Aakhir woh kaun tha - Season - 2 - Last part in Hindi Fiction Stories by Ratna Pandey books and stories PDF | आख़िर वह कौन था - सीजन 2 - अंतिम भाग

Featured Books
  • خواہش

    محبت کی چادر جوان کلیاں محبت کی چادر میں لپٹی ہوئی نکلی ہیں۔...

  • Akhir Kun

                  Hello dear readers please follow me on Instagr...

  • وقت

    وقت برف کا گھنا بادل جلد ہی منتشر ہو جائے گا۔ سورج یہاں نہیں...

  • افسوس باب 1

    افسوسپیش لفظ:زندگی کے سفر میں بعض لمحے ایسے آتے ہیں جو ایک پ...

  • کیا آپ جھانک رہے ہیں؟

    مجھے نہیں معلوم کیوں   پتہ نہیں ان دنوں حکومت کیوں پریش...

Categories
Share

आख़िर वह कौन था - सीजन 2 - अंतिम भाग

आदर्श ने हकलाते हुए कहा, “गुनहगार… यह तुम क्या कह रही हो श्यामा?”

“ठीक ही तो कह रही हूँ आदर्श, अब तक तो मैं अंजान थी लेकिन अब सब जान गई हूँ। मैंने कभी अपने पेशे में बेईमानी नहीं की। ना कभी पैसे के पीछे भागी। तुम पैसा कमा रहे थे मैंने इज़्ज़त कमाई। बच्चों को बहुत ही अच्छे संस्कार दिए। तुम्हारा भी इस शहर के बड़े बिल्डर्स में नाम था, इज़्ज़त थी, दौलत थी, शौहरत थी और मैं थी आदर्श। फिर क्यों तुमने…,” कहते हुए श्यामा रो पड़ी।

“तुमने मेरे स्वाभिमान को ठेस पहुँचाई है आदर्श। तुम मुझसे मेरी जान भी मांगते ना तो मैं दे देती लेकिन माफ़ी प्लीज़ वह नहीं मांगना, मैं दे ना पाऊंगी।”

आदर्श पत्थर के बुत की तरह चुपचाप खड़ा सुन रहा था, कहने के लिए शायद उसके पास कोई शब्द ही नहीं थे। साड़ी के पल्लू से अपने आँसुओं को पोंछते हुए श्यामा ने फिर कहा, मैंने हमेशा सच्ची और अच्छी वकालत की है तो अब भी मैं इंसाफ़ के तराजू में जो हक़ीक़त है, जो सच्चाई है, उसी पलड़े का साथ निभाऊंगी। पत्थर का बुत बना आदर्श बात की गंभीरता को समझ रहा था।

बात और अधिक ना बिगड़े उसे संभालने के लिए उसने कहा, “श्यामा एक छोटी-सी ग़लती की इतनी बड़ी सजा दोगी मुझे? छोड़ दोगी मुझे?”

“छोटी-सी ग़लती… वाह आदर्श वाह, यह ग़लती छोटी-सी तुम्हारे लिए हो सकती है लेकिन उस अभागन के लिए तुम्हारी इस ग़लती से बड़ी दूसरी और कोई ग़लती हो ही नहीं सकती। धिक्कार है आज भी तुम उस पाप को छोटी-सी ग़लती कह रहे हो। यदि मैंने अपनी इच्छा और ख़ुशी से आधा घंटा किसी के साथ बिताया होता तब भी क्या तुम उसे छोटी-सी ग़लती मान रहे होते? नहीं आदर्श तुम्हें यदि वह मालूम पड़ जाता तब तुम मुझे छोड़ देते। उसके बाद शायद कभी माफ़ भी नहीं करते।”

करुणा अपने कमरे में गुमसुम बैठी अपने सुखी और संपन्न परिवार को टूटता हुआ देख रही थी। वह जान गई थी कि दुनिया में ऐसा कोई पदार्थ नहीं बना जो अब इस टूटते रिश्ते को जोड़ सकेगा। वह जान रही थी कि ना ही ऐसी कोई सीमेंट है जो इस तरह टूटे मकान की दीवारों को जोड़ सकती है। करुणा ने काफ़ी वर्षों तक मौन रहकर इस बिखराव से अपने परिवार को बचाए रखा लेकिन आज वह हिम्मत हार चुकी थी। वह सोच रही थी कि जब बच्चों को तलाक का पता चलेगा तब वह भी कारण पूछेंगे। उन्हें हम क्या जवाब देंगे। इसी कश्मकश में वह परेशान हो रही थी।

बच्चों को भी जल्दी ही पता चल गया कि उनके माता-पिता अब इस उम्र में तलाक लेने जा रहे हैं। अमित और स्वाति दोनों भाई बहन यह सुनकर सीधे आदर्श और श्यामा के सामने आकर खड़े हो गए।

अमित ने नाराज़ होते हुए पूछा, “पापा यह क्या हो रहा है? मम्मा आप लोग इस उम्र में तलाक…”

आदर्श चुपचाप खड़ा था।

अमित ने श्यामा की तरफ़ देखते हुए कहा, “मम्मा आप ही बता दो, आख़िर हुआ क्या है? क्या ग़लती कर दी है पापा ने, जो आप तलाक तक पहुँच गई हो।

स्वाति ने कहा, “मम्मा, पापा तो कितना प्यार करते हैं आपको। ना ही हमारे घर में हमने कभी भी आप लोगों के बीच कोई बड़ा झगड़ा होते हुए देखा है। फिर यह अचानक क्या हो गया? मम्मा प्लीज बताओ? हमारे बारे में भी नहीं सोच रहे हैं आप लोग?”

अमित ने कहा, “आख़िर क्यों मम्मा? आख़िर क्यों?”

उन दोनों के लिए आख़िर क्यों यह बहुत बड़ा प्रश्न था । उन्हें इसका जवाब चाहिए था लेकिन कौन दे पाएगा उन्हें इस प्रश्न का जवाब। आदर्श की आँखें शर्म से नीचे झुकी हुई थीं। 

एक छोटी-सी बंद खोली के अँधेरे में अल्हड़ नादान के साथ किया हुआ कुकर्म इस तरह से भविष्य में उसके कर्मों को उजागर कर देगा, उसने कभी सोचा ना था। ना उसमें हिम्मत थी अपने बच्चों को इस तलाक का कारण बताने की और ना ही श्यामा के होंठ खुल पा रहे थे बच्चों को यह बताने के लिए कि उनका पिता एक बला… है।

 

रत्ना पांडे, वडोदरा (गुजरात)

समाप्त