Chorono Khajano - 10 in Gujarati Fiction Stories by Kamejaliya Dipak books and stories PDF | ચોરોનો ખજાનો - 10

Featured Books
  • નિતુ - પ્રકરણ 64

    નિતુ : ૬૪(નવીન)નિતુ મનોમન સહજ ખુશ હતી, કારણ કે તેનો એક ડર ઓછ...

  • સંઘર્ષ - પ્રકરણ 20

    સિંહાસન સિરીઝ સિદ્ધાર્થ છાયા Disclaimer: સિંહાસન સિરીઝની તમા...

  • પિતા

    માઁ આપણને જન્મ આપે છે,આપણુ જતન કરે છે,પરિવાર નું ધ્યાન રાખે...

  • રહસ્ય,રહસ્ય અને રહસ્ય

    આપણને હંમેશા રહસ્ય ગમતું હોય છે કારણકે તેમાં એવું તત્વ હોય છ...

  • હાસ્યના લાભ

    હાસ્યના લાભ- રાકેશ ઠક્કર હાસ્યના લાભ જ લાભ છે. તેનાથી ક્યારે...

Categories
Share

ચોરોનો ખજાનો - 10

अजनबी

उन अंग्रेज सिपाहियो को लगता था की जो खजाना हर एक राज्य की ओर से खुशी खुशी दिया जा रहा है उसे लुंटने कोई नही आयेगा। और ये सोचना उनकी बहोत बड़ी गलती थी। इसीके साथ वो लोग एक और गलती भी कर बैठे। गलतफहमी में रह कर उन लोगो ने सिपाहियो की तादात कम रखी और तोप सिर्फ एक ही रखी। इसी वजह से हमे रुद्रा की बनाई योजना के जरिए यह जंग जितने में बहुत आसानी हुई थी। लेकिन इस जंग के बाद हमने बहोत कुछ खोया था।

मैं वही छावनी में अपने बेटे के बेजान शरीर को लेकर बैठा था। मैं यह अच्छी तरह से जानता था की अगर हम ये लड़ाई जितने के बाद भी इसी तरह यहां बैठे रहेंगे तो हम फंस जायेंगे। अगर अंग्रेजो के सिपाही या फिर राजाओं के सैनिक आ गए तो हमे कोई बचा नही पाएगा। रुस्तम ने और बाकी सैनिकों ने खजाने केलिए जो कुरबानीया दी है वो बेंकार जायेगी। इसी लिए भद्रा के कहने पर हमने जितना हो सके उतनी जल्दी उस मनहूस जगह से निकलने की तैयारी शुरू कर दी।

बेटे की मोत के दर्द से उभरने के बाद जब मैंने आसपास नजर दौड़ाई तब पता चला कि यहां मेरे बेटे और उस अंग्रेज अफसर के अलावा दो और लाशे भी मौजूद थी। वो संतोष और मणिशंकर की थी। मेरी आंखों से बहते हुए आंसू रुके ही थे की ये देख के फिर से बहने लगे।

हमारे सरदार के कहने पर सभी ने हमारे लोगो को उठाकर हम बाहर आए। मैने जब अपने बेटे के शरीर को उठाया, ऐसा लगा जैसे दुनिया का सबसे भारी बोझ उठा रहा हु। एक बाप केलिए अपने बेटे के मृत शरीर को उठाना कितना कठिन होता है ये इस दिन जाना। मेरा पूरा शरीर कांप रहा था। कमजोरी महसूस हो रही थी। उस वक्त चलना भी मेरे लिए बहुत मुश्किल हो रहा था। सरदार भद्रा ने जब ये देखा तो उन्होंने मेरी मदद केलिए हाथ बढ़ाया। मैने आंखों में भरे आंसुओ के साथ उसकी तरफ देखा। उस वक्त उसकी आंखों में भी आंसू ही थे।

इस जंग में भले ही हमारी जीत हुई थी लेकिन हमने इस जीत केलिए बहुत ही बड़ी कीमत चुकाई थी। सभी के चेहरे पर जीत की खुशी कम और अपने लोगो को खोने का गम ज्यादा दिखाई दे रहा था। कुछ लोग तो इस देश केलिए जो लोग शहीद हुए थे उन्हे खुशनसीब समझ रहे थे।

जो लोग सही सलामत थे वो घायल लोगो की मदद करके उन्हे अपने साथ लेकर चलने लगे। उन ऊंटो और घोड़ों पर हमारे लोगो की लाशे लाद कर ले जाने केलिए कहा गया था। हमारे किसी भी साथी के मृत शरीर को हम पीछे छोड़कर जाना नही चाहते थे। उसके अलावा रुद्रा के कहने पर जो पंद्रा बड़ी बड़ी गाड़िया बनाई गई थी उसमे वो पूरा खजाना भरा गया। खजाना इतना ज्यादा था की शायद उन बड़ी बड़ी पंद्रा गाड़ियों में भी शायद ही आ पाएगा। सभी जानते थे की ये खजाना हमारे देश की अमानत है इसीलिए कोई भी उस खजाने का एक सिक्का भी अपने लिए नहीं लेना चाहता था।

जब मैं बाहर आया तब मैंने देखा कि हर तरफ सिर्फ खून ही खून था। इस जंग में कई लोग मर चुके थे, चाहे वो अंग्रेज सिपाही हो या फिर हमारे सैनिक हो। बड़े बड़े सफेद कपड़ों में कुछ सैनिक खून जैसे ही लाल रंग से 'रुस्तम' लिख रहे थे। बड़े बड़े पत्थरों पर भी उसी नाम को लिखा जा रहा था। सब की यही इच्छा थी की इस जंग का पूरा श्रेय रुस्तम को ही मिले। थोड़ा ही सही लेकिन सरदार के इस काम से मुझे थोड़ी देर केलिए सुकून मिला। हमने चलने की तैयारी की।

हम अपने पीछे छोड़कर जा रहे थे तो वो था,

अंग्रेज सिपाहियो की लाशे।
खून से तर जमीन।
हर तरफ फैले हमारे आने और जाने के निशान।
और एक मेरे बेटे का नाम 'रुस्तम।'

ताकि सभी राजाओं को और उन अंग्रेजो को पता चले की उन्हे लुटने वाले का नाम क्या था?

अब हम रुस्तम की बनाई योजना के मुताबिक चलने वाले थे। इसीलिए हमारा आगे का सफर अब रेगिस्तान की ओर बढ़ने वाला था। हमने वहा पर जो जलंधर जहाज खड़े किए थे उन्हीं में सवार हो कर और खजाना लेकर हम रेगिस्तान में ही घूमने वाले थे। हमे शंका थी की कही न कही अंग्रेज सरकार के सिपाही हमारा पीछा करते हुए आयेंगे इसीलिए जितना हो सके उतनी जल्दी हमने हमारी सफर की रफ्तार बढ़ा दी। रुस्तम की योजना पूरी तरह से सफल रही थी लेकिन उसकी खुशियां मनाने केलिए रुस्तम हमारे बीच नहीं था। फिर भी वो अब हम सबके बीच अमर हो गया था। मुझे नाज था अपने रुद्रा पे, अपने रुस्तम पे।

अब हम शायद रेगिस्तान से एक दो घंटे की दूरी पर थे। तभी हमने देखा की सामने से कुछ घुड़सवार हमारी ओर आ रहे थे। हम नही जानते थे की वो लोग कोन थे लेकिन फिर भी हमारे साथ जो लाशे थी उससे ज्यादा लाशे हमे गवारा नहीं थी। हम नही चाहते थे की फिर से कोई भी जंग हो। एक बार हमने एक बड़ी जंग और उस जंग के बाद मिलने वाले परिणाम को देख लिया था। इसीलिए अब हम लड़ाई से दूर ही रहना चाहते थे।

मैं ये सब सोच ही रहा था की तभी वो सभी घुड़सवार हमारे करीब आ पहुंचे। उनमें से एक जो की शायद उनका दलपती था। उसका नाम राजेश्वर था। वो आगे आया और हमसे कहने लगा।

राजेश्वर: बधाई हो दोस्तो। आखिरकार हमने यह जंग जीत ली। वाह! क्या बात है। आपने तो कुछ बड़ा ही हाथ मारा है। बहुत बढ़िया। अब आपने जो खजाना पाया है, उसमे से आधा मुझे और मेरे इन गरीब साथियों को चाहिए। तो, अगर आपको कोई दिक्कत ना हो तो हम उस खजाने से हमारा हिस्सा ले सकते है? (एकदम खिन्न तरीके से हसते हुए वो बोला)

भद्रा: देखो दोस्त। तुम जो भी हो, हमे इससे कोई फर्क नहीं पड़ता। ये खजाना हमारे देश की अमानत है। और सभी रियासतों में से जिस जिसने ये खजाना दिया है, उनकी प्रजा का है ये खजाना। और तुम जैसे स्वार्थी और मक्कार इंसान को मैं एक ग्राम सोना भी नही दूंगा।

ऐसा लग रहा था की शायद सरदार भद्रा इस राजेश्वर को पहले से ही जानता था। इसीलिए वो इसके असली चरित्र को भी जानता था। राजेश्वर दिखने में ही नीच और स्वार्थी लग रहा था।

हम सब उसके चरित्र के बारे में सोच ही रहे थे की तभी, हमे पता नही था की राजेश्वर के पास बंदूक भी थी। उसने अचानक ही गोली चला दी। गोली सीधा जा कर हमारे सरदार के सिर के एकदम बीचमें लगी। हमारे सरदार ऊंट पर से नीचे गिर पड़े। मैने जल्दी से मेरे ऊंट से नीचे उतर कर देखा तो उनकी जान वही जा चुकी थी।

ऐसा लग रहा था शायद आज का दिन ही नही रात भी कुरबानिया माग रही थी। मैने एक बहोत अच्छे दोस्त को और इस देशने एक अच्छे देशभक्त को खो दिया था। अबसे हमारे इस सारे दलों का सरदार मैं ही था। मुझे अब शांति से और समझदारी से काम लेना था। मुझे मौत का डर नही था, लेकिन मैं ऐसी मौत नही चाहता था।

मैं: देखो राजेश्वर, तुम्हे जो चाहिए वो तुम ले जाओ। लेकिन मेहरबानी कर के किसी और की जान मत लो। आज हमने बहोत जाने गवाई है। और मैं अब किसी और की मौत नही देखना चाहता।

राजेश्वर: वाह! तुम समझदार नेता बनोगे। लेकिन ये भद्रा, वो मेरी एक बात भी सुनने को तैयार नहीं था। मुझसे वो नफरत क्यों करता था यही समझ नहीं आ रहा था। इसीलिए वो मर गया। ( इतना बोल कर वो हस पड़ा।)

हम लोग बहस कर ही रहे थे की तभी पीछे दूर कही से गोलियों की आवाजे सुनाई दी। हमे समझ आ चुका था की अंग्रेज सिपाही हमारा पीछा करते हुए आ चुके थे। मैने देखा की राजेश्वर भी अंग्रेज सिपाहयो की मौजूदगी से डर रहा था। इसलिए मैने उससे हमारे साथ जुड़ जाने का प्रस्ताव दिया। वो तुरंत मान भी गया। हमने जितना हो सके उतनी जल्दी अब हमारा सफर आगे बढ़ाया। हमे पता था की अंग्रेज सिपाही हमारा पीछा करते हुए जरूर आयेंगे, लेकिन इतनी जल्दी आयेंगे ये हमे पता नही था।

अंग्रेज सिपाही हम तक पहुंचते उससे पहले ही हम रेगिस्तान तक पहुंच चुके। हमने जितना हो सके उतनी जल्दी सारा खजाना और सभी साथियों को उन चारों जलंधर जहाजों में डाल दिया। जब हम वहा से लंगर उठा ही रहे थे की तभी वो अंग्रेज सिपाही वहा आ पहुंचे।

वहा पहुंचते ही उन्होंने गोलियां चलानी शुरू कर दी। इससे पहले की हम में से किसीकी जान जाए हम दूर निकल आए। हमने जितना सोचा था उससे ज्यादा तेज रफ्तार से ये जहाज चल रहे थे। हमने अब राहत की सांस ली।

चारो जहाजों में खजाना और हमारे लोग जल्दी जल्दी में बांट दिए थे। एक जहाज पर राजेश्वर और उसके लोगों ने कब्जा कर लिया था। उस जहाज पर भी काफी खजाना भी था और हमारे लोग भी। लेकिन अब राजेश्वर जैसे उन सबका मालिक बन गया था।



શું થશે એ રણમાં?
તેઓ ક્યાં જઈ પહોંચશે?
નકશા ના બધા ટુકડાઓ મળશે કે નહિ?
પેલા બીજ શેના હતા?

જવાબ માટે વાંચતા રહો..
ચોરનો ખજાનો..

Dr Dipak Kamejaliya
'શિલ્પી'