Ek Ruh ki Aatmkatha - 39 in Hindi Human Science by Ranjana Jaiswal books and stories PDF | एक रूह की आत्मकथा - 39

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एक रूह की आत्मकथा - 39

नशे में धुत्त कामिनी को मयंक किसी तरह होटल के उसके कमरे तक ले आया था।ज्यों ही उसने उसके बेड पर लिटाया,वह समर.. समर कहती हुई उससे लिपट गई। बड़ी मुश्किल से उसने उससे खुद को छुड़ाया।उसने सोचा कि उसे नशा काटने वाली सुई लगा दे।वह अपने कमरे में गया और अपना मेडिकल बैग लेकर आया।उसमें फस्ट एड बॉक्स से लेकर इमरजेंसी में सर्जरी करने तक का सामान था।
जब वह दुबारा कामिनी के कमरे में आया ,तो उसे देखता ही रह गया।कामिनी बेसुधी में अर्धनग्न हो गईं थी। उसकी सफेद संगमरमर -सी जांघें और सुडौल वक्ष रोशनी में चमचमा रहे थे ।उसके संतरे की फांक से होंठ जैसे उसे आमंत्रित कर रहे थे।वह खुद पर काबू खोने लगा।एक बार उसके दिल में आया कि यह समर की अमानत है ।फिर उसने यह ख्याल दिल से झटक दिया -'ऊँह,कौन यह समर की पत्नी है ।माशूका ही तो है फिर क्या समर क्या मैं!जान थोड़े पाएगी।रोज समर के साथ यही करती है ।नशे में उसे क्या पता चलेगा!'
उसने बैग एक तरफ रखा ।अपने कपड़े उतारे और कामिनी के पास लेट गया पर उसने कामिनी के होंठ चूमे ही थे कि उसकी आंख खुल गई।नशे में भी उसे समर की छुअन याद दी।उसे लग गया कि चूमने वाला समर नहीं है।
"तुम ...तुम ये क्या कर रहे हो?समर कहाँ है?मैं सब कुछ बता दूँगी...तुम...!"
कामिनी ने उसे अपनी देह से ढकेलते हुए उठने की कोशिश की।मयंक घबरा गया।वह नीचे उतरा।उसने तुरत अपना बैग खोला और इंजेक्शन में बेहोशी की दवा भर ली।कामिनी बिस्तर से उतर ही रही थी कि उसने उसकी बाँह में सुई लगा दी।'छोड़ो... छोड़ो' कहते हुए कामिनी फिर से बिस्तर पर गिर पड़ी।अब वह पूरी तरह अपना होश खो बैठी थी।मयंक ने उसकी देह से जी -भर अपनी प्यास बुझाई फिर 'सॉरी डार्लिंग' कहते हुए सर्जरी की छूरी से उसके गले की नस काट दी।वह सर्जन था।बड़ी सफाई से उसने हत्या के सारे सबूत मिटा दिए।उसने कामिनी के अंगूठे पर स्याही लगा दी ताकि हत्या की वज़ह कुछ और लगे।सब कुछ निबटाकर उसने अपने कपड़े पहने।अपने कमरे में जाकर अपना बैग रखा और फिर से पार्टी में चला गया।
उसने समर से कह दिया कि कामिनी ठीक है और सो रही है।वह चाहता था कि सुबह होने के कुछ देर पहले ही होटल लौटे और तुरत होटल से एयरपोर्ट की तरफ निकल जाए।समर को वह कुछ ज्यादा नशा करा देगा ताकि वह होटल जाकर सो जाए।देर से उठेगा तब उसे कामिनी की हत्या का पता चलेगा।तब तक वह सुरक्षित निकल चुका होगा।
उसने जो योजना बनाई ,उस पर अमल किया और साफ़ बचकर निकल गया।अमेरिका पहुँचकर ही उसकी जान में जान आई।उसे इस बात का अफसोस था कि उसे कामिनी की हत्या करनी पड़ी,पर उसके सामने कोई और रास्ता भी तो नहीं था।कामिनी उसे पहचान गई थी।अगर वह समर से सब कुछ बता देती तो वह कहीं का नहीं रहता।उसकी दोस्ती तो टूटती ही वह रेप के इल्जाम में जेल चला जाता।फिर उसकी कितनी बदनामी होती।
कामिनी को देखते ही वह उसकी सुंदरता पर मोहित हो गया था।उसे समर से ईर्ष्या होने लगी थी।हालांकि उसने अपने मन को मार लिया था,पर पार्टी की रात नशे में धुत्त कामिनी को देखकर उसके भीतर का जानवर जाग गया था।अगर कामिनी स्वेच्छा से मान जाने वाली स्त्री होती ,तो ये सब नहीं होता।पर ग्लैमर की दुनिया में काम करने के बावजूद उसके भीतर की संस्कारी औरत मरी नहीं थी।वह समर के साथ 'लिव इन' में इसलिए रहती थी कि उसे सच्चा प्यार करती थी।उसने समर के प्यार के लाल रंग से अपनी मांग भर ली थी।उसे यह सब पता था फिर भी उससे इतना बड़ा अपराध हो गया था।सचमुच वह नीच है उसने अपने दोस्त के साथ दगा किया।
मयंक के क़बूलखाने से सबसे अधिक झटका समीर को लगा।उसकी कामिनी को उसकी जिंदगी से दूर करने वाला उसका अपना मित्र निकला।वह मित्र ,जो उसके बचपन का साथी ,सहपाठी ...हमदर्द ,राज़दार ही नहीं कामिनी की तरह अज़ीज़ भी था।
दिलावर सिंह अपनी जीत पर बहुत खुश थे।उन्होंने न केवल एक निर्दोष को बचाया था ,बल्कि असल गुनहगार को जेल की सलाखों के पीछे पहुँचा दिया था। लीला ने भी सुकून की सांस ली।उसे तो पहले से ही यह पता था कि समर निर्दोष है।राजेश्वरी देवी और नंदा देवी की चिन्ता मिटी कि उनके अपने बेटे फँसने से बच गए,पर समर के छूट जाने से उन्हें ज़रा भी खुशी नहीं हुई।दोनों अब अमृता को अपनी ओर खींचने का प्रयास कर रही थीं ।
अमृता कामिनी की अपार दौलत की स्वामिनी बन गई थी।उसकी उम्र कम थी और वह बहुत ही सरल -सीधी लड़की थी।कोई भी उसे आसानी से बहका सकता था।इस समय उसे एक ऐसा गार्जियन चाहिए था,जो निस्वार्थ भाव से उसे आगे का रास्ता सुझाए।उसकी सुरक्षा करे।ऐसा बस एक ही आदमी था और वह समर था,पर अभी समर की मनःस्थिति ऐसी नहीं थी कि अमृता का संरक्षक बन सके।एक सच यह भी था कि इस बारे में वह अपनी ओर से पहल भी नहीं कर सकता था।सब कुछ अमृता के ऊपर निर्भर करता था,पर अभी अमृता चुप थी।वह अपनी माँ के हत्यारे को सख्त से सख्त सज़ा दिलाने की दिशा में ही सोच रही थी।
स्वतंत्र और उमा में संघर्ष जारी था।बच्चियों के बारे में सोचकर दोनों अलग नहीं हो पा रहे थे।प्रथम अपने साथी परम के साथ खुश था।
उधर समर का बेटा अमन परेशान था।उसने बहुत पहले ही अमृता से अपनी दोस्ती तोड़ दी थी।वैसे भी उसकी माँ लीला उनकी दोस्ती को पसंद नहीं करती थी।वह अमृता से प्यार करता था पर अपने पिता समर का अमृता की माँ कामिनी से रिश्ता वह बर्दाश्त नहीं कर पाया।माँ के आंसुओं ने उसके मन में कामिनी के लिए नफ़रत जगा दी थी।इस नफ़रत की आग में अमृता से उसका रिश्ता भी झुलस गया था।कामिनी की हत्या से वह खुश था ,पर पिता की गिरफ़्तारी ने उसकी वह खुशी भी छीन ली।वह अपनी माँ के साथ पिता को छुड़वाने का प्रयास कर रहा था।
इस बीच अमृता से उसकी मुलाकात पुलिस थाने के बाहर हुई थी ।अमृता का मुरझाया चेहरा देखकर उसके दिल को ठेस लगी थी।उसने सोचा था कि आखिर अमृता का इसमें क्या दोष है?उसकी माँ कामिनी के गुनाहों की सजा वह उसे क्यों दे रहा है?
अपने पिता समर की रिहाई के बाद वह अमृता से मिलना चाहता था।उसका दुःख बंटाना चाहता था।उसने उसे कई बार फोन भी किया,पर अमृता ने फोन उठाया तक नहीं।वह समर के व्यवहार से आहत हुई थी।उसने उसका साथ उस वक्त नहीं दिया था,जब उसकी उसे सबसे ज्यादा जरूरत थी।वह सिर्फ उसकी माँ को दोषी कैसे मान सकता है?अगर प्यार करना दोष है तो उसके पिता ने भी तो गलती की थी।वह तो समर और अपनी माँ के बीच के सम्बंध को गलत ही नहीं मानती क्योंकि वह उनके बीच के सच्चे प्यार की जानती थी।