Sapne - 40 in Hindi Fiction Stories by सीमा बी. books and stories PDF | सपने - (भाग-40)

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सपने - (भाग-40)

सपने.....(भाग-40)

आस्था शेखर से बात करके हटी तो उसने स्नेहा को फोन किया, " स्नेहा अपनी शादी की तैयारियों और नौकरी में खूब बिजी है, फिर आस्था ने उसे बताया कि, "उसकी फोटो न्यूज पेपर में आयी है और तुझे कोई परवाह ही नहीं.....सहेली को भूल गयी मंगेतर मिलते ही...सही है बेटा"! "अरे आस्थू रूक जा, क्यों हर वक्त गुस्सा तेरी नाक पर रहता है।अखबार पढने का टाइम मिलता नहीं, तुझे पता है न कितनी अफरा तफरी में रहती हूँ। घर आ कर ट्यूशन पढाना होता है....माफ कर दे", स्नेहा ने उसे मनाते हुए कहा। "ठीक है माफ किया....मैं आ रही हूँ एक हफ्ते में तब मिलकर तेरी बाकी शॉपिंग करेंगे और यहाँ से कुछ चाहिए तो बता दे"। " ये तो बढिया खबर सुनायी है, अब आ जा जल्दी से, बहुत सारी बातें करनी हैं तुझसे"! "हाँ ठीक है स्नेहू पर मेरे घर पर मत बताना, उनको सरप्राइज देना है"। "हाँ ठीक है हिरोइन नहीं बताऊँगी, पर तू बता वहाँ सब कैसा है? पिछली बार बात हुई थी तो तूने बताया था कि तेरा डायरेक्टर और एक लडका और था जो तेरे प्यार में था और तूने मना कर दिया.....तो उसके बाद कोई और मिला तुझे? और वो तेरे दिल्ली वाले दोस्त के क्या हाल चाल हैं"? सब ठीक हैं और बाकी बातें आ कर बताऊँगी अब चल बॉय, कह कर आस्था ने फोन रख दिया.......स्नेहा और घर पर सबसे बात करके उसे लग रहा था कि उड़ कर उनके पास पहुँच जाऊँ। फोन पर बातें करते करते उसे टाइम का ध्यान ही नहीं रहा...8 बज गए थे और राजशेखर नहीं आया था। उसने किचन में जा कर देखा तो दाल और सब्जी बनी हुई थी......चपाती के लिए आटा लगा कर सविता फ्रिज में रख कर गयी थी। सलाद वगैरह सब तैयार करके गयी थी वो.....यही तो बात थी सविता की.....सब काम बिना कहे ही कर देती है......कुछ देर में राजशेखर भी आ गया, पर वो अकेला नहीं था उसके साथ रश्मिकीर्ति भी थी......। आस्था ने हाय हैलो करके उनको पानी दिया फिर खाने का पूछा तो राजशेखर ने अपने बैग से एक लिफाफा निकाल कर देते हुए बोला, "सविता ताई सब बना कर गयी हैं....बाकी रोटी वगैरह हम ले आए हैं....तुम दोनो टेबल लगाओ मैं आता हूँ"। राजशेखर जब तक फ्रैश हो कर आया तब तक आस्था ने सब गरम कर दिया था और प्लेटस पानी सब लगा दिया था। रश्मिकीर्ति भी आस्था की हेल्प कर रही थी। "राज आज तुम लेट हो गए न"! आस्था ने पूछा तो रश्मिकीर्ति बोली," एक्चुअली राज ने मुझे रात को ही बोल दिया था कि मैं कुछ कपड़े ले कर ऑफिस आऊँ पर मैं भूल गयी थी, सो मैं जल्दी घर गयी वहाँ से बैग लिया तब और राज ने मुझे पिक कर लिया तभी लेट हो गए"। "ओ के, रश्मि कोई बात नहीं मैंने तो ऐसे ही पूछा...तुम दोनो कहीं जा रहे हो रश्मि, बैग ले कर आयी हो न"! ....आस्था का ध्यान सोफे की साइड पर रखे बैग पर अब ध्यान गया था.....! "नहीं आस्था हम लोग कहीं नहीं जा रहे हैं, ये यहीं रहेगी सोफिया और श्रीकांत के आने तक....तुम्हें कंपनी मिल जाएगी" .....राज ने कहा! रश्मिकीर्ति बोली, "हाँ मुझे अच्छा लगा कि तुम सारे दोस्त कैसे एक दूसरे का ध्यान रखते हो"! "ये तो बहुत अच्छी बात है, थैंक्स राज तुमने इतना ध्यान रखा......थैंक्स यू टू रश्मि यू आर सो स्वीट"! राजशेखर बोला, "थैंक्स मुझे नहीं नवीन को बोलो.....उसे तुम्हारी ज्यादा चिंता थी और सॉरी आस्था अगर नवीन न कहता तो मेरा तो ध्यान ही नहीं जाता इस तरफ.......उसका क्रेडिट मैं नहीं ले सकता...."। "ओ के ठीक है राज सबको थैंक्स", कह कर मीठा सा मुस्कुरा दी आस्था।
खाना खा कर आस्था ने बर्तन अलग करके रख दिए और सोने के लिए कमरे में आ गयी। राजशेखर और रश्मि कोई प्रोग्राम देख रहे थे टीवी पर......उन्होंने आस्था को भी बोला बैठने के लिए पर आस्था को लग रहा था कि वो कबाब में हड्डी लगेगी वहाँ बैठ कर, तो नींद का बहाना बना कर आ गयी। रश्मि से उसने पूछा कि वो अलग रूम में सोना चाहेगी या मेरे साथ शेयर करेगी.....इस पर राज बोला, "तुम्हारे साथ ही सो जाएगी वरना रहने का क्या सेंस होगा"? रश्मि ने भी कहा," वो कुछ देर में आ रही है"। आस्था ने बेड लगाया और लेट गयी.....वो आदित्य को बहुत मिस कर रही थी, वो उसे कभी यूँ अकेला नहीं रहने देता.....वो अपने आस पास सबके बारे में सोचता है। वो आदित्य के ख्याल मन से हटा कर सोने की कोशिश कर रही थी पर जो हम नहीं सेचना चाहते वही रह रह कर मन में आता है......करवटें बदल बदल कर परेशान हो गयी......अभी तो 11 ही बजे हैं सोच कर उसने नवीन के फोन किया तो नवीन ने बताया कि, "वो अपने एक दोस्त के साथ हॉस्पिटल में आया हुआ है, टाइम लगेगा कल कॉल करता हूँ"। आस्था का मन कर रहा था कि आदित्य से एक बार बात कर लूँ.....पर वे करना या ना करने में अटकी थी....फिर कुछ सोच कर उसने फोन कर ही लिया। फोन मिलाया तो आदित्य ने फोन नहीं उठाया....2-3 बार ट्राई करने पर भी नहीं आदित्य ने फोन नहीं उठाया तो उसने फोन रख दिया.....उधर दिल्ली में आदित्य अपने कमरे में लेटा हुआ था.....उसने देखा कि आस्था कॉल कर रही है, बात तो वो भी करना चाहता था पर उसे नवीन की बात याद आ जाती कि, "आसानी से Available है तभी वो तुझे सीरियसली नहीं लेती तो उसने फोन को साइलेंट पर कर दिया"। उसे आस्था को इग्नोर करना बुरा तो लग रहा था....पर ये आदित्य के खुद के लिए भी तो एक तरीके से इम्तिहान की घड़ी थी। सो मन मार कर फोन के साइड में रख कर लेटा रहा......पर नींद तो उसकी आँखो में भी नहीं थी.....। उधर रश्मि जब रूम में आयी तो उसे लगा आस्था सो गयी है,पर आस्था ने जान बूझकर आँखे बंद कर ली और रश्मि बिना आवाज किए रूम से वापिस चली गयी। राजशेखर ने जब रश्मि को अपने कमरे में देखा तो उसने पूछा, "क्या हुआ? तुम अपने रूम में नही गयी"? "राजू वो तो सो गयी है, हम बातें करते हैं न यहीं"! रश्मि की बात सुन कर राजशेखर बोला, " देखो रश्मि ये हमारा पर्सनल फ्लैट तो है नहीं.... जो हम यूँ एक साथ एक कमरे में रहे..... वैसे भी आस्था है, बेशक वो सो रही है, पर मेरे लिए थोड़ा ऑकवर्ड हो जाएगा, मुझे भी तुम्हारे साथ टाइम स्पैंड करना अच्छा लगता है, पर अभी तुम जा कर सो जाओ.....वैसे भी कल ऑफिस जाना है"।राजशेखर की बात सुन कर रश्मि हँसती हुई बोली, "राजू तुम तो ब्लश कर रहे हो...आजकल के लडकों को देखो अपनी गर्लफ्रैंड के आगे पीछे घूमते रहते हैं और तुम मुझे अपने रूम से निकाल रहे हो... सो क्यूट, रिलेक्स मैं जा रही हूँ तुम भी सो जाओ...गुडनाइट"! "गुडनाइट", राजशेखर ने भी जवाब दे कर अपना रूम बंद कर लिया...। अगले दिन आस्था जब तक उठी तब तक राजऔर रश्मि दोनो ऑफिस चले गए थे.....उधर आदित्य सुबह उठा तो उसके डैड ने ऑफिस जाने से पहले उसे कहा कि," वो आस्ट्रेलिया जा कर अपना नया बिजनेस संभाले, अब तो जॉब करके भी देख लिया"! " जी डैड मैं भी यही सोच रहा हूँ पर मुझे थोड़ा टाइम चाहिए होगा....कुछ काम हैं वो निपटा कर जाता हूँ"!" ओ के बेटा तुम जितना टाइम लेना चाहो लो, पर अब बिजनेस तो तुम्हें संभालना ही पड़ेगा"! "जी डैड"! आदित्य को पता था कि ये दिन कभी न कभी आना ही था, फिर कितने दिन वो यूँ ही खाली रहेगा....डैड को भी हेल्प की जरूरत है। आदित्य कुछ सामान ले कर ड्राइवर के साथ राधा अम्मां को मिलने हरिद्वार चला गया। राधा अम्मां अपने "आदि बाबा" को देख कर बहुत खुश हो गयी.....राधा अम्मां की जरूरत का सामान फ्रूटस वगैरह अम्माँ के पास छोड़.....खाना खा कर वापिस दिल्ली की तरफ चल दिए। आदित्य सब काम कर रहा था पर आस्था का ख्याल दिमाग से निकल नहीं रहा था......1-2 दिन अपने पुराने दोस्तों से मिला और पुराने दिनों को याद करके खुश होते हुए....उधर नवीन ने अगले दिन आस्था को फोन किया और हालचाल पूछ कर फोन रख दिया....आस्था ने उसे बताया कि, "वो उसके और आदित्य के आने के बाद इलाहाबाद जाएगी"।
क्रमश: