Ek thi Nachaniya - 26 in Hindi Women Focused by Saroj Verma books and stories PDF | एक थी नचनिया - भाग(२६)

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एक थी नचनिया - भाग(२६)

जुझार सिंह अपने गाँव पहुँच गया और इधर रामखिलावन,मालती,दुर्गेश और माधुरी भी अपने इलाके पहुँचें,वें अपने गाँव नहीं गए, वें सभी नहीं चाहते थे कि जुझार सिंह को उनके बारें में कुछ भी पता चले क्योंकि जुझार सिंह रामखिलावन को तो पहचानता ही था ,वें लोग वहाँ पहुँचे जहाँ खुराना साहब का थियेटर था और वें लोग खुराना साहब के बंगले में बने सर्वेंट क्वार्टर में ही रहते थे,
वापस लौटने से पहले माधुरी शुभांकर को बताकर आई थी कि वो कलकत्ता छोड़कर जा रही है,वो तो कुछ ही दिनों के लिए कलकत्ता आई थी,थियेटर में काम करने के लिए,तब शुभांकर ने भी माधुरी को बताया कि वो भी कुछ दिनों के लिए अपने पुश्तैनी गाँव जा रहा है अपनी बहन यामिनी और बाबूजी के साथ और जब दोनों ने बताया कि वें दोनों बुंदेलखण्ड के अलग अलग इलाको में ही जा रहे हैं तो शुभांकर माधुरी से बोला....
"अपना पता बताती जाओ,हो सकता है मैं कभी तुमसे मिलने आ सकूँ"
तब माधुरी बोली....
"नहीं! शुभांकर बाबू! मैं अपने थियेटर के मालिक की मर्जी के बिना उनका नाम पता आपको नहीं बता सकती,मैं और मेरा परिवार वैसें भी उनकी दया पर पल रहा है,अगर मैंने उनकी इजाज़त के वगैर कोई ऐसा काम कर दिया जो उन्हें नागवार गुजरा तो फिर मैं उनकी नजरों में गिर जाऊँगी,उन्होंने ही मुझे इस काबिल बनाया है,इसलिए मैं ऐसा कुछ नहीं करूँगी जिससे उनको दुख पहुँचे",
"ठीक है तो फिर तुम मेरे गाँव का पता ठिकाना नोट कर लो,अगर कभी तुम्हारा जी चाहे तो तुम मुझसे मिलने आ जाना",शुभांकर बोला....
और इस तरह से दोनों अलग हो गए थे....
इधर मोरमुकुट सिंह ने अस्पताल आकर फिर से अपनी डाक्टरी सम्भाल ली और वो इतने दिनों बाद जाकर कस्तूरी से मिला,उसने जैसे ही कस्तूरी के पास जाकर कहा....
"देखो मैं आ गया कस्तूरी!",
तो कस्तूरी पहले तो उसे देखकर खुश हुई और फिर रूठकर दिवार की ओर मुँह करके खड़ी हो गई,तब उसके रवैए को देखकर मोरमुकुट ने उसके जाकर पूछा...
"तुम मुझे देखकर खुश नहीं हुई कस्तूरी!",
"नहीं",कस्तूरी बोली...
"लेकिन क्यों"?,मोरमुकुट सिंह ने पूछा...
"तुम तो कह के गए थे कि जल्दी आ जाओगे,लेकिन तुम तो इतने दिनों बाद लौटे हो",कस्तूरी बोली...
"हाँ! कस्तूरी ! मुझे देर तो हो गई है,मुझे माँफ कर दो",मोरमुकुट सिंह बोला...
"तुम्हारे दोस्त क्या ज्यादा बीमार थे जो लौटने में इतनी देर हो गई",कस्तूरी ने पूछा...
"हाँ! कुछ ऐसा ही समझ लो",मोरमुकुट सिंह बोला....
"तो कोई बात नहीं अब मैं तुमसे नाराज नहीं हूँ",कस्तूरी बोली...
"सच में! तुम अब मुझसे नाराज़ नहीं हो ना!",मोरमुकुट सिंह ने पूछा...
"नहीं! डाक्टर बाबू!अब मैं तुमसे नाराज़ नहीं हूँ,मेरी तरह और लोगों को भी तो तुम्हारे इलाज की जरूरत पड़ती है",कस्तूरी बोली...
"तुम बहुत समझदार हो कस्तूरी!",मोरमुकुट सिंह बोले....
"वो सब ठीक है लेकिन तुम मेरे लिए हरी चूनर और हरी चूड़ियाँ लाए हो ना!",कस्तूरी ने पूछा...
"हाँ....हाँ बाबा! दोनों लाया हूँ,ये देखो"मोरमुकुट ने चूनर और चूड़ियों के दोनों पैकेट कस्तूरी के हाथ में थमाते हुए कहा........
और फिर कस्तूरी दोनों पैकेट लेकर झट से अपने बिस्तर पर जा बैठी और फौरन ही दोनों पैकेट खोलकर उसने चूनर और चूड़ियाँ निकाल ली,फिर चूड़ियों को अपने हाथों में डालकर और हरी चूनर ओढ़कर उसने मोरमुकुट सिंह से पूछा...
"मैं कैसी लगती हूँ डाक्टर बाबू!",
"बहुत सुन्दर लेकिन अगर तुम अपने ये रुखे बाल सँवार लो और तब ये चूनर ओढ़ो और कलाइयों में चूड़ियाँ पहनो तो और भी सुन्दर दिखोगी",डाक्टर मोरमुकुट सिंह बोले....
"तो डाक्टर बाबू! तुम ही मेरे बाल सँवार दो ना! यहाँ ललिता तो है नहीं है जो मेरे बालों का जूड़ा बना देती और मुझसे तो अपने बाल सँवरते ही नहीं है",
और ऐसा कहकर कस्तूरी बिस्तर से उठी और उसने मोरमुकुट सिंह के हाथ में कंघा थमा दिया फिर वो फर्श पर बैठ गई और मोरमुकुट से बिस्तर पर बैठकर उसके बाल सँवारने को कहा, अब मजबूरी में मोरमुकुट सिंह को कस्तूरी के बाल सँवारने पड़े,लेकिन उसे भी लड़कियों के बाल सँवारने कहाँ आते थे,ना जूड़ा बनाना आता था लेकिन कस्तूरी की जिद के आगें उसकी बिलकुल नहीं चल रही थी,तभी कस्तूरी के कमरे में नर्स ललिता आई और मोरमुकुट सिंह से बोलीं....
"ये क्या हो रहा है डाक्टर साहब?",
"और क्या हो रहा है,मेरे बाल सँवार रहें हैं डाक्टर बाबू!",कस्तूरी बोली...
"उन्हें क्यों परेशान कर रही हो,तुम्हारे बाल सँवारने के सिवाय और भी बहुत से काम हैं उनके पास",नर्स ललिता बोली...
"वो मेरे डाक्टर बाबू हैं,इसलिए मैं उनसे अपना कोई भी काम करवा सकती हूँ",कस्तूरी बोली....
"सुनो! डाक्टर साहब तुम्हारे गुलाम नहीं है जो तुम अपना कोई भी काम उनसे करवा सकती हो",नर्स ललिता बोली....
अब नर्स की बात सुनकर कस्तूरी तुनककर बोली....
"देखा डाक्टर बाबू! ये मुझसे कैसें बात करती है,तभी ये मुझे बिलकुल अच्छी नहीं लगती और आप कहते हैं कि ललिता नर्स को चुड़ैल मत कहा करो,उससे ठीक से बात किया करो"
"हाँ...हाँ...ठीक है मैं चुड़ैल हूँ,अब लाओ मैं तुम्हारे बाल सँवार देती हूंँ,डाक्टर साहब ने ये सब काम कभी नहीं किए होगें,ये काम तो हम महिलाओं के होते हैं",ललिता बोली...
"हाँ! नर्स! आप ही कस्तूरी के बाल सँवार दीजिए,मैं उतनी देर से जूझ रहा हूँ कस्तूरी के बालों से लेकिन मुझसे नहीं सँवर रहे हैं",डाक्टर मोरमुकुट सिंह बोले....
"ठीक है तो तुम ही सँवार दो मेरे बाल अगर डाक्टर बाबू नहीं कर पा रहे हैं तो",कस्तूरी बोली....
फिर नर्स ललिता ने कस्तूरी के बाल सँवारे,इसके बाद नर्स ललिता कस्तूरी के कमरें से जाने लगी तो कस्तूरी बोली....
"ये तो देखती जाओ,मेरी हरी चूनर और हरी चूडियांँ,डाक्टर बाबू लाएँ हैं मेरे लिए कलकत्ता से,तुमने उस दिन मुझे अपनी हरी चूड़ियाँ नहीं दी थी ,इसलिए मैंने डाक्टर बाबू से मँगा लीं,अब तुम्हें मेरी चूड़ियाँ देखकर जलन हो रही होगी है ना!"
कस्तूरी की बात सुनकर पहले नर्स ललिता मुस्कुराई और फिर उसने डाक्टर साहब की ओर देखा तो डाक्टर साहब ने इशारा कर दिया कि तुम कस्तूरी से कह दो कि तुम्हें उसकी चूड़ियाँ और चूनर देखकर सच में जलन हो रही है और ललिता ने ऐसा ही नाटक करने की कोशिश की जैसे उसे कस्तूरी से ईर्ष्या हो रही है,उस समय कस्तूरी के चेहरे पर एक अलग सी मुस्कुराहट थी और वही मुस्कुराहट डाक्टर मोरमुकुट सिंह उसके चेहरे पर देखना चाहते थे,तभी ललिता कस्तूरी से बोली.....
"अब तुम्हारे बाल भी सँवर गए,तुमने अपनी हरी चूनर ओढ़कर और हरी चूड़ियाँ पहनकर मुझे जला भी दिया,तो अब अच्छी बच्ची की तरह ये दवाई भी खा लो"
"आखिर तुम फिर मेरी खुशियों के बीच में दवाई ले ही आई,मैं खुश थी इसलिए तुम्हें मेरी खुशी नहीं देखी जा रही थी है ना!,", कस्तूरी बोली....
"ऐसी बात नहीं है कस्तूरी! अब तुम्हें ठीक होना है तो दवा तो खानी पड़ेगी ना!",डाक्टर मोरमुकुट सिंह बोले....
"अब तुम कहते हो डाक्टर बाबू तो खा लेती हूँ दवाई,ये कहती तो ना खाती",
और ऐसा कहकर कस्तूरी ने दवाई खा ली और फिर नर्स ललिता उसके कमरें से जाने लगी तो मोरमुकुट सिंह ने नर्स ललिता से कहा....
"देखिए!नर्स! यदि किसी जुझार सिंह का फोन किसी विचित्रवीर के लिए आए तो मुझे बुला लीजिएगा और प्यून से भी यही बात बता दीजिएगा",
मोरमुकुट सिंह ने नर्स ललिता से अपनी बात कही और ललिता वहाँ से चली गई तो कस्तूरी डाक्टर बाबू से बोली....
"जुझार सिंह.....ये नाम मैंने सुना है,लेकिन याद नहीं आ रहा",
ये सुनकर मोरमुकुट सिंह परेशान हो उठा कि उसने बिना सोचे समझे कस्तूरी के सामने जुझार सिंह का नाम क्यों लिया.....

क्रमशः....
सरोज वर्मा.....