Hadsa - Part - 3 in Hindi Moral Stories by Ratna Pandey books and stories PDF | हादसा - भाग 3

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हादसा - भाग 3

प्रकाश की बात मानकर ना चाहते हुए भी पूनम अनमने मन से प्रकाश का हाथ पकड़कर नाव पर चढ़ने लगी। चढ़ते-चढ़ते वह सोच रही थी कि प्रकाश ठीक ही तो कह रहा है, इन लोगों का तो रोज का यही काम है।

तब तक नाविक ने बैठे हुए लोगों को खसकाना शुरु कर दिया।

“अरे मैम साहब थोड़ी जगह करिए, अरे साहब आप भी थोड़ा खसकिये ना, बैठने दीजिये साहब और मैम साहब को।”

धीरे-धीरे, थोड़ा-थोड़ा खसका कर नाविक ने जैसे-तैसे जगह बनवा ही दी।

ख़ुशनुमा मौसम था, चाँदनी हर तरफ अपना सौंदर्य बिखेर रही थी। सरिता मंद-मंद मुस्कुरा कर हौले-हौले, बड़े ही प्यार से बह रही थी। आसपास का नज़ारा सभी के मन को आनंदित कर रहा था। नाव में कई जोड़े थे, कुछ अपने बच्चों के साथ, कुछ बूढ़े माता-पिता के साथ।

बीच-बीच में आवाज़ आती, “भैया थोड़ा सा सरको, मैडम थोड़ा सरकिये ना।”

क्षमता से अधिक बोझ नाव के ऊपर लाद दिया गया था। किंतु नाविक अपनी मस्ती में नाव को पतवार से आगे बढ़ाये जा रहा था। धीरे-धीरे सभी लोग अपनी-अपनी जगह पर सेट हो गए।

पूनम और प्रकाश एक दूसरे के साथ बातें करते हुए अपनी सेल्फी खींच रहे थे। पूनम का सर प्रकाश के कंधे पर टिका हुआ था। नई-नई शादी के इस जोड़े की तरफ़ सभी का ध्यान आकर्षित हो रहा था। पूनम की रात थी, पवन धीरे-धीरे अपनी रफ़्तार को बढ़ा रही थी। सरिता मद्धम-मद्धम बह रही थी। पवन के झोंके बार-बार आकर सरिता को छेड़ रहे थे। जब भी पवन के झोंके सरिता को छूते वह कंपन करने लगती। नाव  भी अपना नृत्य दिखा रही थी। इस खूबसूरत माहौल का सभी आनंद उठा रहे थे। नाव अपनी मंज़िल की तरफ बढ़ती जा रही थी। नाविक अपना राग छेड़ कर ख़ुशी के गीत गा रहा था। सब बहुत ख़ुश थे।

अब तक दूर से वह दूसरी नाव भी दिखाई दे रही थी। वह नाविक बड़ा ही अनुशासन प्रिय था, 15 मतलब 15, उससे अधिक एक भी सवारी वह कभी नहीं बिठाता था।

यदि कोई 500 के बदले अधिक पैसे देने की बात करे तब भी उसका एक ही जवाब होता था, “नहीं भैया किसी की जान सस्ती नहीं होती। सबके बाल-बच्चे, बूढ़े माँ-बाप होंगे। घर पर परिवार इंतज़ार कर रहा होगा। मेरे ख़ुद के तीन बच्चे हैं, बूढ़े माँ- बाप हैं, पत्नी है। अरे भैया कम खाएंगे पर सुखी तो रहेंगे ना।” 

उधर प्रकाश और पूनम की नाव धीरे-धीरे आगे बढ़ते हुए अपने मुकाम पर पहुँच गई।

नाविक ने नाव को किनारे लगाते हुए कहा, “जाइए साहब जी आपके पास पौन घंटे का समय है। दर्शन करके मेरे लिए भी प्रसाद लाना और वहां ऊपर नींबू पानी बहुत अच्छा मिलता है, ज़रूर पीकर आना। हम यहाँ ज़्यादा से ज़्यादा एक घंटा रुक सकते हैं, उससे अधिक समय मत लगाना।”

सब यात्री नाव से नीचे उतर रहे थे। पूनम ने भी प्रकाश का हाथ पकड़ा और नीचे उतर गई।

प्रकाश ने कहा, “देखो आराम से पहुँच गए ना, तुम फालतू ही डर रही थीं। चलो दर्शन करते हैं. माताजी से अपने उज्ज्वल भविष्य और शांतिमय जीवन के लिए प्रार्थना करते हैं।”

बात करते हुए वह दोनों मंदिर की सीढ़ियाँ चढ़ते हुए ऊपर पहुँच गए।

 

रत्ना पांडे, वडोदरा (गुजरात)

स्वरचित और मौलिक

क्रमशः