Pyar ka Daag - 2 in Hindi Classic Stories by SWARNIM स्वर्णिम books and stories PDF | प्यार का दाग - 2

Featured Books
  • నిరుపమ - 10

    నిరుపమ (కొన్నిరహస్యాలు ఎప్పటికీ రహస్యాలుగానే ఉండిపోతే మంచిది...

  • మనసిచ్చి చూడు - 9

                         మనసిచ్చి చూడు - 09 సమీరా ఉలిక్కిపడి చూస...

  • అరె ఏమైందీ? - 23

    అరె ఏమైందీ? హాట్ హాట్ రొమాంటిక్ థ్రిల్లర్ కొట్ర శివ రామ కృష్...

  • నిరుపమ - 9

    నిరుపమ (కొన్నిరహస్యాలు ఎప్పటికీ రహస్యాలుగానే ఉండిపోతే మంచిది...

  • మనసిచ్చి చూడు - 8

                     మనసిచ్చి చూడు - 08మీరు టెన్షన్ పడాల్సిన అవస...

Categories
Share

प्यार का दाग - 2

मैं बार-बार उसकी प्रोफ़ाइल आक्टीभिटी की जाँच करती रही यह देखने के लिए कि अभी भी उसके संदेश आएगा।

हालाँकि उन्होंने कल मिलने के प्रस्ताव को स्वीकार कर लिया, लेकिन मुझे न तो विश्वास था और न ही उम्मीद थी कि हम कल मिलेंगे। मैं कैसे उम्मीद कर सकता थीं जब दो साल पहले से हम केवल भर्चुअल दुनिया में एक साथ थे। परिचय के साधन, बातचीत, मुलाकातें, रिश्ते सब सोशल साइट्स की परिधि में सीमित था ।

इसके आगे केवल उनकी कल्पना थी, जो वास्तविकता बनने की उम्मीद के करीब कहीं नहीं थी। लेकिन भले ही हम भर्चुअल दुनिया में मिले, लेकिन वह असली और सबसे अंतरंग और प्रिय व्यक्ति थे जिन्होंने मेरी भावनाओं को समझा था। मुझे जीन से बात करके बहुत खुशी हुई थी। ऐसा लग रहा था कि यह बातचीत कभी खत्म नहीं होनी चाहिए। मुझे कभी नहीं लगा कि इस निकटता को बनाए रखने के लिए उनसे मिलना मेरे लिए जरूरी है। क्योंकि इस डर से कि उनसे मिलने से पहले मैंने उनके प्रति जो धारणा बनाई थी, वह नष्ट हो जाएगी, मेरे दिमाग में एक व्यापक जगह व्याप्त हो गई।

वे पेशे से बैंकर थे। वो भी पोखरा में, जो मेरे सहर से अलग था।। हालाँकि पोखरा और काठमांडू के बीच की दूरी इतनी दूर नहीं है, लेकिन उनके लिए अपने निर्धारित दैनिक जीवन को छोड़कर मुझसे मिलने के लिए यहां आना उतना ही असहज था जितना कि किसी विदेशी देश से देश आना जसा।
दूसरे दिन मैं कॉलेज कैंटीन में अकेले कॉफी पी रही थी क्योंकि कॉलेज में दो अवधियों के अध्ययन के बाद बीच की अवधि लेजर था। हां, कैंटीन में और भी थे, लेकिन उनमें से कोई भी साथ बैठकर कॉफी पीने जसे मेरा दोस्त नहीं बना। अंतर्मुखी स्वभाव के कारण भीड़ में भी मैं अकेली थी। लेकिन अपने अकेलेपन से मै निराश नहीं हुई। अपने आप में मस्ती करने के आदी, भीड़ की खुशी हमेशा फीकी पड़ जाती थी।

तभी मोबाइल में कंपन हुआ। मैंने इनबॉक्स में अयान की मौजूदगी देखी। इसमें लिखा था- ''अयान अभी आ रहा है.'' मैसेज पढ़ने के बाद भी मैं इसे बार-बार पढ़ती रहीं ताकि यह जांचा जा सके कि मैंने पहले जो पढ़ा है वह सही है या गलत। बार-बार पढ़ने के बाद भी मुझे वही अर्थ मिला जैसे "अयान अभी आ रहा है", मैं एक पल के लिए अवाक रह गयी, धड़कन की गति अचानक तेज हो गई। उम्मीदों के बिना उपलब्धि मजेदार है लेकिन उतना ही अविश्वसनीय भी है। अयान की मौजूदगी में दिल और दिमाग दोनों पूरी तरह से एकीन न हूवा।

भले ही लेजर खत्म हो गया था और अगली अवधि शुरू होने वाली थी, फिर भी ध्यान अयान के आगमन पर केंद्रित रहा। मेरा कक्षा में बैठने और पढ़ने का कोई इरादा नहीं था, कक्षा समाप्त होने के बावजूद मैं अपना बैग लेकर बाहर चली गयी।
अयान के अाकृति मेरे दिमाग पर बेपरवाह नाच रही थीँ। अयान का फोन तब आया जब मै आर आर कैंपस से निकलकर एग्जिबिशन रोड पर पहुंची। अब मैं लगभग आश्वस्त हो गयी थी कि वह सचमुच आया है। कॉल रिसीव किया। इससे पहले कि मैं हेलो कह पाता, वहाँ से एक आवाज़ आई - "मैं एअरपोर्ट से कहाँ आउँ?"
मैं आपको कैसे बता सकती हूँ कि कहाँ आना है? मैं तो अभी प्रदर्शनी मार्ग में हूँ। "
"जो तुमसे मिलने आया है वह कहाँ जाएगा? तुम वहीं रहो, मैं वहीं आता हूँ?"
अब जवाब देने की मेरी बारी थी।
उसका फोन डिस्कनेक्ट करके मैं सीधे भृकुटीमंडप गेट में घुसी और भृकुटीमंडप पार्क के दो टिकट लिए और उसी पार्क में अयान का इंतजार करने लगी।
जो व्यक्ति कुछ समय पहले मेरे दिल के बेहद करीब था वह आज भौतिक रूप से मेरे सामने होने वाला था। ये वही आदमी था जिसके साथ इन दो सालों में बातें करते हुए मैंने कई रातें खुली आँखों से बिताई थीं। मन में बेचैनी और बेचैनी बढ़ती जा रही थी।
सुबह 10:37 बजे मोबाइल स्क्रीन पर अयान की कॉल दिखाई। मुझे फोन आया और उसने मुझे बताया कि वह फिटनेस क्लब के सामने आ गया है। जल्द ही मैंने उसे भृकुटीमंडप पार्क आने के लिए कहा अौर कल डिस्कनेक्ट कर दिया।

उनकी मौजूदगी ने मेरे दौड़ते हुए दिल की धड़कनो को अौर तेज कर दी। मैंने अनुमान लगाया कि पार्क में प्रवेश करने से पहले उसकी आंखें गेट से मुझे ढूंढ रही थीं। मैं तुरंत अपनी सीट से उठ कर खड़ा हुइ और उनके सहजता के लिए हाथ हिलाया। एक सफेद शर्ट, काली जींस, काले जूते और काले चश्मे पहने एक आकृति मेरे सामने रुकी अौर, अपने बैग से लाल गुलाबों का एक गुच्छा निकाला।

"हाई" उसने उसका हाथ अागे बढ़ाने से पहले हीं में उसकी छाती में लिपट गई। उसने मुझे आसानी से गले लगा लिया। जीवन में पहली बार किसी के इतने करीब होने के इस अनुभव ने मेरे लिए यह विश्वास करना मुश्किल कर दिया कि मैं वही व्यक्ति हूं.......? जो हमेशा असुरक्षित और अपने भीतर खोयी रहते हूं। मैं आज दूसरे व्यक्ति की बाहों में इतना सहज कैसे महसूस कर रही हूँ, सारी बेचैनी को एक तरफ रख कर? छाती के बल लेटने के बाद भी मेरें भीतर सवालों और जवाबों का टकराव बना रहता था।
"नहीं हूवा ?" उसकी आवाज की वजाह से ज्यादा उसकी सांसों ने मेरे दिमाग में चल रहे सवालों की जंजीर को तोड़ दिया। भले ही उसकी सांसों के स्पर्श ने मुझेँ ,सूरज के स्पर्श से पिघलने वाली बर्फ जसे बनाया, फिर मैं आपने आपको सम्हाल्ती हुई उसकी छाती से दूर हो गई।