Shakunpankhi - 26 in Hindi Moral Stories by Dr. Suryapal Singh books and stories PDF | शाकुनपाॅंखी - 26 - केवल क्रोध से काम न चलेगा

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शाकुनपाॅंखी - 26 - केवल क्रोध से काम न चलेगा

36. केवल क्रोध से काम न चलेगा

हरिराज और स्कन्द एक घने जंगल में बैठे विचार कर रहे थे। उनके साथ थोड़े से सैनिक थे। शेष को अलग अलग स्थानों पर गुप्त रूप से रहने के लिए कहा गया था। सूचना मिलते ही सब को इकट्ठा होना था।
चर्मण्वती का बीहड़ निकट था जिसमें पूरी की पूरी सेना ऐसे गुम हो जाती‌ जैसे कुछ हुआ ही न हो। कोसों लम्बे चौड़े सघन वन में दिन में ही डर लगता ।
'गोविन्द और कन्हकुमार को मोहरा बनाया गया है। वे बच्चे हैं, उन्हें इतनी समझ नहीं है कि कुछ सार्थक सोच सकें।' महादण्डनायक स्कन्द हरिराज को समझाते रहे ।
'पर चाहमान टूटना जानता है, दास बनना नहीं।' हरिराज ने अत्यन्त बेचैनी से कहा।
धार्मिक आस्था केन्द्र टूट रहे हैं। मंदिर तोड़कर मस्जिद बनाई जा रही है। इस्लाम कबूल न करने पर हजारों कत्ल किए गए। आतंक फैलाया जा रहा जिससे लोग यह सोचने लगें कि अब कुछ भी नहीं हो सकता।'
स्कन्द बताते रहे ।
"कैसे नहीं हो सकता, महादण्डनायक ? सत्ता पर कब्जा कर जनता की धार्मिक आस्था पर भी कब्ज़ा कर लेना किस न्यायशास्त्र का विधान है?" हरिराज की आँखें आरक्त हो उठी थीं। 'हमें तुरुष्कों को मार भगाना ही है?" 'पर उसके लिए तैयारी आवश्यक है। क्रोध से ही काम न चलेगा।'
स्कन्द की वाणी गम्भीर थी।
'अब शंख फूँको । पल पल की देर मुझे उद्वेलित कर रही है।'
'जतवन ने विद्रोह किया था न? उसे जन सहयोग भी मिला पर हुआ क्या? मुट्ठी भर लोग बलिदान तो हो सकते हैं पर विजय नहीं पा सकते। विजय के लिए उपयुक्त रणनीति अपनानी होगी। देख चुके हो, डोर शासक चन्द्र सेन ने छक्के छुड़ा दिए थे कुतुबुद्दीन के। अगर उस लालची अजयपाल ने उत्कोच लेकर कुतुबुद्दीन की सहायता न की होती तो आज स्थिति कुछ दूसरी होती । घर घर में आग सुलग रही है। कोई अपनी आस्था, अपने प्रतीकों को ध्वस्त होते नहीं देखना चाहता। जो सोचते थे कि कोई भी राजा हो हमारे काम धन्धे चलते रहेंगे, वे भी अब विद्रोही हो रहे हैं। यही समय है उनसे सहयोग लेने का। चाहमान नरेश के काल में जिस तरह स्वतंत्र घूमते थे अब वह संभव नहीं रहा। बालिकाएँ कब बाँदियों में बदल जाएँ, इसका क्या ठिकाना ? जन की पीड़ा उभर रही है। एक बार विद्रोह करके देख चुके हो। छिटपुट प्रयास से कुछ नहीं होना है। कोई भी समाज अपनी संस्कृति को मिटते नहीं देखना चाहता। हम लड़ेंगे और विजयी होंगे। आप व्यग्र न हों। हमें सेना खड़ी करने दें।' स्कन्द बोलते रहे।
'मेरे मन में जो उबल रहा है, मुझे बैठने नहीं देता। यह बात सच है कि बिना पर्याप्त तैयारी के एक बार हमें मैदान छोड़ना पड़ा। उसी के बाद तो कुतुबुद्दीन के हाथों लगे वे तीन सोने के तरबूज जिसे चाहमान नरेश ने कुशल शिल्पी से बनवाया था । 'हरिराज की व्यथा फूट पड़ी थी ।
'स्थान स्थान पर विद्रोह हो रहे हैं । कुतुबुद्दीन को सेना लेकर दौड़ना पड़ रहा है। एक दिन भी वह शान्ति से बैठ नहीं पा रहा है। ये घटनाएँ हमें सम्बल प्रदान कर रही हैं।' स्कन्द शान्त भाव से बताते रहे। इसी बीच शिविर प्रहरी ने आकर सूचित किया, 'महाराज एक भट आपसे मिलना चाहता है। उसका आगमन दिल्लिका से हुआ है ।'
'ले आओ उसे हरिराज ने कहा।
क्षण भर बाद ही प्रहरी के साथ भट ने आकर प्रणाम किया।
'कहो भट, दिल्लिका का क्या समाचार है?" हरिराज ने प्रश्न किया।
'महाराज', कहते ही भट बिलख पड़ा।
'कहो, क्या कोई नई विपत्ति ?"
'विपत्ति ही है महाराज। यह तो आप जानते ही हैं कि कन्हकुमार का वध कर कुतुबुद्दीन शासक बन गया है। मंदिरों के ध्वस्त होने और बालिकाओं के अपहरण से कुमार चिन्तित हो उठे थे। उनके आहान पर जनता शाह के विरोध में खड़ी हो गई। सुदूर गाँवों से भटों का ताँता लग गया। जाट, गूजर सभी ताल ठोंक कर मैदान में आ गए थे। सुल्तान के सिपाहियों को भागना पड़ा। पर कुतुबुद्दीन एक बड़ी सेना लेकर आ गया। भयंकर युद्ध हुआ पर कन्हकुमार के गिरते ही सब कुछ उलट गया महाराज । लुट गया सब कुछ। दिल्लिका तार तार हो रही है। कुछ कीजिए महाराज। नगर वासी काँप रहे हैं। पर भाग कर कहाँ जाएँ? सुल्तान के सैनिक पिण्ड नहीं छोड़ते।' कहते हुए सैनिक पुनःफूट पड़ा।
'प्रतिशोध की ज्वाला धधक रही महाराज घर घर केवल आस्था बचाने की बात होती है। घर-परिवार सब कुछ छोड़कर कितने ही लोग दौड़ रहे हैं। उन्हें दिशा दीजिए महाराज ।' कहकर भट धरती पर गिर पड़ा।
'प्रहरी, भट को ले जाओ, भोजन की व्यवस्था करो।' प्रहरी भट को उठाकर ले चला । 'देख रहे हैं महादण्डनायक जन जन आतंकित है पर आक्रोश भी कम नहीं है।' 'भट का कथन सत्य है। गुप्तचर भी जन आक्रोश की बात करते हैं। पर आक्रोश प्रतिरोधक क्षमता में बदल सके, यह आवश्यक है । दिल्लिका पर कुतुबुद्दीन अब स्वयं शासन करने लगा है।' स्कन्द शान्त भाव से बताते रहे। "पर धैर्य की भी सीमा होती है। हम लोग कब तक यों ही छिपकर योजनाएँ बनाते रहेंगे?' हरिराज की उत्तेजना कम नहीं हो रही थी। उनका अंग अंग फड़क रहा था।
तभी एक गुप्तचर ने आकर अभिवादन किया ।
स्कन्द ने उसे देखकर कहा, 'कहो चंचुक, कोई नया समाचार ?' 'महाराज जनता उद्वेलित है। अजयमेरु के लोग भी महाराज गोविन्द से असंतुष्ट हो रहे हैं।'
"क्यों?"
'महाराज कुछ भी करने में असमर्थ हैं। जनता पर जो भी अत्याचार होता है उसे महाराज देख सकते है पर कर कुछ भी नहीं सकते। सुल्तान के सिपहसालार जो चाहते हैं, कर लेते हैं। कोई भी सुरक्षित नहीं है महाराज ।'
'क्या गोविन्द को जन आक्रोश का कोई पता नहीं है?"
'उन्हें बिल्कुल पता नहीं है महाराज। जनता के दुःख दर्द में शामिल होने का अवसर ही कहाँ मिलता है? महाराज गोविन्द केवल नाम के महाराज हैं।'
'महादण्डनायक । बहुत हो गया। अब अजयमेरु को मुक्त कराना ही है।'
हरिराज से रहा नहीं गया।
'पर महाराज कुतुबुद्दीन कान्यकुब्ज पर आक्रमण की योजना बना रहे हैं।'
'ऐं? कान्यकुब्ज पर आक्रमण ? कुतुबुद्दीन विक्षिप्त तो नहीं हो गया है?"
स्कन्द चौंक पड़े।
'नहीं महाराज, बड़ी सोची समझी योजना है। सुल्तान स्वयं भी एक बड़ी सेना लेकर ग़ज़नी से चल पड़े हैं।'
‘तब भी, कान्यकुब्ज नरेश का सैन्य बल कम नहीं हैं।' स्कन्द को जैसे झटका लगा।
हरिराज केवल सुनते रहे ।
'महाराज, कान्यकुब्ज के परिवार में भी अन्तर्कलह व्याप्त है। शुभा और जाह्नवी दोनों अपने अपने पुत्रों को युवराज बनवाने के लिए प्रयत्नशील हैं। महाराज द्वन्द्व की स्थिति में हैं। राजकर्मी भी विभाजित हैं। सैन्यबल पर भी प्रभाव पड़ेगा ही ।' चंचुक विवरण देता रहा।
'महाराज कान्यकुब्ज के कई सामन्त भी अपने को स्वतंत्र शासक घोषित कर रहे हैं। पूर्वी क्षेत्र में लक्ष्मण सेन से निरन्तर संघर्ष की स्थिति बनी हुई है। सेनाएँ विभिन्न दुर्गों की रक्षा के लिए नियुक्त हैं। गोरी को पता चल गया है कि कान्यकुब्ज में इस समय सेना का जमावड़ा कम है। वे विभिन्न मोचों पर लगाई गई हैं। " पर यह बात गंगा घाटी के लिए हितकर नहीं है। यदि कहीं कान्यकुब्ज भी ढह गया तो?" स्कन्द चिन्तित हो उठे । 'महाराज, चिन्ता का विषय तो है ही ।' चंचुक ने भी सांस खींची हरिराज जैसे विचारों में खो गए। वे विद्रोह करने की सोच रहे हैं और ग़ज़नी से गोरी का आगमन । लगता है उन्हें और प्रतीक्षा करनी पड़ेगी। यदि कान्यकुब्ज की जीत हो गई तो उनका रास्ता आसान हो जायेगा। देखो, ऊँट किस करवट बैठता है । 'अब हमें और सतर्क, सन्नद्ध होना चाहिए।' स्कन्द ने हरिराज की ओर संकेत कर कहा ।