Chorono Khajano - 36 in Gujarati Fiction Stories by Kamejaliya Dipak books and stories PDF | ચોરોનો ખજાનો - 36

Featured Books
  • રહસ્ય,રહસ્ય અને રહસ્ય

    આપણને હંમેશા રહસ્ય ગમતું હોય છે કારણકે તેમાં એવું તત્વ હોય છ...

  • હાસ્યના લાભ

    હાસ્યના લાભ- રાકેશ ઠક્કર હાસ્યના લાભ જ લાભ છે. તેનાથી ક્યારે...

  • સંઘર્ષ જિંદગીનો

                સંઘર્ષ જિંદગીનો        પાત્ર અજય, અમિત, અર્ચના,...

  • સોલમેટસ - 3

    આરવ રુશીના હાથમાં અદિતિની ડાયરી જુએ છે અને એને એની અદિતિ સાથ...

  • તલાશ 3 - ભાગ 21

     ડિસ્ક્લેમર: આ એક કાલ્પનિક વાર્તા છે. તથા તમામ પાત્રો અને તે...

Categories
Share

ચોરોનો ખજાનો - 36

सच्चाई

फिरोज: मेरे चाचा की मौत की वजह से मेरे बाबा एकदम बौखला गए थे। इसलिए वो गुस्से में सरदार से जघड़ने केलिए यहां चले आए। उनकी जिंदगी की सब से बड़ी और आखिरी गलती यही थी।

*****

सुलेमान: ये आपने क्या किया सरदार? आपके बेटे का नाम तो आपने बहुत ही रोशन कर दिया लेकिन मेरे भाई की जान भी आपने ही ली है। आपकी वजह से मेरा भाई मारा गया।

रघुराम: अरे नही सुलेमान, मुझसे जितना हुआ मैने किया है। हमारे सभी साथियों में से मैं जितने लोगों को बचा सकता था मैने बचाया है। हां गलतियां हुई है मुझसे, लेकिन मैने जानबूझ कर कभी किसीकी जान नही जाने दी। तुम्हारा भाई मेरे लिए मेरे छोटे बेटे जैसा ही था।

सुलेमान: अच्छा, तो फिर ये रुस्तम-रुस्तम पूरे देश में गूंज रहा है वो क्या है? तुम्हारे बेटे को पूरा देश जानता है जबकि मेरा भाई मारा गया और उसके बारे में कोई बात भी नहीं कर रहा।

रघुराम: अरे नही वो तो..

सुलेमान: तुम खजाना लेने गए थे न। लेकिन न ही तुम खजाना लेकर आए हो और न ही तुम हमारे उतने साथियों को लेकर आए हो जितने तुम लेकर गए थे। तुमने हमारे हजारों साथियों को मार दिया। तुम एक हत्यारे हो रघुराम, और उस बात केलिए मैं तुम्हे कभी माफ नहीं करूंगा। अरे इससे तो अच्छा होता, मेरा भाई तुम्हारे साथ जाने के बजाय मेरे साथ रह कर डकैती ही करता रहता, कमसे कम वो जिंदा तो होता।

रघुराम: हां, डकैती करता तो शायद सब ठीक ही होता।

सुलेमान: मेरे भाई के बदले मैं तुमसे कुछ मांगू तो दोगे क्या?

रघुराम: जो मेरे पास है, उसमे से मैं तुम्हे कुछ भी दे दूंगा, तुम मांगो।

सुलेमान: मुझे वो जहाज चाहिए। मैं उससे अपने भाई के सपने को पूरा करूंगा। उसीमें मैं डकैती करूंगा।

रघुराम: वो मेरा नही है। और उसे तो सरकार ने बैन कर दिया है। जितने भी जहाज थे सभी को सरकार ने तुड़वा दिया है। मेरे पास जो कुछ भी बचा है वो हमारे लोगों की अमानत है, मैं अपना समझ कर तुम्हे नही दे सकता। तुम कुछ और ही मांग लो।

सुलेमान: और क्या, मैं तुम से तुम्हारी जान मांगू। जहाज नही दे रहे हो तो मेरे भाई की तरह तुम भी मर जाओ ना। ऐसी जिंदगी जी कर तुम करोगे भी क्या? ह्ह्ह।

सरदार से इस तरह बहस करने के बाद मेरे बाबा वहां से चले गए। उनके दिमाग में हमारे सरदार के प्रति इतना ज्यादा गुस्सा भरा हुआ था की उनका बस चलता तो वे सरदार को जान से मार दे।

जब वो घर पहुंचे तब थोड़ी देर बाद वहां एक ऐसा इंसान आया जिसने मेरे बाबा को वो सच्चाई बताई जिससे वो बिल्कुल अंजान थे। वो इंसान और कोई नही बल्कि तुम्हारे दादा के दिवान बहादुर थे।

बहादुर: तो सुलेमान, तुम हमारे सरदार पे ये इल्जाम लगा कर आए हो की उन्होंने तुम्हारे भाई को मारा है।

सुलेमान: हां बिलकुल, और यही सच्चाई है।

बहादुर: नही, सच्चाई ये नही है। बल्कि सच्चाई ये है की तुम्हारा भाई अपनी लापरवाही और अपने अंदर भरी लालच की वजह से मारा गया। हमारे सरदार ने जितने लोगों को बचा सकते थे उन्हे बचाने की जी तोड़ कोशिश की है। हम जहां गए थे अगर तुम वहां हमारे सरदार की जगह होते तो शायद कोई भी इंसान जिंदा वापिस नही आता।

सुलेमान: क्या बकवास कर रहे हो तुम मेरे भाई के बारे में?

बहादुर: सच कह रहा हु मै। और क्या कहा था तुमने, उनके बेटे का नाम पूरे देश में गूंज रहा है? अरे सच्चाई देखना सीखो सुलेमान।

सुलेमान: और नही तो क्या, उसके बेटे रुस्तम को पूरा देश जानता है। लेकिन मेरे भाई को कोई नही जानता।

बहादुर: अरे बेवकूफ, रुस्तम उसके बेटे का नाम नहीं है। उसके बेटे का नाम रुद्रा है। और रुस्तम उसके दल का नाम था जिसमे तुम्हारा भाई भी था। लेकिन किसी वजह से तुम्हारा भाई तन्मय उस दल में उस लड़ाई के दौरान बच गया था जहां उसके दल के बाकी के लोग यानी की सरदार का बेटा रुद्रा, मणिशंकर और संतोष मारे गए थे। उन चारों के नाम के पहले अक्षरों से बना था रुस्तम। रुस्तम उनके बेटे का नही बल्कि इनके पूरे दल का नाम था।

सुलेमान: क्या कह रहे हो?

बहादुर: हां, और इतना कुछ होने के बावजूद भी एक बार भी सरदार ने तुम्हारे भाई तन्मय का नाम अलग नहीं बताया और न ही उसकी सच्चाई किसीको बताई। क्यों की वो अपने बेटे से जुड़ी किसी भी चीज को बदनाम नही करना चाहते, चाहे वो तुम्हारा भाई ही क्यों न हो। और ऐसे इंसान को तुम कुछ भी बोल के आ गए, तुम्हे शर्म भी नही आई। तुमने उन्हें मर जाने को कहा, बेवकूफ।

सुलेमान: ये मैने क्या कर दिया। मुझे माफ कर दो दिवान साहब। मैं अभी जा के सरदार से माफी मांग लूंगा।

उसके बाद जब मेरे बाबा और दिवान साहब हवेली पे आए तब तक बहुत ही देर हो चुकी थी। सरदार ने सच में अपनी जान दे दी थी। तब दिवान साहब ने मेरे बाबा को वहां से चले जाने केलिए कहा। उन्होंने कहा की वो कभी उन्हे अपनी शक्ल न दिखाए।

उसके बाद हमारे सरदार के जाने से सब लोगों को इतना दुख हुआ की कई लोगों ने अपनी जान ले ली। इस तरह जब सभी अपनी जान दे रहे थे तब एक और जान भी गई थी। वो मेरे बाबा की जान थी।

*****

जाने से पहले उन्होंने मुझे कहा था की मैं तुम लोगों के पास न जाऊं। क्यों की अगर मैं वहां गया तो आप लोग गुस्से से कही मुझे ही मार दोगे। उन्होंने जो किया उसका अफसोस उन्हे हुआ, लेकिन तब तक देर हो चुकी थी। इसलिए मैं वहां से बहुत दूर चला गया जहां मैं आपसे दूर रह सकूं।

मैने कई बार चाहा की मैं आप से मिलकर एकबार सब कुछ बता दूं, लेकिन कभी हिम्मत नही हो पाई तो कभी आप नही मिल पाई। सरदार के बारे में जानने के बाद उनके प्रति मेरे दिल में इतनी ज्यादा इज्जत बढ़ गई थी की मैं कभी भी उन्हे नही भूल पाया था। उनकी कई कहानियां सुनी थी मैंने लेकिन वो सच्ची है या नही उस पर हमेशा से मुझे शंका थी।

आपके दिल में हमारे लिए बहुत ही गुस्सा और नफरत भरी होंगी लेकिन एकबार हमे माफ कर के देखिए सरदार, हम कभी भी आपको निराश नहीं करेंगे।

એટલું બોલતાં સુધીમાં તો ફિરોજ રડતા રડતા સિરતના પગમાં બેસી ગયો. સરદાર સિરતની આંખોમાં પણ ત્યારે પાણી હતું. તેના મનનો બધો જ ગુસ્સો ફિરોજની વાત થી ઓગાળીને આંખોના આંસુ વાટે વહી રહ્યો હતો. દિવાન પણ સમજી ગયો હતો કે સિરત અત્યારે ફિરોજને માફ કરી ચૂકી છે.

દિવાને ધીમેથી ફિરોજને ઉભો કર્યો. સિરતને શાંત કરીને તેના બેડ ઉપર બેસાડી. ઘણીવાર પછી સિરત જ્યારે શાંત થઈ ત્યારે તેણે ઉપર નજર કરીને જોયું. તેની સામે ડેની ઊભો હતો.

ડેની અને સિરત વચ્ચે શું વાત થશે..?
ડેનીના મનમાં જે પ્રશ્નો છે એનો જવાબ શું મળશે..?
તેમની સફર કેવી હશે .?
પેલા બીજ શેના હતા?

આવા અનેક પ્રશ્નો ના જવાબ માટે વાંચતા રહો...
ચોરનો ખજાનો..

Dr Dipak Kamejaliya
'શિલ્પી'