Yakshini ek dayan - 5 in Hindi Fiction Stories by Makvana Bhavek books and stories PDF | यक्षिणी एक डायन - 5

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यक्षिणी एक डायन - 5

 

युग डरते हुए अभिमन्‍यु से कहता है – "यार तुने आवाज सूनी?"       

अभिमन्‍यु हैरानी के साथ पूछता है – "कैसी आवाज?"

"यार लड़की की आवाज।"

अभिमन्‍यु चिढ़ते हुए कहता है – "यार ये तुने क्‍या जब से लड़की की आवाज लगाकर रखा है, जब से यहाँ पर आया है कह रहा है लड़की की आवाज-लड़की की आवाज, किस लड़की की आवाज की बात कर रहा है तू?" 

"यार, पता नहीं पर सच में मैंने दो-तीन बार किसी लड़की की आवाज सुनी।"

"लगता है तेरे कान कुछ ज्‍यादा ही बज रहे है, ये बता तू रास्‍ते भर कान में हैड फोन डालकर गाने सुनते हुए आया है ना?"

"हाँ पर ये बात तुझे कैसे पता?"

"यार तभी तो तुझे आवाज सुनाई दे रही है, होता क्‍या है ना जब भी हम तीन-चार घंटे तक लगातार गाने सुनते है तो उनके बोल हमे याद रह जाते है और वही बोल हमारे कानों में गूँजने लग जाते है।"

"यार पर..."

युग कुछ बोल पाता उससे पहले ही अभिमन्‍यु कहता है – "पर वर छोड़, जब से कह रहा था ग्रेव्‍यार्ड कोठी जाना है और जब ताला खुल गया तो बाहर खड़ा हुआ है, कोई शुभ मुहुरत का इंतजार कर रहा है क्‍या या फिर किसी का इंतजार कर रहा है कि कोई आएगा और तेरा गृहप्रवेश करवाएगा।"

युग अभिमन्‍यु की बात का कुछ जवाब नहीं देता है और कोठी के अंदर घुस जाता है। कोठी के अंदर लाईट नहीं थी, हर तरफ अंधेरा ही अंधेरा था इतना अंधेरा कि कुछ दिखाई नहीं दे रहा था।

अभिमन्‍यु कोठी के अंदर घुसते हुए कहता है – "यार यहाँ पर तो बहुत अंधेरा है, ऐसा लग रहा है जैसे किसी अंधेर नगरी में आ गये हो।"

युग अपने मोबाईल का टॉर्च ऑन कर लेता है। अपना बचपन कोठी में ही गुजारने के कारण युग को पता था की लाईट का स्विच कहाँ पर है। कुछ ही देर में युग को लाईट का स्विच मिल जाता है और वो जैसे ही स्विच दबाता है कोठी के अंदर चारों तरफ उजाला हो जाता है। कोठी रोशनी से जगमगा उठती है।

अभिमन्‍यु हैलोजन के बल्‍फ को देखते हुए कहता है – "यार तुने एक चीज नोटिस की?"

युग हैरानी के साथ पूछता है– "कौन सी चीज?"

"यही यार की ये कोठी तेरह सालो से बंद थी पर तु खुद देख लाईट का कनेंकसन अभी तक काम कर रहा है, ऐसा कैसे हो सकता है?"

युग कुछ सोचते हुए कहता है – "हो सकता है लाईट का कनेंकसन बिजली विभाग वालों ने काटा ही नहीं हो।"

अभिमन्‍यु फटाक से पूछता है – "और वो क्‍यों?"

"क्‍योंकि उनके मन में भी यक्षिणी का खौफ़ होगा और वो यहाँ पर आने से डरते होगे इसलिए उन्होंने लाईट का कनेंकसन काटा नहीं होगा।"

अभिमन्‍यु युग की बात का कुछ जवाब नहीं देता क्‍योंकि उसे युग की बात बिल्‍कुल ठीक लगी थी। वो कोठी को देखने लग जाता है।

तेरह सालो से कोठी बंद होने के कारण हर जगह धुल ही धुल थी, मकड़ी ने कई सारे जाले बनाकर रखे हुए थे। कोठी के अंदर दो बड़े से गुंबद बने हुए थे जो कोठी की खूबसूरती को चार चाँद लगा रहे थे। कोठी की सीढ़ियाँ संगमरमर से बनी हुई थी। हॉल में बर्माटिक और बेजिल्‍यम के बड़े-बड़े झूमर थे। कोठी का फर्नीचर मोहगनी की लकडी का था। दीवारों पर कई कलाकृतियाँ बनी हुई थी जिसकी सजावट के लिए तलवारे रस्‍सी, कुलहाड़ी अलग-अलग चीजे टंगी हुई थी जो काफी पुराने जमाने की थी, उन पुरानी चीजों को देखकर ऐसा लगता था कि हर एक चीज के पीछे कोई ना कोई कहानी छुपी हुई थी।

अभिमन्‍यु कोठी के चारों तरफ अपनी नज़रे घुमाते हुए कहता है – "यार ये ग्रेव्‍यार्ड कोठी अंदर से तो बहुत आलीशान है, इतनी पुरानी इमारत है पर देख ऐसा लगता है कि जैसे अभी एक-दो साल पहले ही बनाई गयी हो, कुछ भी बोलो ये अंग्रेज लोग काम एक दम बढ़िया करते है, इतना बढ़िया कि सालो साल तक चले, मेरे तो समझ मे नहीं आ रहा कि तेरे रिश्तेदारों ने इतनी अच्‍छी कोठी इतने सालो से बंद क्‍यों रखी थी।"

युग अभिमन्‍यु के सवाल का कुछ जवाब नहीं देता है वो गौर से कोठी का कोना-कोना देख रहा था। उसे देखकर ऐसा लग रहा था कि कोठी को देखकर उसके बचपन की यादें ताजा हो गयी हो।

अभिमन्‍यु अपनी बात को आगे जारी रखते हुए कहता है – "यार इस कोठी की भी बड़ी बेकार किस्मत है एक-दो हफ्ते बाद अपने विकेसन खत्‍म करके तु यहाँ से चले जाएगा और फिर इतनी प्‍यारी कोठी फिर से बंद हो जाएगी।"

"मैं कहाँ जाऊँगा?"

अभिमन्‍यु फटाक से कहता है – "अपने शहर बैंगलौर जहाँ पर तु रहता है, और कहाँ पर जायेगा, तु यहाँ पर अपनी छुट्टीयाँ ही बिताने आया है ना शहर से मन भर गया होगा तो।"

युग उदास चेहरा बनाते हुए कहता है – "मैंने बैंगलौर छोड़ दिया है और अब मैं कहीं नहीं जाऊँगा, हमेशा यहीं पर रहूँगा।"

अभिमन्‍यु अपनी आँखें फाड़ते हुए कहता है – "क्‍या कहा तुने बैंगलौर छोड़ दिया है पर क्‍यों, तु तो बैंगलौर में सेटल हो गया था न, अंकल जी के शांत हो जाने के बाद तेरह सालो से वहीं पर तो रहा है तु, तो अब ऐसा क्‍या हो गया कि तु अपना सब कुछ छोड़कर वापस अपने गाँव आ गया, तुझे पता है ना गाँव की जिन्‍दगी शहर की जिन्‍दगी से बहुत अलग होती है और ये बंगलामुडा गाँव है यहाँ पर नैसेसरी चीज भी मुश्किल से मिलती है।"

"हाँ पता है मुझे पर मैंने फैसला कर लिया है चाहे कुछ भी हो जाये पर अब मैं हमेशा यहीं पर रहूँगा।"

"पर क्‍यों, आखिर शहर में तेरे साथ ऐसा क्या हुआ कि तु अपना सब कुछ छोड़कर गाँव में रहने आ गया?"

"यार अभिमन्‍यु, देख अभी ना मेरा तुझे कुछ भी बताने का बिल्‍कुल मूड नहीं है, मेरा सर बहुत तेज दर्द हो रहा है, लम्‍बा सफर करने के कारण नींद भी बहुत आ रही है इसलिए सोने दे मुझे मैं तुझे सुबह सब कुछ बताता हूँ ना।"

अभिमन्‍यु युग की हालत समझ जाता है और उदास चेहरा बनाते हुए कहता है – "हाँ चल ठीक है पर तु सोएगा कहाँ पर कोठी में सब जगह धूल तो जमी हुई है, इतनी धूल पर सोएगा क्‍या?"

अभिमन्‍यु ने डायनिंग टेबल पर फूक मारते हुए कहा।

युग अपने आस-पास देखते हुए कहता है – "लगता है कल सुबह उठकर सबसे पहले सफाई करनी पड़ेगी, खैर रात गुजारने के लिए मेरे बैग में दो बैलेंकेट रखे हुए है एक तु ले ले एक मैं ले लेता हूँ, वहीं बिछाकर सो जाएंगे फिर सुबह कुछ ना कुछ तो कर ही लेगें।"

"हाँ ठीक है।"

युग अपने बैग में से बैलेकेंट‍ निकालता है और दोनों उसे बिछाकर उस पर सो जाते है।

अभिमन्‍यु युग को बार-बार आवाज लगाये जा रहा था पर उसका कोई जवाब नहीं आ रहा था। अभिमन्‍यु ने नीचे के सारे कमरों में युग को ढूँढ लिया था पर वो कहीं भी उसे नहीं मिला था। अभिमन्‍यु परेशान हो गया था। 

अभिमनयु युग को ढूँढ़ते-ढूँढ़ते संगमरमर की सीढ़ियाँ चढ़कर ऊपर वाले कमरे की तरफ जाने लग जाता है। जब वो वहाँ पर पहुँचता है तो देखता है कि सीढ़ियों के जस्‍ट ऊपर ही एक बड़ी सी खिड़की थी जहाँ पर युग खड़ा हुआ था।

अभिमन्‍यु युग से कहता है – "युग तु यहाँ पर क्‍या कर रहा है और जब से मैं तुझे आवाज लगा रहा हूँ तू कुछ जवाब क्‍यों नहीं दे रहा है?"

युग अभी भी अभिमन्‍यु के सवाल का कुछ जवाब नहीं दे रहा था वो बड़ी गंभीरता के साथ खिड़की से बाहर झाँक रहा था, उसको देखकर ऐसा लग रहा था जैसे वो किसी सोच में खोया हुआ हो।

अभिमन्‍यु युग को हिलाते हुए कहता है – "युग ओ युग, तु ठीक तो है कहा पर खो गया।"

अभिमन्‍यु के हिलाने पर युग अपने ख्‍यालों की दुनिया में से बाहर आ जाता है और कहता है –"अरे अभिमन्‍यु तू उठ गया।"

"हाँ मैं तो उठ गया पर तु यहाँ पर क्‍या कर रहा है और कुछ जवाब क्‍यों नहीं दे रहा?"

युग खिड़की से बाहर की तरफ इशारा करते हुए कहता है – "वो देख।"

जब अभिमन्‍यु खिड़की से बाहर देखता है तो बाहर का मनमोहक नज़ारा देखकर खुश हो जाता है। कोठी की खिड़की से किशनोई नदी साफ नज़र आ रही थी जो शांति के साथ बह रही थी, साथ में काला झाड़ी का जंगल भी नज़र आ रहा था। जो दूर तक फैला हुआ था। नदी काफी चौड़ी थी जिस कारण वो पूरी नज़र नहीं आ रही थी।

युग खिड़की से बाहर देखते हुए कहता है – "तुझे पता है अभिमन्‍यु बचपन में पापा अकसर इसी खिड़की के पास कुर्सी लगाकर बैठा करते थे और घंटो बाहर झाँकते रहते थे। माँ के कहने पर भी पापा नहीं उठते थे और जब माँ पापा से पूछती थी कि बाहर क्‍या देख रहे हो तो पापा मजाक से कहते तुम्‍हारी शौतन का इंतजार कर रहा हूँ कि कब वो नदी के पास आए और कब मुझे इशारा करके बुलाए और फिर कब मैं उसके पास जाऊँ, इसी बात पर पापा मम्‍मी की प्‍यार भरी नोंक झोंक होती थी।"

यह बात कहते-कहते युग की आँखों में आँसू आ जाते है।

युग अपनी बात को आगे जारी रखते हुए कहता है – "अभिमन्‍यु तुझे पता है जब खुशी के पल यादों में तब्‍दील हो जाते है और हमे पता चलता है कि वो खुशी के पल कभी लौटकर वापस नहीं आने वाले तो वहीं खुशी के पल हमे सबसे ज्‍यादा दर्द पहुँचाते है।"

चाँदनी रात थी और युग एक लड़की के साथ नदी के किनारे बैठा हुआ था। छोटी छोटी लहरे बार-बार उन दोनो के पैरो को स्‍पर्श कर रही थी। युग का चेहरा तो साफ दिख रहा था पर लड़की का चेहरा clear नहीं दिख रहा था। उस लड़की ने काले रंग की साड़ी पहनी हुई थी, उसने अपना सिर युग के कंधो पर रखा हुआ था। दोनो ही एक-दूसरे से चिपक कर बैठे हुए थे। वो लड़की आसमान में दिख रहे चाँद को देखते हुए कहती है – "एक बात पूछू आपसे?"

युग प्‍यार से कहता है – "हाँ पूछो ना, इसमे इतना हिचकिचाने वाली क्‍या बात है।"

"आप मुझे भूलोंगे तो नहीं ना?"

युग बड़े प्‍यार से बोलता है – "तुम भूलने वाली चीज थोड़ी हो जो मैं तुम्‍हे भूलूँगा, तुम तो वो हो जिसे मैं जिन्‍दगी भर अपने पास रखना चाहता हूँ अपनी बाहो में भरकर।"

इतना कहकर युग उस लड़की की कमर पर हाथ रखता है और उसे अपने सीने से सटा लेटा है।

वह लड़की युग से दूर हटते हुए कहती है – "कोई बाते बनाना तो आपसे सीखे ...अच्‍छा चलिए यह बताईए मैं आपके लिए क्‍या हूँ?"

"क्‍या हूँ मतलब।"

"मतलब यह कि मैं आपकी जिन्‍दगी में क्‍या अहमीयत रखती हूँ?"

युग उस लड़की से मजाक करते हुए कहता है – "तुम कुछ अहमीयत नहीं रखती मेरी जिन्‍दगी में, मेरी जिन्‍दगी मुझसे है ना की तुमसे।"

युग का जवाब सुनकर वह लड़की नाराज़ हो जाती है और मुँह फुलाते हुए कहती है – "मतलब इतने दिनो से जो कुछ आप मेरे साथ कर रहे है वह सब दिखावा है... सब लड़के ना एक जैसे होते है, उन्‍हें लड़कियों से बस एक ही चीज चाहिए होती है और वो है उनका जिस्‍म, जहाँ आप लोगो का मतलब निकलता है आप लोग हमसे मुँह फेर लेते है।"

इतना कहकर वो लड़की वहाँ से उठने लग जाती है, तभी युग उसका हाथ पकड़ते हुए कहता है – "अरे तुम तो नाराज़ ही हो गयी, मैं तो मजाक कर रहा था मेरी जान, तुम जानना चाहती थी ना कि मेरी जिन्‍दगी में तुम्‍हारी क्‍या अहमियत है तो अब गौर से सुनो।"

इतना कहकर युग उस लड़की को फिर से अपने पास बैठा लेता है और उसकी आँखो में देखते हुए कहता है – "तुम मेरी जिन्‍दगी की H2O हो।"

वह लड़की हैरानी के साथ कहती है – "H2O हूँ मतलब?"

"मतलब तुम मेरी जिन्‍दगी का पानी हो जिसे पीकर मैं अपनी प्‍यास बुझाना चाहता हूँ, तुम मेरी जिन्‍दगी की ऑक्सिजन हो, जिसे मैं अपनी साँसो में भरकर जीना चाहता हूँ।"

इतना कहकर युग उस लड़की के करीब चले जाता है इतने करीब की अगर अब वो जरा सा भी आगे बढ़ता तो उसके होंठ उस लड़की के होंठ से टकरा जाते।

वह लड़की एक लम्‍बी आह भरते हुए कहती है – "आप रूक क्यों गये, बोलते रहीये।"

"तुम मेरी जिन्‍दगी का वह हसीन ख्‍वाब हो जिसे में रोज देखता हूँ, तुम मेरी जिन्‍दगी का वह सूकून हो जो मुझे तुम्‍हारी बाहो के सिवा कहीं और नहीं मिलता, तुम मेरी जिन्‍दगी का वह हिस्‍सा हो जिसके बिना मैं कुछ नहीं; सच तो यह है कि मेरा तुम्‍हारे बिना कोई वजूद नहीं।"

युग को पता ही नहीं चल पाता कि कब बाते करते-करते उसके होंठ उस लड़की के होंठो से टकरा जाते है। दोनो के ही होंठ चिपक गये थे, ठीक उस तरह जिस तरह भंवरा फूल से चिपकता है।

जब युग और वह लड़की एक-दूसरे को स्‍पर्श करते है तो दोनो को अपने-अपने बदन में एक कंपकपी सी होती है, और दोनो एक-दूसरे को अपनी बाहों में भर लेते है। वह दोनो कब रेत पर लोट जाते है उन्‍हे पता ही नहीं चलता।

उस लड़की की काली साड़ी में युग पूरी तरह गूथ चुका था, कोई इस बात का अंदाजा ही नहीं लगा सकता था कि उस लड़की ने साड़ी भी पहनी हुई थी। ऐसा लग रहा था जैसे वो साड़ी एक चादर हो जिसमे वो दोनो समाए हुए थे। उस लड़की के बदन का एक-एक अंग युग के अंग के साथ स्‍पर्श हो रहा था। दोनो एक-दूसरे में समाहित हो गये थे। उन दोनो के रोम-रोम में आग लगने लग गयी थी। युग उस लड़की के बहुत करीब चले गया था इतने करीब की तेज-तेज चल रही उस लड़की की दिल की धड़कनो को वो साफ-साफ सुन पा रहा था। युग का मन ही नहीं कर रहा था उस लड़की के बदन को छोड़ने का उसने अपने शरीर की पूरी ताकत लगाकर उसके बदन को अपनी बाहो में जकड़ा हुआ था।

वह लड़की बड़ी हिम्‍मत से अपने हाथ छुड़ाते हुए युग को रेत पर लेटाती है और एक-एक करके उसके शर्ट की बटने खोलने लग जाती है। युग अपने आप को उस लड़की को सौंप देता है और रेत पर ही लेटकर आहे भरने लग जाता है।

वह लड़की युग के शर्ट की बटने खोल देती है और उसके माथे को चुमने लग जाती है। 

वह लड़की युग के माथे को चुमते हुए कहती है – "आप मुझे भूलोगे तो नहीं ना ?"

युग धीरे से कहता – "नहीं मैं तुम्‍हे नहीं भूलूंगा, कभी नही। "

वह लड़की बार-बार युग को चुमते हुए बस यही बोले जा रही थी आप मुझे भूलोगे तो नहीं ना और युग कहता नहीं कभी नहीं। युग के अंदर की गर्मी बढ़ते जा रही थी। वह युग के माथे को चुमने के बाद नीचे आने लग जाती है और उसके सीने को चुमने लगती है। युग के अंदर की उत्‍तेजना बढ़ते जा रही थी। उसका पूरा बदन पसीने से भींग चुका था। उसके माथे और बदन पर पसीने की बड़ी-बड़ी बूँदे थी, उसे अपने पूरे शरीर में गर्मी का एहसास होने लग जाता है, उसे ऐसा लग रहा था जैसे वो किसी आग में तप रहा हो। देखते ही देखते गर्मी इतनी बढ़ जाती है कि उसकी नींद टूट जाती है और वो अपने सपने में से बाहर आ जाता है। 

युग झटके के साथ उठते हुए कहता है – "Oh My God फिर वही सपना।"

इतना कहकर युग अपने माथे का पसीना पोंछने लग जाता है, उसका पूरा बदन पसीने से लथपथ हो गया था।

युग खुद से कहता है – "हे भगवान ये क्‍या है, क्यों बार-बार आप मुझे एक ही सपना दिखाते हो और आखिर वो लड़की कौन है जिसके साथ मैं ये सब करता रहता हूँ, इतने करीब तो मैं आज तक अपनी जिन्‍दगी में किसी लड़की के नहीं गया, कौन है वो लड़की क्‍या सम्‍बंध है मेरा उसके साथ?"

यही सब सोचते हुए युग अपनी जगह पर खड़ा होता है अपने बैग में से पानी की बॉटल निकालता है और पानी पीते हुए फिर सोचने लग जाता है – "ये सपना मेरा पीछा क्‍यों नहीं छोड़ता, बैंगलोर में भी यही सपना दिखता था और यहाँ पर भी, सपने में जो नदी थी वो तो किशनोई नदी थी, पर वो लड़की कौन थी और उसका चेहरा मुझे क्यों नहीं दिखता कभी?"

 युग वापस से लेट जाता है और कोठी की छत को देखते हुए सोचने लगता है – "नदी तो मिल गयी, हो सकता है वो लड़की भी मिल जाए, बस एक बार वो लड़की मिल जाए फिर ये सारे सपनो के राज खुल जाएगे, कुछ ना कुछ Connection तो जरूर है मेरा उस लड़की के साथ, ऐसे ही सपने नहीं आते वो भी सेक्‍स वाले।"

यही सोचते हुए युग की कब नींद लग जाती है, उसे पता ही नहीं चलता है। 

सुबह हो गयी थी और सुबह के सात बज रहे थे। अभिमन्‍यु अभी तक गहरी नींद में सो रहा था। तभी मुर्गे के बाग देनी की आवाज सुनाई देती है और अभिमन्‍यु की नींद खुल जाती है। अभिमन्‍यु उबासी लेते हुए अपनी आँखे खोलता है और देखता है कि युग उससे पहले ही उठ कर बैठा हुआ था और कुछ सोच रहा था। 

अभिमन्‍यु हैरानी के साथ कहता है – "अरे युग तू कब उठ गया और सुबह-सुबह इतनी गहराई के साथ क्‍या सोचने लग गया?"

पहले तो युग के मन में आया कि वो उसे अपने सपने के बारे में बताए पर फिर अगले ही पल उसने सोचा कहीं अभिमन्‍यु उसे पागल ना समझ ले इसलिए उसने कहा – "कुछ नहीं यार बस ऐसे ही बैठा हुआ था।"

अभिमन्यु अचानक से कहता है – "वैसे तुने बताया नहीं?"     

युग हैरानी के साथ पूछता है – "क्‍या नहीं बताया?"       

"यही कि तुने बैंगलोर क्‍यों छोड़ दिया, तेरा यहाँ पर आने का मकसद क्‍या है?"  

"यार मैंने बैंगलोर को नहीं छोड़ा है बल्कि बैंगलोर ने मुझे छोड़ दिया है।"

"मतलब, मैं कुछ समझा नहीं तु साफ-साफ बताएगा बताना क्‍या चाहता है?"

"मतलब यह कि मेरी बैंगलोर में जो जॉब थी वो चली गयी ।"

अभिमन्‍यु शौक्‍ड होते हुए कहता है – "क्‍या कहा जॉब चले गयी, पर कैसे?"

युग चुप रहता है कुछ जवाब नहीं देता है। 

अभिमन्‍यु युग पर दबाव बनाते हुए पुछता है – "अरे तु चुप क्यों है बताना आखिर तेरी जॉब कैसे चले गयी?"

युग लम्बी सांस लेते हुए कहता है – "मुझे कम्‍पनी जोईन किए हुए एक साल ही हुआ था। सब कुछ ठीक चल रहा था ऐसा लग रहा था कि लाईफ सेट हो गयी और इसी कम्‍पनी में फ्यूचर सेट हो जाएगा पर जैसा हम सोचते है वैसा होता कहा है, होता भी कैसे अगर जिन्दगी में सब चीजें हमारे मुताबिक होने लगे तो उसे जिन्‍दगी नहीं कोई फिल्‍म कि कहानी कहते है ।"

अभिमन्‍यु बीच में हि युग को टोकते हुए कहता है – "यार तु बाते घुमा मत सीधे सीधे बता हुआ क्‍या था?"

युग अपनी बात को आगे जारी रखते हुए कहता है – "सब कुछ ठीक ही चल रहा था कि तभी हम लोगों को बताया गया कि कम्‍पनी लॉस में चल रही है जिस कारण कम्‍पनी कि फाइनेंसियल कन्‍डीसन खराब हो गयी थी। फाइनेंसियल कन्‍डीसन से उभरने के लिए कम्‍पनी ने पचास इम्‍पलोय को निकालने का फैसला किया था और जब लिस्‍ट आयी तो उस लिस्‍ट में मेरा भी नाम था।"    

"पर ऐसे कैसे, तुझे कैसे निकाल दिया तेरा तो कैम्‍पस सिलेकसन हुआ था ना और पैकेज भी अच्‍छा था।"

"हाँ पर तुझे पता है मेरी फिल्‍ड इलैट्रीकल और इलेक्‍ट्रोनिस थी, पर साले काम कोडिग का कराते थे, पूरा घिस के रख देते थे, इतना परेशान करते थे कि आप खुद जॉब छोड़ दे या फिर खराब परफॉर्मेंस करने की वजह से आपको वो खुद निकाल दे, तुझे पता है ये कम्‍पनी और कॉलेज वालों के बीच एक बहुत बडी सेंटीग होती है।"

"क्‍या कहा सेटींग होती है, कैसी सेंटींग?"

"देख मैं बताता हूँ कम्‍पनीयाँ हर साल कॉलेज में आती है जिससे कॉलेज का नाम होता है और हर साल नये एडमिशन होते है पर क्‍या कभी तुने ये सोचा है कि जो कम्‍पनीयाँ आती है और हर साल कभी सौ तो कभी दो सौ स्‍टूडेंट का सेलेक्‍शन करती है उनको किनकी जगह पर रखा जाता है ।"

"किनकी जगह पर?" 

"उन इम्‍पलोय कि जगह पर जिनको पिछले साल कैम्‍पस सेलेकशन करके लाया गया था, यही सिलसिला चलता जाता है और कॉलेज और कम्‍पनीयों वालो का धंधा चलता रहता है पर साले यह नहीं सोचते कि जिनको उन्होंने जॉब से निकाल दिया उनका तो एक साल खराब हो गया ना, वो तो इसी उम्‍मीद से थे कि अब पूरी जिन्दगी उन्हें कम्‍पनी के साथ काम करना है।"

"चल यह सब तो ठीक है इसमें कॉलेज और कम्‍पनी वालों का दोष था तेरी बात समझ रहा हूँ मैं पर फिर तुने दूसरी कम्‍पनी में कोई जॉब के लिए एप्‍लाई क्‍यों नहीं किया ऐसा तो था नहीं कि दुनिया में बस एक हि कम्‍पनी है और तु गवरमेंट जॉब के लिए भी तो ट्राय कर सकता था ना?"  

"तुझे क्‍या लगता है मैं बेवकूफ हूँ, पिछले डेढ साल से दोनों जगह ट्राय हि तो कर रहा हूँ पर कुछ हो ही नहीं रहा, जॉब हलवा थोड़ी है कि यूँ मिल जाये, मिलती भी है तो काम कि नहीं मिलती ऊपर से पेमेंट कम।"    

"मतलब यह कि तुझे जॉब से डेढ साल पहले निकाल दिया गया है।"   

"हाँ पिछले डेढ साल से जॉब ढूँढ़ रहा हूँ और जॉब पाने के लिए कोंचींग भी जोईन करी पर कुछ काम नहीं आया बल्कि उसी चक्कर में सारी सेविंग भी खत्‍म हो गयी, हालत इतनी खराब हो गयी कि बैंगलोर छोड़कर गाँव आना पड़ा।"

"लोग जॉब करने के लिए गाँव छोड़कर शहर जाते है पर तु पहला ऐसा शख्‍स है जो शहर छोड़कर गाँव आया है, बता फिर क्‍या सोचा है यहाँ गाँव में आकर क्‍या करने वाला है तु?"

युग कुछ जवाब नहीं देता।

अभिमन्‍यु युग पर दबाव बनाते हुए पूछता है – "बता यार, यहाँ गाँव में क्‍या करने वाला है?"

"मैंने गांव में एक स्‍टार्टअप खोलने का फैसला किया है।"

"कैसा स्‍टार्टअप ?"