अभी कुछ दिन पहले मैंने अपने धर्मग्रंथों का हवाला देते हुए बताया था कि पुरातन काल में राक्षसों के पास ऐसे ऐसे वरदान होते थे जो एक नजर में उन्हें अमर बनाते थे..
लेकिन, देवताओं ने... उनके उन्हीं वरदानों में से लूप होल खोजा...
और, राक्षसों का वध किया.
साथ ही साथ... ये भी बताया था कि हमारे धर्मग्रंथ हजारों लाखों साल पहले जितने प्रासंगिक थे..
उतने ही आज भी प्रासंगिक है.
जरूरत है तो सिर्फ उन्हें ठीक से समझने की तथा उन्हें आज के परिदृश्य से को-रिलेट करने की.
और... आज भी ठीक हमारे धर्मग्रंथों की ही तरह वरदानों में से लूप होल्स निकाल कर लगातार राक्षसों का वध किया जा रहा है...
लेकिन, समस्या ये है कि हम उन वधो को देख रहे हैं, सुन रहे हैं लेकिन अपने धर्मग्रंथों के अध्ययन की कमी के कारण उसे समझ नहीं पा रहे हैं.
इसीलिए, मैं आधुनिक काल में ""लगभग अमरता का वरदान"" पाए कुछेक राक्षसों और उसके वध की ओर आपका ध्यान दिलाता हूँ..
यहाँ मैं स्पष्ट कर दूँ कि ... हमारे धर्मग्रंथों में उल्लेखित वरदान और कुछ नहीं बल्कि स्पेशल स्टेटस का ही दूसरा नाम है..
तथा, वर्तमान संदर्भ में उसे संविधान प्रदत्त स्पेशल स्टेटस/अधिकार कह सकते हैं...
जो, उसके अलावा किसी अन्य के पास नहीं होते.
इस संबंध में सबसे पहला सर्वशक्तिशाली और अमर राक्षस था... धारा 370.
जो इतना शक्तिशाली था कि... खुद इंद्र (सुप्रीम कोर्ट) ने भी डर के मारे उसे छूने से मना कर दिया था.
लेकिन... फिर, कर्ताओं ने उस वरदान को ध्यान से समझा और उस राक्षस का समूल नाश कर दिया.
इस बारे में संसद में कर्ता (मोटा भाई) ने भाषण देते हुए कहा कि... बेशक, ये अभेद्य था.
लेकिन, इसे लागू करने वाले ने इसे "अस्थाई" लिख के लागू किया था.
अर्थात.. ये परमानेंट स्टेटस नहीं रखता है.
साथ ही, चूंकि ये राष्ट्रपति के एक अध्यादेश से लागू हुआ था इसीलिए टेक्निकली इसे दूसरे अध्यादेश से हटाया भी जा सकता है.
और, शाह के बोलने के बाद सबको एहसास हुआ कि लगभग अमरता के इस वरदान में लूप होल कहाँ रह गया था.
अंततः... उस अमरता सरीखे वरदान पाए राक्षस 370 का वध हो गया.
दूसरा उदाहरण है... ट्रिपल तलाक का.
जिसके बारे में वरदान था कि इसका वध हो ही नहीं सकता है क्योंकि संविधान के आर्टिकल 21 के अनुसार सभी को अपने अपने धर्म एवं मजहब को अपने हिसाब से मानने का अधिकार प्राप्त है.
इस कारण इसे कोई छूने से भी डरता था... कि, अगर इसे छुआ तो वो वरदान (धारा 21A) का उल्लंघन हो जाएगा.
लेकिन, फिर इस राक्षस के वरदान में भी लूप होल ये निकाला गया कि.... बेशक हमारा संविधान सबको अपने अपने धर्म और मजहब को मानने का अधिकार देता है..
लेकिन, ये तुम्हारे मजहब का Essential पार्ट है ही नहीं.
इसीलिए, इस पर आर्टिकल 21 इम्पोज नहीं होता है.
और, फिर... इस राक्षस का भी वध कर दिया गया.
तीसरा.. एक और बड़ा राक्षस था... "आतं की का कोई धर्म नहीं होता है".
यह एक ऐसा वरदान था कि... पूरे 100 करोड़ लोग सब देख रहे थे, समझ रहे थे.
लेकिन, वरदान की ये शर्त सुनाकर सबका मुँह बंद कर दिया जाता था.
फिर कर्ताओं ने ...पकड़ धड़क चालू की और बुजडोजर बाबा ने तो बुलडोजर तक चढ़ाना शुरू कर दिया.
तर्क वही दिया गया जो पहले था कि...
अबे, जानते नहीं हो कि... "आ तंकी का कोई धर्म नहीं होता" है..??
हम किसी खास को बांस थोड़े न कर रहे हैं... हम तो आतं की को बांस कर रहे हैं.
और... जिन्होंने खुद के बचने के लिए इस जुमले को गढ़ा था अर्थात "आतं की का कोई धर्म नहीं होता है" वाला वरदान मांगा था..
भस्मासुर की तरह... ये अमोघ "वरदान ही" उसके लिए उनके लिए "काल बन गया"...
क्योंकि, अब वे ये बोल ही नहीं सकते थे कि जानबूझ कर खास हमीं को टारगेट किया जा रहा है.
क्योंकि, अब उन्हें इसका कोई जबाब नहीं सूझने लगा कि...
जब आ तंकी का कोई धर्म होता ही नहीं है...
तो फिर, आ तंकी पर कारवाई किसी धर्म के खिलाफ कारवाई कैसे हो गई ???
इस तरह... भस्मासुर का हथियार (वरदान) उसी पर चला दिया गया.
इसी तरह के ढेरों उदाहरण हैं जो अगर आप ध्यान से देखेंगे तो आपको समझ आ जायेगा कि हमारे धर्मग्रंथों के ही तर्ज पर उन्हीं वरदानों में से लूप होल्स निकाल कर कैसे राक्षसों का विनाश किया जा रहा है.
एक अंतिम उदाहरण कल का ही देता हूँ कि...
कल मोई सरकार ने देश में CBSE की तरह "भारत शिक्षा बोर्ड" को मान्यता दे दी जिसके तहत अब देश में वैदिक शिक्षा देने का रास्ता साफ हो गया है.
इस वरदान और उसमें से लूप होल निकालने की कथा... बेहद मजेदार है.
असल में हुआ ये था कि... संविधान में आर्टिकल 30A करके कोई आर्टिकल है ही नहीं...
जो किसी को हिनू धर्मग्रंथों की शिक्षा देने से रोके.
लेकिन, संविधान में 29A नामक एक आर्टिकल है... जिसके अनुसार देश में अल्पसंख्यक समुदाय (सभी) अपने लोगों को धार्मिक शिक्षा दे सकते हैं.
परंतु... उस आर्टिकल में बहुसंख्यक समुदाय के बारे में कोई जिक्र नहीं है कि वो कर सकता है अथवा नहीं कर सकता है.
कहने का मतलब है कि... इस वरदान में अल्पसंख्यकों के जिक्र तो किया गया है लेकिन बहुसंख्यकों का कहीं कोई जिक्र नहीं है.
और, पिछले लोगों ने इसका मतलब ये बताया कि...
चूंकि, आर्टिकल 29A में ये "नहीं लिखा है" कि बहुसंख्यक समुदाय भी ऐसा कर सकता है...
इसीलिए, वो "नहीं कर सकता" है.
जबकि, वर्तमान कर्ताओं ने इसके लूप होल को पकड़ लिया और उसका मतलब बताया कि....
चूंकि, आर्टिकल 29A में ये नहीं लिखा है बहुसंख्यक समुदाय ऐसा "नहीं कर सकता" है.
इसीलिए, ऐसा करने में बहुसंख्यक समुदाय को संविधान की कोई धारा नहीं रोकती है और वो "ऐसा कर सकता" है.
और फिर... हिन्दुओं को भी धार्मिक शिक्षा देने का रास्ता साफ कर दिया गया.
यही कुछ उदाहरण हैं... कि, कैसे उन्हीं के वरदानों से लूप होल्स निकाल कर उनका वध किया जाता है...
अथवा, किया जा सकता है.
और... शायद हमारे पौराणिक कथाओं में ऐसी ही घटनाओं का जिक्र रहा हो जिसे अलंकृत करके हमारे पूर्वज ऋषि मुनियों ने लिख दिया होगा.
ताकि, उनकी आने वाली पीढियां उनके इन अनुभव का लाभ उठा सके.
तथा ... आज शायद उनकी वही पीढियां सत्ता में बैठी हैं जो शायद हमारे धर्मग्रंथों में उल्लेखित प्रकरणों के नक्शे कदम पर चलते हुए राक्षसों के ही वरदान में से लूप होल्स निकाल रही है..
फिर, उन्हें बताते हुए वध कर दे रही है कि... तुम्हारे वरदान में तो ये नहीं लिखा है कि तुम ऐसे नहीं मरोगे.
इसीलिए... हम उसी विधि से तुम्हें मार रहे हैं...
जैसे कि...
हे हिरणकश्यपु...
तुम ठीक से देख लो...
अभी....
तुम न घर के बाहर हो, न घर के अंदर.
न अभी दिन है.. और, न रात है.
न तुम आकाश में हो.. और, न पाताल में.
न तुम्हे नर मार रहा है, न दानव..
न पुरुष मार रहा है...न स्त्री,
न मनुष्य मार रहा है ... और, न ही पशु.
ना तुम्हे अस्त्र से मारा जा रहा है... न ही शस्त्र से...!
और... इस तरह... तुम्हें दिए वरदान की एक भी लाइन भंग नहीं हो रही है.
अतः... अब तुम्हारा वध किया जाता है.
और हाँ... दुनिया का कोई वरदान ऐसा नहीं होता है जिसका तोड़ न हो...
जरूरत है तो एकाग्रचित्त होकर खोजने और ततपश्चात उस पर अमल करने की.
क्योंकि, हजारों लाखों के रिकॉर्ड्स अर्थात हमारे धर्मग्रंथ तो यही कहते है कि... आजतक कोई भी वरदान किसी राक्षस को अमर नहीं बना पाया है.