Ek Ruh ki Aatmkatha - 54 in Hindi Human Science by Ranjana Jaiswal books and stories PDF | एक रूह की आत्मकथा - 54

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एक रूह की आत्मकथा - 54

"पापा मैं अमी से प्यार करता हूँ।"
अमन की आँखों में आँसू थे।
"तो तुम्हें इस प्यार की परीक्षा देनी होगी।अमृता जल्द ही लंदन चली जाएगी।ग्रैजुशन वहीं करेगी।फिर बिजनेस कोर्स।सात वर्ष बाद ही लौटेगी।इस बीच तुम्हें उसे बिल्कुल डिस्टर्ब नहीं करना है।न तो फ़ोन न चिट्ठी। अगर सात वर्ष उससे दूर रहने के बाद भी तुम्हारा प्यार यूँ ही बरकरार रहता है तो मैं इस प्यार को अपनी स्वीकृति दे दूंगा।"
समर ने दृढ़ स्वर में कहा।अमन का चेहरा उतर गया।
-"पर पापा मैं इतने दिन क्या करूंगा?"
"अपनी पढ़ाई पूरी करोगे फिर बिजनेस कोर्स"
समर ने उसकी आँखों में देखकर कहा।
"इतनी कड़ी परीक्षा तो न लो पापा।कम से कम इतनी इजाजत तो दे दो कि उससे फोन पर बातचीत कर सकूँ।"
"नहीं,इससे तुम्हारा और उसका दोनों का ध्यान बँटेगा ।मैं यह बिल्कुल नहीं चाहता।"समर ने सख़्त लहज़े में कहा।
"पापा....।"अमन ने हाथ जोड़ लिए।
"बेटा, तुम्हें अमृता के लायक बनना होगा।अपनी माँ की दौलत पाकर वह बहुत अमीर हो गई है। तुम्हारा पिता उसी की कम्पनी में काम करके तुम्हें पाल रहा है।जानते हो लोग क्या कहते हैं?वे कहते हैं कि मैं कामिनी के रहमो-करम पर जिंदा हूँ।मैं नहीं चाहता कि कल तुम्हें भी लोग ऐसा ही कुछ कहे।तुम्हारी भी मेरे जैसी स्थिति हो।मैंने जो गलती की थी,उसे तुम उसे मत दुहराओ बेटा।"
"आपने क्या गलती की थी पापा" अमन ने जानना चाहा।
"मैंने कामिनी के प्यार में अपनी पहचान,अपना अस्तित्व,अपना नाम सब पीछे छोड़ दिया था।कभी ग्लैमर की दुनिया में मेरी एक खास जगह थी।कामिनी के साथ रहने की आकांक्षा में मैंने सारा काम छोड़ दिया और सिर्फ उसी का काम करने लगा।एक तरह से उसके अस्तित्व में मैंने खुद का अस्तित्व मिला दिया।यह मेरे प्रेम की चरम परिणति थी। पर दुनिया ने मुझे क्या नाम दिया?"
समर भावुक हो चला था।अमन ने पिता के कंधे पर सहानुभूति से अपना हाथ रखा।
"क्या आपको अपने किए का अफ़सोस है पापा?"
"नहीं ,बिल्कुल नहीं।कामिनी से मैं सच्चा प्यार करता था।इसीलिए उसके अधूरे कामों की ज़िम्मेदारी मुझ पर है।कामिनी ने अमृता के भविष्य के लिए जो सोचा था,उसे मुझे पूरा करना है।वह अच्छी तरह सेटल हो जाए फिर मैं अपनी कामिनी के पास चला जाऊंगा।"
एकाएक समर जैसे अपने -आप से बातें करने लगा था।
"और अपने बच्चों के प्रति आपकी कोई जिम्मेदारी नहीं।"
अचानक लीला ने आकर बाप -बेटे की वार्तालाप के बीच में हस्तक्षेप किया।वह बहुत देर से दरवाजे के पीछे खड़ी पिता -पुत्र की वार्तालाप सुन रही थी।
"क्यों नहीं है और उसे पूरा भी कर रहा हूँ और आगे भी करुंगा।"समर ने जवाब दिया।
"आप क्यों नहीं अमृता से अमन का विवाह करा देते।फिर तो अमृता की सारी सम्पत्ति अमन की भी हो जाएगी।सारी समस्या का समाधान हो जाएगा।"
लीला ने अपनी बात रखी।
"पागल हो गई हो क्या?इन दोनों की क्या अभी शादी की उम्र है? क्या मेरा बेटा ससुराल के धन पर जिंदगी गुजारेगा?नहीं ,उसे खुद आत्मनिर्भर बनना होगा।अपनी मेहनत से अमृता के बराबर खड़ा होना होगा।"
समर ने थोड़ी नाराज़गी दिखाई।
"आपको तो मेरी हर बात बुरी ही लगती है।जीवन -भर उस कामिनी की गुलामी किए ।अब फायदा उठाने का समय है तो आदर्शवादी बन गए।"
लीला ने समर को ताना मारा।
"तुम्हारी टुच्ची सोच और तुम...।मुझे पता है कि मुझे क्या करना है और मैं वही करूंगा। मुझे तुम्हारे सलाह- मशवरे की कोई जरूरत नहीं।"
यह बात कहते हुए समर उठकर अपने बेडरूम की तरफ़ चल दिया।अमन भी अपने कमरे में चला गया।लीला देर तक वहीं खड़ी उस दरवाजे की ओर देखती रही,जिसके भीतर समर गया था।
अब वह समर से पहले की तरह लड़ती- झगड़ती नहीं थी।जब से समर के दिल का ऑपरेशन हुआ है,वह सतर्क रहती है।समर के खान- पान और स्वास्थ्य का विशेष ध्यान रखती है।उसे इसी बात की खुशी है कि उसने अपने- आप को कामिनी के सदमे से उबार लिया है और काम -काज में मन लगा लिया है। अपने काम के बाद समर सीधे घर ही आता है।अब न वह क्लब जाता है और न ही यार -दोस्तों के बीच समय गुजारता है।कामिनी की मृत्यु के बाद से ही वह बहुत ही गम्भीर और चुप हो गया है।ऐसा लगता है कि वह जी नहीं रहा किसी तरह जीवन की गाड़ी खींच रहा है।कभी -कभी उसे गुस्सा आता है कि कामिनी मरकर भी समर के साथ मौजूद है और वह जीते-जी भी उससे दूर ...बहुत ही दूर है।
शायद इसे ही नसीब कहते हैं।संसार में इंसान सब कुछ जबरन पा सकता है,पर किसी का प्यार नहीं ।अब समर और लीला का बेडरूम एक नहीं है ।समर ने घर आने से पहले ही यह शर्त रख दी थी कि उसका बेडरूम अलग होगा।वह अपने बेडरूम में कामिनी की यादों के साथ रहता है। कमरे में कामिनी की बहुत बड़ी तस्वीर है, जिससे वह इस तरह बातें करता है जैसे कामिनी वहां मौजूद हो।
अपने कमरे में आकर समर बिस्तर पर लेट गया और कामिनी से बातें करने लगा।
"मैंने ठीक निर्णय लिया न कम्मो,बोलो न।पुत्र -मोह में विचलित तो नहीं हुआ न!तुम चिंता न करना मेरे होते अमी बिटिया का भविष्य खराब न हो सकेगा। मैं उसे बेहतरीन बिजनेस बुमेन बनाऊँगा।इसीलिए उसे प्रेम -प्यार के बखेड़े से दूर करके लंदन भेज रहा हूँ।"
कामिनी की तस्वीर जैसे जीवंत होकर बोलने लगी-"मुझे तुम पर पूरा विश्वास है समर।तुम जो भी निर्णय ले रहे हो वह समुचित है।"
"यहाँ मेरे पास आओ कामिनी,मुझे अपनी बाहों में भरकर सुला दो।बहुत थक गया हूँ आज ।आओ....।"
समर ने कामिनी को आवाज दी।
सचमुच उसे लगा कि कामिनी तस्वीर से निकलकर उसके बिस्तर तक आई है।उसने बत्ती बंद की है और उसके बगल में लेटकर उसके बालों को सहलाती हुई उसका पसंदीदा गीत गुनगुना रही है।गीत के बोल थे-"मेरा दिल घबराए तेरी आँखों में नींद न आए।चुप हो जा रे सो जा सांवरिया रे .....।"
और सच ही समर गहरी नींद में सो गया।थोड़ी देर बाद लीला ने समर के बेडरूम की खिड़की से झांककर समर को देखा। उसे चैन सोता देख उसने राहत की सांस ली।जब से समर के दिल का ऑपरेशन हुआ है।डॉक्टर ने उसे रात को चैन से सोने की सलाह दी है।नींद न आने पर वह नींद की गोलियां ले लेता है।
उधर अमन अपने बेडरूम में जाग रहा था।उसके पिता ने उसे अमृता से दूर हो जाने की सलाह दी है । वह सोच ही नहीं पा रहा है कि ऐसा वह कैसे कर पायेगा,पर करना तो होगा ही।अगर वह उनकी बात नहीं मानेगा तो उनके दिल पर आघात पहुँचेगा।अगर उनको फिर से दिल का दौरा पड़ गया तो वे नहीं बच सकेंगे।वह अपने प्यार के लिए भी अपने पिता को नहीं खोना चाहता।
उसने फैसला कर लिया कि वह अमृता के लंदन से लौटने तक प्रतीक्षा करेगा और तब तक अमृता से कोई संवाद नहीं रखेगा।