Suna Aangan - Part 10 in Hindi Moral Stories by Ratna Pandey books and stories PDF | सूना आँगन- भाग 10

Featured Books
  • પ્રેમતૃષ્ણા - ભાગ 11

    “ હા ડો.અવની મલ્હોત્રા “ ખુશી બોલી .“ ઓકે , શાયદ ડો.મલ્હોત્ર...

  • આઈ વોન્ટ ટુ ટોક

    આઈ વોન્ટ ટુ ટોક- રાકેશ ઠક્કરઅભિષેક બચ્ચન પિતા અમિતાભનો અભિનય...

  • ભીતરમન - 59

    મુક્તારના જીવનમાં મારે લીધે આવેલ બદલાવ વિશે જાણીને હું ખુબ ખ...

  • ભાગવત રહસ્ય - 121

    ભાગવત રહસ્ય-૧૨૧   ધર્મ -પ્રકરણ પછી હવે -અર્થ -પ્રકરણ ચાલુ થા...

  • કૃતજ્ઞતા

      આ એ દિવસોની વાત છે જ્યારે માનવતા હજી જીવતી હતી. એક ગામમાં...

Categories
Share

सूना आँगन- भाग 10

अभी तक आपने पढ़ा जब वैजयंती ने माँ को सौरभ के घर में आने और उसके विवाह प्रस्ताव की बात बताई तो पहले वह थोड़ा चौंक गईं और कुछ पल के लिए नाराज़ भी हुईं; लेकिन फिर उन्होंने सोचा कि आख़िर सौरभ ने ग़लत क्या कहा। वह अच्छा लड़का है पर वैजयंती क्या विवाह के लिए मानेगी । उधर वैशाली और नैना वैजयंती के मंगलसूत्र पर नज़र गड़ाए हुए थीं। अब पढ़िए आगे -

ऊषा के मुँह से ऐसा सुनते ही नैना और वैशाली के मन में पनप रहा लालच का पौधा मुरझा गया। सपनों में उस मंगलसूत्र को अपने गले में देखने का उनका सपना टूट गया। 

वैजयंती जवान थी, ख़ूबसूरत थी। घर से बाहर कभी किसी काम से जाती, तब एक जवान बेवा को तंज कसने में कुछ छिछोरे लड़के पीछे नहीं रहते। एक दिन वैजयंती ऊषा के साथ मंदिर जा रही थी। अपने काले घने बालों को खुला आज़ाद छोड़ना तो कब का वैजयंती ने छोड़ दिया था। उसने अपने बालों को समेट कर ऊपर जुड़ा बना लिया था। उसमें भी बिना किसी मेकअप, बिना किसी गहनों के भी सफेद वस्त्रों में वह बहुत ख़ूबसूरत लग रही थी, हमेशा की ही तरह।

तभी राह में चलते एक छबीले ने कहा, "आओ तुम्हारी साड़ी को रंग दूँ।"  

उसके साथी ने कहा, "साड़ी ही क्यों, उसकी मांग ही रंग देते हैं।"

वह पाँच थे, पाँचों कुछ ना कुछ तंज कसते हुए उनके पीछे-पीछे चल रहे थे। एक ने तो यहाँ तक कह दिया, "हम पाँच हैं, चलो इसे द्रौपदी बना देते हैं।"

वैजयंती शांत थी किंतु ऊषा का मन आग बबूला हो रहा था। उसने रुक कर पीछे मुड़कर उन्हें घूर कर देखा और अपने पैरों से चप्पल उतारने लगी। तब वह लोग वहाँ से पलट गए।

ऊषा सोच रही थी एक जवान बेवा को जीवन में कितनी मुश्किलों का सामना करना पड़ता है। ऊपर से यह गुंडे? कहीं किसी दिन कोई उसके साथ …  उस दिन घर पर वह अकेली थी, जब सौरभ आया था। वह तो साफ़ नियत का था। यदि कोई … नहीं-नहीं मुझे वह मंगलसूत्र जो अभि ने वैजयंती को पहनाने के लिए लिया था, उसे पहना देना चाहिए। शायद भगवान की भी इच्छा यही रही होगी। तभी तो अंतिम समय में उसके हाथ से मंगलसूत्र खरीदवाया।

वह मंगलसूत्र वैजयंती के गले में अभि पहनाने वाला था लेकिन वह तो मंगलसूत्र देकर चला गया। गाड़ी को नुकसान हुआ लेकिन मंगलसूत्र का छोटा सा डब्बा सही सलामत रहा। किसी ने उसे चुराने की भी कोशिश नहीं की। जबकि उस समय यदि कोई ले भी लेता तो किसी को भी होश ही कहाँ था। इन सब बातों का तो यही मतलब है कि भगवान भी यही चाहते हैं और अभि की आत्मा भी यह मंगलसूत्र वैजयंती के गले में देख कर ख़ुश ही होगी। वैसे भी मुझे नहीं लगता कि वैशाली वैजयंती का ज्यादा ख़्याल रख पाएगी। अभी हम हैं तो उसे कम से कम हमारा सहारा है, हमारे बाद उसका क्या होगा। हमारी ज़िंदगी कब और कितने दिन ? मुझे वैजयंती को मनाना होगा उसे समझाना होगा। ऊषा रात भर यही सब सोच कर पूरी रात सो नहीं पाई।

वैजयंती को रात में उन लफंगों का वह वाक्य बार-बार सता रहा था कि चलो इसे द्रौपदी ही बना लेते हैं। उसकी आँखों से आँसू गिर रहे थे। उसे आज अभि कि वह बातें याद आ रही थीं, जो उसने उससे जुदा होने के कुछ दिन पहले ही कही थी, "एक विधवा का जीवन कितना मुश्किलों से भरा होता है। क्या हम समाज में देखते नहीं हैं।"

 

रत्ना पांडे, वडोदरा (गुजरात)

स्वरचित और मौलिक

क्रमशः