Vo Pehli Baarish - 18 in Hindi Fiction Stories by Daanu books and stories PDF | वो पहली बारिश - भाग 18

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वो पहली बारिश - भाग 18

"कहां है तू?"

"घर पे, क्यों कोई और ऑर्डर आना है??", कुनाल के इतना बोलते ही ध्रुव फोन काट देता है। और खुद से बोलता है,

"इसे तो मैं बताऊंगा।"

"क्या हुआ?", निया कुनाल से पूछती है।

"झूठ बोला उसने मेरे से!!, पता है, मुझे लगा तो था की कुछ गड़बड़ है, क्योंकि कल जब मैं आया, तो भी वो अंदर भाग गया, फोन के नाम पे, फिर बाद में रिया का पार्सल लिया उसने, पर देने मुझे भेज दिया, जो की कुनाल बहुत गप्पोडी है, ऐसे गप्पे मारने के मौके वो कभी नहीं छोड़ता। और अभी मुझसे झूठ भी बोल रहा है।"

"कुछ तो अजीब भी है, जैसे वो लड़की के पीछे पीछे जा रहा था, साथ की जगह। पर ये सब कैसे?"

"मैं समझ गया!!"

"कैसे?"

"कैसे, तो नहीं पता, पर ये जो घूमने गया था ना, वहीं हुआ है कुछ। तभी से अजीब हरकतें है इसकी।"

"हहमम.. हो सकता है, तो अब क्या?"

"अब क्या, कुछ नहीं। मैं उसकी जिंदगी में क्यों घुसूं।"

"क्योंकि वो तुम्हारा दोस्त है।"

"हां. जिसने मुझे कुछ बताना भी ज़रूरी नहीं समझा। एक जगह जगह जा कर मेरी अपमान कराते रहती है, और दूसरा कुछ बताता ही नहीं है। बस रिया ही है जो ठीक है.."

"है तो एक और भी, लगता है तुम भूल गए।"

"हहह??"

"अन्नू.. भूल गए क्या उसे?"

"एक बात बताओ,अंकित का फोन आया फिर?"

"वो कहां से आ गया बीच में?"

"डिट्टो.. वो कहां से आ गई बीच में। और वैसे, अभी तक किसी ने मुझे सॉरी नहीं बोला है।"

"वो कोई तुम्हें सॉरी बोलेगा भी नहीं, तुम देखना, अंकित से बात करके, अब तो मैं तुम्हें गलत ही साबित करके बताऊंगी।"

**********************

"नहीं नहीं.. मैं फ़ोन करु भी तो कैसे।"
अपनी और अंकित की पुरानी मुलाकात को याद करते हुए निया ख़ुद से बोली।

वो सोच ही रही थी, की कुछ दिनों पहली की उसकी और अंकित का मिलना उसकी आंखों के सामने चलने सा लग गया।

बस स्टॉप से उतर कर भागी भागी निया, अंकित के घर की ओर बढ़ रही थी।

"फ़ोन उठा लो...ऐसे मत जाना।", फोन में देखते हुए, रोड़ पार करती हुई, निया खुद से बोल रही थी।
रोड़ पार कर के हल्की दूर चली ही थी वो, की उसका पैर पत्थर से जा टकराया, और वो एक दम से गिर गई।

वहीं रोड की इस तरफ़ से बस से उतरा, अंकित उसके पीछे से आ रहा था।

"निया?", पैर के पकड़ नीचे बैठी निया को पीछे से देख कर अंकित थोड़े ज़ोर से बोला।

"तुम यहां? ओह.. ये कैसे?? क्या हो गया है तुम्हें?", अंकित निया के आगे मदद के लिए हाथ बढ़ाता है, और पास ही उसकी सोसायटी के बेंच पे ले जा कर उसे बैठा देता है।

"अब बताओ ये कैसे हुआ?", अंकित ने पूछा।

"तुम कहां जा रहे हो और क्यों?", निया एकदम से बात पलटते हुए बोली।

"मैं वो.. मैं बाहर जा रहा हूं, इन लोगों ने मेरा नाम दिया था, और अब फाइनली मैं सेलेक्ट हो गया तो जा रहा हूं बस।"

"पर तुमने कभी बताया नहीं की तुम्हें बाहर जाना था।"

"हां.. बस ऐसे ही.. ये और कई बातें और थी, जो हमने कभी एक दूसरे से करी ही नहीं।"

"अच्छा.. यही बात है या फिर तुम इस ब्रेकअप की वजह से, अपना मन बहलाने जा रहे हो?"

"नहीं निया। मैं जानता हूं की तुम्हें बहुत बुरा लग रहा था.."

"बताना तो मैं उस दिन चाहती थी, पर अपने गुस्से में बता ही नहीं पाई। पता है, मैं यहां आ गई हूं। यहां, तुम्हारे घर के बिल्कुल पास, सिर्फ 10-15 मिनट के रास्ते पे। हम अब जब चाहे तब मिल सकते है, कोई दिक्कत नहीं होगी।"

"पता है।"

"पता है? बस इतना सा जवाब, पता था तो मिलने क्यों नहीं आए अभी तक? तुम एक बार बोल कर देखो, सब पहले जैसा हो जाएगा।"

"नहीं चहिए, नहीं चहिए कुछ भी पहले जैसा। बताया तो था ना, की दम घुटता था मेरा, और तुम हो की तुम्हें अपनी लगी हुई है।"

"अपनी लगी हुई है?? सच में, तुम्हें ये लगता है? तुम तो हमेशा की तरह कुछ भी बोल कर निकल लिए, और मैं तो उस दिन से बाहर भी नहीं आ पाई अब तक। कभी आइस क्रीम खा रही हुं, तो कभी कुछ। जैसे ही पता लगा यहां भागी भागी आ गई, बावजूत इसके की मैंने आज एक दोस्त को मदद करने का वादा किया था, बावजूद इसके की तबियत ठीक ना होने की वजह से मैंने कुछ देर पहले ही दवाई खाई।"

"तो तुम समझती क्यों नहीं हो, बाहर निकलो उस दिन से.. और इन सब चीजों से.. "

"पर.."

"इस समय तुम्हारे लिए सबसे बेहतर होगा, की तुम यहां से चली जाओ।"

"चली जाऊं?"

"हां"

"ठीक है, पता लगेगा तुम्हें एक दिन की मैं क्या कह रही थी, देखना जल्दी समझ आएगी, की मैं क्या कह रही थी। सब छोड़ के भागना आसान तो होता है, पर बाद में पछतावा भी बहुत होता है।"

"आई एम सॉरी। मैं जानता हूं की मैं जो तुम्हारे साथ कर रहा हूं, वो बिलकुल भी अच्छा नहीं है, पर इसी में हम दोनो की भलाई है।"

"हां बिल्कुल.. जा रही हूं मैं। कोई तमाशा नहीं करूंगी, फिकर मत करो।", ये बोल निया उस बेंच से उठ खड़ी हुई, और धीरे धीरे चल दी।

वापसी की बस में बैठते ही, निया ने टाइम देखा, तो काफी लेट हो चुकी थी, और ध्रुव को कॉल करके कुछ भी कहना उसने ठीक नहीं समझा। उसकी जगह रिया को फ़ोन करके वो बोली।

"रिया, मुझे बस स्टॉप से ले जा, बहुत दर्द हो रहा है, पैर में, तुने कहा था ना, की मदद चाहिए हो, तो बोलना चाहिए।"

"हां.. बस स्टॉप पे है?"

"पहुंच गई बस", ये सुन बस स्टॉप जाने के लिए रिया फटाफट भागी।

रिया हाथ पकड़ निया को ला ही रही थी, की तभी उसने देखा की निया की आंखे बंद हो रही है।

"ओए.. क्या हुआ?"

"वो मैं सही से सोई नहीं कई दिनों से, और ऊपर से मैंने बुखार और सर्दी की दवाई ले ली जिससे अब नींद आ रही है।"
वो दोनो बिल्डिंग के बाहर पहुंचे ही थे, की रिया का फ़ोन बज पड़ा,
"सॉरी.. ज़रूरी फोन है, मैं बस 5 मिनट में आई", निया को बिल्डिंग के बाहर बैठा कर रिया बोली।
"और निया.. वहीं सिर झुका कर बैठ गई।"