Main Galat tha - Part - 5 in Hindi Moral Stories by Ratna Pandey books and stories PDF | मैं ग़लत था - भाग - 5

Featured Books
  • तुझी माझी रेशीमगाठ..... भाग 2

    रुद्र अणि श्रेयाचच लग्न झालं होत.... लग्नाला आलेल्या सर्व पा...

  • नियती - भाग 34

    भाग 34बाबाराव....."हे आईचं मंगळसूत्र आहे... तिची फार पूर्वीप...

  • एक अनोखी भेट

     नात्यात भेट होण गरजेच आहे हे मला त्या वेळी समजल.भेटुन बोलता...

  • बांडगूळ

    बांडगूळ                गडमठ पंचक्रोशी शिक्षण प्रसारण मंडळाची...

  • जर ती असती - 2

    स्वरा समारला खूप संजवण्याचं प्रयत्न करत होती, पण समर ला काही...

Categories
Share

मैं ग़लत था - भाग - 5

विवाह संपन्न होने के बाद दूसरे दिन विदाई के पहले दोपहर के भोजन का समय हो रहा था। सभी बाराती खाने के लिए बैठ गए थे। उनके समाज में ऐसी प्रथा थी कि विवाह के बाद जब लड़का पहली बार खाना खाने बैठता है तब उसे कुछ ना कुछ नेग देना होता है। कभी-कभी लड़का अपनी मनचाही वस्तु की मांग भी करता है और नेग मिलने के बाद ही वह खाना खाता है। यदि उसकी इच्छा पूरी ना हो तो वह खाने से इनकार कर देता है और ऐसा हो यह तो कोई भी नहीं चाहता। यहाँ तो ऐसी किसी भी बात का, किसी को कोई तनाव था ही नहीं। सब कुछ राजी ख़ुशी से चल रहा था।

खाने की थाली पर बैठा छोटे लाल अभी इंतज़ार कर रहा था कि तभी भले वहाँ आया और उसकी थाली से ही मिठाई का एक टुकड़ा तोड़ कर अपने हाथों से पहला कौर छोटे को खिलाने लगा।

जैसे ही भले राम का हाथ छोटे के मुँह तक आया, वैसे ही छोटे ने भले राम का हाथ पकड़ कर उसे रोकते हुए कहा, "अरे भले ऐसे ही सूखा-सूखा भोजन करा देगा? कुछ नेग नहीं देगा मुझे? घर की मुर्गी दाल बराबर, यही समझ रहा है ना तू?"

भले चौंक गया लेकिन फिर इस बात को मज़ाक समझते हुए कहा, "अरे बोल ना यार तेरे लिए तो मेरी जान भी हाज़िर है।"

"अरे जान किसको चाहिए भले ..."

"अरे तो फिर बोलना क्या चाहिए?"

"देगा जो मांगूँगा ...?"

"हाँ-हाँ तू बोल तो सही।"

"तो फिर भले हमारी किराने की पूरी दुकान मेरे नाम कर दे।"

यह शब्द सुनते ही सारे बाराती, घराती सब चौंक गए और एक दूसरे की तरफ़ देखने लगे।

छोटे लाल के बाबूजी के कानों में यह शब्द पड़ते ही उनका गुस्सा अपनी पराकाष्ठा पर आ गया।

वह उठ कर उस तरफ़ जाने ही वाले थे कि केवल राम ने उनका हाथ पकड़ कर कहा, "रुक जा मुन्ना होने दे जो हो रहा है, यह दो दोस्तों के बीच की बात है। हमें शांत रहना चाहिए।"

मुन्ना रुक गया। भले राम के आश्चर्य का ठिकाना ना था। यह बड़े ही ज़ोर का झटका था और ज़ोर से ही लगा था।

"अच्छा 2 मिनट रुक," कहते हुए भले घर के अंदर जाकर दुकान के काग़ज़ लेकर बाहर आ गया।

अपनी जेब से पेन निकालकर भले राम कुछ भी लिखे उससे पहले ही छोटे लाल उठकर उसके पास आया और उसके हाथ से पेन लेकर फेंकते हुए कहा, "तू पागल हो गया है क्या भले? मज़ाक भी नहीं समझता। मैंने तो तेरा दिल देखने के लिए ऐसे ही बक दिया था। तूने तो अपनी बहन मुझे दे दी है उसके आगे, इस दुकान की क्या क़ीमत है।"

यह सुनते ही मुन्ना लाल ने एक गहरी सुकून की साँस ली। भले ने छोटे को अपने सीने से लगा लिया।

मंडप में जो शांति वाला सन्नाटा छाया था वह हँसी ख़ुशी में वापस लौट आया। बंद ढोल की आवाज़ ने पुनः वातावरण को ख़ुशी से भर दिया। लोगों के बीच आपस में एक बार फिर छोटे लाल और भले राम की दोस्ती की बातें होने लगीं।

उधर केवल राम ने मुन्ना लाल से कहा, "देखा मुन्ना यदि मैं मना नहीं करता तो तू उनके बीच चला ही जाता।"

"हाँ यार अच्छा हुआ जो तूने मुझे रोक लिया।"

भले ने अपने हाथों से छोटे को एक कौर खिलाते हुए कहा, "अरे छोटे तूने तो सचमुच मुझे डरा ही दिया था।"

छोटे ने मुस्कुराते हुए अपनी थाली से मिठाई का एक टुकड़ा उठाकर भले को खिलाया।

उसके बाद सभी ने खाना शुरू कर दिया और यह रस्म भी पूरी हुई।

 

रत्ना पांडे, वडोदरा (गुजरात)

स्वरचित और मौलिक

क्रमशः