Towards the Light – Memoir in Hindi Moral Stories by Pranava Bharti books and stories PDF | उजाले की ओर –संस्मरण

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उजाले की ओर –संस्मरण

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सभी मित्रों को

स्नेहिल नमस्कार

"भई, त्योहारों के इस सुंदर मौसम में तुम्हारे चेहरे का रंग क्यों उड़ा है ?"

"अरे ! कभी नहीं सुनती मेरा, आपकी बहू ---"उसने अपने मन की भड़ास निकालने की कोशिश की |

उमेश को देखते ही मैंने पूछ लिया था और उसने मुझे ऊपर वाला उत्तर दिया था | वैसे तो हर समय ही आनंद में रहना चाहिए लेकिन त्योहार के दिनों में तो आनंद और भी खिल-खुल जाता है | फिर छोटी-छोटी बातों में आखिर मन मुटाव क्यों?

कई लोग छोटी-छोटी बातों में ऐसे नाराज़ हो जाते हैं जैसे न जाने क्या पर्वत टूट गया हो|माना, क्रोध भी संवेगों में से एक संवेग है जो स्वाभाविक रूप में मानव-मन के अन्य संवेगों के साथ जुड़ा हुआ है | लेकिन उस पर अधिक ध्यान केंद्रित करने से स्वयं को ही अधिक परेशानी होती है | इसलिए यदि यह प्रयास हो कि हम बात को आया-गया कर दें, न कि उसे अपने मन में चिपकाकर बैठ जाएँ |

हम भारतीय जहाँ रंग बिरंगे त्योहारों में रंगे रहते हैं, भीगे रहते हैं वे सब किसी न किसी रूप में एक उदेश्य व सार्थक संदेश युक्त होते हैं।

त्याग से शक्ति तक और धन से विद्या तक चलने वाले दिन होते हैं त्योहार के ! नवरात्रि भी उन्हीं सशक्त त्योहारों का एक सुंदर सोपान है । यानी नवरात्र की भीनी भीनी सुगंध में ये धरती नहा चुकी होती है। शक्ति के सभी स्वरूपों को एकीकृत करने वाला त्योहार हमारे घरों की चौखट तक पहुंच कर हमें एक भीनी सुगंध व ऊर्जा से भर जाता है और अब उसके बाद आता है जगमग करती, चारों दिशाओं में मुस्काती दीपकों से निकलकर मन के अंधेरे में उजास फैलाती दीपावली में माँ लक्ष्मी की विशेष अनुकंपा का त्योहार !

नवरात्र का प्रत्येक दिन हम सभी के लिए एक वर्कशॉप की तरह होता है, जिससे मन में पवित्रता आती है, सत्य अपना उचित स्थान पाता है, न्याय सम्मान पाता है, धर्म विशाल होकर शुद्धता की ओर बढ़ता है। नवरात्र केवल गुजर जाने वाले दिनों का नाम नही है, बल्कि खुद को निखारने वाला समय है।

नवरात्र को यूँ ही ना गुजर जाने दिया जाय बल्कि इसके प्रत्येक दिन को अपनी एक बुराई को मिटानेऔर अपने अंदर एक अच्छाई का बीज बोने का दिन बनाया जाना चाहिए। एक दूसरे से नफ़रत मिटा दें, प्रेम को प्रमुख स्थान दें, त्याग को अपना लें और अहंकार को दूर रख सकें, ये ही शिक्षा और सन्देश है लेकर आते हैं हमारे त्योहार !

'असत्य पर सत्य की विजय'

दशहरा आत्म-खोज और जीवन के रहस्यों को अपनाने की यात्रा का सुंदर समय व्यतीत हुआ ।

इसके बाद आता है दशहरा ! इस शब्द की उत्पत्ति- दशहरा या दसेरा शब्द 'दश'(दस) एवं 'अहन' से बना है। अर्थात् दशहरा का पर्व दस प्रकार के विकारों से मुक्ति का पर्व है :--

यह हमें काम, क्रोध, लोभ, मोह, मद, मत्सर, अहंकार, आलस्य, हिंसा और चोरी जैसे अवगुणों को छोड़ने की प्रेरणा देता है।

अब हम सब अगले पड़ाव अर्थात् दीपकों की रोशनी की ओर अग्रसर होते हैं जहाँ हम अंधकार से प्रकाश की ओर अग्रसर होते हैं | माँ लक्ष्मी की अनुकंपा के बिना हम एक कदम भी अग्रसर नहीं हो पाते | हमारा जीवन माँ लक्ष्मी की अनुकंपा से चलता है तो हमारी बुद्धि को माँ वीणापाणि सुबुद्धि में परिवर्तित करती हैं |

ईश्वर हम सभी को अच्छा स्वास्थ, सद्बुद्धि, सुख, शांति और समृद्धि प्रदान करें।

जिस प्रकार माँ वीणापाणि सबको बुद्धि की शुद्धि का आशीष प्रदान करें उसी प्रकार माँ लक्ष्मी सबको धन-धान्य से भरती रहें जिससे कोई भी रोटी, कपड़ा और मकान के अभाव में न रहे। प्रत्येक की आवश्यकताएँ सहजता से पूर्ण होती रहें। हर घर में रोशनी हो और हम राम-राज्य को एक बार फिर से जीएँ।

सभी मित्रों को को दीपोत्सव की हार्दिक स्नेहिल मंगलकामनाएँ।

 

आप सबकी मित्र

डॉ प्रणव भारती