Ek Ruh ki Aatmkatha - 42 in Hindi Human Science by Ranjana Jaiswal books and stories PDF | एक रूह की आत्मकथा - 42

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एक रूह की आत्मकथा - 42

लीला ने सुबह -सुबह ही रेहाना के दरवाजे पर दस्तक थी।रेहाना अभी सो रही थी।आज रविवार था और उसे ऑफिस नहीं जाना था,इसलिए निश्चिंत थी।लीला को आया देखकर उसे मन ही मन गुस्सा आया।'फिर कोई नई प्रॉब्लम लेकर आई होंगी देवी'।
ऊपर से मुस्कुराईं और उसे भीतर आने को कहा।
"अभी तक सो ही रही थी ।?"लीला ने उससे पूछा
"आज रविवार है छुट्टी का दिन।"रेहाना ने जम्हाई लेते हुए कहा।
"छुट्टी का दिन है तो क्या,अपना रूटीन नहीं खराब करना चाहिए।मैं तो छह बजे तक नहा लेती हूँ।"
"ठंड में भी!"
"और क्या!"
"बाप रे!"
"जाओ जल्दी से फ्रेश होकर नहा धो लो।तुम्हें मेरे साथ कहीं चलना है।रास्ते में कहीं नाश्ता कर लेंगे।"
"अरे यार,ऐसी क्या आफ़त आन पड़ी है जो इतनी सुबह कहीं जाना है।"
"मेमसाब नौ बजे रहे हैं।तैयार होने में दस तो बजा ही देंगी।
जाओ जल्दी।"
न चाहते हुए भी रेहाना को तैयार होने के लिए जाना पड़ा।
दस बजे दोनों घर से निकलीं।लीला अपनी गाड़ी से आई थी।दोनों गाड़ी में बैठीं।
"अब तो बता दो मेरी अम्मा,कहाँ चलना है?"रेहाना ने पूछा।
"तांत्रिक बाबा के पास"लीला ने शांति से जवाब दिया।
"उनके पास जाने की क्या जरूरत पड़ गई"रेहाना हैरान हुई।
"समर की हालत बहुत खराब है।वह अपने -आप से बातें करने लगा है।कल रात को ऐसा लगा कि वह कामिनी के साथ हो।कभी उठता था ,तो कभी बैठ जाता था।कभी रोता था तो कभी हँस देता था।कभी ऐसी आवाज निकालता था जैसे किसी से प्यार कर रहा हो या कोई उससे प्यार कर रहा हो।
मुझे लगता है कि कामिनी की बच्ची ने मरकर भी उसका पीछा नहीं छोड़ा है।यही हाल रहा तो किसी दिन इसे अपने साथ ले जाएगी।"
"क्या बकवास कर रही है?ऐसा कुछ नहीं होता।भूत- प्रेत चुड़ैल- जिन्न सब मन का भरम है।यह एक मानसिक बीमारी है जिसमें आदमी तरह तरह की हरकतें करता है कई तरह की आवाजें निकालता है।कोई मानसिक आघात इस बीमारी का कारण होता है।
वैसे भी भय ही भूत होता है। अच्छा यह बता -हिन्दी में भूत ,अंग्रेजी में, पास्ट का क्या मतलब हैं ?"
" बीता हुआ"लीला ने बताया।
"तो जो बीत गया ,गुजर गया यानी खत्म हो गया। वह वापस आकर कष्ट कैसे दे सकता है?" रेहाना ने तर्क दिया।
"पर मैंने खुद अपने गाँव में भूतग्रस्त औरतों को खेलते देखा है।इस दौरान वे उछल-उछल कर गिरती हैं, उन्हें बहुत चोटें भी आती हैं ।कोई जानबूझकर अपने शरीर को क्यों कष्ट देगा ? "
लीला ने अपनी बात रखी ,तो रेहाना ने उसे समझाया-"अरी पगली तू किस जमाने की बात कर रही है।ये सब बहुत पुरानी बातें हैं।गाँव अब बहुत बदल चुका है।''
"ऐसा नहीं है अक्सर ये खबरें आती रहती हैं कि अमुक औरत जब रात -बिरात बाहर गई तो उसे चुड़ैल या भूत ने पकड़ लिया।फिर ओझा या किसी बाबा की मदद से उसे मुक्ति दिलाई गई।"
"कुछ हद तक तुम्हारी बात भी ठीक है कि गांव और कस्बों से कभी -कभार ऐसी घटनाएं निकलकर सामने आती हैं,पर वहाँ भी चुड़ैल या भूत का मामला नहीं होता।शिकारग्रस्त औरत के मनोविज्ञान का होता है।"
"वो कैसे?" लीला ने उत्सुकता दिखाई।
"देखो जब मन का कष्ट बहुत बढ़ जाता है, तो तन के कष्ट की तरफ ध्यान नहीं जाता । तू तो जानती ही है कि गांव में औरतों के जिम्मे कितना काम होता है ।सुबह से रात तक वे खटती रहती हैं ।कूटना-पीसना, फटकना -पछोरना, पकाना-खाना, बर्तन भड़िया, झाड़ू-बहारु के साथ ही अचार ,बडी़ पापड़ ,बनाना ,गोबर -पाथना, गाय-भैंस की देखभाल। कितना गिनवाऊँ ? ऐसे में उनको अपने बारे में सोचने का अवसर ही नही मिलता ।बिल्कुल बंधुवा मजदूर होती हैं वे।ऐसे में रात -बिरात या ब्राह्म मूहूर्त में बाहर शौच जाने के बहाने उन्हे थोड़ी देर के लिए आजादी मिलती है। उस समय उनकी दमित इच्छाएं-कल्पनाएं खुली हवा में साँस लेती हैं। उनके काट दिए गए पंख,उनके शरीर से आ लगते हैं।वे खुले आकाश में उड़ जाना चाहती हैं,पर अपने दमित जीवन की विवशता व बन्धनों के बारे में सोचकर वे उदास हो जाती हैं। वे सोचती हैं-आखिर क्यों वे अन्याय-अत्याचार सहकर भी चुप रहने को विवश हैं।वे कब तक, कितना और क्यों सहें? अपनी वस्तु-स्थिति का ज्ञान उनमें बदले की भावना भर देता है। परिणाम यह होता है कि घर पहुँचते-पहुँचते उन्हें चुड़ैल पकड़ चुकी होती है। फिर वे कभी हँसती हैं,कभी विलाप करती हैं और हाथ-पैर,सिर पटकती हैं। दरअसल वे अपने को मनुष्य समझे जाने के लिए चीत्कार करती हैं। घर में रहने पर वे पर्दानशीन माँ-बहन,बेटी-बहू होती हैं। किसी से अपनी व्यथा नहीं कह सकतीं, तो चुड़ैल के बहाने ही अपनी भड़ास निकाल लेती हैं।"
"तो इसका मतलब औरतों की अतृप्त इच्छाएं व दमित स्वतन्त्रता ही चुड़ैल होती है पर सोखा या बाबा तो उन्हें बहुत मारता -पीटता है। फिर उनके घर के मर्द मना क्यों नही करते ? "
"क्योंकि जिस तरह दमित गुलाम स्त्रियों की इजाद चुड़ैलें है, उसी प्रकार मर्दो की इजाद ,सोखा या बाबा हैं ,। मर्द समाज जानता था कि स्त्रियों पर सवार चुड़ैलें उनके घर की इज्जत का तमाशा बना सकती हैं । घर की भीतरी कालिख को सबके सामने उनके मुँह पर मल सकती है ,आजाद हो सकती हैं । इसलिए उन्हें नियन्त्रण में रखने के लिए सोखा की परिकल्पना की। इस तरह स्त्रियां डाल-डाल थीं तो मर्द -समाज पात-पात निकला।महिला सोखा का निर्माण उसने इसलिए नहीं किया कि हो सकता है स्त्री होने के नाते उसे चुड़ैलों से बहनापा हो जाता,या फिर महिला चुड़ैलों की इतनी दुर्दशा न कर पाती -जिससे हमेशा के लिए वे भाग जाएं और औरत फिर से मादा बन जाए। सोखा का इसलिए मर्द समाज बड़ा सम्मान करता था, उसको किसी भी चीज की कमी नहीं होने देता था।"
"मान लिया पर ये भी सच है कि दो प्रेमियों में से एक की अगर अकाल मृत्यु हो जाती है तो वह दूसरे को चैन से नहीं रहने देता।वह उसे अपने साथ ले जाना चाहता है।समर के साथ भी कुछ ऐसा ही न हो रहा हो।"
"ऐसा कुछ नहीं है।समर कामिनी से बहुत प्यार करता था।इसलिए वह उसे अपने आस -पास महसूस करता होगा।उससे वार्तालाप करता होगा।अभी ज़ख्म ताजा है।समय के साथ सब ठीक हो जाएगा।"
"तो हमें उसे किसी तांत्रिक बाबा को दिखाना ठीक नहीं है।" "मेरे विचार से नहीं।इससे अच्छा है कि धैर्य और संयम के साथ समर को इतना प्यार दो, उसका इतना केयर करो कि वह कामिनी को भूल जाए।"
रेहाना ने अपनी बात रख दी।लीला को उसकी बात समझ में आ गई थी।उसने गाड़ी को अपने पसंदीदा रेस्टोरेंट की ओर मोड़ दिया।रेहाना ने उसे आश्चर्य से देखा तो उसने मुस्कुराकर कहा-"इस बाबा ने इतना ज्ञान दिया है तो उसे कॉफी तो पिलानी पड़ेगी न!"
रेहाना ने उसकी बात पर ज़ोरदार ठहाका लगाया।