Sapne - 41 in Hindi Fiction Stories by सीमा बी. books and stories PDF | सपने - (भाग-41)

Featured Books
  • خواہش

    محبت کی چادر جوان کلیاں محبت کی چادر میں لپٹی ہوئی نکلی ہیں۔...

  • Akhir Kun

                  Hello dear readers please follow me on Instagr...

  • وقت

    وقت برف کا گھنا بادل جلد ہی منتشر ہو جائے گا۔ سورج یہاں نہیں...

  • افسوس باب 1

    افسوسپیش لفظ:زندگی کے سفر میں بعض لمحے ایسے آتے ہیں جو ایک پ...

  • کیا آپ جھانک رہے ہیں؟

    مجھے نہیں معلوم کیوں   پتہ نہیں ان دنوں حکومت کیوں پریش...

Categories
Share

सपने - (भाग-41)

सपने......(भाग-41)

आस्था से बात करके नवीन ने आदित्य को फोन पर बता दिया कि," आस्था हमारे वहाँ पहुँचने के बाद अपने घर जाएगी कुछ टाइम के लिए तो एक बात आस्था से बात कर लेना, शायद जो तुम सुनना चाहते हो वो कह दे..."!
अगर ऐसा है तो फोन करने की क्या जरूरत है, मैं ही वहाँ चला जाता हूँ.....आमने सामने बात हो जाएगी....नवीन की बात ने आदित्य को खुशी से भर दिया था.......। वो अपने लिए अगले दिन की फ्लाइट देखने लगा....सोच तो वो पहले सी ही रहा था कि 1 हफ्ते का बोला है तो वापिस चलना चाहिए। उधर सुबह सुबह श्रीकांत और सोफिया वापिस आ गए थे तो....सुबह सुबह ही खुशी का माहौल बन गया। अपने सभी दोस्तों के लिए कुछ न कुछ गिफ्ट लाए थे..... दोनो बहुत ही खुश नजर आ रहे थे.......। कॉफी के साथ ढेर सारी बातें की....... राजशेखर और रश्मि ऑफिस चले गए... और उसके बाद सोफिया और श्रीकांत भी नहा धो तैयार हो कर ब्रेकफास्ट करके दोनो ने कुछ देर आराम किया और फिर दोपहर बाद वो दोनो सोफिया के घर चले गए........। रात को डिनर वहीं करके आने का प्लान था उनका । सोफिया ने आस्था को भी साथ चलने को कहा पर उसने मना कर दिया.....। उनके जाने के कुछ ही देर बाद फिर बेल बजी तो दरवाजा आस्था ने ही खोला......सामने आदित्य खड़ा था। "अरे तुम अचानक कैसे आ गए आदित्य? मैंने कितना बार कॉल किया तुमने न तो कॉल अटैंड की और ना ही कॉल बैक किया"? आदित्य उसकी बाते सुन कर मुस्कुरा रहा था," आस्था पहले मैं अंदर आ जाऊँ? फिर तुम्हारे हर सवाल का जवाब देता हूँ"! "ओह सॉरी आओ न अंदर", कह कर आस्था साइड हो गयी। सोफे पर बैठते ही आदित्य ने कहा, " मैं बहुत बिजी रहा....फोन देखने का जब टाइम मिलता तब तक लगता कि तिम सो गयी होगी......बस इसी चक्कर में बात नहीं कर पाया.....काम जैसे ही खत्म हुआ मैं आ गया", बहुत सफाई से आदित्य ने झूठ बोल दिया।" एक मैसेज या 1 मिनट कॉल करके तो तुम ये बात बोल तो सकते थे", आस्था ने धीरे से कहा......"हाँ आस्था कह तो सकता था, फिर मैंने सोचा कि मैं बस एक दोस्त ही तो हूँ तुम्हारा....तुम्हें या किसी को क्या फर्क पड़ता है कि मैंने कॉल किया या नहीं"! आदित्य की बात सुन कर आस्था कुछ नहीॆ बोली....और उसके लिए पानी ले आयी।
सविता ताई रात के लिए दाल सब्जी बना गयी थी....... आस्था ने आदित्य को कॉफी दी और खुद अपने कमरे में चली गयी और आदित्य फ्रेश होने चला गया। बाहर जो डायलॉग आस्था को बोल कर आया था, उसके लिए खुद को शाबाशी दे रहा था..... साथ ही उसे आस्था के चेहरे पर उसकी बात सुन कर जो उदासी छा गयी थी वो याद आयी तो खुद ही दुखी हो गया.....। राजशेखर आया तो वो भी आदित्य को वापिस आया देख कर हैरान भी हुआ और खुश भी। "ये तो बहुत अच्छा हुआ यार तुम आ गए.....बहुत खाली खाली सा लग रहा था तेरे बिना.... सुबह तो श्रीकांत और सोफिया आ गए हैं....आस्था बिल्कुल अकेली हो गयी थी...."।
आदित्य चुपचाप मुस्कुराता हुआ उसकी बात सुन रहा था। "चलो अब बाते बंद और खाना भी खाओ".....आस्था ने टेबल लगा दिया। चावल और कुछ चपाती बना कर लाते हुए वो बोली। आदित्य को आस्था पहले से कमजोर दिख रही थी....प्ले और शादी की भागदौड़ में उसने ठीक से खाया पीया नहीं और बाद में सबके जाने के बाद जैसे उसने ठीक से खाना नहीं खाया था, आदित्य ने पूछ ही लिया, "क्या बात है आस्था? तुम्हारी तबियत खराब है क्या? तुम्हें देख कर लग रहा है कि तुम काफी दिनों से बीमार हो"! "नहीं, मैं बिल्कुल ठीक हूँ, मुझे कुछ नहीं हुआ"....आस्था ने मुस्कुराने की कोशिश करते हुए कहा। आदित्य इतने टाइम में ये बात तो जान गया था कि आस्था को अकेले खाना पसंद नहीं है।
प्ले के टाइम भी सबसे पहले निकल जाती थी तो ध्यान ही नहीं गया किसी का.....वो ये सब सोच रहा था। आदित्य ने देखा वो अपनी प्लेट में रखे थोड़े से दाल चावल को ही काफी देर से देख रही थी और धीरे धीरे खा रही थी......"तुम हम सबसे पहले खाना खा लेती हो न आस्था और सबसे जल्दी तुम्हें भूख लगती है.....अब देखो हम दोनो ने खा लिया और तुम वही ले कर बैठी हो? जल्दी से फिनिश करो"। आदित्य की प्यारी से डाँट सुन कर आस्था की आँखे डबडबा गयीं...."वो आदित्य को ठीक से समझी ही नहीं..... या शायद समझा नहीं चाहा.... पर आदित्य को उसकी फ्रिक है"।उसने अपना खाना खत्म किया...राजशेखर और आदित्य ने बरतनों को एक बार पानी से निकाल कर "वाशिंग एरिया", में रख दिए। तीनो खाने से फ्री हुए तब तक सोफिया और श्रीकांत भी आ गए। बहुत दिनो के बाद ये सब इकट्ठा हुए थे हालंकि नवीन का कमी थी। सब ने काफी देर तक बातें की......फिर सब अपने अपने रूम में चले गए। सब बैठे थे तो राजशेखर ने बताया कि उसकी शादी की डेट फिक्स हो रही है....जो एक दो दिन में पता चलेगी तो सब अपने आपको फ्री रखना......वहीं श्रीकांत ने बताया कि वो लोग 2-3 दिन बाद अपने घर जा रहे हैं तो राजशेखर की शादी में जहाँ बुलाएगा वहीं दोनो पहुँच जाएँगे। श्रीकांत बहुत खुश है अपने घर जाने की बात से क्योंकि सालो पुरानी रंजिश खत्म हो गयी थी और अब कोई खतरा भी नहीं था तो वो चैन से सोफिया और अपने परिवार के साथ रहेगा और वहाँ पर अपने गाँव की बेहतरी के लिए काम करेगा अपने अप्पा के साथ। आदित्य और आस्था बैठे थे.....सोफे पर चुपचाप......आदित्य से रहा ही नहीं गया तो वो बोला...." आस्था कल तुम डॉक्टर के पास चलना.... चेकअप कराते हैं, मुझे तसल्ली हो जाएगी कि तुम ठीक हो"। " मैॆ ठीक हूँ....बस तुम्हें मिस कर रही थी", इतना बोलने के बाद वो रूक गयी और आदित्य ने सुना तो सही पर यकीन नहीं हुआ और बोला, "क्या कह रही हो आस्था मुझे सुनाई नहीं दिया"! आस्था सकपका गयी और बोली," मैं कह रही थी कि घर में कोई नहीं था तो मिस कर रही थी सबको"! आदित्य उसकी सकपकाहट और शर्म से होते लाल गाल देख मन ही मन खुश हो रहा था......पर वो अब आस्था को सुनना चाहता था, इसलिए खुद से कुछ नहीं बोला। " आस्था अब तुम्हे आदत डालनी होगी अकेले रहने की......श्रीकांत और सोफिया अपने घर जा रहे हैं, राजशेखर भी शादी करके शिफ्ट होगा ही....नवीन भी तो काम में बिजी होता जा रहा है.....और मैं राजशेखर की शादी के बाद अपना बिजनेस संभालने के लिए ऑस्ट्रेलिया चला जाऊँगा...
फिर तो तुम्हें कोई रूममेट ढूँढनी पडेगी या फिर अपनी टीम की लड़कियों के साथ शिफ्ट हो जाना"! आदित्य की ऑस्ट्रेलिया जाने की बात सुन कर आस्था का दिल डूब गया, " तुम इंडिया छोड़ कर ही चले जाओगे आदित्य"?
आदित्य- "जाना पडे़गा आस्था, कोई ऑप्शन नहीं है। अकेला मैं ही तो हूँ, जो डैड को बिजनेस संभालूँगा"।
आस्था--- "आदित्य काम तो इंडिया में भी रह कर हो सकता है, वहाँ स्टॉफ रख कर काम चल सकता है न" !
आदित्य- "अभी तक वैसे ही तो संभाल रहे हैं डैड.....फिर मैं यहाँ रह कर भी क्या करूँगा?
वहाँ की लडकियों के साथ आराम से रहूँगा....शादी करने भी जरूरी नहीं....जब तक चाहो रहो, फिर अलग हो जाओ...."।
आस्था--- "अच्छा असली वजह ये है तुम्हारी वहाऎ जाने की.....वैसे तो कह रहे थे कि तुम बदल गए हो.... प्यार करते हो मुझसे और बस निकल गयी हवा तुम्हारे प्यार की"? आस्था गुस्से में भड़क गयी। इधर आदित्य आस्था के रिएक्शन पर मन ही मन हँस रहा था।
आदित्य- "आस्था प्यार तो आज भी है....पर तुम मुझे पसंद नहीं करती तो जिंदगी पर बाबा जी बन कर कैसे रहूँ"।
आस्था--- "मैंने कब कहा ऐसा"?
आदित्य--- यही तो बात है कि तुमने कुछ कहा नहीं, तो मैंने यही समझा कि तुम मुझे पसंद नहीं करती?
आस्था--- "ये झूठ है कि मैं पसंद नहीं करती, बस कहा नहीं कभी, सोचा तुम खुद ही समझ जाओगे.......पर अब तुम जा रहे हो तो मैं क्या कहूँ? जाओ तुम्हें वहां की गोरियाँ मुबारक"....कह कर आस्था मे मुँह बना लिया"! दिल की बात आस्था की जबान पर आ ही गयी।
आदित्य-- एक बार कह कर तो देखो अपने दिल की बात क्या पता मैं न जाऊँ? रोकना तुम्हारे हाथ में है।
आस्था---- मेरे हाँ कहने से तुम रूक जाओगे? आस्था ने अविश्वास से कहा।
आदित्य--- हाँ, बिल्कुल!
आस्था----- अपने दोनो हथेलियों को कस कर उँगलिया आपस में उलझायी बैठी आस्था को समझ नहीॆ आ रहा था कि कैसे कहे अपनी बात......"आदित्य I love you",
कह कर उसके गले से लग गयी। आदित्य के लिए ये सरप्राइज सा था.....उसने भी कस कर आस्था को गले से लगा लिया....।
क्रमश: