Mahila Purusho me takraav kyo ? - 12 in Hindi Human Science by Captain Dharnidhar books and stories PDF | महिला पुरूषों मे टकराव क्यों ? - 12

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महिला पुरूषों मे टकराव क्यों ? - 12

बुआ केतकी के कुम्हाये चेहरे को देख मुस्कुराई..केतकी ने फोन कट दिया और बुआजी से बोली ..बुआजी अभय की चाय रहने दीजिए वे अभी सो रहे हैं ..बुआ जी ठीक है ..तुम तैयार हो जाओ .. केतकी ने हां में सिर हिलाया .. तुम्हारे भैया को भी उठाकर आ गयी हूँ ..आज हम सभी सालासर बालाजी के दर्शन करने चलेंगे ..केतकी बोली ..बुआजी मैने नाम सुना है पर देखा नहीं ..क्या हम खाटू श्याम जी भी चलेंगे ? बुआजी बोली ..देखो केतकी मैने जितना भाभी से सुना था, वह बता दिया ..ठीक है..केतकी ने कहा बुआजी ! कितने बजे जायेंगे ..बस तुम तैयार हो जाओ ..शायद 09 बजे के लगभग चलेंगे ..

उधर केतकी के पीहर में आसपडौस के लोग जमा हो गये थे ..जब उन्होने सुना कि दामाद का एक्सीडेंट हो गया है ..केतकी मा संतोष का रो रोकर बुरा हाल हो गया था ..वह अपने आपको संभालती तब तक कोई दूसरी महिला आ दमकती ..वही प्रश्न .. कैसे हुआ ..ज्यादा तो नही लगी .. फलानी कह रही थी कि जयपुर लेकर गये हैं ..फिर संतोष शुरू से उन्हे वही सारी कहानी सुनाती ..एक महिला बोली कुंडली तो मिलवाई थी क्या ? मैने सुना है ..केतकी मंगली है ? बेमेल शादी तो नही कर दी ?..फिर वह अपनी कहानी सुनाने लगी ..हमारी मामी की लड़की मंगली थी, मंगलीक लड़का ढूंढना था पर..मामा बोले हम नही मानते कुंडली .. कर दी शादी बिना गुणमिलान के ..छ महिने भी शादी नही चली... पति की एक्सीडेंट से मौत हो गयी ..अब घर बैठी है ..मामा फिर से लड़का ढूंढ रहा है, अब मंगलीक लड़का देख रहे हैं ..मिले तो.. शादी करेंगे .. केतकी मा का ऐसी बाते सुन सुन दिल बैठा जा रहा था ..हालाकि उसे पता है दामाद जी घर आ गये है ठीक है .. किन्तु महिलाओ का क्या ..वे तो बात का बतंगड़ बना ही देती हैं . .. बेचारी संतोष क्या करे.. ऐसा तो सब जगह होता है ..महिला पुरूष जब हालचाल पूछने जाते हैं ..नौटंकी तो करते ही है ..औपचारिकता जो निभानी है, जबकि ..आने वाले लोग पहले ही सब पता करके आते हैं ..फिर भी सारी कहानी घरवालो के मुंह से सुनेंगे ही.. अफसोस जो जताना है ..यह महशूस भी कराना है कि हमको सुनकर बहुत दुःख हुआ है, फिर उससे मिलती जुलती कहानी जरूर सुना देेंगे ।

यह सामाजिक व्यवस्था है, अच्छी भी है । इस प्रकार मिलने जुलने से दुःखी व्यक्ति का ध्यान बंट जाता है, उसका तनाव कम होता है या ऐसा कह सकते है तनाव ज्यादा नही बढता, तनाव एक सीमा पर रूक जाता है । अधिकतर लोगों का ध्येय दुःख को सहने की हिम्मत देना ही होता है । लोग जब मिलने आते हैं तो व्यक्ति अपना दुःख भूलता भी है । कुछ ऐसे भी होते हैं जो अपना दुःख हल्का करने आते हैं । कुछ मूर्ख ऐसे भी होते हैं जो अपनी मूर्खता से मरहम की बजाय घावों को कुरेदने का काम करते हैं ।
मौहल्ले के लोगों के जाने के बाद संतोष अपनी बेटी को लेकर चिंतित हो गयी ..उसे सारे घटनाक्रम याद आने लगे ..दामाद अफसर नही है ..अपने पति का रूखेपन से ब्याई जी से बात करना .. फेरे करवाने के लिए पंडित जी का न मिलना ..फिर जाट पंडित से फेरे करवाना ..शादी में बरातियों का ज्यादा आ जाना ..गणेशपूजन में छींक का होना ..तोरण दो ले आना .. यह सब सोचकर संतोष का चेहरा आशंकित हो गया ..वह मूर्छित हो गयी ..घर में कोहराम मच गया ..पडौसन ने पानी छींटकर उसे होश करवाया ..केतकी का पापा आकर बोला ..संतोष बिना बात ही टेंशन कर रही हो ..मेरी अभी बिल्लू ( बेटा का दोस्त) से बात हुई है ..वे सालासर गये है सभी खुश हैं ..तेरी बात करवा दूंगा ..

उधर केतकी गाड़ी में अभय के साथ नहीं बैठी थी उसने बुआजी की बगल की सीट पर बैठना पसंद किया ..केतकी की सास ने अभय के साथ बैठने को कहा ..फिर भी केतकी झटसे बुआजी के बगल की सीट पर बैठ गयी ..उधर दूसरी गाड़ी में पूरण सिंह केतकी का ससुर व किरायेदार का परिवार और केतकी का भाई व दोस्त बैठे हुए थे ..अभय ड्राईवर के साथ वाली सीट पर बैठा था ..केतकी की सास मन मे सोच रही थी ..इनके बीच में कुछ तो हुआ है ..केतकी के चेहरे पर कल वाली खुशी नहीं है ..केतकी की सास सोचे जा रही है ऐसा क्या हुआ होगा जो दोनों नजरे ही नहीं मिला रहे ..