Zindagi Zindabaad - 1 in Hindi Thriller by Mehul Pasaya books and stories PDF | ज़िन्दगी जिंदाबाद - 1

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ज़िन्दगी जिंदाबाद - 1

।। एफ.आई.आर की फ़ाईल गायब ।।

माफ किजीये सर दरअसल आने मे देरी हो गई. मोहन ने कहा की...

लेकिन आप लोगो ने आने की तकलीफ ही क्यू की वही पे ही रह जाते. केसेस हम देख लेंगे जो भी आयेंगे. रवि ने कहा की...

सॉरी सर क्या करे ये ट्राफीक है ना. उसमे हम लेट हो गई अगली बार ऐसा ना हो इसका ध्यान रखेंगे. तमन्ना ने भी ये बोलते हुए अपनी बात रखी की...

हा सर सच मे रास्ते मे ट्राफीक बहुत था. तो उसकी वजह से लेट हो गई. हम भी आपसे वादा करते है. की आगे से लेट नही होंगे. मोहन ने कहा...

ठीक है इस बार सुचित करके छोड रहे है. अगली बार ये मौका नही मिलेगा. और हा ये गाडिया किसने पार्क की है. जल्द से जल्द हटाने को बोलो. नो पार्किंग का बोर्ड लगा हुआ है फिर भी. कौन्स्टेबल राघव ने कहा...

हा सर अभी जाते है तब तक के लिए चाय बोलू आपके लिए. और नास्ता भी साथ मे. ईक्स पेक्टर मोहन ने कहा...

जी शुकिया हम घर पर कर के आये. आप पहले ये सब हटाईए थाने की क्या हालत बनाके रख दी है. कौन्स्टेबल रवि शर्मा और सायबर एक्सपर्ट तमन्ना साह आप दोनो इस पुरे पुलिस थाने को सही करोगे मुझे अभी के अभी ये थाना क्लियर चाहिये ईटस एन ऑर्डर. कौन्स्टेबल रवि शर्मा ने कहा...

जी जी सर हम अभी करते है आप बैठिये ना आप क्यू तक़लीफ़ उठा रहे है.राघव ने कहा...

ये लिजिये सर आपके लिए चाय. ईक्स पेक्टर ने बोला की...

अरे राघव जी हमने आप से बोला था की हम नास्ता कर के आये है. फिर भी आप लेकर आ गए. अब आ ही गई है. तो ठीक है लाईये हम चाइ पिते है. और हा गाडिया हटवाने को बोल दिया ना. कौन्स्टेबल राघव ने कहा...

हा सर बोल दिया सब लोग आ रहे है. और उनकी गाडिया ले जा रहे है. ईक्स पेक्टर मोहन ने कहा की...

अरे भाई यहा पर कीसि की फरियाद आती है भी या नही. कौइ बतायेगा भी इसके बारे मे. और एक बात कौन्स्टेबल राघव सिंह. मुझे अभी के अभी एफ.आई.आर की फ़ाईल चाहिये ओके...

ईक्स पेक्टर मोहन ने जैसे ही एफ.आई.आर रिपोर्ट फ़ाईल के बारे मे पुछा. तो कीसि के पास कौइ जवाब ही नही था. राघव ने कहा...

अरे नही सर वो क्या है. ना दरअसल फरियाद लिख्वाने के लिए कौइ आना भी तो चाहिये. ईक्स पेक्टर मोहन ने कहा की...

अच्छा मतलब इस वेल शहर मे कौइ अपराध ही नही होता वाह क्या बात है. फिर तो बहुत अच्छी बात है. हमे ये जान कर अच्छा लगा की कम से कम ये शहर तो क्लियर तरीके से बेहतर है. और शायद मे इस शहर मे ड्यूटी हर्गिज़ नही करना चाहूँगा. क्यू की मे ऐसे शहर मे अपनी ड्यूटी करूंगा जहा अपराध हो. राघव ने कहा की...

जी नही सर ऐसा बिल्कुल नही है. इस शहर जितना अत्याचार होता है. ना वैसा कीसि भी शहर मे नही होता होगा. लेकिन क्या करे लोग ड़र की वजह से पुलिस कम्प्लेन नही लिखवाते. यही सोच कर कही हम और ना फास जाये पुलिस की मदद लेकर. और लिजिये ये रही एफ.आई.आर की फ़ाईल. ईक्स पेक्टर ने कहा...

अरे वाह क्या बात है. पूरी फ़ाईल मे एक भी केस दर्ज नही है. लगता है मुझे डी.एच.पी को फ़ोन लगाकर इस थाने को सिल करवा देना चाहिये क्यू की इस शहर के कर्मचारी अपना काम ठीक से कर नही पा रहे है. और नही वे लोग चाहते है. की इस पुलिस स्टेशन की कीसि को भी जरूरत है.राघव ने कहा...

《 आज के लिये सिर्फ यहा तक आगे जान्ने के लिये पढते रहे जिन्दगी ज़िन्दाबाद. और जुडे रहे मेरे साथ 》