Achhut Kanya - Part 11 in Hindi Fiction Stories by Ratna Pandey books and stories PDF | अछूत कन्या - भाग ११  

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अछूत कन्या - भाग ११  

अरुणा और सौरभ बहुत ही नेक दिल इंसान थे। एक दिन सौरभ ने अरुणा से कहा, “अरुणा हमें गंगा के लिए ज़रूर कुछ करना चाहिए। ये बहुत ही अच्छे लोग हैं, बस हालातों से हारे हुए हैं।”

“हाँ सौरभ हमारे घर को और मम्मी जी को कितने अच्छे से संभाला हुआ है इन लोगों ने। इतना अच्छा परिवार अपने कामकाज के लिए मिल जाना तो बड़े ही भाग्य की बात होती है।”

“हाँ अरुणा तुम बिल्कुल ठीक कह रही हो, मैं सोच रहा हूँ, हम गंगा को पढ़ाने की जिम्मेदारी ले लें, क्या कहती हो?”

“तुमने तो मेरे मन की बात छीन ली सौरभ। मैं ख़ुद तुमसे यह कहने वाली थी। स्कूल जाएगी तो उसका मन भी लगा रहेगा और वह हादसा भी फिर वह शायद भूल पाएगी।” 

अरुणा ने नर्मदा और सागर को बुला कर कहा, “सागर हम गंगा को पढ़ाना चाहते हैं, वह जितना पढ़ना चाहे उतना।” 

“आप ये क्या कह रहे हैं साहब? आप पढ़ाना चाहते हैं?”

“हाँ सागर, क्यों क्या हम तुम्हारी इतनी-सी मदद नहीं कर सकते? तुम दोनों हमारे लिए कितना कुछ करते हो। थोड़ा-सा हमें भी करने दोगे तो हमें अच्छा लगेगा।” 

नर्मदा और सागर ने ख़ुशी के साथ हाथ जोड़ते हुए कहा, “आपकी बहुत मेहरबानी साहब।”

उसके बाद गंगा का स्कूल शुरू हो गया। गंगा दिखने में खूबसूरत थी। यमुना के हादसे के बाद शांत हो गई थी। इतनी छोटी-सी उम्र में अपने परिवार के साथ हुए दुर्व्यवहार के कारण अपनी उम्र से ज़्यादा समझदारी उसमें आ गई थी। उसने बहुत छोटी उम्र से ही पढ़ाई का महत्त्व समझ लिया था। वह बहुत मन लगाकर पढ़ाई करने लगी थी। स्कूल में उसकी कुछ सहेली भी बन गई थीं। अब वह पहले से ठीक थी, हँसना बोलना भी शुरू हो गया था।

लेकिन यमुना और उस हादसे को भूलना उसके लिए संभव नहीं था। हर रात बिस्तर पर आने के बाद पायल की आवाज़ उसके कानों में गूँजती। आँखें उसी दृश्य को दोहराया करतीं। छपाक की ज़ोर से आवाज़ जब आती; तब वह अवचेतन से चेतनावस्था में आ जाती और वह ख़ुद स्वयं को संभालती।

वो कहते हैं ना समय के साथ इंसान बड़े से बड़े दुःख को भी भूल जाता है लेकिन गंगा के साथ ऐसा नहीं हुआ। उसका दर्द कम होने के बजाय बढ़ता ही गया। वह क्रांति का बीज जो यमुना रोप कर चली गई थी। वह उसके अंदर ही अंदर अंकुरित हो रहा था। वह अपनी बहन के बलिदान को यूँ ही नहीं जाने देना चाहती थी।

धीरे-धीरे समय आगे बढ़ता रहा, गंगा अब बड़ी हो चुकी थी। नर्मदा और सागर पूरी ईमानदारी के साथ अरुणा के घर पर मन लगाकर काम करते रहे। गंगा की स्कूल की पढ़ाई बहुत अच्छी तरह चल रही थी। अरुणा और सौरभ दंग थे कि छोटे से गरीब परिवार में जन्मी यह लड़की कितनी होशियार है।

एक दिन अरुणा ने सौरभ से कहा, “सौरभ ये गंगा तो बहुत कुछ कर सकती है, यदि इसे अवसर मिले तो।” 

“तुम ठीक कह रही हो अरुणा, हम उसे वह हर अवसर देंगे। जो वह चाहेगी उसे करने देंगे। एक मौका मिला है हमें किसी के लिए कुछ करने का, उस मौके का फायदा हम भी उठाएंगे।”

 

रत्ना पांडे, वडोदरा (गुजरात) 

स्वरचित और मौलिक  

क्रमशः