाकर नाम जपेंगे तो ज्यादा लाभ होगा, बिना मन के जपेंगे तो कम लाभ होगा। जैसे बीमार व्यक्ति की भोजन में रुचि नहीं होती फिर भी भोजन करने पर बिना रुचि के भी लाभ तो होगा ही। हाँ! अब बिना रुचि के भोजन करो फिर बीमारी ठीक होने के बाद रुचि भी हो जायेगी। मन्त्रों का जप स्नान के बाद पवित्र होकर जपें। शेष समय दिन भर प्रभु के नाम का जप करते रहें।


नाम जप के प्रकार
जप की तीन विधियाँ शास्त्रों में बताई गई हैं वाचिक, उपांशु एवं मानसिक।
वाचिक जप – जो बोलकर जपा जाए, जिसको दूसरे भी सुन सकते हैं, वह वाचिक जप है।
उपांशु जप– जिस जप में जीभ व होंठ तो हिलते हों लेकिन दूसरा बिल्कुल पास होने पर भी सुन न सके, वह उपांशु जप है।
मानसिक जप – जिसमें जीभ व होंठ बिल्कुल भी न हिलते हों, जो मन ही मन किया जाए वह मानसिक जप है।

विधि यज्ञाज्जपयज्ञो विशिष्टो दशभिर्गुणेः।
उपांशु स्याच्छतगुणः सहस्रो मानसः स्मृतः।। –( मनु स्मृति अ. 2,श्लोक 85 )

विधि यज्ञ (अग्नि होत्रादि) से वाचिक जप दस गुना बढ़कर है तथा उपांशु जप विधि यज्ञ से सौ गुना व मानसिक जप विधि यज्ञ से हजार गुना बढ़कर है अर्थात् वाचिक जप से दस गुना उपांशु व उपांशु से दस गुना मानसिक जप है। मानसिक जप से भी बहुत अधिक महिमा 'नाम संकीर्तन' की है। जिसको जप की जो विधि अनुकूल पड़ती हो, उसको उस विधि का ही पालन करना चाहिये।