Kashmiri Pandit - 1 in Hindi Short Stories by Nikita Patil books and stories PDF | काश्मिरी पंडित - भाग 1

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काश्मिरी पंडित - भाग 1

काश्मिरी पंडित धीरज और उनकी नववधू शालू ने अपनी शादी के बाद काश्मीर जाने का फैसला किया। धीरज ने शालू के साथ हनीमून मनाने की सोची थी, और इसलिए वे दोनों धीरज के गांव में जा रहे थे।

धीरज और शालू की यात्रा काफी अच्छी चल रही थी, और उन्होंने अपने हनीमून को खुशी और प्यार से बिताने का इंतजाम किया। लेकिन उनकी खुशियों की रात को दुष्कर्म ने अंधकार में ढक लिया। शालू का अपहरण हो गया था।

धीरज ने शालू को ढूंढने के लिए हर जगह खोज की, लेकिन उसे कोई संकेत नहीं मिला। उसका दिल बेचैन हो गया था, और उसने निराशा के आंसू बहाए। फिर एक दिन, उसने एक मंदिर में एक समूह काश्मिरी पंडितों को देखा और उनसे मदद मांगी।

"कृपया मेरी मदद करें," धीरज ने विनती की। "मेरी पत्नी का अपहरण हो गया है और मैं उसे ढूंढ़ नहीं पा रहा हूँ। क्या आप उसे ढूंढ़ने में मेरी सहायता कर सकते हैं?"

पंडितों ने धीरज की मदद करने का वादा किया और सभी मिलकर शालू को खोजने के लिए निकल गए। उन्होंने कई दिनों तक शालू की खोज की, लेकिन कहीं भी उसे नहीं मिला।

फिर एक दिन, धीरज और पंडित समूह एक छोटे से गांव में पहुंचे। वहां उन्होंने एक दरार में एक घृणित दृश्य देखा। धीरज के आंखों में आंसू आ गए, जब उसने देखा कि स्थानीय मुस्लिम लोग शालू पर बलात्कार कर रहे थे और उसे प्रताड़ित कर रहे थे।

धीरज ने अपने साथी पंडितों को बुलाया और उनसे कहा, "हमें शालू को छुड़ाना होगा। हम उन लोगों के खिलाफ लड़ाई लड़ेंगे और उन्हें सज़ा दिलाएंगे।"

पंडित समूह ने धीरज की बात पर सहमति दी और वे बलवान तरीके से उस गर्मी में लड़ाई लड़ने के लिए तैयार हुए। धीरज और पंडित समूह ने अपनी ब्राह्मण शक्ति को जगाया और उन्होंने शालू को छुड़ाने के लिए लड़ाई की।

लड़ाई में धीरज और पंडित समूह ने शालू को बचाया और उसे अस्पताल में भर्ती कराया। शालू की स्थिति गंभीर थी, और वह बहुत दुखी थी।

धीरज ने शालू के पास जाकर कहा, "शालू, तुम बिल्कुल अकेली नहीं हो। मैं यहां हूँ, और मैं तुम्हारे साथ हूँ। मैं तुम्हें सबसे अच्छे डॉक्टरों की देखभाल में देने के लिए यहां हूँ। हम मिलकर इस मुसीबत को पार करेंगे।"

शालू ने धीरज की ओर देखा और उसके आंचल को पकड़ा। "धीरज, तुम मेरी ज़िंदगी की रौशनी हो। तुमने मुझे बचा लिया है, और मैं तुम पर गर्व करती हूँ। हम साथ मिलकर इस संघर्ष को जीतेंगे।"

धीरज और शालू ने एक-दूसरे का हाथ पकड़ा और उन्होंने एक दूसरे को आदर्शवादी और धैर्यपूर्ण बनाया। वे एक साथ लड़ते रहे, और शालू की मानसिक स्थिति धीरज के सहयोग से धीरे-धीरे सुधारने लगी।

धीरज ने शालू को ढांढस बंधने में सफलता प्राप्त की। वे एक-दूसरे के साथ खुश और समृद्ध जीवन बिताने के लिए तैयार थे। उनकी कठिनाइयाँ अब उन्हें मजबूत बनाने के लिए उनकी प्रेम और सामर्थ्य का परिचय थे।
इसके साथ उन्होंने शालू के लिए जम्मू- कश्मीर न्यायालय में मुकदमा दर्ज किया।
हालांकि सेक्युलरिज्म के कारण मुकदमा ठुकराया गया।