Towards the Light - Memoirs in Hindi Motivational Stories by Pranava Bharti books and stories PDF | उजाले की ओर –संस्मरण

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उजाले की ओर –संस्मरण

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नमस्कार

स्नेही मित्रो

एक हास्य कवि हैं श्री हरिवदन भट्ट। गुजराती मूल से हैं किंतु हिंदी में भी बहुत सुंदर रचनाएँ करते हैं।

उन्होंने बड़ी मज़ेदार किंतु समाज के लिए संदेश पूर्ण कहानी साझा की। आज आप मित्रों को वही साझा करती हूँ।

...... और... बैताल के शव को कांधे पर लादकर राजा विक्रमादित्य मसान से उज्जैनी की ओर चल दिया। टाइम पास करने हेतु बैताल ने कहानी की शुरूआत की। ... मिट्टी के पांच घड़े मेरे पास थे। चार घड़े एक समान थे और छोटे थे ; जब कि पांँचवां घड़ा , बाकी घड़ों से चौगुना बड़ा था। एक दिन तालाब से मैं बड़ा घड़ा पूरा भरकर पानी ले आया। मसान से लौटकर मैंने उसको चारों घड़ों में उंडेल दिया, तो वो पूरा खाली हो गया और छोटे चारों घड़े पूरे भर गये। उतने में बाजु वाले मरघट से दो पड़ोसिन चूडैल कन्याएँ आ कर बोली -

" अंकलजी, हमें पानी भरने जाना है, आपके छोटे घड़े दीजिए।" तो मैंने छोटे चारों घड़ों को वापिस बड़े घड़े में उड़ेल दिए और कन्याओं को दे दिए।  मगर ताज्जुब....!  मेरा बड़ा घड़ा मुश्किल से आधा ही भर पाया...!

तो हे ज्ञानी! विक्रम, जिस बड़े घड़े से ही चार छोटे घड़े भरे गए थे, वो ही चारों घड़ों से बड़ा घड़ा क्यों नहीं भरा गया? इस आश्चर्य का कारण क्या होगा ?

राजा विक्रमादित्य ने उत्तर दिया -

" कारण है युग का कुप्रभाव।  कलियुग में ऐसा होना सामान्य है। प्रायः घर - घर की यही कहानी है। एक बाप , खुद खाली हो कर, चार चार बेटों को भरा पूरा कर  देता है......  मगर वक्त आने पर चारों बेटे मिलजुल कर एक बाप को भरने में अधूरापन ही  दिखाते है..! " बैताल ने कहा, " सही.. बात.... है। " ... और उड़कर फिर से पेड़ पे लटक गया। आज के संदर्भ में यह विचारणीय प्रश्न है। जहाँ आज घर-घर में यही सब देखने को मिल रहा है जो चिंता जनक है और विचार विमर्श करने योग्य है।

तो मित्रो! विचार करते हैं इस बात पर।

इस बात का कुछ हल निकालना आवश्यक है न?

(श्री हरिवदन भट्ट साहब के सौजन्य से )

 

सस्नेह

आपकी मित्र

डॉ.प्रणव भारती