Meena Kumari...a painful story - 5 in Hindi Moral Stories by Sarvesh Saxena books and stories PDF | मीना कुमारी...एक दर्द भरी दास्तां - 5

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मीना कुमारी...एक दर्द भरी दास्तां - 5

मीना कुमारी ने फिल्म की कहानी को पढ़ा और इस फिल्म के लिए हां कह दी और इसी साल 21 मार्च 1954 को मीना कुमारी को पहला फिल्मफेयर अवार्ड मिला यह अवार्ड फिल्म" बैजू बावरा" के लिए था और उस जमाने में फिल्म फेयर अवार्ड मिलना एक बहुत बड़ी उपलब्धि माना जाता था, उपलब्धियों का दौर यूं ही नहीं खत्म हुआ क्योंकि अगले साल 1954 में मीना कुमारी को दोबारा फिर फिल्म फेयर अवार्ड मिला जो था फिल्म "परिणीता" के लिए अब मीना कुमारी एक बहुत महंगी एक्ट्रेस बन गई थी |

मीना कुमारी और कमाल की जिंदगी बहुत ही सुकून से कट रही थी, उन्होंने पाली हिल में बंगला खरीदा और मीना कुमारी ने देखते-देखते कमाल की पहली पत्नी और बच्चों को भी बहुत प्यार से अपना लिया |

1955 में आई फिल्म "अमर वाणी", "बंदिश", "शतरंज", "रुखसाना", "मेम साहब" "आजाद" यह सारी फिल्में बहुत हिट हुई और इन्हीं में से एक फिल्म के लिए शूटिंग के लिए मीना कुमारी को पहली बार दक्षिण भारत जाना था, इसके पहले वह कभी दक्षिण भारत नहीं गई थी उन्होंने कमाल से साथ चलने की जिद की और कमाल मान गए, दोनों शूटिंग के बाद साथ में घूमते और अपनी खुशनुमा जिंदगी जीते और यही कमाल साहब को विचार आया "पाक़ीज़ा" बनाने का जी हां पाक़ीज़ा बनाने का विचार 1955 में कमाल और मीना कुमारी जी को आया, कमाल चाहते थे कि मीना कुमारी ही पाक़ीज़ा का रोल करें, उसके बाद न जाने क्या हुआ, किसकी इन दोनों के रिश्तो को नजर लग गई, वहां से वापस लौटे तो इन दोनों में धीरे-धीरे तकरार होने लगी |

मीना कुमारी बुलंदियों को छूते जा रही थी जो कहीं ना कहीं कमाल को बुरा लग रहा था, अब हर कोई मीना कुमारी की बात करता कमाल की नहीं |

मीना कुमारी दिन रात काम करती, मीना कुमारी का रात में देर से आना, सुबह जल्दी जाना यह सब कमाल को पसंद नहीं आ रहा था, दोनों में अनबन इतनी बढ़ गई कि दोनों ने एक दूसरे से बात करना छोड़ दिया, रोज की घुटन भरी जिंदगी से एक दिन दोनों ने बैठकर आपस में बात करी और फिर कमाल ने मीना कुमारी के लिए कुछ शर्तें रखी |

पहली शर्त - शाम 6:30 बजे हर हाल में वह घर आ जाएंगी ताकि घर को समय दे सकें |

दूसरी शर्त - मीनाकुमारी के मेकअप रूम में कोई आदमी नहीं जाएगा |

तीसरी शर्त - मीना कुमारी सिर्फ अपनी कार से ही आएंगी जाएंगी |

इन तीनों शर्तों से कहीं ना कहीं ऐसा लग रहा था कि कमाल अमरोही उनकी सफलता से खुश नहीं है और उन पर शक़ करते हैं जिसने अपना परिवार उनके लिए छोड़ दिया, मीना कुमारी के सफलता के आगे उन्हें अपना करियर बहुत छोटा सा लगने लगा था और शायद यही वजह थी उन दोनों में मनमुटाव की |

मीना कुमारी ने इसके बाद "चित्रलेखा" "शारदा" "चिराग कहां रोशनी कहां" "कोहिनूर" और "दिल अपना प्रीत पराई" फिल्म 1960 में कई, जो इतनी सफल रही थी आज भी उस फिल्म के गाने और कहानी तरोताजा सी लगती है |

सफलता उनके कदम चूम रही थी लेकिन उनकी निजी जिंदगी जैसे उनको किसी खाई के अंदर धकेल दे रही थी, मीना कुमारी अंदर ही अंदर घुट रही थी कमाल अमरोही की तीनों शर्तें धीरे-धीरे टूटने लगीं |