Virasat - 4 in Hindi Short Stories by Neelam Kulshreshtha books and stories PDF | विरासत - भाग 4

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विरासत - भाग 4

1 - ज़िम्मेदारी

[ नीलम कुलश्रेष्ठ ]

ससुर व पति की कड़ी हिदायत है, घर की देहर लाँघकर घर की स्त्रियाँ बाहर कमाने नहीं जायेंगी।

वह पिंजड़े में बंद मैना-सी घर में फड़फड़ाती है, छटपटाती है, क्यों कि उसने स्वर्ण पदक लेने के लिये इतनी कड़ी मेहनत की थी? घर तो वैसे भी साफ़ रख सकती थी, खाना तो बिना पढ़े वैसे भी बना सकती थी ।

वह मेरे पास आकर अपना गुस्सा निकालती है, “आप देखना, मैं अपनी बेटी को इतना महत्त्वाकांक्षी बनाऊँगी । कैरियरिस्ट बनाऊँगी। जिससे उसकी ज़िन्दगी रोटी के घेरे में ही गोल-गोल घूमती न रह जाये। ”

मैं उसे समझाती हूँ, “उसके व्यक्तित्व से छेड़छाड़ मत करो, उसे नैसर्गिक रूप में विकसित होने दो।”

अक्सर वह देखती है, उसकी लड़की गत्ते के टुकड़े व अपने खिलौने इकट्ठे करके घर बनाकर खेला करती है। वह कुढ़ती है, ज़िद करती है, “क्या तुम्हारे लिये यही खेल बचा है ?”

बेटी उत्तर देती है, “मुझे घर-घर खेलना अच्छा लगता है मम्मी।”

एक दिन उसकी बिटिया इसी खेल में मगन है, अभिनय करती जा रही है, “शोर क्यों मचा रहे हो ? खाना लाती हूँ।”

वह गुस्सा होती है, “तुम किचिन में क्या समय बर्बाद कर रही हो ? ऑफ़िस जाओ।”

बेटी को इस खेल में मज़ा आता है । वह अभिनय करती है, “मैं किचिन से बाहर आ गयी हूँ । ऑफ़िस के लिये तैयार हो रही हूँ।”

अब माँ भी उत्साहित है, “अब तुम तैयार हो गयी। जल्दी कार निकाल कर ऑफ़िस जाओ।”

बच्ची ताली बजाती है, “कार में ऑफ़िस? बड़ा मज़ा आयेगा। लीजिये, मैं कार निकालने जा रही हूँ ।”

वह सचमुच कार की स्टियरिंग घुमाने का अभिनय करती दरवाज़े की तरफ़ बढ़ती है लेकिन दरवाज़े के पास जाते ही ठिठक कर खड़ी हो जाती है । वह मासूम नन्हीं जान असमंजस में पलट कर माँ से पूछती है, “मम्मी ! मैं कार में बैठकर ऑफ़िस चली जाऊँगी तो मेरे पीछे मेरे बच्चों का क्या होगा ?”

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2 - परिणाम ?

"मैं तो लड़कियों से बात नहीं करता। "

"क्यों ?"अपने नौ वर्षीय पोतु की बात से वह बहुत चौंक गई.

"हमारे क्लास की सारी लड़कियां बहुत बदतमीज़ हैं। किसी से कहो कि तुम्हारा कम्पास बॉक्स बहुत सुन्दर है तो चिल्लायेंगी 'सो वॉट? वॉट इज़ योर प्रॉब्लम ? माइंड ओर ओन बिज़नेस ?'.किसी से कोई सम्स पूछो तो चिलायेंगी 'आर यू डफ़र ?' मुझे व हर्ष को बिलकुल लड़कियां अच्छी नहीं लगतीं। "

"उस दिन तो तुम टी वी देखते हुए बहुत दुखी हो रहे थे कि आपको पता है कितनी सारी लड़कियां पेट में मार दी जातीं हैं ."

"वो तो उनकी पेट में हत्या की जाती है इसलिए बुरा लग रहा था लेकिन मैंने व हर्ष ने तय कर लिया है कि हम शादी नहीं करेंगे। "

उसे हंसी रोकनी मुश्किल हो रही है ,"अभी पढ़ तो लो तब शादी की बात बाद में सोचना। क्या तुम्हारे क्लास में एक दो लड़की भी अच्छी नहीं हैं ? "

"हाँ,वैसे सम्पदा ठीक से बात करती है। आज एक लड़की को गलती से धक्का लग गया तो मुझे मारने लगी ."

"तो बदतमीज़ लड़कियों को तुम क्यों नहीं डाँट देते ? मारने वाली लड़की को डाँट नहीं सकते थे कि ग़लती से धक्का लग गया है। "'

वह मासूम व लाचार सी सूरत बनाकर कहता है, "हम उन्हें कैसे डाँट सकते हैं ?वो चल रहा है न 'बेटी बचाओ ',बेटी पढ़ाओ '. "

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श्रीमती नीलम कुलश्रेष्ठ

e-mail—kneeli@rediffmail.com