POINT OF VIEW - 14 in Hindi Anything by ADRIL books and stories PDF | दृष्टिकोण - 14 - BOUNDARY

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दृष्टिकोण - 14 - BOUNDARY

BOUNDARY

 

कभी-कभी दयालुता के कारण लोग हमारा शोषण करते हैं, और यहीं पर हमें स्पष्ट सीमाएँ स्थापित करने की आवश्यकता होती है..

हम करते क्या है ?
अपने आसपास चारों और एक एक सीमा बनाते हुए हम खुद ही उस सीमाओं के अंदर कैद हो कर रहे जाते है,.. - और उसे boundaries नहीं कहे सकते,..

सीमाएँ वो नहीं है जो हमें दुनिया से अलग करे, बल्कि यह क्षितिज की तरह होनी चाहिए जहां आपका निजी स्थान हो,..

Boundaries ये तय करती है कि हमारी सीमा कहां समाप्त होती है और लोगों की कहां से शुरू होती हैं।

 

Boundaries तय करना कोई बुरी बात नहीं है, और इसकी शुरुआत आत्म जागरूकता से होती है,..

हमें क्या चाहिए और क्या नहीं ये हम बिना किसी के प्रभाव में आए तब देख पाते है जब हमने अपनी और अपनों की कुछ सीमाए तय कर के रख्खी होती है,..

सीमाएँ भूमिकाओं और जिम्मेदारियों को परिभाषित करने में मदद करती हैं। इतना ही नहीं तय की हुई सीमाओं की वजह से हम organized and efficient environment आसानी से बना सकते है,..


यदि घर के बाहर तूफ़ान उठा हो तब जिस तरह आप घर के अंदर रहकर घर में रौशनी करते हो, ठीक उसी तरह Boundaries सेट करने से आपका अपना ( अपने ही अंदर ) घर जैसा ही एक एरिया तय होता है और उस से आप को पता लगता है की आप को आपके कठिन समय में अपने अंदर रौशनी करनी है, और आप को अपने अंदर झांकना है,..

Boundaries ना होने से आपके कठिन वक्त में बाहर की आवाजे ज्यादा आने लगती है,.. जो आपको कन्फ्यूज़ कर देती है, की आपको क्या करना चाहिए और आपके लिए क्या सही होगा,.. आपको अपनी clarity नहीं मिलती,..

बड़ी ही महत्व पूर्ण होती है Boundaries, क्युकी, उस से हमें अपनी जरूरतों और दुनिया की डिमांड का भेद समझ आता है,.. और इसीलिए जब हम ये भेद समझते है हम खुद को वो करने से बचाते है जो दिनिया वाले हम से करवाना चाहते है जिसमे कभी कभी हमारा अपना कोई फायदा ही नहीं होता,..


हम हमेशा सोचते है की किसी को किसी चीज के लिए मना करना शिष्टाचार नहीं होता,.. कुछ करना ना भी चाहे तब भी हम कभी कभी किसी को मना नहीं कर पाते,.. और वो इसलिए क्यूकी हम बड़े ही उस तरह हुए है जहा हमें सिखाया गया है, मना मत करो,... मगर ये नहीं सिखाया गया की मना करने से आप खुद की इच्छाओं के बारे में भी सोचते हो,..

 

अपनी सीमाए खुद तय करनी पड़ती है. इस से सामने वाले को ये स्पष्ट सन्देश मिल जाता है की आप अपने वक्त की अपने इमोशन की और अपने काम की वेल्यू करते हो,.. जब आप अपनी सीमाए बनाते हो तब अनजाने ही सही पर सामने वाले के लिए ये सन्देश भेजते हो की आप भी अपनी सीमाए तय करे जिसकी हम उतनी ही वेल्यू करेंगे जितनी अपनी Boundaries की करते है,.. और इस से आखिरकार हमारे सारे रिश्ते भी अच्छे बनने लगते है और हमारे साथ डील करना भी सब को आसान लगने लगता है,..

 

हाँ, ये मुमकिन है, की जो लोग आपसे "हां" सुन ने के आदि हो गए है उनको आप की तय की हुई Boundaries पसंद नहीं आएगी और वो आपसे उम्मीदें भी नहीं छोड़ेंगे,.. हो सकता है वो आप को Guilty भी फील कराए,.. मगर आप का डटा हुआ व्यवहार आपके द्रढ़ निर्णय का संदेशा दे ही देगा,... और तो और इस से आप खुद का रिस्पेक्ट भी बढ़ाओगे,..

स्पष्ट सीमाओं के बिना, उन लोगों के प्रति नाराजगी पैदा होने का जोखिम है जो अनजाने में आपकी सीमाओं को पार कर सकते हैं,..



सीमाए तय करने का काम एक दिन का भी नहीं है,.. Setting boundary is ongoing process.

बचपन में तय की हुई सीमाए जवानी में और जवानी में तय की हुई boundaries बुढ़ापे में बेकार महसूस हो ये मुमकिन है, और ये भी हो सकता है जो पिछले साल तय की हुई boundaries की इस साल कोई जरुरत ही ना हो,..

आप को अपनी तय की हुई सीमाए नियमित रूप से जाँचनी पड़ती है,.. और इसे अपने नए नए अनुभवों के अनुरूप फिर से परिवर्तित भी करनी पड़ती है,..

 

ये हमेशा याद रहे - की -
Boundaries तय करने का ये मतलब कभी भी नहीं है की आप उदार या दयालु नहीं है,... बल्कि सीमाए तय करने से आप दुनिया को अपना जो कुछ भी दोगे वो प्रामाणिक रूप से दोगे जो की लम्बे समय तक टिकेगा,...

 

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